मित्रों ,हो सकता है आप में से बहुतों को यह पता न हो कि समूची दुनिया में आपका यह प्रिय ब्लॉग साईंस ब्लागर्स के संगठन का एक अनूठा प्रयास है ....
मित्रों ,हो सकता है आप में से बहुतों को यह पता न हो कि समूची दुनिया में आपका यह प्रिय ब्लॉग साईंस ब्लागर्स के संगठन का एक अनूठा प्रयास है .अभी यह अपने शैशव अवस्था में है मगर हमें पूरा भरोसा है कि एक दिन यह सामाजिक सरोकार का एक प्रमुख मंच बनेगा और आभासी और वास्तविक दोनों ही संसारों में अपनी छाप छोड़ेगा -हमारा यह जज्बा और धैर्य के साथ काम करते रहने का यह आलम एक दिन जरूर गुल खिलायेगा .आज हमारे साथ कितने ही मित्र आ जुड़े हैं जिनका हम तहे दिल से सम्मान करते हैं और निरंतर आह्वान करते हैं कि अपने समर्पित योगदान से इस मंच को समृद्ध करते रहें और विज्ञान को आम जन तक पहुँचाने की हमारी मुहिम में इसी तरह साथ देते चले .
मैं बीच बीच में आपसे वार्ता के लिए आता रहा हूँ और आज विज्ञान पत्रकारिता /संचार से जुड़े नैतिकता के मुद्दे पर आपसे कुछ अपने निजी विचार साझा करना चाहता हूँ -विज्ञान चिट्ठाकरिता(साईंस ब्लागिंग ) एक बिलकुल ही नव पल्लवित विधा है और अभी इसके "खेल के नियम " तय होने बाकी हैं -मगर यह बात बार बार दुहराई जानी आवश्यक है कि ब्लागिंग एक माध्यम मात्र है जिसका उपयोग (और दुर्भाग्य से दुरूपयोग भी ) दर्शन ,कला,.साहित्य .इतिहास ,मानविकी,धर्म या विज्ञान या फिर मानव सृजित -संस्कारित किसी भी ज्ञान को विकसित/संकुचित करने में हम कर सकते हैं जैसा कि अभी कर भी रहे हैं -तो यहाँ 'खेल के नियम' उन विधाओं या ज्ञान के क्षेत्र पर लागू होगा जिसके प्रसार के लिए यह माध्यम यानि ब्लागिंग का चुनाव किया जा रहा है -यहाँ हमारा प्रतिपाद्य है विज्ञान संचार और इस क्षेत्र में ब्लागिंग की उपयोगिता की बड़ी संभावनाएं देखी जा रही हैं .इस विधा पर आप विस्तृत विवेचन से पहले भी यहाँ अवगत हुए हैं .अतः यह मौजू है कि हम ब्लागिंग के जरिये विज्ञान संचार के इस नए उभरते नजरिये के उन कुछ मूलभूत बिन्दुओं का एक रिवीजन -पुनश्चर्या फिर करते चलें ताकि आने वाले नए "खिलाड़ी " मतलब साईंस ब्लागर्स 'खेल के नियमों " से पूरी तरह वाकिफ हो सकें और खुद की भी एक लम्बी पारी खेल सकें -अपनी एक पहचान स्थापित कर सकें !
