हिन्दी भाषा के माध्यम से, भारत में विज्ञान की सार्वजनिक समझ बढ़ाने के लिए सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा पिछले दो दशकों के भीतर विज्ञ...
हिन्दी भाषा के माध्यम से, भारत में विज्ञान की सार्वजनिक समझ बढ़ाने के लिए सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा पिछले दो दशकों के भीतर विज्ञान संचार गतिविधियों में तेजी लाई गई है. आजाद भारत के सामाजिक, सांस्कृतिक विविध समाज को वैज्ञानिक सोच व वैज्ञानिक दृष्टि से जागरूक लोगों वाले राष्ट्र में बदलने का विचार हमेशा ही प्राथमिकता में रखा ही जाना चाहिए। बदलते परिवेश में परम्परागत माध्यमों के साथ-साथ नई तकनीकों को भी शामिल किए जाने की संभावनाओं के बीच हिन्दी ब्लॉग लेखन एक सशक्त दावेदार बन कर उभरा है।
इतिहास व प्रयास
भारत की अपनी एक प्रभावशाली वैज्ञानिक धरोहर है। प्राचीन काल से भारतीय उप महाद्वीप में वैज्ञानिकों द्वारा गणित, खगोल विज्ञान, चिकित्सा और भौतिक विज्ञान के रूप में अनेक अनुसंधान किये गए है. किन्तु दुर्भाग्यवश इस वैज्ञानिक ज्ञान और आम आदमी के बीच बनी खाई एक उल्लेखनीय अन्तर बनाए हुए है। भारत के विज्ञान लेखकों द्वारा आम जनता तक पहुँचने के लिए समयानुसार, संचार के विभिन्न माध्यमों का इस्तेमाल किया जाता रहा है। प्रिंट माध्यमों में सरकार, कई राष्ट्रीय-क्षेत्रीय समाचार पत्रों, लोकप्रिय और तकनीकी वैज्ञानिक पत्रिकाओं के अलावा साप्ताहिक विज्ञान पृष्ठों का प्रकाशन नियमित रहा है। आम लोगों तक विज्ञान को पहुंचाने के लिए सन 1915 से विज्ञान परिषद द्वारा लोकप्रिय हिन्दी पत्रिका ‘विज्ञान’ का प्रकाशन किया जा रहा है। आजादी के बाद, अनेक सरकारी एजेंसियों और गैर सरकारी संगठनों द्वारा विज्ञान को लोकप्रिय बनाने के लिए किए गए प्रयासों में हिन्दी की मासिक ‘विज्ञान प्रगति’, अँग्रेजी की ‘साईस रिपोर्टर’ तथा उर्दू की त्रैमासिक ‘साईस की दुनिया’ उल्लेखनीय हैं।
दुर्भाग्य से, ऐसे संकेत मिलते हैं कि प्रिंट मीडिया में विज्ञान के प्रति रुचि घटती जा रही है। परंपरागत समाचार माध्यमों की संख्या घटी है। उदाहरण के लिए बेहद लोकप्रिय रही अंग्रेजी पत्रिका ‘साईस टुडे’, ‘साईस डाईजेस्ट’ आदि का प्रकाशन बंद हो चुका है। यदि कोई ना माने तो यह निश्चित है कि कम से कम विज्ञान के लिए समाचार पत्रों में विज्ञान के समाचारों की संख्या घटी है।
श्रव्य दृश्य माध्यम में विज्ञान आधारित 144 कड़ियों वाला रेडियो धारावाहिक –मानव का विकास, 90 के दशक में आकाशवाणी व NCSTC के संयुक्त प्रयास से कार्यक्रम में एक साथ 80 से अधिक रेडियो स्टेशनों से 18 भारतीय भाषाओं में प्रसारित किया गया था। यह लाखों स्कूली बच्चों में बेहद लोकप्रिय था। कई टेलीविजन चैनल भी वर्षों से विज्ञान कार्यक्रमों का प्रसारण कर रहे हैं।
