Home-डा0 अरविंद मिश्र

आईये छद्मविज्ञान बाचें !

"बड़े पहुंचे हुए हैं गुरू जी ,आज इनका प्रवचन होगा प्राचीन भारत में विज्ञान पर ,अच्छा है आप भी आयें है अपनी श्रवनेंद्रियाँ तृप्त कर लें ...

कुछ बातें अन्तरिक्ष में आदमी की दिनचर्या की !
विज्ञान जगत की दो बड़ी ख़बरें : चाँद पर पानी और अमरता की ओर बढ़ते कदम ....!
झीनी होती झरती जाती ओजोन की छतरी !
"बड़े पहुंचे हुए हैं गुरू जी ,आज इनका प्रवचन होगा प्राचीन भारत में विज्ञान पर ,अच्छा है आप भी आयें है अपनी श्रवनेंद्रियाँ तृप्त कर लें आज"
एक भक्त ने पूरे भक्ति भाव से कहा -मैं उसके मुंह पर सहसा उभर आए गुरुभक्ति के रौद्र भाव से सहमता हुआ चुपचाप बगल में जा बैठा ! प्रवचन जल्दी ही शुरू हो गया !

" डी एन ए क्या है -ब्रह्मा विष्णु और महेश के साथ एक नारी शक्ति मतलब चार स्तम्भ -यानि आधार यह बात तो हमारे वैदिक ऋषि को भी मालूम थी ! और सर्जरी -कैसे बालक गणेश का सर काट कर शंकर जी ने हांथी का सर लगा दिया था -कितने कुशल सर्जक थे वे ! आज के वैज्ञानिक क्या यान बनायेगें ? पुष्पक विमान देखो इससे भी अच्छा विमान बन सकता है बोलो ,बोलो बन सकता है -..."

भीड़ ने जयकारा लगाया -नहीं नही गुरु जी ,आप महान हैं -जय हो जय हो गुरु जी की जय हो ......

मैं हताश पस्त इस देश की मनीषा के इस कदर तक के अधिपतन से क्षुब्ध होता प्रवचन स्थल से चल पड़ा -लोगों की नजरों ने पीछा करते हुए मानों पूंछा कितने हतभाग्य हो अमृत वचनों से जीवन को धन्य करने के बजाय सांसारिक मोहमायाकी ओर चल पड़े ! अब मैं क्या कहूं ? धर्म और आधुनिक विज्ञान के इस घालमेल को मैं कभी पचा नहीं पाता -यही तो है क्षद्म विज्ञान (सूडो साईंस ) और इसके एक नहीं दस शीश हैं और यह प्रलाप ही करता रहता है ! रावण की तरह !

कितना ही अच्छा होता गुरू महराज केवल हिन्दू त्रिदेवों के बारे में ही बताते -त्रिदेवों की कल्पना के पीछे के सुंदर भाव को समझाते -वे तो लगे उससे डी एन ए को जोड़ने ! और हाँ यह सच है प्लास्टिक सर्जरी का आविष्कार सुश्रुत ने ईसा के पहले ही कर दिया था जब उन्होंने चेहरे की विकृति को दूर करने के लिए शरीर के एक दूसरे हिस्से से चमड़ी काट कर काले चीटों के मुंह की मदद से उसे चेहरे पर स्थिर /स्टिच कर दिया था -पूरा विवरण सुश्रुत संहिता में है -आज विश्व इस बात को मानता है -प्लास्टिक सर्जरी भारत में अन्वेषित हुई ! पर गुरू जी तो गणेश जी के हांथी के सर को ले बैठे जो महज कपोल कल्पना से बढ़ कर कुछ नहीं !

क्या यह कम रोचक लगता है कि भारतीय मनीषा ने एक ऐसे यान की परिकल्पना हजारो साल पहले कर दी थी जिसमें एक वी वी आई पी सीट हमेशा खाली रहती थी -वह बिना चालाक का यान था और उसे हर्ष विशाद का अनुभव भी होता था -रांम ने जब उससे अयोध्या पहुँचने पर वापस जाने का आदेश दिया तो वह हर्ष और शोक दोनों से ग्रस्त हो गया -हर्ष इसलिए कि स्वामी कुबेर के पास जाने के अनुमति और शोक राम का सानिध्य छूटना !
यह बताओ न गुरू जी !

