आने वाला नया साल 2010 हमारे लिए ढे़र सी खुशियाँ, बहुत सारा प्यार व अनेक तरह की उपलब्धियाँ लाए। हम ऐसा ही चाहते हैं, अपने लिए और अप...
आने वाला नया साल 2010 हमारे लिए ढे़र सी खुशियाँ, बहुत सारा प्यार व अनेक तरह की उपलब्धियाँ लाए। हम ऐसा ही चाहते हैं, अपने लिए और अपने ईष्ट-मित्रों के लिए। पर क्या आपने कभी ऐसी कामना अपने इस अद्भुत धरती के हर प्राणी के लिए की है? सब प्राणी, जीव-जंतु, पेड़ पौधे मिल जुल कर रहें, इसी से हमारी यह पृथ्वी हमेशा खुशहाल रह सकती है। ऐसा ही विचार संयुक्त राष्ट्र (UN) के लोगों को आया, इसलिए वर्ष 2010 को उन्होंने जैव विविधता वर्ष यानि कि International Year of Biodiversity घोषित किया है।
पृथ्वी पर लाखों प्रजाति के जीव व वनस्पति हैं। इन सबकी अपनी-अपनी विशेषताएं होती हैं और रहने के लिए अलग अलग किस्म के आवास। इसी को कहते हैं जैव विविधता। जब हम जैव विविधता कहते हैं तो हम इस पृथ्वी के हर उस जीव की बात करते हैं जो यहाँ सांस लेता है, छोटे से छोटा और बड़े से बड़ा, ज़मीन या पानी में रहने वाला पशु, पक्षी या फिर पेड़- पौधे।
एक और बात.इस विविधता में DNA में पाए जाने वाले जीन (DNA gene) को भी शामिल करते हैं क्योंकि इन्हीं जीन के परिवर्तन (MUTATION) से नयी जातियां, प्रजातियाँ पै दा होती हैं और जीवन का विकास होता है। तीसरी चीज़ जो हम जैव विविधता में जोड़ते हैं वह है प्रकृति का वह पूरा परितंत्र, जिसमें जीव जंतु रहते हैं जैसे सागर, जंगल, नदियाँ, रेगिस्तान। इनको कहते है " इकोसिस्टम", मतलब वह पूरी प्रणाली जो हमें जीने के साधन देती है। हमें पता है की प्रकृति की व्यवस्था इतनी सुन्दर है की हम सब प्राणी एक दुसरे पर निर्भर हैं और एक दुसरे से एक कड़ी से जुड़े हैं।
पृथ्वी पर लाखों प्रजाति के जीव व वनस्पति हैं। इन सबकी अपनी-अपनी विशेषताएं होती हैं और रहने के लिए अलग अलग किस्म के आवास। इसी को कहते हैं जैव विविधता। जब हम जैव विविधता कहते हैं तो हम इस पृथ्वी के हर उस जीव की बात करते हैं जो यहाँ सांस लेता है, छोटे से छोटा और बड़े से बड़ा, ज़मीन या पानी में रहने वाला पशु, पक्षी या फिर पेड़- पौधे।
एक और बात.इस विविधता में DNA में पाए जाने वाले जीन (DNA gene) को भी शामिल करते हैं क्योंकि इन्हीं जीन के परिवर्तन (MUTATION) से नयी जातियां, प्रजातियाँ पै
दुनिया के हर कोने में पाए जाने वाले जीवों की जातियों, प्रजातियों की संख्या करोड़ों में है। 4 अरब साल से हमारी पृथ्वी विकसित हो रही है और यह विविधता उन अरबों साल के विकास का नतीजा है। वैसे तो अभी तक यह शोध चल ही रहा है की धरती पर जीवन की शुरुआत कब और कैसे हुयी पर इतना पता है की कोई 60 करोड़ साल पहले सिर्फ एक कोशाणु वाले जीव ही थे जैसे बैक्टीरिया, प्रोटोज़ोआ आदि। उसके करीब 6 करोड़ साल बाद से शुरू हुआ बहु कोशाणु वाले जीवों का विकास और यहाँ से शुरू हुई विविध जातियों का जन्म। ऐसा माना जाता है की अगले 40 करोड़ साल तक सभी प्रकार के जीव और वनस्पति का विकास हो गया पर इसके साथ ही बहुत सी प्रजातियों का बड़े पैमाने पर अंत भी हो गया। यानि वे लुप्त हो गयीं।