जहां प्रचलित माध्यमों की सीमाएं हैं वहाँ सफलतापूर्वक समाज में क्षेत्रों तक पहुँचने के लिए संचार के परंपरागत साधनों जैसे कठपुतली, नुक्कड़ नाटक, मंच प्रदर्शन, लोक गीत और नृत्य आदि का प्रयोग किया जाता है। वे केवल मनोरंजक नहीं हैं, बल्कि दो तरह से संचार प्रदान करते हैं और लागत लगभग कुछ नहीं हैं। जहाँ, साक्षरता का स्तर और पहुंच की सीमा के चलते प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की अपनी विवशता है इस तरह के लोक माध्यम एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. विज्ञान संचार के प्रभावी परस्पर-संवाद वाले माध्यमों में विज्ञान प्रदर्शनियाँ, मेले, सेमिनार, कार्यशालायें, व्याख्यान, वैज्ञानिक पर्यटन, सम्मेलन और वर्तमान में उपलब्ध विभिन्न सॉफ्टवेयर बेहद अच्छे परिणाम देते हैं।
ऐसे ही कुछ सरकारी प्रयासों में, 1980 में विज्ञान संचार को भारत की छठी पंचवर्षीय योजना में प्रमुखता दी गई थी, और दो साल बाद विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार (NCSTC) की स्थापना हुई. विज्ञान लेखन को बढ़ावा देने के लिए भारतीय विज्ञान राइटर्स एसोसिएशन (ISWA) का गठन 1985 में हुया।
सीमायें व आशा
पश्चिमी देशों में औद्योगिक क्रांति के बाद विज्ञान संचार गतिविधियों के स्तर में नाटकीय वृद्धि हुई है. कुछ मायनों में, वर्तमान में भारत भी ऐसी ही परिस्थितियों से गुजर रहा है. विश्व शक्ति बनने की ओर तेजी से अग्रसर होते भारत में प्रौद्योगिकी व वैज्ञानिक गतिविधियों में भी वृद्धि होनी अवश्यंभावी है। विश्व में सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग में सिरमौर होना इस देश की वैज्ञानिक जागरूकता का सबूत है. इसी तारतम्य में औद्योगिक भारत द्वारा विज्ञान संचार को लोकप्रिय बनाने की सख्त आवश्यकता है। अब वक्त आ गया है जब वैज्ञानिकों द्वारा अपने काम को सार्वजनिक करने के लिए सीधे एक बड़ी भूमिका निभानी होगी। इस सन्दर्भ में ताज़ा रुझान भी बताता है कि विज्ञान छात्रों द्वारा नौकरियों में उन पदों की तलाश की जाती है जहाँ विज्ञान संचार शामिल हैं।
इतना सब कुछ होने के बावज़ूद, यदि आसपास नज़र दौड़ाई जाए तो आज के बदले हुए परिवेश में बेहतर साबित हो चुका दो-तरफा संवाद रूपी इंटरनेट, अपनी बातों को रखने का एक प्रभावी माध्यम बन चुका है। आज यह लगभग हर घर, स्कूल, कार्यालय, समाज, संस्था आदि की मूलभूत आवश्यकता है। बेशक भारत में उपयुक्त सुविधाओं के अभाव के कारण इंटरनेट का प्रयोग सीमित था, लेकिन अब हम भी अब विकसित देशों की दौड़ में सम्मिलित हो चुके है। आज विश्व भर के इंटरनेट उपयोगकर्तायों के मामले में अब भारत का स्थान चौथा हो गया है। भारत में इंटरनेट उपयोगकर्तायों की संख्या लगभग नौ करोड़ हो चुकी है और तादाद लगातार तेज गति से बढ़ती जा रही है। भौगोलिक दूरियों और राजनीतिक सीमाओं को बेमानी करता हुआ यह वसुधैव कुटुंबकम् की अवधारणा को सही मायने में साकार करता दिख रहा है।
इसमें कोई दो मत नहीं कि कम्प्यूटरों पर अंग्रेजी के वर्चस्व के बावज़ूद हिन्दी की लोकप्रियता दिनोंदिन प्रगति कर रही है। हिन्दी लेखन हेतु नित नए तरीके ईज़ाद किए जा रहे हैं, प्रस्तुत हो रहे हैं। हाल ही के वर्षों में, वेबसाईट्स द्वारा एक-तरफ़ा ढ़ग से अपनी बात को रख देने से हट कर समाज के हर तबके के व्यक्तियों के बीच हिन्दी ब्लॉग लेखन, संवाद - सहयोग का अत्यंत सहज, तत्क्षण और अनौपचारिक माध्यम बनकर उभरा है। यह मूलत: एक मुफ़्त का मंच है जो आपके या आपके संगठन को त्वरित गति से विचार और जानकारी साझा करने में आपको सक्षम बनाता है।