इसलिए क्षद्म विज्ञान से और गुरू जी से दूर से ही नमस्कार ! ऐसे लोग कितना नुक्सान कर रहे हैं हमारी ज्ञान की थाती का यह शायद वे नहीं जानते और यदि यह सब लोग जान बूझ करते हैं तो यह अक्षम्य अपराध है -वे सब रौरव नरक के अधिकारी हैं !
  1. प्राचीन ग्रंथों में सत्‍य , असत्‍य(जो सत्‍य न होते हुए भी समाज के हित में थे)और कल्‍पना (जिनका कोई अस्तित्‍व ही नहीं है , पर वह भी समाज के हित में ही थी), इन तीनों का इतना घालमेल किया गया है कि ग्रंथों को पढनेवालों के लिए भी वास्‍तविकता को समझ पाना काफी कठिन हो जाता है। यदि नादानी में ग्रंथों के आधार पर गलत विश्‍लेषण किया जाए तो अधिक दिक्‍कत नहीं है , पर समाज को गुमराह करने के लिए यदि ग्रंथों का उपयोग किया जाता है , तो यह अवश्‍य गलत है।

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  2. हा हा हा ..सहमत हूँ आपसे आज पहली बार :-)

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  3. अरविंद जी आप से पूरी तरह से सहमत। लोग साहित्य को इतिहास और कल्पना को विज्ञान साबित करने में लगे हैं। आखिर दुकानें जो चलानी हैं। पापी पेट का सवाल है जी।

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  4. रौरव नरक के अधिकारी हैं !
    नो नो! रौरव नर्क ग्रेड H1D-II के। टु बी प्रिसाइज़!

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  5. अरविन्द जी, आप स्वयम इन्टेर्नेट पर रावण के बारे में पढिये, क्योंकि आप जैसे लोग पश्चिम को ही सच मानते हैं, वहां आपको सचित्र व व्याख्या सहित पुष्पक एवम अन्य प्रकार के विमानॊं क वर्णन मिलेगा। रावण संहिता, वैमानिकी,आदि विस्त्रत रूप से बताया गया है।
    इसी प्रकार रिग्वेद व यज़ुर्वेद ध्यान से पढिये, पढने का कष्ट तो करिये,सब कुछ मिलेगा।यह वस्तुतः अति विकसित सर्ज़री ही थी,वहां घोडे का सिर, विभिन्न जोडों को बदलने का भी वर्णन मिलेगा।
    क्या आज से २० साल पहले आप सोच सकते थे ,रिमोट के बारे में ?
    यह सत्य ही है कि त्रिदेव-ओर कुछ नहीं, वही एलेक्ट्रोन,प्रोटोन,न्युट्रोन हैं।
    आप टी वी पर कन्गारू को आस्त्रेलिया लिखा मानलेते हैं ,क्यों? बस सामान्य जनता को बताने के लियेएवम सन्क्षिप्तता के लिये छद्म व चिन्हित
    शब्द व भाव अपनाने होते हैं, गणित के सूत्रों की भान्ति।
    क्या कम्पुटर स्वयम गणना नहीं करता, जिस ट्रान्स्लिट्रेशन से में लिख रहा हूं वह अन्ग्रेजी के एन को न या ण में स्वयम बदलदेता है शब्द की आवश्यकतानुसार, क्या यह अत्यन्त प्रारम्भिक अवस्था का भाव -पहिचान नहीं है? तो पुष्पक विमान को हर्ष व शोक क्यों नहीं हो सकता।
    वस्तुतः यह छद्म -विग्यान नहीं हम भारतीयों का छद्म-ग्यान है। तथा आप जैसे लोग ग्यान की उच्च धाराओं पर अन्वेषण की बज़ाय उसे हानि पहुंचाने में लगे हैं। इसी अग्यानता , स्वयम को भूलकर नकारना, आत्म्हीनता ,से ग्रसित होने के कारण हम पराधीन हुए ओर आज अप सन्स्क्रति के आधीन हैं।
    आधुनिकता , इतिहास व प्राचीन उपलब्धियों को भूलकर नहीं ,उन्हे साथ लेकर चलने को कहते हें ।
    "" जिन खोजा तिन पाइया गहरे पानी पैठ""
    और अन्त में---आप रौरव नर्क को मानते हैं,तभी तो किसी को वहां भेजने को रिकमन्ड करेंगे????