क्या आप ऐसे कुछ जानवर बता सकते हैं जो अब लुप्त हो गयी हैं? याद आया डायनॉसोर, डोडो? लेकिन इन सब बातों से क्या तुम सोच रहे हो की हमें अब कैसे पता चलता है की इतने करोड़ों साल पहल कौन से जीवाणु धरती पर थे? तो बताती हूँ . इन सबका पता वैज्ञानिक निकालते हैं जानवरों के जीवावशेषों या फोसिल्स से। जीव जंतु जब मर जाते हैं तो कई जगहों पर ऐसा हुआ है की उनके अवशेष पत्थरों के बीच दब गए और हम जब खोजने निकले तो हमारे वैज्ञानिकों को मिले।
क्या आप ऐसे कुछ जानवर बता सकते हैं जो अब लुप्त हो गयी हैं? याद आया डायनॉसोर, डोडो? लेकिन इन सब बातों से क्या तुम सोच रहे हो की हमें अब कैसे पता चलता है की इतने करोड़ों साल पहल कौन से जीवाणु धरती पर थे? तो बताती हूँ . इन सबका पता वैज्ञानिक निकालते हैं जानवरों के जीवावशेषों या फोसिल्स से। जीव जंतु जब मर जाते हैं तो कई जगहों पर ऐसा हुआ है की उनके अवशेष पत्थरों के बीच दब गए और हम जब खोजने निकले तो हमारे वैज्ञानिकों को मिले।
वैज्ञानिकों के लिए यह जानना की इस पृथ्वी पर कितनी भांति के जीव-जंतु, वनस्पति हैं असंभव सी बात है। सोचिये कैसे पता किया जाए की दुनिया के हर कोने में, घने जंगल, शहर, गाँव, नदी, पोखरे, सागर, महासागर, पहाड़, मरूस्थल। हर देश में कितने तरह के जानवर या पेड़ पौधे हैं। लगता है न असंभव? सिर्फ एक अनुमान ही लगाया जा सकता है। यह अनुमान है की पृथ्वी पर 10 करोड़ विभिन्न प्रकार के जीव जंतु वनस्पति पाए जा सकते हैं। लेकिन हमारी विशाल दुनिया में हम अधिकतर जातियों के बारे में जानते ही नहींहैं। हर साल दस से बीस हज़ार तक की नयी प्रजातियों के बारे में हमें पता चलता रहता है।
अभी बात करते हैं विविधता की। दुनिया के हर क्षेत्र में क्या यह विविधता एक ही जैसी है? क्या जितनी तरह के पेड़-पौधे,जीव-जंतु भारत में पाए जाते हैं उतने ही किसी और देश में? नहीं ऐसा नहीं है। ऐसा पाया गया है कि ज़मीन पर तो गर्म जगहों पर अधिक प्रजातियाँ पाई जाती हैं और ठंडी जगहों पर उनके मुकाबले कम। भूमध्य रेखा के पास ज्यादा विभिन्नता है लेकिन उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव के पास उनसे कम। पर, जहां तक पानी में पाए जाने वाली जातियों की विभिन्नता का सवाल है तो कई बार उल्टा है यानि ठन्डे स्थानों पर ज्यादा और गर्म जगहों पर उनसे कम। लेकिन पानी में पाई जाने वाली जातियों प्रजातियों के बारे में हमें अभी बहुत कम ही पता चला है।
अब एक और ख़ास बात, जो गाय, घोडा, बन्दर, अमरुद, आम तुम्हारे आसपास हैं वही दुनिया के दूर किसी और जगह भी पायी जाती है। सोचो हम अगर केला खाते हैं तो अमरीका में भी लोग केले का पेड़ उगाते हैं। तो फिर किसी भी कारण से अगर हमारे यहाँ केले की जाति पूरी तरह ख़तम हो जाती है तो वह दुनिया के किसी और कोने में मिल जायेगी.इसलिए वह पूरी तरह से लुप्त नहीं हुई। लेकिन कुछ जातियां ऐसी होती हैं जो सिर्फ एक विशेष स्थान पर ही पाई जाती हैं। ये जातियां चाहे जानवर हों या वनस्पति .इनको कहते हैं स्थानिक जातियां और अगर किसी कारण से यह लुप्त हो गयी तो हमेशा के लिए हम उन्हें खो देते हैं।
अभी तक हमने बात की विविधता की। यह तो हमारी धरती की धन दौलत है। और हम सब एक दूसरे से जुड़े हैं, एक दूसरे पर निर्भर हैं। इसी जैव विविधता से हमें बहुत सा खाना मिलता है, बहुत सी दवाइयां मिलती हैं।