मैं आज विज्ञान संचार /पत्रकारिता से जुड़े नैतिक मुद्दों पर एक परिचर्चा का आगाज यहाँ कर रहा हूँ -उनकी जरूरत तो हमेशा महसूस होती है मगर तब भी ये उतना ही तिरस्कृत और उपेक्षित भी बने रहते हैं .विज्ञान को किसी नीतिशास्त्र से जोड़ने का ख़याल ही कुछ लोगों को नागवार लग सकता है -क्योकि विज्ञान एक भाव -निरपेक्ष विषय है -वस्तुनिष्ठता का जोरदार आग्रह है यहाँ -प्रयोग -परीक्षणों और पुनि पुनि सत्यापन के उपरान्त जो तथ्य उभरें उसे बिना किसी लाग लपेट के प्रस्तुत कर देना ही विज्ञान का अभीष्ट है - मानव के लिए क्या अभीष्ट है क्या नहीं हम यह अलग से विचार विमर्श कर सकते हैं -यहाँ हमें दर्शन शास्त्र और नीतिशास्त्र दिशा दिखाते आये हैं .गर्भ के पूर्व शिशु के स्वास्थ्य की जानकारी का वैज्ञानिक तरीका वजूद में आ तो गया मगर हम उसका कितना उपयोग या मात्र लिंग निर्धारण से नारी शिशु ह्त्या में दुरूपयोग करते है यह मसला नैतिकता से जुडा है और इस तकनीक -अम्नियोसेंटेसिस के मानव प्रयोग की अचार संहिता की मांग करता है.प्रयोग परीक्षणों से निर्गत वैज्ञानिक सत्य न तो बुरे होते हैं और न अच्छे -यह मानवता पर निर्भर है यह उसका कैसा उपयोग या दुरूपयोग करती है .मगर यह तो ठोस विज्ञान का मामला है जहाँ तथ्य भावहीन(इनेर्ट ) होते हैं मगर विज्ञान संचार यानि लोगों तक विज्ञान के संचार का मामला पूरी तरह भाव -सापेक्ष है ,भाव निष्ठ है -यहाँ अतिरिक्त सावधानी की जरूरत है -क्योंकि अगर वैज्ञानिक तथ्यों के संचार में कोई पूर्वाग्रह या प्रायोजित स्वार्थपरता प्रवेश पा गयी तो बहुत विषम स्थिति उत्पन्न हो सकती है .अगर इस बात पर जबरदस्ती बल दिया जाता रहा कि पुरुष खतना कई विकारों जैसे शिश्न कैंसर के लिए अपरिहार्य है और इसके आत्यन्तिक प्रमाण नहीं है तो इसके जबरदस्ती थोपने से धार्मिक विद्वेष, लगाई झगड़े फैल जायेगें -अतः वैज्ञानिक तःथ्यों को आम जनता तक पहुँचाने का काम बहुत जिम्मेदरी और जोखिम भरा है-यहाँ एक सुचिंतित नीति शास्त्र -आचार संहिता बनाए जाने की जरूरत है और किसी भी तरह के पेशागत कदाचारों को रोकने के पुख्ता नियम कानून यहाँ भी होने ही चाहिए .
हम विज्ञान पत्रकारिता संचार से जुड़े नैतिक मुद्दों पर एक परिचर्चा का आह्वान करते हैं .
जारी ......
मैं बीच बीच में आपसे वार्ता के लिए आता रहा हूँ और आज विज्ञान पत्रकारिता /संचार से जुड़े नैतिकता के मुद्दे पर आपसे कुछ अपने निजी विचार साझा करना चाहता हूँ -विज्ञान चिट्ठाकरिता(साईंस ब्लागिंग ) एक बिलकुल ही नव पल्लवित विधा है और अभी इसके "खेल के नियम " तय होने बाकी हैं -मगर यह बात बार बार दुहराई जानी आवश्यक है कि ब्लागिंग एक माध्यम मात्र है जिसका उपयोग (और दुर्भाग्य से दुरूपयोग भी ) दर्शन ,कला,.साहित्य .इतिहास ,मानविकी,धर्म या विज्ञान या फिर मानव सृजित -संस्कारित किसी भी ज्ञान को विकसित/संकुचित करने में हम कर सकते हैं जैसा कि अभी कर भी रहे हैं -तो यहाँ 'खेल के नियम' उन विधाओं या ज्ञान के क्षेत्र पर लागू होगा जिसके प्रसार के लिए यह माध्यम यानि ब्लागिंग का चुनाव किया जा रहा है -यहाँ हमारा प्रतिपाद्य है विज्ञान संचार और इस क्षेत्र में ब्लागिंग की उपयोगिता की बड़ी संभावनाएं देखी जा रही हैं .इस विधा पर आप विस्तृत विवेचन से पहले भी यहाँ अवगत हुए हैं .अतः यह मौजू है कि हम ब्लागिंग के जरिये विज्ञान संचार के इस नए उभरते नजरिये के उन कुछ मूलभूत बिन्दुओं का एक रिवीजन -पुनश्चर्या फिर करते चलें ताकि आने वाले नए "खिलाड़ी " मतलब साईंस ब्लागर्स 'खेल के नियमों " से पूरी तरह वाकिफ हो सकें और खुद की भी एक लम्बी पारी खेल सकें -अपनी एक पहचान स्थापित कर सकें !