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  6. आडम्बरी गुरु के वेश में अबूझों को अपने नकली इन्द्रजाल में फंसा रहे है> ये लोग हमारी प्राचीन संपदा का दोहन कर नोट छापने में लगे है..

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  7. संगीता जी ने सही कहा है - सब कुछ इतना घालमेल है कि कोई स्पष्ट धारणा नहीं बनायी जा सकती ।
    प्रकारांतर से सहमत हूँ आपसे ।

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  8. Sangita ji ki baat -' समाज को गुमराह करने के लिए यदि ग्रंथों का उपयोग किया जाता है , तो यह अवश्‍य गलत है।'
    ka samarthan karungi.

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  9. अब जो गुरु बन के बताएँगे जनता उसकी को सच मान लेती है .. सही लिखा है आपने ..बात समझने की है ..

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  10. किसी भी प्राचीन ग्रन्थ में सत्य,असत्य और कल्पना के घालमेल जैसा कुछ नहीं है। अगर हम लोग आज उन्हे समझने में असमर्थ हैं तो ये हमारा दोष है, न कि पुरातन ग्रन्थों का। तथा इन्हे न समझने के भी मुख्यत: दो कारण दिखाई देते हैं।
    एक तो इन्हे लिखते समय बहुत ही अलंकारिक भाषा का प्रयोग किया गया है, जिस कारणवश इनमे वर्णित घटनाओं को अलौकिक मान लिया गया है.दूसरा शाब्दिक परिवर्तन जो कि हर युग और हर कार्यक्षेत्र में समय समय पर होते रहते हैं, जिनका अर्थ समझने के लिए शब्दकोष भी सहायक नहीं हो पाते।
    समय की मांग तो यही है कि इनमे वर्णित तथ्यों का अन्वेषण करके इनकी सत्यता को जाँचने का प्रयत्न किया जाए, न कि ढकोसला/अंधविश्वास कह कर अपनी तथाकथित प्रगतिशीलता का परिचय दिया जाए।
    बाकी डा.श्याम गुप्ता जी के कथन से पूर्णत: सहमति है।

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  11. गुप्त जी .
    भारतीय मनीषा को खतरा किससे है यह तो स्वयम स्पष्ट है -आप से विनती है की आप प्राच्य ज्ञान , वैदिक और वेदान्त के विषयों को जस का तस तो रखें पर इस देश की खातिर उनका भाष्य मत किया करें -बहुत मनीषी पहले ही भाष्य कर चुके हैं ! उनसे काम चलाये .
    आप ऐसा घालमेल कर रहे हैं की स्तब्ध हूँ !
    मैं उन्मुक्त जी जैसा विनम्र नहीं हूँ की यह कह दूं की मुझे हिदू धर्म दर्शन का रंह मात्र ज्ञान नहीं है ! मैं थोडा उद्धत हूँ -आप जिस विषय वेड वेदान्त /उपनिषद /महाकाव्य /पुराण पर चाहें चर्चा कर लें मगर इस ब्लॉग पर नहीं !

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  12. यदि यह मान भी लें कि प्राचीन भारतीयों के उर्वर मस्तिष्क की हर परिकल्पना सिद्धांत, नियम और ठोस संरचना में घनीभूत होने योग्य है तो उससे क्या हासिल होगा?
    हम वर्तमान के उन्नत होते विज्ञान का सहारा लें या लुप्त हो चुके ज्ञान और परम्परा को दुबारा 'खोजने' के भगीरथ तप में लगें?
    मुझे तो पहली राह ही ठीक लगती है।

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  13. आपने सही निरुपित किया है .

