चाय के प्रकार और उससे मिलने वाले लाभ!
जी हाँ, गरमा-गरम चाय की एक प्याली वह भी आज कल सर्दियों के मौसम में... क्या कहना! वह भी अपने मन-भावन स्वाद एवं गंध वाली हो तो सोने में सुहागा समझिए और कहीं उसे बना कर पिलाने वाली या वाला प्यार की चाशनी घोलने वाला या वाली हो तो फिर बात ही क्या है! सर्दी दूर, तन-मन की थकान छूमंतर, बोरियत ख़त्म. . . चुस्ती-फुर्ती से भर कर आप फिर से काम पर चल दीजिए। सर्दियों में ही क्यों? यह तो शाश्वत पेय है, साल के बारहों महीने कभी भी पीजिए, उसका मज़ा एक जैसा रहता है। मज़े की छोड़िए, चाय का हमारे स्वास्थ्य के विभिन्न पहलुओं पर भी तात्कालिक एवं दूरगामी प्रभाव पड़ता है, वह भी अधिकतर अच्छे रूप में। यह हम नहीं, वैज्ञानिक शोध कहते हैं। आख़िर, जब सवाल आप के स्वास्थ्य का हो तो हम पीछे कैसे रह सकते हैं? स्वास्थ्य तो विज्ञान का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है!
संभवत: लगभग 4700 साल पूर्व के कैमेलिया साइनेंसिस नामक पौधे से बनाए गए काढ़े को लोकप्रिय बनाने के लिए इस की खोज को दंत कथाओं में वर्णित सम्राट शेन्नांग से जोड़ा गया। इस कथा के अनुसार सम्राट शेन्नांग जब पानी उबाल रहा था तो इस पौधे की कुछ पत्तियाँ अचानक उस पानी में गिर पड़ीं और चाय का काढा तैयार हो गया। बाद में उसी के मुँह से यह कहलवाया गया कि चाय में आलस्य दूर करने से ले कर फुडिया-फुंसी, टयूमर, युरिनरी ब्लैडर आदि से संबंधित बीमारियों से लडने की शक्ति होती है।उस समय इन दावों के पीछे कोई वैज्ञानिक शोध का आधार था या नहीं, लेकिन आधुनिक समय में किए जा रहे शोध चाय के तमाम स्वास्थ्यवर्धक गुणों को प्रकाश में ला रहे हैं, साथ ही इसके बारे में किए गए कुछ अतिशयोक्तिपूर्ण दावों को नकार भी रहे हैं। इस संबंध में हम चर्चा बाद में करेंगे। आइए, पहले चाय के बारे में तो अच्छी तरह जान लें।
संभवत: लगभग 4700 साल पूर्व के कैमेलिया साइनेंसिस नामक पौधे से बनाए गए काढ़े को लोकप्रिय बनाने के लिए इस की खोज को दंत कथाओं में वर्णित सम्राट शेन्नांग से जोड़ा गया। इस कथा के अनुसार सम्राट शेन्नांग जब पानी उबाल रहा था तो इस पौधे की कुछ पत्तियाँ अचानक उस पानी में गिर पड़ीं और चाय का काढा तैयार हो गया। बाद में उसी के मुँह से यह कहलवाया गया कि चाय में आलस्य दूर करने से ले कर फुडिया-फुंसी, टयूमर, युरिनरी ब्लैडर आदि से संबंधित बीमारियों से लडने की शक्ति होती है।उस समय इन दावों के पीछे कोई वैज्ञानिक शोध का आधार था या नहीं, लेकिन आधुनिक समय में किए जा रहे शोध चाय के तमाम स्वास्थ्यवर्धक गुणों को प्रकाश में ला रहे हैं, साथ ही इसके बारे में किए गए कुछ अतिशयोक्तिपूर्ण दावों को नकार भी रहे हैं। इस संबंध में हम चर्चा बाद में करेंगे। आइए, पहले चाय के बारे में तो अच्छी तरह जान लें।
चाय के उत्पादन के लिए परिपक्व पौधों की सबसे छोटी एवं नवजात पत्तियों को अनुभवी मज़दूरों द्वारा हाथ से तुड़वाया जाता है। इन पत्तियों से मुख्य रूप से तीन प्रकार के चाय का उत्पादन किया जाता है।