मैं आज विज्ञान संचार /पत्रकारिता से जुड़े नैतिक मुद्दों पर एक परिचर्चा का आगाज यहाँ कर रहा हूँ -उनकी जरूरत तो हमेशा महसूस होती है मगर तब भी ये उतना ही तिरस्कृत और उपेक्षित भी बने रहते हैं .विज्ञान को किसी नीतिशास्त्र से जोड़ने का ख़याल ही कुछ लोगों को नागवार लग सकता है -क्योकि विज्ञान एक भाव -निरपेक्ष विषय है -वस्तुनिष्ठता का जोरदार आग्रह है यहाँ -प्रयोग -परीक्षणों और पुनि पुनि सत्यापन के उपरान्त जो तथ्य उभरें उसे बिना किसी लाग लपेट के प्रस्तुत कर देना ही विज्ञान का अभीष्ट है - मानव के लिए क्या अभीष्ट है क्या नहीं हम यह अलग से विचार विमर्श कर सकते हैं -यहाँ हमें दर्शन शास्त्र और नीतिशास्त्र दिशा दिखाते आये हैं .गर्भ के पूर्व शिशु के स्वास्थ्य की जानकारी का वैज्ञानिक तरीका वजूद में आ तो गया मगर हम उसका कितना उपयोग या मात्र लिंग निर्धारण से नारी शिशु ह्त्या में दुरूपयोग करते है यह मसला नैतिकता से जुडा है और इस तकनीक -अम्नियोसेंटेसिस के मानव प्रयोग की अचार संहिता की मांग करता है.प्रयोग परीक्षणों से निर्गत वैज्ञानिक सत्य न तो बुरे होते हैं और न अच्छे -यह मानवता पर निर्भर है यह उसका कैसा उपयोग या दुरूपयोग करती है .मगर यह तो ठोस विज्ञान का मामला है जहाँ तथ्य भावहीन(इनेर्ट ) होते हैं मगर विज्ञान संचार यानि लोगों तक विज्ञान के संचार का मामला पूरी तरह भाव -सापेक्ष है ,भाव निष्ठ है -यहाँ अतिरिक्त सावधानी की जरूरत है -क्योंकि अगर वैज्ञानिक तथ्यों के संचार में कोई पूर्वाग्रह या प्रायोजित स्वार्थपरता प्रवेश पा गयी तो बहुत विषम स्थिति उत्पन्न हो सकती है .अगर इस बात पर जबरदस्ती बल दिया जाता रहा कि पुरुष खतना कई विकारों जैसे शिश्न कैंसर के लिए अपरिहार्य है और इसके आत्यन्तिक प्रमाण नहीं है तो इसके जबरदस्ती थोपने से धार्मिक विद्वेष, लगाई झगड़े फैल जायेगें -अतः वैज्ञानिक तःथ्यों को आम जनता तक पहुँचाने का काम बहुत जिम्मेदरी और जोखिम भरा है-यहाँ एक सुचिंतित नीति शास्त्र -आचार संहिता बनाए जाने की जरूरत है और किसी भी तरह के पेशागत कदाचारों को रोकने के पुख्ता नियम कानून यहाँ भी होने ही चाहिए .