मूलभूत बातें
ब्लॉग्स, इंटरनेट पर अनेक कार्यों, राजनीतिक टिप्पणियों से लेकर व्यक्तिगत पत्रिकाओं तक के लिए उपयोग में लाए जाते हैं, लेकिन इनका निगमों, संगठनों के लिए भी अनेक उपयोग हैं। जैसे कि एक संगठन किसी अनौपचारिक तरीकें से कर्मचारियों या ग्राहकों के साथ निर्णयों, नीतियों, और विचारों का संवाद कर सकता है, पाठकों को ब्लॉग पोस्ट पर टिप्पणी देने के लिए आमंत्रित करके संगठन समुदाय की समझ विकसित कर सकता है या महत्व वाले संभावित क्षेत्रों को आंक सकता हैं।
ब्लॉग्स ऐसे लोगो को सक्षम बना सकते हैं जिनके पास विषयों पर अपने शब्दों में चर्चा करने के लिए रोचक परिप्रेक्ष्य होता हैं। उदाहरण के लिए, किसी प्रोजेक्ट में आड़े आने वाली बाधायों संबंधी अपनी जीत या संघर्ष की बातों को या किसी अद्वितीय प्रोजेक्ट को बनाने संबंधी अपने अनुभवों को साझा कर सकते हैं। कोई ब्लॉग लेख किसी जटिल अवधारणा या तकनीक के फायदों की व्याख्या और मददगार उदाहरणों को सम्मिलित कर सकता है। ब्लॉग लिखे जाने में आसान हैं और आम तौर पर अनौपचारिक टोन लिए होते हैं, इसलिए पारंपरिक कॉरपोरेट वेब साइट से अलग होते हैं।
ब्लॉग्स लोगों को उनके लक्ष्य और भविष्य के बारे में उनकी सोच साझा करने में और उन पर लोगो को टिप्पणी करने के लिए प्रोत्साहित करने में सक्षम कर सकते हैं। वे कोई फ़ोरम भी प्रदान कर सकते हैं जिसमें किसी सगंठन के शीर्षस्थ अधिकारी अपने कर्मचारियों के साथ एक अनौपचारिक, चित्ताकर्षक तरीके से संवाद कर सकते हैं। इस माध्यम में अपनी अभिव्यक्ति पर टिप्पणी पाने के साथ रूचिकर साइट्स, चित्रों और संबंधित ब्लॉग्स के लिंक दे सकते हैं।
हालांकि तकनीकविदों को ब्लॉग लेखन की आकस्मिक और संवादी शैली, तकनीकी लेखन की कठोरता की तुलना में उदासीन महसूस हो सकती है। किन्तु इसका सबसे मूल्यवान पहलू है -एक पूरे नए तरीके में दो-तरफ़ा संवाद की संभावना। केवल एक चीज आम है इस नेटवर्क से जुड़े लोगों में वह है अपने जुनून का ऑनलाइन संप्रेषण। परिणाम स्वरूप समान विचारधाराओं वालों की विषय विविधता, वैज्ञानिक हितों, करियर, अनुभव, स्थानों, उम्र, पृष्ठभूमि, जीवन शैली, राजनीतिक विचार से भी अवगत हुआ जा सकता है।
लेखन विधा
संशय में पड़े भावी ब्लॉग लेखक अक्सर यही पूछते देखे गए हैं कि क्या लिखें? अरे भई, अपने विषय के बारे में लिखें, आपने क्या पढ़ा वह बताईए, अपने स्कूल-कॉलेज में पढ़ाये जाने वाले लेक्चर की चर्चा कीजिए, अपने विषय संबंधित चित्र लगाईए, इस बारे में आ चुकी मुश्किलों और उन पर अपने अनुभवों की बात कीजिए। ऐसा नहीं है कि आप ही अनुभवी हों, आपसे भी अनुभवी सवा सेर मौज़ूद हैं। कभी किसी समस्या को सामने रखिए, फिर देखिए उन पर कैसे आपको व्यवहारिक सलाहें मिलेंगी।