संसार में पानी के बाद संभवत: चाय ही सब से ज़्यादा पी जाती है। संसार के अधिकांश देशों में यह पारिवारिकता एवं सामाजिकता का अभिन्न अंग बन चुका है। कोई इसे दूध और चीनी के साथ पीता है तो कोई बस मात्र गरम पानी के साथ ही चाय की चुस्की का आनंद लेता है तो कुछ स्वादप्रिय लोग अदरक, नींबू, काली मिर्च, लौंग, इलायची आदि-आदि के साथ इसे और भी ज़ायकेदार बना कर इस की चुस्कियाँ लेते हैं। चाय रे चाय. . .तेरे कितने रूप! और इसे बनाने के तरीके भी तरह-तरह के! इसे बनाने के तरीके बताने की गुंजाइश तो यहाँ नहीं है और न ही इस की आवश्यकता। भई, वैसे भी चाय बनाने में है ही क्या? पानी गरम किया, चाय की पत्ती डाल ली, साथ-साथ दूध, चीनी वगैरह-वैगरह भी स्वादानुसार डाल लिया, बस हो गई चाय तैयार। कुछ लोग सब-कुछ पानी में डाल कर तब उबालते हैं तो कुछ लोग पानी को उबाल कर तब सब-कुछ डालते हैं। वैसे सही तरीका क्या है, यह शोध का विषय हो सकता है। यथा गरम पानी में चाय की पत्ती डालनी चाहिए या फिर चाय की पत्ती में उबलता पानी डालना चाहिए, आदि-आदि। किस विधि से चाय के कौन-कौन से गुण बरकार रहते हैं और कौन-कौन से नष्ट हो जाते हैं, आदि। इस विषय में काफ़ी-कुछ शोध हो भी रहे हैं।
चाय के स्वास्थ्यवर्धक गुण
तो, अब समय आ गया है कि हम चाय के स्वास्थ्यवर्धक गुणों को जाने-समझें। चाय में कई गुणकारी रसायनों की पहचान की गई है। इन में से प्रमुख हैं तरह-तरह के 'पॉलीफेनॉल्स' यथा टैनिन्स, लिग्निन्स, फ्लैवेन्वाएड्स आदि। कैटैकिन्स, कैफीन, फेरूलिक एसिड, इपीगैलोकैटेकिन गैलेट आदि रसायन इन के उदाहरण हैं। इन पॉलीफेनाल्स में से कई 'एंटी ऑक्सीडेंट' का काम करते हैं। ये एंटी ऑक्सीडेंट्स हमारी कोशिकाओं को ऑक्सिडेशन के हानिकारक प्रभावों से बचाए रखने में सहायक होते हैं। इसे अच्छी तरह समझने के लिए आइए, पहले हम ऑक्सिडेशन की प्रक्रिया तथा इन से होने वाली हानि को तो समझ लें।
दरअसल, सभी जीवित कोशिकाओं में तरह-तरह की ऑक्सिडेशन प्रतिक्रियाएँ होती रहती हैं जिन में एलेक्ट्रॉन्स का स्थानांतरण एक रसायन से दूसरे ऑक्सिडाइज़िंग रसायन तक होता रहता है, जिस के फलस्वरूप H2O2, HOCl जैसी क्रियाशील रसायनों के अतिरिक्त 'फ्री रेडिकल्स' यथा –OH, O2- आदि रसायनों का निर्माण होता है। ये रसायन 'लिपिड-पर-ऑक्सीडेशन' की प्रकिया द्वारा कोशिका को हानि पहुँचाते हैं या फिर ऐसे रसायनों के संश्लेषण में सहायक होते हैं जो डी-एन-ए से जुडकर उन्हें 'ऑंन्कोजीन्स म्युटेन्ट' में परिवर्तित कर कैंसर की संभावना को बढ़ा सकते हैं। माइटोकांड्रिया में तो ऐसी प्रतिक्रियाएँ लगातार चलती रहती हैं अत: इन से उत्पन्न क्रियाशील ऑक्सीजनयुक्त रसायनों को नष्ट करते रहना अति आवश्यक है। एंटी ओक्सिदेंट्स इस कार्य को बड़ी दक्षता के साथ करते रहते हैं और कोशिकाओं को तरह-तरह की हानि से बचाते रहते हैं।
