अब इस समाचार पर हंसा जाए या रोया, यह आप खुद तय कर लीजिए। बहरहाल यह न्यूज चौंकाने वाली है कि मनुष्य के शरीर में ‘परक्लोरेट’ नामक तत्व पाया गय...
अब इस समाचार पर हंसा जाए या रोया, यह आप खुद तय कर लीजिए। बहरहाल यह न्यूज चौंकाने वाली है कि मनुष्य के शरीर में ‘परक्लोरेट’ नामक तत्व पाया गया है, जोक असल में राकेट को उड़ाने वाले ईंधन में पाया जाने वाला तत्व है। यह खोज अमेरिका के ‘सेन्टर फार डिज़ीज कन्ट्रोल एण्ड प्रिवेन्शन' ने की है। पूरी रिपोर्ट दे रहे हैं विज्ञान संचार के प्रतिष्ठित हस्ताक्षर डा0 अरविंद मिश्र।
इन तत्वों की सूक्ष्म मात्रा भी गम्भीर स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म दे सकती है। हमारे बच्चों का भविष्य बिगाड़ सकती हैं कुछ सबसे खतरनाक तत्वों में, बिस्फेनाल ए (BPA) और थैलेट्स (Phthalates) भी हैं जो आजकल के प्लास्टिक उद्योग में अपरिहार्य हैं, इनके चलते मनुष्य की नाजुक अन्तस्रावी (Endocrine System) प्रणाली गडमड हो सकती है जिससे शारीरिक विकास की बड़ी समस्यायें उत्पन्न हो सकती हैं। इनके चलते मोटापा, मधुमेह, आटिज्म, ध्यान केन्द्रण में कमी, अति ध्यान सक्रियता (Attention deficient / Hyperactivity disorder) जैसी समस्यायें ऐसे रसायनों के मानव शरीर में घुसपैठ के चलते हो सकती हैं। अमेरिका में इन दिनों पर्यावरण संरक्षा एजेन्सी (EPA) नये राष्ट्रपति की पहल में इस मुद्दे पर सक्रियता से कार्य कर रही है।
कुछ विषैले तत्व जैसे सीसे (Lead) के 10 माइक्रोग्राम की अति सूक्ष्म मात्रा भी ‘आई क्यू’ को सीधे प्रभावित कर सकती है। बिस्फेनाल ए जैसे (BPA) तत्व भी कम खतरनाक नहीं है। बी0पी0ए0 की खोज 1891 में हुई थी, 1940 से इसका इस्तेमाल पॉलीकार्बोनेट प्लास्टिक और एक कृत्रिम गोंद (Epoxy resin) के निर्माण में शुरू हुआ। इन खतरनाक रसायनों की पहचान के लिए प्लास्टिक के बोतलों जिनमें इनका इस्तेमाल किया गया हो को अमेरिका में एक संख्या-ampरिसाइकलिंग नम्बर/रेजिन आइडेन्टीफिकेशन नम्बर से जानकर आगाह हुआ जा सकता है। जैसे पाली कार्बोनेट के लिए ‘रिसाइक्लिंग नम्बर-amp का उल्लेख होता है।
पूरी दुनियाँ में 2.7 अरब किलोग्राम बी0पी0ए0 का उत्पादन प्रति वर्ष होता है। चूँकि बी0पी0ए0 एक संश्लेषित इस्ट्रोजेन (हार्मोन) है अतः बी0पी0ए0 वाले प्लास्टिक के टूटने, गर्म करने आदि पर ‘इस्ट्रोजन’ का परिसरण होता है जो खाने की सामग्री और पीने के पानी के जरिये अन्ततः मनुष्य के शरीर तक अपनी पहुँच बना ही लेता है। आज अमेरिका में स्थिति यहाँ तक जा पहुँची है कि 6 वर्ष के ऊपर के 93 प्रतिशत सर्वेक्षित अमरीकावासियों के मूत्र में इनके अंश विद्यमान पाये गये हैं। विगत 1998 में वार्शिंगटन स्टेट यूनिवर्सिटी की आनुवंशिकीविद पैट्रीसिया हंट ने चूहों पर किये गये शोध परिणाम में पाया था कि बी0पी0ए0 युक्त आहार के चलते उनकी प्रजनन क्षमता प्रभावित हुई थी। एक संश्लेषित इस्ट्रोजेन हार्मोन