अब अगर लोग किसी वैज्ञानिक निष्कर्ष से सहमत नहीं है तो इसका यह अर्थ नहीं है कि विज्ञान उनकी समझ में नहीं आता। बल्कि यह है कि उनके विश्वास और मूल्य उन्हें वैज्ञानिक निष्कर्ष को स्वीकार करने से रोकते हैं? इंटरनेट, परमाणु कचरा, आनुवांशिक जानकारी, वैकल्पिक ऊर्जा के बारे में वैज्ञानिक भले ही अपने तथ्य तर्क रख लें किन्तु यह आम व्यक्ति को समझ में नहीं आता। आप सीमित लोगों के लिए शोध पत्र लिख लेंगे और उसे आपके अनुभवी साथी या पारिवारिक सदस्य सुन लेंगे लेकिन एक सामान्य जन के लिए क्या किया जाए? अरे ज़नाब! ब्लॉग लिखिए।
मेरे एक मित्र पूछते हैं कि अब वैज्ञानिकों को अब अपने कार्यों के अलावा यह जिम्मेदारी भी उठानी होगी कि समाज को उन कार्यों की उपयोगिता बताई जाए? बिल्कुल, निश्चित तौर पर। यह उनके लिए बेहद आवश्यक है कि उनके अथक प्रयासों पर भविष्य में होने वाले विवादों से बचे जाने के पहले उन मुद्दों को आम जनता के बीच ले कर जाए जिनके बारे में अभी तक सार्वजनिक एक राय नहीं बनाई जा सकी है। वैज्ञानिक नहीं जान सकते कि भविष्य में क्या होगा किन्तु दो अलग संस्कृतियों के बीच होने वाले संभावित टकराव से बचने का उपाय तो कर सकते हैं।
हालांकि ब्लॉग लेखन, वैज्ञानिक सम्मेलनों और अन्य मूल विज्ञान गतिविधियों की जगह नहीं ले सकता फिर भी इसका उपयोग नेटवर्किंग के पारंपरिक तरीकों के साथ किया जा सकता है। मैं अपनी सरकारी नौकरी के चलते इस तरह की कार्यशालाओं और प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों में भाग लेने से चूक जाता हूँ। लेकिन इसकी प्रतिपूर्ति ब्लॉग लेखन द्वारा दो-तरफा संचार से हो जाती है। मुझे पढ़ी गई पत्रिकायों, वेबसाईट के लेखों, अपने अनुभव को साझा करने में बहुत आनंद आता है और एक ब्लॉग लेख द्वारा अपनी बात को जन-सामान्य तक पहुँचने का एक प्रभावी माध्यम मानता हूँ. टिप्पणियों, ईमेल पर प्राप्त संदेशों से जब कोई यह स्वीकार करता है कि एक नई जानकारी मिली तो इस बात की पुष्टि भी होती है। ब्लॉगिंग से मेरे विचारों, तकनीकी लेखन कौशल, अनुभवी लोगों के साथ संवाद स्थापित करने में उल्लेखनीय सुधार हुआ है और उससे भी अलग एक बात -यह बहुत मजेदार है!
संभावनायें
बेशक कईयों के लिए पढ़ने और फिर ब्लॉग लेखन के लिए समय की कमी है किन्तु धीरे-धीरे कई लोग इस विधा की ओर आकर्षित हो रहे हैं। एक आम धारणा के विपरीत, विज्ञान जैसे विषय आधारित ब्लॉग़्स का एक लाभ यह भी है कि यहाँ समान विचारधारा वाले व्यक्तियों के कारण विवादों का होना नगण्यप्राय होता है। बिना सेंसरशिप वाला यह क्षेत्र चुनौतीपूर्ण है लेकिन यहाँ एक ऐसा समुदाय है जो लगातार गतिशील व सक्रिय है और वह उन का इंतज़ार कर रहा है जो अपना कुछ समय दे सकते हैं। आपका कार्य आपके लिए महत्वपूर्ण है लेकिन यह सामान्य जन के लिए भी उतना ही महत्वपूर्ण होना चाहिए। और अगर आप लोगों को नही बता सकेंगे कि यह क्यों महत्वपूर्ण हैं, तो आपके कार्य का समर्थन, व्यवसायीकरण कैसे हो पायेगा? मैं निश्चित रूप से किसी भी ऐसे वैज्ञानिक से ब्लॉगिंग की सिफारिश करूँगा जो अपने संचार कौशल में सुधार करने में रुचि रखते हैं और प्रयोगशाला या कक्षा से परे आम जन तक पहुँचने को लालायित हैं।