जंगल के कारण हमारे वातावरण का कार्बन कम रहता है। जंगल के कारण ही कई जगह वर्षा भी होती है। पेड़ ज़मीन को बांध लेते हैं, जिससे बहुत बारिश के समय बाढ़ Flood का ख़तरा कम हो जाता है। जानवर भी पेड़ों पर और पेड़ जीव जंतुओं पर निर्भर होते हैं। आपने देखा हगा कैसे तितलियाँ या भौरे फूल का रस पीते हैं। पर इसके साथ ही वे फूलों का पराग भी दूसरे फूलों तक पहुंचाते हैं जिससे नए पेड़ उगते हैं। या फिर पक्षी फल खाकर बीज इधर उधर डाल देते हैं जिससे और पेड़ उगते हैं। कई कीड़े ऐसे होते हैं जो सिर्फ एक तरह के पेड़ की पत्तियाँ खाते हैं जैसे सिल्क बनाने वाला कीड़ा, जो शहतूत की पत्तियां खाता है.इसलिए अगर शहतूत खत्म हो जाए तो यह कीड़ा भी खत्म हो जायेगा।
लेकिन यह धरती तो सबकी है फिर हमें यह ख़ास साल मनाने की ज़रुरत क्यों आ पडी? क्या ऐसा विचार आपके दिमाग में आया है? हो यह रहा है की हम यानी मनुष्य प्रकृति के नियमों का पालन न करके इसके साथ खिलवाड़ करता है। दुनिया भर में हम अपने साधनों के लिए कहीं पशुओं का शिकार कर रहे हैं तो कहीं जंगल नष्ट कर रहे है।
पूनम जी, आपका आलेख पढ़ कर अभिभूत हूँ। जैव विविधता को इससे अच्छे ढंग से नहीं समझाया जा सकता।
ReplyDeleteइस सार्थक और सारगर्भित आलेख के लिए आपको बहुत बहुत बधाई।
Gyanvardhak lekh, aabhar.
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteachhi jaankaari di 2010 "International Year of Biodiversity"
ReplyDeleteachha ho!!
२०१० में यदि सचमुच ही इनके लिए कुछ सोचा किया जा सके तो वर्ष सार्थक होगा ..शुभकामनाएं
ReplyDeleteहमें अपने भले के लिए भी इस विविधता को बचाकर रखना होगा।
ReplyDeleteपूनम जी, इस जज्बे को उभारने का आभार।
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ये तो बहुत ही आसान पहेली है?
धरती का हर बाशिंदा महफ़ूज़ रहे, खुशहाल रहे।
जैव विविधता पर सुन्दर और सहज लेखनी की बेजोड़ प्रस्तुति !
ReplyDeleteसाईंस ब्लॉगर पर आपका अभिनन्दन !
जब भी कोइ लेख लिखा जाता है तो उसमे सबसे पहले जिज्ञासा का जगाया जाना आवश्यक है । विषय पर पाठक की जिज्ञासा जितनी ज्यादा बनायी जायेगी लेख के सफल और प्रभावी होने की सम्भावना उतनी अधिक होती है । जब लेखक एक वृहद विषय को सारगर्भित रूप से रखना चाहता है तो तारतम्य के बिखर जाने की सम्भावना बढ जाती है , खासकर ब्लाग लेखन मे यह बात आम है क्युंकि वहा पर लिखने के लिये बहुत स्पेस नही होता है, विज्ञान चेतना को लेखन के माध्यम से यदि सफल बनाना है तो उपरोक्त दोनो बिन्दुओ पर भी ध्यान देना होगा ।
ReplyDeleteबेहद सुन्दर और उपयोगी आलेख । सहजता इस आलेख की विशेषता है । आभार ।
ReplyDeleteविचारपरक आलेख !
ReplyDeleteऔर हाँ ...आलेख के शीर्षक पर हमारा रिएक्शन है :- "आमीन"
वाह इस लेख के द्वारा बहुत ही अच्छी तरह जनसामान्य को समझाने की कोशिश की गयी है .. वैज्ञानिक भी अब आध्यात्मिकता की ओर कदम बढा रहे हैं .. बडा ही सार्थक प्रयास है उनका .. बहुत बहुत शुभकामनाएं !!
ReplyDeleteअच्छी भावना और परिश्रम से लिखे गये इस लेख के लिए आपको साधुवाद!
ReplyDeleteएक सार्थक और प्रेरणाप्रद आलेख।
ReplyDeletePoonam ji ko is lekh ke liye badhaayi.
ReplyDeleteवैग्यानिक आलेख भाषण की भांति न होकर , वर्गीक्रत शीर्षकों व क्रमांक सन्ख्याओं में वर्गीक्रत करके लिखे जाने चाहिये ताकि आपस में विषय क्रम बना रहे.
ReplyDeleteअच्छा लगा आपका यह लेख शुक्रिया
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