से युक्त बी0पी0ए0 अन्य कुदरती हार्मोन जैसे टेस्टोस्टेरान या एड्रेनलिन की अधिक मात्रा से उत्पन्न हाने वाली स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्यायें उत्पन्न करता है। यह गर्भकाल का भी समस्यायें उत्पन्न करता है। गर्भकाल के आरम्भिक तीन महीनों में मानव शिशुओं पर भी बी0पी0ए0 के कुप्रभाव का ऑकलन शुरु हो गया है और आरम्भिक नतीजे चेतावनी जनक हैं। आशंका है कि ऐसे शिशुओं में आगे चलकर वक्ष कैंसर और पुरुष प्रजनन अंगों पर दुप्रभाव की स्थितियाँ उत्पन्न हो सकती हैं। इसी तरह थैलेट्स (Phthalate) भी का अनुप्रयोग हर तरह के खतरों से भरा है। इनका प्रयोग पी0वी0सी0 प्लास्टिक (Polyvinyl Chloride Plastics) के निर्माण में धड़ल्ले से होता है। पी0वी0सी0 पाइप से लेकर अन्य सामान जैसे शावर कर्टेन, कास्मेटिक्स, इन्ट्रावेनस फ्लूईड बैग्स में थैलेट्स की उपस्थिति होती है। परीक्षण जन्तुओं में थैलेट्स के चलते शुक्राणु अल्पता देखी गई है। पाली ब्रामेमियेटेड डाइफेनिल इथर्स (PBDes) भी ऐसा ही कुप्रभाव डालते हैं जिनका इस्तेमाल इलेक्ट्रानिक सामानों की प्लास्टिक, पाली यूरेथेन फोम आदि के निर्माण में होता है।
खाद्य सामग्रियों में थैलेटस की ब-सजय़ती मात्रा से समय पूर्व वक्ष विकास और कैन्सर की आशंकायें प्रबल होते जाने के दावे नये अध्ययनों में किये गये हैं। उन लड़को में अंडकोषों के असामान्य विकास के मामले भी प्रकाश में लाये गये हैं, जिनकी माताओं को उनके गर्भकाल में अनजाने ही थैलेट्स का ज्यादा ‘इक्सपोजर’ हुआ था। भारत में भी प्लास्टिक का बेतहासा प्रचलन बढ़ गया है। किन्तु यहाँ उपर्युक्त अध्ययन अभी आरम्भिक चरणों में हैं।
प्लास्टिक कचरे के बढ़ते खतरे: क्या हम आगाह हैं?
प्लास्टिक के प्रयोग से ऐसा नहीं लगता कि उनसे हमें कोई खतरा भी है, लेकिन इनमें प्रयुक्त रसायनों से मनुष्य स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभावों को लेकर जो शोध परिणाम सामने आ रहे हैं वे चिन्तित करने वाले हैं। अमेरिका में ‘सेन्टर फार डिज़ीज कन्ट्रोल एण्ड प्रिवेन्शन' CDC ने पाया है कि अमेरिकी लोगों में 212 पर्यावरणीय रसायन की मौजूदगी है जिसमें आर्सैनिक और कैडमियम से लेकर कई पेस्टीसाईड तक मौजूद हैं। साथ ही मनुष्य के शरीर में घुसपैठ कर गये दूसरे तत्वों में आग बुझाने वाले ‘फ्लेम रिटार्टेण्ड’ और राकेट ईंधन में पाया जाना वाला तत्व ‘परक्लोरेट’ भी है। अमेरिका के ही सिनसिनाटी चिल्ड्रेन इनवायरमेन्टल हेल्थ सेन्टर के निदेशक डा0 ब्रूस लैनफियर का कहना है कि यह केवल पर्यावरण के ही दूषित होने का मामला नहीं है, हमारे शरीर तक प्लास्टिक रसायनों से प्रदूषित हो चुके हैं। इन तत्वों की सूक्ष्म मात्रा भी गम्भीर स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म दे सकती है। हमारे बच्चों का भविष्य बिगाड़ सकती हैं कुछ सबसे खतरनाक तत्वों में, बिस्फेनाल ए (BPA) और थैलेट्स (Phthalates) भी हैं