(सृष्टि का जन्म कैसे हुआ , इस पर लगातार बहस चल रही है। हालॉंकि वैज्ञानिक जगत में " बिग-बैंग सिद्धांत " ही महत्वपूर्ण माना जात...
(सृष्टि का जन्म कैसे हुआ, इस पर लगातार बहस चल रही है। हालॉंकि वैज्ञानिक जगत में "बिग-बैंग सिद्धांत" ही महत्वपूर्ण माना जाता है, पर इससे सम्बंधित अन्य मत भी जानना एक रोचक अनुभव हो सकता है। इसी विश्वास के साथ प्रस्तुत है सृष्टि की उत्पत्ति के सम्बंध में वैदिक मत।)
श्रृष्टि व जीवन की उत्पत्ति सम्बंधी वैदिक मत भाग 2 से आगे-----
:११.भाव पदार्थ निर्माण(विक्रतियां या भाव रूप श्रष्टि---सभी भाव मूल रूप से अहं(सत,तम.रज गुणों सहित) के परिवर्तित रूप से बने-
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'तस्लीम' में पढें - 'आखिर पकड में आ ही गया लता का भूत '
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श्रृष्टि व जीवन की उत्पत्ति सम्बंधी वैदिक मत भाग 2 से आगे-----
:११.भाव पदार्थ निर्माण(विक्रतियां या भाव रूप श्रष्टि---सभी भाव मूल रूप से अहं(सत,तम.रज गुणों सहित) के परिवर्तित रूप से बने-
--अहं के तामस भाव से--शब्द,आकाश,धारण,ध्यान,विचार,स्वार्थ,लोभ,मोह,भय,सुख-दुख आदि।
--अहं के राजस भव से --५ ग्यानेन्द्रियां-कान, नाक, नेत्र, जिव्हा, त्वचा
--५ कर्मेन्द्रियां --वाणी, हाथ, पैर, गुदा, उपस्थ व रूप भाव से तैजस(वस्तु का रसना भाव)
जिससे जल के सन्योग से गन्ध सुगन्ध आदि बने।
--अहं के सत भाव से ---मन (११वीं इन्द्रिय), ५ तन्मात्रायें(ग्यानेन्द्रियों के भाव- शब्द, रूप, स्पर्श,गन्ध, रस) एवम १० इन्द्रियों के अधिष्ठाता देव ।
१२.समय ( काल )-- अन्तरिक्ष में स्थित बहुत से भारी कणो ने, मूल स्थितिक ऊर्जा, नाभीय व विकिरित ऊर्ज़ा, प्रकाश कणों को अत्य्धिक मात्रा में मिलाकर कठोर-बन्धनों वाले कण-प्रतिकण (राक्षस) बनालिये थे. वे ऊर्जा का उपयोग रोक कर प्रगति रोके हुए थे। पर्याप्त समय बाद क्रोधित इन्द्र ( रासायनिक प्रक्रिया--यग्य) ने बज्र (विभिन्न उत्प्रेरक तत्वों) के प्रयोग सेउन को तोडा। वे बिख्रे हुए कण-काल कान्ज या समय के अणु कहलाये। इन सभी कणों से-----
१.---विभिन्न ऊर्जायें,हल्के कण व प्रकाश कण मिल्कर विरल पिन्ड (अन्तरिक्ष के शुन) कहलाये जिनमें नाभिकीय ऊर्ज़ा के कारण सन्योजन व विखन्ड्न (फ़िज़न व फ़्यूज़न) के गुण थे, उनसे सारे नक्षत्र (सूर्य तारे आदि),
आकाश गंगायें(गेलेक्सी) व नीहारिकायें(नेब्युला) आदि बने।
२.---मूल स्थितिक ऊर्ज़ा, भारी व कठोर कण मिलाकर, जिनमें उच्च ताप भी था, अन्तरिक्ष के कठोर पिन्ड, ग्रह, उप ग्रह, प्रथ्वी आदि बने। --क्योंकि ये सर्व प्रथम द्रश्य ग्यान के रचना-पिन्ड थे व एक दूसरे के सापेक्ष घूम रहे थे ,इसके बाद ही अन्य द्रश्य रचनायें हुईं अतः समय की गणना यहीं से प्रारम्भ मानी गई।
(शायद इन्हीं काल-कान्ज कणों को विज्ञान के बिग-बेन्ग -विष्फ़ोट वाला कण कहा जा सकता है। आधुनिक विज्ञान यहां से अपनी श्रष्टि-निर्माण यात्रा प्रारम्भ करता है।)
१३.जीव-श्रष्टि की भाव संरचना-- वह चेतन पर ब्रह्म, परात्पर-ब्रह्म, जड व जीव दोनों में ही निवास करता हैउस ब्रह्म का भूः रूप (सावित्री रूप) जड श्रष्टि करता है एवम भुवः (गायत्री) जीव श्रष्टि की रच् ना करताहै। इस प्रकार---
---परात्पर (अव्यक्त) से परा शक्ति (आदि शंभु-अव्यक्त) एवम अपरा शक्ति (आदि माया-अव्यक्त) इन दोनों के संयोग से महत-तत्व (आदि जीव तत्व-व्यक्त)।
---महत्तत्व से =आदि विष्णु (व्यक्त पुरुष) व आदि माया (व्यक्त अपरा शक्ति)।