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  14. "" जिस वस्तु पर विज्ञान की मुहर लग जाये केवल वही सत्य है ""
    ये तो मैं मान नहीं सकता और आप भी शायद इस कथन से सहमत न होगें
    अभी विज्ञान खुद का कितना विस्तार कर पाया है इस विशय में मुझसे बेहतर आप जानते हैं

    वीनस केसरी

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  15. जो लोग छ्द्म ज्ञान और विज्ञान को एक कर रहे हैं वे पहले ज्ञान और विज्ञान मे फर्क जान लें विज्ञान को सही अर्थ मे जानने के पश्चात ही छद्मविज्ञान को जान सकते हैं.विज्ञान के नाम पर गुम्राह किया जाना ही छड्म विज्ञान है .आजकल यही चल रहा है.

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  16. पोस्ट और प्रतिक्रियाओं को देखकर तो यही लग रहा है कि 'असोसिएशन' पर गूगल या किसी भी अन्य रैंकिंग के टॉप 10 में आने से भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण जिम्मेवारी निभाने का दायित्व आ गया है.

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  17. वाकई में, ये बातें सोचने वाली हैं
    हमारे वैज्ञानिक हमारे वेदों पर ध्यान क्यों नहीं देते

    मैने सुना है, विदेशी लोग, वेदों से काफी ज्ञान बटोर रहे हैं, तो हम क्यों नहीं

    और अगर पुरानी साइंस हमारे से ज़्यादा विकसित थी, तो उस से ज्ञान बटोरने में मुझे कोई हानि नज़र नहीं आती, अगर हम ऐसा कर पायें तो

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  18. वेद और विज्ञान ? दोनो मे तुलना ? एक अंतहीन और निरर्थक बहस के अलावा और कुछ नही होगी। निरर्थक इसलिये क्योंकि दोनो पक्ष अपने अपने तर्क(कुतर्क) लेकर शुरू हो जायेंगे। सुनेगा कोई किसी की नही।
    रहा सवाल वेदो का, वेदो मे क्या है ? इसे समझाने (समझाने से ज्यादा समझने का) एक प्रयास यहां है।
    विज्ञान पर भी कुछ् यहां और यहां भी मैने कुछ लिखा है। मेरा मौलीक लेखन कहीं नही है, जो पढा है, जो समझा है बस वही लिखा है।
    मै ना तो वैदिक पंडित हूं ना कोई विज्ञान का शास्त्री ! बस दोनो को सापेक्ष नजर से देखते रहता हूं। लेकिन इतना जानता हूं कि अब से ज्यादा नही कुछ सौ वर्षो पहले तक पृथ्वी को ब्रम्हाण्ड का केन्द्र माना जाता था। इलेक्ट्रान प्रोटान और् न्युट्रान जिसे त्रीदेव बना दिया गया है, वह भी छह अलग अलग तरह के क्वार्क से बने है ! इनके अलावा भी बोसान, फोटान, पाजीट्रान और भी पता नही कितने कण् है! अब हम भी पूरी सूची कहां से लायें ,हर छह महिने मे एक नये कण की खोज हो जाती है।

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  19. कोई भी कहानी कार जब कहानी लिखता है तो वो वर्तमान के बदलते परिवेश को देखकर हजरून साल बाद के बदले हुए विश्वा को ध्यान मैं रखकर लिखता है !! क्या हम अभी बेटरी से चलने लगे हैं?? क्या हमने खाना छोड़ दिया है?? नहीं !! लेकिन जब हजारों साल बाद की कल्पना करें तो हम खाना पानी छोड़ चुके होंगे !! या तो कोई पावडर सुघेंगे या बेटरी और सोलर एनर्जी से चलेंगे !! ठीक वैसे ही पुष्पक विमान और गणेशजी का सर है!!