जो आजकल के प्लास्टिक उद्योग में अपरिहार्य हैं, इनके चलते मनुष्य की नाजुक अन्तस्रावी (Endocrine System) प्रणाली गडमड हो सकती है जिससे शारीरिक विकास की बड़ी समस्यायें उत्पन्न हो सकती हैं। इनके चलते मोटापा, मधुमेह, आटिज्म, ध्यान केन्द्रण में कमी, अति ध्यान सक्रियता (Attention deficient / Hyperactivity disorder) जैसी समस्यायें ऐसे रसायनों के मानव शरीर में घुसपैठ के चलते हो सकती हैं। अमेरिका में इन दिनों पर्यावरण संरक्षा एजेन्सी (EPA) नये राष्ट्रपति की पहल में इस मुद्दे पर सक्रियता से कार्य कर रही है।
कुछ विषैले तत्व जैसे सीसे (Lead) के 10 माइक्रोग्राम की अति सूक्ष्म मात्रा भी ‘आई क्यू’ को सीधे प्रभावित कर सकती है। बिस्फेनाल ए जैसे (BPA) तत्व भी कम खतरनाक नहीं है। बी0पी0ए0 की खोज 1891 में हुई थी, 1940 से इसका इस्तेमाल पॉलीकार्बोनेट प्लास्टिक और एक कृत्रिम गोंद (Epoxy resin) के निर्माण में शुरू हुआ। इन खतरनाक रसायनों की पहचान के लिए प्लास्टिक के बोतलों जिनमें इनका इस्तेमाल किया गया हो को अमेरिका में एक संख्या-ampरिसाइकलिंग नम्बर/रेजिन आइडेन्टीफिकेशन नम्बर से जानकर आगाह हुआ जा सकता है। जैसे पाली कार्बोनेट के लिए ‘रिसाइक्लिंग नम्बर-amp का उल्लेख होता है।
पूरी दुनियाँ में 2.7 अरब किलोग्राम बी0पी0ए0 का उत्पादन प्रति वर्ष होता है। चूँकि बी0पी0ए0 एक संश्लेषित इस्ट्रोजेन (हार्मोन) है अतः बी0पी0ए0 वाले प्लास्टिक के टूटने, गर्म करने आदि पर ‘इस्ट्रोजन’ का परिसरण होता है जो खाने की सामग्री और पीने के पानी के जरिये अन्ततः मनुष्य के शरीर तक अपनी पहुँच बना ही लेता है। आज अमेरिका में स्थिति यहाँ तक जा पहुँची है कि 6 वर्ष के ऊपर के 93 प्रतिशत सर्वेक्षित अमरीकावासियों के मूत्र में इनके अंश विद्यमान पाये गये हैं। विगत 1998 में वार्शिंगटन स्टेट यूनिवर्सिटी की आनुवंशिकीविद पैट्रीसिया हंट ने चूहों पर किये गये शोध परिणाम में पाया था कि बी0पी0ए0 युक्त आहार के चलते उनकी प्रजनन क्षमता प्रभावित हुई थी। एक संश्लेषित इस्ट्रोजेन हार्मोन से युक्त बी0पी0ए0 अन्य कुदरती हार्मोन जैसे टेस्टोस्टेरान या एड्रेनलिन की अधिक मात्रा से उत्पन्न हाने वाली स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्यायें उत्पन्न करता है। यह गर्भकाल का भी समस्यायें उत्पन्न करता है। गर्भकाल के आरम्भिक तीन महीनों में मानव शिशुओं पर भी बी0पी0ए0 के कुप्रभाव का ऑकलन शुरु हो गया है और आरम्भिक नतीजे चेतावनी जनक हैं। आशंका है कि ऐसे शिशुओं में आगे चलकर वक्ष कैंसर और पुरुष प्रजनन अंगों पर दुप्रभाव की स्थितियाँ उत्पन्न हो सकती हैं। इसी तरह थैलेट्स (Phthalate) भी का अनुप्रयोग हर तरह के खतरों से भरा है। इनका प्रयोग पी0वी0सी0 प्लास्टिक (Polyvinyl Chloride Plastics) के निर्माण में धड़ल्ले से होता है। पी0वी0सी0 पाइप से लेकर अन्य सामान जैसे शावर कर्टेन, कास्मेटिक्स, इन्ट्रावेनस फ्लूईड बैग्स में थैलेट्स की उपस्थिति होती है। परीक्षण जन्तुओं में थैलेट्स के चलते शुक्राणु अल्पता देखी गई है। पाली ब्रामेमियेटेड डाइफेनिल इथर्स (PBDes) भी ऐसा ही कुप्रभाव डालते हैं जिनका इस्तेमाल इलेक्ट्रानिक सामानों की प्लास्टिक, पाली यूरेथेन फोम आदि के निर्माण में होता है।