----आदि विष्णु से--महा विष्णु, महा शिव, व महा ब्रह्मा- क्रमशः-पालक, संहारक व धारक तत्व, एवम
---आदि माया से-- रमा-उमा व सावित्री, क्रमशः- सर्जक, संहारक व स्फ़ुरण तत्व बने।
महा विष्णु व रमा के संयोग (सक्रिय तत्व कण व स्रजक ऊर्जा के संयोग) से अनन्त चिद बीज या हेमांड या ब्रह्मान्ड या अन्डाणु उत्पत्ति हुई,जो असन्ख्य व अनन्त संख्या में महाविष्णु (अनन्त अंतरिक्ष में) के रोम-रोम में (सब ओर बिखरे हुए) व्याप्त थे। प्रत्येक हेमान्ड की स्वतन्त्र सत्ता थी। प्रत्येक हेमान्ड में- महाविष्णु से उत्पन्न, विष्णु-चतुर्भुज, (स्वयम भाव) व लिंग महेश्वर और ब्रह्मा (विभिन्नान्श), तीनों देव (त्रिआयामी जीव सत्ता) ने प्रवेश किया। इस प्रकार इस हेमान्ड में-- त्रिदेव, माया, परा-अपरा ऊर्जा, द्रव्य प्रक्रति व उपस्थित विश्वोदन अजः उपस्थित थे, श्रष्टि रूप में उद्भूत होने के लिये। (अब आधुनिक विज्ञान भी यही मानता है कि अन्तरिक्ष में अनन्त-अनन्त आकाश गंगायें, अपने-अपने अनन्त सौर-मन्डल व सूर्य, ग्रह आदि के साथ, जो प्रत्येक अपनी स्वतन्त्र सत्तायें हैं।
१४.श्रष्टि निर्माण ग्यान भूला हुआ ब्रह्मा- (निर्माण में रुकावट)- लगभग एक वर्ष तक (ब्रह्मा का एक वर्ष=मानव के करोडों वर्ष) ब्रह्मा- जिसे श्रष्टि निर्माण करना था, उस हेमान्ड में घूमता रहा। वह निर्माण-प्रक्रिया समझ नहीं पा रहा था। (आधुनिक विज्ञान के अनुसार- हाइड्रोजन, हीलियम- समाप्त होने पर निर्माण क्रम युगों तक रुका रहा, फ़िर अत्यधिक शीत होने पर ऊर्जा बनने पर ये क्रिया पुनः प्रारम्भ हुई।)
----जब ब्रह्मा ने विष्णु की प्रार्थना की तथा क्षीर सागर (अन्तरिक्ष, महाकाश,ईथर) में उपस्थित, शेष-शय्या (बची हुई मूल संरक्षित ऊर्जा) पर लेटे नारायण (नार= जल, अन्तरिक्ष; अयन= निवास, स्थित ,विष्णु) की नाभि (नाभिक ऊर्जा) से स्वर्ण कमल (सत, तप, श्रद्धा रूप आसन) पर वह ब्रह्मा (कार्य रूप) अवतरित हुआ। आदि माया सरस्वती (ज्ञान भाव) का रूप धर वीणा बजाती हुई (ज्ञान के आख्यानों सहित) प्रकट हुई एवम ब्रह्मा के ह्रदय में प्रविष्ट हुई, और उसे श्रष्टि निर्माण क्रिया का ज्ञान हुआ।
१५. ब्रह्मा द्वारा श्रष्टि रचना का मूल सन्क्षिप्त क्रम- चार चरणों में रचना
---प्रथम चरण (सावित्री परिकर)-- मूल जड-श्रष्टि कि रचना--जो निर्धारित, निश्चित अनुशासन (कठोर रासायनिक व भौतिक नियमों) पर चलें, व सततः गतिशील व परिवर्तन शील रहें।
--तीन चरण( गायत्री परिकर) जीव सत्ता जो-
१. देव- सदा देते रहने वाले, परमार्थ भव से युक्त- प्रथ्वी, अग्नि, पवन, वरुण एवम ब्रक्ष (वनस्पति जगत)
२. मानव--आत्म बोध से युक्त, ज्ञान कर्म मय पुरुषार्थ युक्त, जो प्रिथ्वी का सर्वश्रेष्ठ तत्व हुआ।
३.प्राणि जगत- प्रक्रति के अनुसार, सुविधा भव से जीने वाले, व मानव एवम वनस्पति व भौतिक जगत के मध्य सन्तुलन रख्ने वाले जीव।
क्या यह एक संयोग नहीं है कि विज्ञान जीवन को संयोग से मानता है (बाइ चांस) वहीं वेद उसे महा विष्णु व रमा (पुरुष व प्रक्रति) के संयोग से कहता है। हां यह संयोग ही है।
-डा0 श्याम गुप्ता
--क्रमशः श्रष्टि विनिर्माण प्रक्रिया व प्रलय।---------------------------------------------------------------------------------------
'तस्लीम' में पढें - 'आखिर पकड में आ ही गया लता का भूत
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आपके लेख बहुत ज्ञानवर्धक हैं
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteबहुत सुंदर व्याख्या .