हम विज्ञान पत्रकारिता संचार से जुड़े नैतिक मुद्दों पर एक परिचर्चा का आह्वान करते हैं .
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अगर आपको 'साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन' का यह प्रयास पसंद आया हो, तो कृपया फॉलोअर बन कर हमारा उत्साह अवश्य बढ़ाएँ। |
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विज्ञान पत्रकारिता की सबसे बड़ी चुनौती है, मिथों को तोड़ने की।कॉमनसेंस और विज्ञान में अंतर बताने की। दूसरी चुनौती है विज्ञान को महज तकनीक तक सीमित करने वाले नजरिए से कैसे बचा जाए। तीसरी चुनौती है कि विज्ञान में शिक्षित रिपोर्टरों की प्रत्येक अखबार या मीडिया में नियुक्ति की,विज्ञान पत्रकारिता सामान्य पत्रकारिता नहीं है, इसके लिए लिखने के हुनर के साथ विज्ञान के पेशेवर ज्ञान का होना भी आवश्यकता है। तब ही चेतना और विकास के बीच में संतुलन कायम किया जा सकता है।
ReplyDeleteबहुत आभार चतुर्वेदी जी -आपके सुविचारित सुझाव हैं ये !
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद ज़ाकिर जी. इस प्रकार की परिचर्चा शायद ब्लॉग जगत में पहली है.आपका प्रयास प्रशंसनीय है.
ReplyDeleteअपनी उपरोक्त टिप्पणी में मैने ज़ाकिर जी को धन्यवाद ज्ञापित किया जबकि यह पोस्ट अरविन्द जी की है.(वास्तव में ज़ाकिर और अरविन्द जी एक दूसरे के साथ इतना काम करते हैं कि अक्सर भ्रम हो जाता है. मसलन तस्लीम पर अक्सर ज़ाकिर, अरविन्द जी की पहेलियों के जवाब लिखते है आदि-आदि.)अत: इस परिचर्चा के लिए मैं ज़ाकिर के साथ डॉ. अरविन्द जी को भी धन्यवाद और बधाई ज्ञापित करती हूँ.
ReplyDeleteशुक्रिया मीनू जी !
ReplyDeleteविज्ञान कोई समझना और और उसको सही तरीके से सरल तरीके से समझाना वाकई कोई सहज कार्य नहीं है ...इस तरह के प्रयास एक नयी दिशा की और ले जासकते हैं ..आपके विचारों से सहमत हूँ मैं भी अरविन्द जी ..
ReplyDeleteमैं स्वयं विज्ञान का विद्यार्थी रह चुका हूँ यही वजह थी कि मैं आपके इस सम्मानित ब्लॉग और इस सराहनीय कार्य में अपना भी थोडा बहुत (साथी हाँथ बढ़ाना के तर्ज पे) योगदान देना और बहुत कुछ सीखना चाहता हूँ....
ReplyDeleteविज्ञान संचार भी एक सामाजिक जागरूकता का अहम् हिस्सा है ऐसा मैं मानता हूँ और मिश्रा जी आपका यह कार्य बेहद सराहनीय है....ज़ाकिर भाई की अनवरत मेहनत भी अनुकरणीय है....
सलीम ख़ान
Is mahatvapoorn paricharcha ko shuru karne ke liye badhayi.
ReplyDeleteांब आपसे कोई असहमत कैसे हो सकता है? आपसे हम जैसे लोगों की भी विग्यान मे रुची बढती है। बहुत अच्छा प्रयास है आपका। इसे जारी रखिये। धन्यवाद और शुभकामनायें
ReplyDeleteविज्ञान अर्थात विशेष ज्ञान!
ReplyDeleteयानि 100 प्रतिशत शुद्ध ज्ञान!
इस ज्योति को जलाए रहिए!