खाद्य सामग्रियों में थैलेटस की ब-सजय़ती मात्रा से समय पूर्व वक्ष विकास और कैन्सर की आशंकायें प्रबल होते जाने के दावे नये अध्ययनों में किये गये हैं। उन लड़को में अंडकोषों के असामान्य विकास के मामले भी प्रकाश में लाये गये हैं, जिनकी माताओं को उनके गर्भकाल में अनजाने ही थैलेट्स का ज्यादा ‘इक्सपोजर’ हुआ था। भारत में भी प्लास्टिक का बेतहासा प्रचलन बढ़ गया है। किन्तु यहाँ उपर्युक्त अध्ययन अभी आरम्भिक चरणों में हैं।
अगर भारत में भी इस तरह का अध्ययन किया जाए, तो परिणाम इससे भी भयावह निकलने की सम्भावना है।
ReplyDeleteवैसे अगर अभी हम नहीं चेते, तो फिर शायद पछताने का भी समय न मिले।
इस शानदार आलेख के लिए आपको बहुत बहुत बधाई।
आपने काफी विस्तार से जानकारी दी, उसके लिए शुक्रिया.
ReplyDeleteभारत में सरकार की तरफ से ऐसी कोई एजेंसी नहीं है, जो उचित तरीके से खाने-पीने की वस्तुओं की जांच करती है, तो यह तो एकदम पक्का है कि हम खाने के साथ साथ उन चीज़ों को भी खा रहे हैं जो कि हमारे शरीर के लिए घातक हैं. हम सुविधा के आगे स्वास्थ्य को ज्यादा महत्व देते हैं, जैसे कि बाज़ार से समोसे - कचोरी इत्यादि को हम कागज की थैली में भी ला सकते हैं, पर उसमे सुविधाजनक नहीं लगता इसलिए polythene में ले कर आते हैं.
यह सच है कि हमको इसके लिए सरकार पर दबाब डालना चाहिए पर अपने स्तर पर हम जो कर सकते हैं कम से कम वो तो प्रारंभ कर देना चाहिए
प्लास्टिक कचरे से इतना खतरा, बेहद ज्ञानवर्धक आलेख ......
ReplyDeleteregards
क्या करवाकर छोडोगे इंसान से
ReplyDeleteवो गिर रहा हैं नैत्तिक स्तर पे येही काफी हैं मेरे दोस्त
सचमुच स्थित बहुत चिंताजनक है..
ReplyDeleteबेहद ज्ञानवर्धक आलेख
ReplyDeleteवही सही था जब तांबे का बर्तनों में खाना बनाया व खाया जाता था.
ReplyDeleteagre with Zishan bhai
ReplyDeleteबेहद ज्ञानवर्धक लेख धन्यवाद
ReplyDeleteSachmuch chinta ki baat hai.
ReplyDeleteGyanvardhan hetu Aabhar.
ReplyDeleteप्लास्टिक से होने वाले नुकसान के बारे में जानकारी सामयिक है.अगले एक साल में यहाँ प्लास्टिक बेग पर पूरी तरह प्रतिबन्ध लगने वाला है.लेकिन कानून के अलावा हम खुद अपने से भी पहल कर सकते हैं प्लास्टिक की वस्तुओं का कम से कम उपयोग कर के.
ReplyDeleteAapne ek gambheer samasya ki or dhyan dilaha hai, hamen chetna hi hoga, warna bahut durgati ho jayegi.
ReplyDeleteइसे पढकर बहुत सी नई जानकारी मिली।
ReplyDeleteबहुत महत्त्वपूर्ण जानकारी .
ReplyDeleteज्ञानवर्धक जानकारी...
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