ReplyDeleteबहुत अच्छा आलेख. फुर्सत में एक बार फिर से पढना पड़ेगा.
ReplyDeleteफिर से पढूं तब शायद कुछ पल्ले पड़े -मुझे लगता है कि यह लोक संवाद के भाषा शिल्प के अनुरूप नहीं है ! जब मेरे ही पल्ले नहीं पड़ रहा है तो आम पाठक बिचारे तो सर थाम के बैठ जायेंगें !
ReplyDeleteलो जी, जब ज्ञानियों के ही पल्ले नहीं पड रहा तो फिर हमारे जैसे आम मूढमति लोगों को ये सब कहां समझ में आने वाला है..:)
ReplyDeleteकमाल का ब्लॉग है आपका विस्तार से पढूँगा और फिर टिप्पणी दोबारा दूँगा। विनय भाई अक्सर आपसे मेरे बारे में यही कहते होँगे कि बहुत तंग करता है प्रकाश बादल! हा हा हा अच्छे ब्लॉग के लिए बधाई!
ReplyDeleteधन्यवाद बादल भाई
Deleteश्री वत्स व अरविन्द मिश्रा जी,
ReplyDeleteविनय, मनोज,अभिषेक व प्रकाश भाई को तो समझ में आया। यह अत्यन्त गूढ विषय तो है ही,(सन्सार का गूढ्तम विषय व प्राचीन तम वेग्यानिक साहित्य ) , भाषा-शब्द तो वही बोलचाल के हैं, हां अर्थ तो विशिष्ट होंगे ही , कोष्टक में सामान्य विग्यान के शब्द भी इसीलिये दिये हैं ।प्रयास करें ।
श्याम जी, वाकई आपके आलेख को समझना टेढी खीर साबित हो रहा है।
ReplyDeleteKafi kuchh naya janne ko mil raha hai...
ReplyDeleteBahut kuch janne ko mila.Aabhar.
ReplyDeleteआपकी पोस्ट का हमेशा इंतजार रहता है
ReplyDeleteआपका श्रृष्टि वर्णन क्रमिक है तो इस प्रकार से "११.भाव पदार्थ निर्माण " पहले हुआ और "१५. ब्रह्मा द्वारा श्रष्टि रचना " बाद मे यदि ऎसा हुआ है तो भाव को संरछित कहाँ किया गया ?
एक अन्य प्रश्न भी है क्या यह् वेद वर्णन का भौतिकीकरण है ?
अनूठी व्याख्या.
ReplyDelete1. sab mahaakaash,antariksh men sanrakshit rahe. jaise lakadee kee kursee banane se pahale vah braksh men sanrakshit rahatee hai.
ReplyDelete2.haan ,yah vaidik vigyaan kaa aadhunik vigyaan ke saath taadaamyeekaran hai. vastutah donon varnano men koee antar naheen , bas kahane kaa bhaav - vyaktinishth va samaaz evam eeshvar nishth hai- taaki maanav ko aham na hojaay ki bah hee sab kuchh hai.
jaakir ji,
ReplyDeletetedi to hai, duniyaa kaa goodtam vishay, par aapko KHEER lagaa, yah prasannataa ki baat hai,
dhanyvaad.