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जापान के क्यूशू युनिवर्सिटी से संबंद्ध हिराफ्यूमी ताचिबाना की टीम ने अपने शोध से यह दर्शाया है कि हरी चाय के दो से तीन प्याले रोज़ पीने वालों में फेफड़ों के कैंसर से लेकर प्रोस्टेट एवं स्तन कैंसर के प्रति प्रतिरोध क्षमता ज़्यादा होती है। कारण, इसमें पाया जाने वाला इपीगैलोकैटेकिन गैलेट नामक पॉलीफेनॉल रसायन है जो कैंसरस कोशिकाओं की वृद्धि को मंद कर देता है। अमेरिका के नेशनल कैंसर रिसर्च इंस्टीटयूट के एक अध्ययन के अनुसार चाय में पाए जाने वाले कैटेकिन्स कोशिकाओं को हानि पहुँचने के पूर्व ही उन में उत्पादित ऑक्सिडेंट्स को निष्क्रिय कर देते हैं तथा टयूमरर्स की संख्या एवं आकार में कमी लाते हैं साथ ही कैंसरस कोशिकाओं की वृद्धि को भी रोक देते हैं।
युनिवर्सिटी ऑफ़ जेनेवा में किए गए एक शोध के अनुसार हरी चाय
में पाए जाने वाले कैफ़ीन एवं कैटैकिन्स जैसे पॉलीफेनॉल्स शरीर में ऊर्जा-व्यय को बढ़ा देते हैं। यह प्रक्रिया शरीर के वज़न को संतुलित रखने में सहायक हो सकती है।
में पाए जाने वाले कैफ़ीन एवं कैटैकिन्स जैसे पॉलीफेनॉल्स शरीर में ऊर्जा-व्यय को बढ़ा देते हैं। यह प्रक्रिया शरीर के वज़न को संतुलित रखने में सहायक हो सकती है।
एक अन्य अध्ययन के अनुसार हरी चाय का सेवन डायबिटीज़ की रोक-थाम में भी सहायक हो सकता है। चूँकि कोशिकाओं में स्वाभाविक रूप से बनने वाले ऑक्सिडेंट्स को बूढ़े होने की प्रकिया से जोड़ कर देखा जाता है अत: इस में कोई आश्चर्य नहीं कि कुछ लोग चाय में पाए जाने वाले इन एंटीऑक्सडेंट पॉलीफेनॉल्स को बुढ़ापा आने की प्रक्रिया को धीमे कर देने वाले कारक के रूप में देखते हैं।
चाय में एक अन्य रसायन एल-थिएनिन नामक एमीनो एसिड की पर्याप्त मात्रा पाई जाती है। यह एमीनो एसिड शरीर मे एंटीबैक्टीरियल प्रोटीन के संश्लेषण में सहायक होती है। यह प्रोटीन बैक्टीरिया जनित रोगों के प्रतिरोधक का कार्य करती है। इस संबंध में किए गए गए प्रयोग में 11 कॉफी पीने वालों तथा 10 काली चाय पीने वालों को शामिल किया गया था। ये प्रतिदिन 600 मिली लीटर कॉफी या चाय का सेवन करते थे। चार सप्ताह बाद इन के रक्त का विश्लेषण किया गया तो पाया गया कि चाय पीने वालों में रोग-प्रतिरोधी प्रोटीन्स की मात्रा कॉफी पीने वालों की तुलना में पाँचगुनी पाई गई।
जापान में ही किए गए एक अन्य अध्ययन के अनुसार एल-लैसिथिन मस्तिष्क में अल्फा तरंगों के उत्पादन में बढ़ोत्तरी करता है। ये तरंगे हमारे सतर्कता स्तर को बढ़ाती हैं। 2006 में किए गए इस प्रयोग में यह देखा गया कि दो या दो से अधिक कप चाय पीने वाले बूढ़े लोगों की तुलना में ऐसे बूढ़े लोगों में जो दो कप से कम चाय पीते हैं या फिर अन्य पेय का सेवन करते हैं, उन में संज्ञानात्मक क्षीणता का स्तर पचास प्रतिशत ज़्यादा होता है।
काली चाय का सेवन हमारा तनाव बढ़ाने वाले कॉर्टिसॉल हार्मोन्स की मात्रा को तीव्रता से कम करता है, फलस्वरूप हम शीघ्र ही तनाव वाली स्थिति से उबर कर सामान्य अवस्था में आ जाते हैं। इस प्रकार हम रक्तचाप से संबंधित बीमारियों से बचे रह सकते हैं। ब्लड-प्लेटलेट्स की सक्रियता का संबंध भी ब्लड-क्लॉटिंग एवं हार्ट-अटैक से होता है। काली चाय पीने वालों में ब्लड प्लेटलेट्स की सक्रियता का स्तर कम हो जाता है, फलस्वरूप इन में हार्ट अटैक का ख़तरा भी कम रहता है।