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  20. अरविन्द जी, आपने ठीक से नहीं पढा, सुश्रुत चेहरा ठीक नहीं, सिर्फ़ नाक व कान बनाया करते थे,जो सुश्रुत विधि के नाम से प्रसिद्ध है। चमडी शरीर के दूसरे हिस्से से नहीं,माथे से व कान के पीछे से ली जाती थी। आज कते हुए अन्ग जोडेजाने की प्रक्रिया प्रयोग में है।
    दिनेश जी अगर आपने ढन्ग से विग्यान पढा हो तो , पहले कल्पना, फ़िर परिकल्पना फ़िर विग्यान-प्रयोग आता है।
    वेदों में कहीं भी प्रथ्वी को ब्रह्मान्ड का केन्द्र नहीं बताया है.आप पढिये तो!
    कोई घालमेल नहीं,अग्यानता है। देश की खातिर ही भाष्य किया जारहा है,नहीं तो क्या,जस का तस.आप समझ पाते तो अब तक विग्यान की उन्नति में भारत का योग्दान नहीं होता,क्यों हम दूसरोंकी नकल पर ज़िन्दा रहते? पुस्तक में से नकल करके,आज जन्म दिन...या क्या सत्य्नारायण की कथा सुनानी है, जो विश्लेषण न किया जाय।
    क्या हम सुविधा भोगी ही बने रहेंगे?,विग्यान के लिये तप की आवश्यकता होती है.

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  21. गिरिजेश राव जी ,
    आपने कहा "हम वर्तमान के उन्नत होते विज्ञान का सहारा लें या लुप्त हो चुके ज्ञान और परम्परा को दुबारा 'खोजने' के भगीरथ तप में लगें?"

    मैं पूछती हूं कि कितने प्रतिशत लोगों के पक्ष में काम आ रहा है यह आपका उननत होता विज्ञान .. दस प्रतिशत से भी कम लोग लाभान्वित हैं इससे .. तो 90 प्रतिशत से अधिक लोगों के लिए य‍ह अभिशाप बना हुआ है .. यह विज्ञान की सुख सुविधाएं ही है .. जिसने लोगों को नैतिक तौर पर भ्रष्‍ट कर रखा है .. कितना बचा सकते हैं लोग अपने आपको चारो ओर फैले भ्रष्‍टाचार से .. कम से कम लुप्‍त हो चुका ज्ञान और परंपरा तो शत प्रतिशत लोगों के हित में था ।

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  22. सन्गीता जी, आपने सही कहा। वस्तुतः बात विग्यान.दर्शन,धर्म की आपस में टक्कर या मानने न मानने की नहीं है,यह सब ग्यान ही है ओर ग्यान में अच्छा -बुरा क्या? सब अनुकरणीय व आदर योग्य है।
    पहले द्रष्टि-अर्थात दर्शन होता है,जो अनुभव द्वारा वस्तु का विशद ग्यान( दिग्दर्शन) कराता है,तब उसे प्रयोग में लाने के लिये,विग्यान(विशिष्ट ग्यान )के नियम आते हैं। धर्म(पन्थ,मज़हब या रिलीजन नहीं),दर्शन व विग्यान के बीच की कडी है जो दोनों को अतिवाद से बचाती है। मानव कोविग्यान के दुरुपयोग से दम्भी होने से रोकती है व ग्यान के दम्भ में कर्म-बिमुखता से रोकती है।
    वस्तुतः विग्यान कोई बुरी वस्तु नहीं है न त्याज्य-यह तो अति-भौतिकता से उत्पन्न,अतिसुखाभिलाषा, अहं,में मानवता से गिरने की बात गलत है जो विग्यान के साथ-साथ,धर्म,दर्शन,ईश्वर ,मानवता को न रखने पर उसी मानव के विरुद्ध होजाती है जिसके सुख के लिये इसका आविर्भाव हुआ था।
    रावण, कन्स,हैहय राज,सभी रक्ष-सभ्यतायें,वस्तुतः अति उन्नतिशील वैग्यानिक सभ्यतायें थी। ईश्वर-भाव बिमुख होने पर अहं के कारण अन्ततः अपने से कम उन्नत सभ्यताओं से परजित हुईं।

