आईये इस वर्ष मिले नोबेल पुरस्कारों पर कुछ चर्चा हो जाए ! एलिजाबेथ ब्लैक्बम ,कैरोल ग्रीडर और जैक जोस्टैक को इस बार का चिकित्सा शास...
आईये इस वर्ष मिले नोबेल पुरस्कारों पर कुछ चर्चा हो जाए !
एलिजाबेथ ब्लैक्बम ,कैरोल ग्रीडर और जैक जोस्टैक को इस बार का चिकित्सा शास्त्र का नोबेल मिला है ! यह उनके "गुणसूत्रों की संरचना के एक हिस्से टीलोमियर और इसी से स्रवित एक एन्जायिम टीलोमेरेज के जरिये गुणसूत्रों की सुरक्षा से सम्बन्धित है " क्या समझे आप ?? डब्बा न ?? इसलिए आज जरूरत है आम आदमी तक की समझ में आ जाने वाली वह बोली भाषा, जिससे विज्ञान जगत की क्लिष्ट और पारिभाषिक शब्दावलियों में कही गयी बात को भी आम जन सहज ही समझ सकें ! और आज की इस पोस्ट का यही हेतु भी है ताकि अनूप शुक्ल सरीखे साहित्यकार ( मौज की कोई इन्गिति नहीं है अनूप जी ! बस इधर भी ध्यान दिया करें यह अनुरोध है !खुद अपने भले के लिए ,हा हा ) भी विज्ञान की उपलब्धियों को आत्मसात कर सकें और उसकी महत्ता को भी तनिक समझ सकें !
तो इस बार का नोबेल मिला है क्रोमोजोम यानी गुणसूत्रों की एक सरंचना -टीलोमियर के गुण दोषों को उजागर करने पर ! मगर भला ये गुणसूत्र क्या है ? ये धागे सरीखी रचनाएँ हैं जो जीवों के नाभिक में होती हैं और पीढी दर पीढी पैत्रिक/मातृक गुणों -अवगुणों को ढोती जाती हैं ! और इनकी ही एक संरचना है जो टीलोमियर कहलाती है जो इन्ही गुणसूत्रों के एक सिरे पर होती है ! वैज्ञानिकों ने इस रचना का मनुष्य की बढ़ती उम्र के साथ एक गहरा रिश्ता देखा है ! समय के साथ टीलोमियर शरीर के अन्य हिस्सों की भाति क्षयग्रस्त होते चलते हैं ! विकसित प्राणियों और मनुष्य का भी उद्गम और जरावस्था (बुढापा ) गर्भ की एक कोशिका से शुरू हुए अनंत विभाजनों के जरिये सम्पन्न होता है !ऐसे विभाजनो की संख्या एक मानव के जीवन काल में कम से कम १० खरब कूती गयी हैं जो एक अनवरत ,अहर्निश प्रक्रिया है ! मगर हर बार के कोशिका के विभाजन में गुणसूत्रों का अत्यल्पतम हिस्सा टूटता बिखरता जाता है और यह टूटन बिखरन अगर नियंत्रित न हो तो पता चले की हम जब तक अपने गुणसूत्रों को वंशधरों तक दान देने की दशा में पहुंचे उनका वजूद और प्रकारांतर से हमारा वजूद भी न मिट जाये ! फिर क्या हो ?
कुदरत ने इसीलिये गुणसूत्रों की टूटन और बिखरन को बचाने के लिए एक टोपीनुमा रक्षाकवच बनाया और उसे सभी गुणसूत्रों पर गांधी टोपी की तरह उसी तरह जमा दिया जैसे भारत की एक प्रमुख राष्ट्रीय पार्टी के नेतागण अपने सर पर (गांधी टोपी ) जमाते हैं (यह उनका भी रक्षा कवच है ना ?) तो किस्सा कोताह यह की टीलोमियर गुणसूत्रों के रक्षाकवच जैसा काम करता है ! आप अगर थोड़ी देर के लिए समझने की आसानी के लिए जूतों के फीतों को गुणसूत्र मान लें तो उनके अंत का लेस -शूलेस ही टीलोमियर है जो फीते को बिखरने से बचाता है ! बात आ गयी समझ में ना ? अब भी न आयी हो तो बाबा इस ब्लॉगर टीचर को माफ़ करें और किसी और टीचर को तलाश लें !
टीलोमेरेज एन्जायिम भी कोशिका विभाजन के समय इसी टीलोमियर यानी रक्षा कवच /टोपी की रक्षा करने का जिम्मा उठाता है मगर खेदजनक यह है की यह एन्जायिम उम्रदराज लोगों में कम होने लगता है -फलतः गुणसूत्रों का बिखराव होता है और उनका आकार भी घटने लगता है ! भारी मुसीबत ! ऐसे गुणसूत्रों की टीलोमियर टोपी भी छोटी पड़ने लगती है और गुणसूत्रों का सामान्य कोशिका विभाजन में सहज योगदान नहीं हो पाता ! कहते हैं दुनिया के पहली क्लोंड प्राणी डाली भेंड में ये टीलोमियर काफी विघटित और गुणसूत्र भी संकुचित हुए पाए गए जब वह असमय ही मरी ! इस नोबेल काम से यह आशा जगी है कि टीलोमेरेज एन्जायिम के सहयोग से टीलोमियर की रक्षा करते हुए गुणसूत्रों का असमय बिखराव रोका जा सकेगा और मानुष जीवन को लम्बे समय तक निरापद रखा जा सकेगा ! प्रयोगों में यह पाया गया है कि टीलोमेरेज एन्जायिम से कैंसर की कोशिकाएं भी नियंत्रित हो जाती हैं !