अब तक के कुल शोध का लब्बो-लुआब यह है कि चाय की प्याली, विशेषकर हरी चाय वाली, वह भी बिना दूध और चीनी के, हमारे स्वास्थ्य की असली प्याली है। वह भी दिन में कम से कम चार बार! तो जनाब, चाय पीजिए, पिलाइए एवं स्वस्थ रहिए। इस के लिए जाड़े से अच्छा मौसम भला और कौन-सा हो सकता है। बस इस के साथ दूध और चीनी से परहेज़ रखिए।
-Written by Dr.G.D.Pradeep
अरे वाह, चाय इतनी महत्वपूर्ण भी हो सकती है, आज पहली बार पता चला।
ReplyDeleteवैसे मुझे चाय पर बचपन में सुना गया एक चुटकुला याद आ रहा है। जिसमें मास्टर जी एक बच्चे से पूछते हैं कि बताओ चाय फायदेमंद होती है या नुकसानदेय। बच्चा जवाब देते हुए कहता है कि यदि चाय दूसरों के पैसों से पीने को मिले तो फायदेमंद होती है, और यदि अपने पैसों से पिलानी पडे, तो नुकसानदेय।
ह ह हा।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
चाय ...चाय ...चाय की तलब होने लगी है ...बना कर पी ही लेते हैं ...!!
ReplyDeletebahut hi gyanvardhak aalekh hai.
ReplyDeleteबहुत रोचक जानकारी और चाय पीने की इच्छा हो गयी पढ़ते ही ...चाय के प्रकार के साथ साथ रजनीश जी का चुटकला भी पसंद आया ..:)
ReplyDeleteवाह चाय पर इस लेख को पढ़ते पढ़ते तो चाय पीने का मन हो आया -बहुत रोचक और स्वयंपूर्ण !
ReplyDeleteaapki is chay ne sachmuch thakaan utar di dhanyavaad
ReplyDeletejyotishkishore.blogspot.com
वाह बहुत सही कहा चाय की चुस्कियों में जहां आनंद आता हो वहाँ गुणकारी भी हो तो सोने पे सुहागा वाली कहावत हो गयी !!! पर चीनी की चाय तो सचमुच उतनी अछि नहीं !!! बहुत अच्छी जानकारी दी !!!
ReplyDeleteअभी सुबह का वक्त है और चाय पीते हुए इसे पढ़ रहा हूँ वैसे चाय का शौकीन हूँ मै और तरह तरह की चाय बनाने मे मुझे आनन्द आता है । बहुत मेहनत से लिखा है आपने यह आलेख । घर आइये आपको अपने हाथो से चाय बनाकर पिलाउंगा ।
ReplyDeleteचाय पर बहुत सुंदर सुंदर और उपयोगी जानकारी दी गई है.
ReplyDeleteरामराम.
bhaut bhaut dhynavaad tea ke kafi naye fayde pata chale.
ReplyDeleteChai ke baare mai itni baate to is post se hi pata chali...
ReplyDeleteबेहद रोचक. मैं चाय नहीं पीता, क्योंकि बचपन से आदत नहीं डली मां के कारण.हमारे यहां कई गायें होती थी तो दूध भी सहजता से उपलब्ध था. इसलिये दादाजी भी बडे कडक थे चाय के विरुद्ध.
ReplyDeleteअब चाय की जगह कॊफ़ी पीता हूं जो शायद नुकसानदायक है.
अब क्या पिऊंगा, मगर बच्चों को नहीं रोका.इस लेख को घरवालों को भी पढाऊंगा.
अल्पनाजी का हर विषयमें दखल है. आप नायाब मोती चुन कर लातीं हैं.
वाह चाय !
ReplyDeleteज्ञानवर्धक प्रविष्टि । आभार ।
स्वादिष्ट चाय. बेहद रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारी.
ReplyDeleteMaalik Maja Aa Gaya lekin mai chaye nahi pita ,
ReplyDeleteI am addicetd of tea now i want to get rid of from it.
ReplyDeleteI am addicetd of tea now i want to get rid of from it.
ReplyDeletenice post
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