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  23. arvind ji aap ki bat se me sahamt nhi hu aap ne un grntho ka adhyayan kye bina hi apana pravachn likha dkla . jisa pr aapki shrdha h kabhi un se ye prasn kre

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Name

- दर्शन लाल बावेजा,1,- बी एस पाबला,1,-Dr. Prashant Arya,2,-अंकित,4,-अंकुर गुप्ता,7,-अभिषेक ओझा,2,-अल्पना वर्मा,22,-आशीष श्रीवास्‍तव,2,-इन्द्रनील भट्टाचार्जी,3,-काव्या शुक्ला,2,-जाकिर अली ‘रजनीश’,56,-जी.के. अवधिया,6,-जीशान हैदर जैदी,45,-डा प्रवीण चोपड़ा,4,-डा0 अरविंद मिश्र,26,-डा0 श्‍याम गुप्‍ता,5,-डॉ. गुरू दयाल प्रदीप,8,-डॉ0 दिनेश मिश्र,5,-दर्शन बवेजा,1,-दर्शन लाल बवेजा,7,-दर्शन लाल बावेजा,2,-दिनेशराय द्विवेदी,1,-पवन मिश्रा,1,-पूनम मिश्रा,7,-बालसुब्रमण्यम,2,-योगेन्द्र पाल,6,-रंजना [रंजू भाटिया],22,-रेखा श्रीवास्‍तव,1,-लवली कुमारी,3,-विनय प्रजापति,2,-वीरेंद्र शर्मा(वीरुभाई),81,-शिरीष खरे,2,-शैलेश भारतवासी,1,-संदीप,2,-सलीम ख़ान,13,-हिमांशु पाण्डेय,3,.संस्‍था के उद्देश्‍य,1,।NASA,1,(गंगा दशहरा),1,100 billion planets,1,2011 एम डी,1,22 जुलाई,1,22/7,1,3/14,1,3D FANTASY GAME SPARX,1,3D News Paper,2,5 जून,1,Acid rain,1,Adhik maas,1,Adolescent,1,Aids Bumb,1,aids killing cream,1,Albert von Szent-Györgyi de Nagyrápolt,1,Alfred Nobel,1,aliens,1,All india raduio,1,altruism,1,AM,18,Aml Versha,1,andhvishwas,5,animal behaviour,1,animals,1,Antarctic Bottom Water,1,Antarctica,9,anti aids cream,1,Antibiotic resistance,1,arunachal pradesh,1,astrological challenge,1,astrology,1,Astrology and Blind Faith,1,astrology and science,1,astrology challenge,1,astronomy,4,Aubrey Holes,1,Award,4,AWI,1,Ayush Kumar Mittal,1,bad effects of mobile,1,beat Cancer,1,Beauty in Mathematics,1,Benefit of Mother Milk,1,benifit of yoga,1,Bhaddari,1,Bhoot Pret,3,big bang theory,1,Binge Drinking,1,Bio Cremation,1,bionic eye Veerubhai,1,Blind Faith,4,Blind Faith and Learned person,1,bloggers achievements,1,Blood donation,1,bloom box energy generator,1,Bobs Award,1,Breath of mud,1,briny water,1,Bullock Power,1,Business Continuity,1,C Programming Language,1,calendar,1,Camel reproduction centre,1,Carbon Sink,1,Cause of Acne,1,Change Lifestyle,1,childhood and TV,1,chromosome,1,Cognitive Scinece,1,comets,1,Computer,2,darshan baweja,1,Deep Ocean Currents,1,Depression Treatment,1,desert process,1,Dineshrai Dwivedi,1,DISQUS,1,DNA,3,DNA Fingerprinting,1,Dr Shivedra Shukla,1,Dr. Abdul Kalam,1,Dr. K. 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