आज की यह पोस्ट यही समाप्त करते हैं और कल हम रसायन शास्त्र में मिले नोबेल की चर्चा करेगें जिसमे एक भारतीय मूल के वैज्ञानिक का भी शानदार काम सम्मानित हुआ है !
एलिजाबेथ ब्लैक्बम ,कैरोल ग्रीडर और जैक जोस्टैक को इस बार का चिकित्सा शास्त्र का नोबेल मिला है ! यह उनके "गुणसूत्रों की संरचना के एक हिस्से टीलोमियर और इसी से स्रवित एक एन्जायिम टीलोमेरेज के जरिये गुणसूत्रों की सुरक्षा से सम्बन्धित है " क्या समझे आप ?? डब्बा न ?? इसलिए आज जरूरत है आम आदमी तक की समझ में आ जाने वाली वह बोली भाषा, जिससे विज्ञान जगत की क्लिष्ट और पारिभाषिक शब्दावलियों में कही गयी बात को भी आम जन सहज ही समझ सकें ! और आज की इस पोस्ट का यही हेतु भी है ताकि अनूप शुक्ल सरीखे साहित्यकार ( मौज की कोई इन्गिति नहीं है अनूप जी ! बस इधर भी ध्यान दिया करें यह अनुरोध है !खुद अपने भले के लिए ,हा हा ) भी विज्ञान की उपलब्धियों को आत्मसात कर सकें और उसकी महत्ता को भी तनिक समझ सकें !
तो इस बार का नोबेल मिला है क्रोमोजोम यानी गुणसूत्रों की एक सरंचना -टीलोमियर के गुण दोषों को उजागर करने पर ! मगर भला ये गुणसूत्र क्या है ? ये धागे सरीखी रचनाएँ हैं जो जीवों के नाभिक में होती हैं और पीढी दर पीढी पैत्रिक/मातृक गुणों -अवगुणों को ढोती जाती हैं ! और इनकी ही एक संरचना है जो टीलोमियर कहलाती है जो इन्ही गुणसूत्रों के एक सिरे पर होती है ! वैज्ञानिकों ने इस रचना का मनुष्य की बढ़ती उम्र के साथ एक गहरा रिश्ता देखा है ! समय के साथ टीलोमियर शरीर के अन्य हिस्सों की भाति क्षयग्रस्त होते चलते हैं ! विकसित प्राणियों और मनुष्य का भी उद्गम और जरावस्था (बुढापा ) गर्भ की एक कोशिका से शुरू हुए अनंत विभाजनों के जरिये सम्पन्न होता है !ऐसे विभाजनो की संख्या एक मानव के जीवन काल में कम से कम १० खरब कूती गयी हैं जो एक अनवरत ,अहर्निश प्रक्रिया है ! मगर हर बार के कोशिका के विभाजन में गुणसूत्रों का अत्यल्पतम हिस्सा टूटता बिखरता जाता है और यह टूटन बिखरन अगर नियंत्रित न हो तो पता चले की हम जब तक अपने गुणसूत्रों को वंशधरों तक दान देने की दशा में पहुंचे उनका वजूद और प्रकारांतर से हमारा वजूद भी न मिट जाये ! फिर क्या हो ?
मनुष्य के गुणसूत्र -जो गहरे नीले रंग से दिखाए गए हैं गुणसूत्र है और पीले रंग वाले टीलोमियर
एक और दृश्य गुणसूत्रों और टीलोमियर का
टीलोमेरेज एन्जायिम भी कोशिका विभाजन के समय इसी टीलोमियर यानी रक्षा कवच /टोपी की रक्षा करने का जिम्मा उठाता है मगर खेदजनक यह है की यह एन्जायिम उम्रदराज लोगों में कम होने लगता है -फलतः गुणसूत्रों का बिखराव होता है और उनका आकार भी घटने लगता है ! भारी मुसीबत ! ऐसे गुणसूत्रों की टीलोमियर टोपी भी छोटी पड़ने लगती है और गुणसूत्रों का सामान्य कोशिका विभाजन में सहज योगदान नहीं हो पाता ! कहते हैं दुनिया के पहली क्लोंड प्राणी डाली भेंड में ये टीलोमियर काफी विघटित और गुणसूत्र भी संकुचित हुए पाए गए जब वह असमय ही मरी ! इस नोबेल काम से यह आशा जगी है कि टीलोमेरेज एन्जायिम के सहयोग से टीलोमियर की रक्षा करते हुए गुणसूत्रों का असमय बिखराव रोका जा सकेगा और मानुष जीवन को लम्बे समय तक निरापद रखा जा सकेगा ! प्रयोगों में यह पाया गया है कि टीलोमेरेज एन्जायिम से कैंसर की कोशिकाएं भी नियंत्रित हो जाती हैं !
आज की यह पोस्ट यही समाप्त करते हैं और कल हम रसायन शास्त्र में मिले नोबेल की चर्चा करेगें जिसमे एक भारतीय मूल के वैज्ञानिक का भी शानदार काम सम्मानित हुआ है !
COMMENTS