इस मामले में मैं कुछ सक्रिय ब्लॉग्स का उल्लेख करना पसंद करूँगा:
Ø http://sciencemodelsinhindi.blogspot.com/ विज्ञान गतिविधियाँ
Ø http://upchar.blogspot.com/ स्वास्थय सबके लिए
Ø http://indianscifiarvind.blogspot.com/ साई ब्लॉग
Ø http://ts.samwaad.com/ TSALIIM
Ø http://vaigyanik-bharat.blogspot.com/ भारत का वैज्ञानिक चिन्तन
Ø http://sb.samwaad.com/ साईंस ब्लॉगर्स एसोशिएसन
Ø http://svachchhsandesh.blogspot.com/ स्वच्छ संदेश: विज्ञान की आवाज़
Ø http://parthvi-indu.blogspot.com/ पार्थिवी
Ø http://paryavaran-digest.blogspot.com/ पर्यावरण डाइजेस्ट
Ø http://vijnaan.charchaa.org/ विज्ञान
Ø http://wwwsharadkokas.blogspot.com/ ना जादू ना टोना
Ø http://vigyan.wordpress.com/ विज्ञान विश्व
आप और आपका ब्लॉग
मुझे अक्सर ही विभिन्न समस्यायों को सुलझाने के लिए ईमेल या फोन पर सम्पर्क किया जाता है। बजाए उन्हें सीधे कुछ कहने के मैं छायाचित्र, रेखाचित्र, वीडियो, ग्राफ़ सहित एक ब्लॉग लेख लिखता हूँ और उसका लिंक दे देता हूँ। फिर वह एक ऐसा स्थायी लेख हो जाता है जिसे उस समस्या के लिए कभी भी, कहीं भी, किसी के भी द्वारा देखा-समझा जा सकता है। यह एक ऐसी मदद है जिसे कभी बुरा नहीं माना जाएगा। अब आप ही देखिए! मैंने किसी एक के लिए इसे लिखा। 27 सहकर्मियों को सीधे लिंक दे दी और अब गूगल सर्च में “अपना ब्लॉग कैसे बनाए” पूछे जाने पर यह लेख सवा लाख परिणामों में पहले स्थान पर आता है। यह सिलसिला लम्बे समय तक चलते रहेगा, तब भी जब मैं इसे भूल चुका होऊँगा!
आप अपने कार्यों के कारण शहर, समुदाय, कार्यक्षेत्र, मित्र मंडली, परिवार में कितने ही लोकप्रिय हों, जाने जाते हों। लेकिन अगर आप ब्लॉगिंग नहीं करते तो बहुत कुछ खो देते हैं। यह ब्लॉगिंग का ही नतीज़ा है जो आज मुझे अपने शहर से 1000 किलोमीटर दूर आमंत्रित किया गया है और आप सबके सामने अपने विचार रख पाने का मौका दिया गया।
कनाडा के चिकित्सक, सर विलियम ओस्लर (1849-1919) का कहना था कि विज्ञान में , श्रेय उसे नहीं जाता जिसके मस्तिष्क में कोई विचार पहले आया बल्कि उसे मिलता है जो इसके बारे में आम जन को विश्वास दिला पाता है। उदाहरण के लिए, यदि थॉमस एडीसन ने अपने समय में निकोला टेस्ला को मात दे दी होती तो हमारे घरों में आज वह बिजली न दौड़ती जिसे एसी कहा जाता है। डीसी, एसी के मुकाबले 19 ही रही। इसका कारण है जनता को यह समझा पाने की सफलता कि यह बड़े पैमाने पर बिजली वितरण के लिए प्रभावी नहीं है। इसी तरह अल्बर्ट आइंस्टीन, मेरी क्यूरी या चार्ल्स डार्विन जैसे प्रतिभाशाली दिमाग अपने वैज्ञानिक विचारों को आम जनता के साथ नहीं बांटते तो शायद उनकी खोजें समय के गर्त में समा जातीं। यह बिल्कुल अकाट्य तथ्य है कि प्रभावी विज्ञान संचार, आधुनिक वैज्ञानिक के लिए एक आवश्यकता है.
हो सकता है आप एक वैज्ञानिक हों, जो अपने खुद के विज्ञान या मुद्दों के बारे में लिख कर वैज्ञानिकों को होने वाली समस्याओं के बारे में बताना चाह रहे हों। हो सकता है आप एक विज्ञान पत्रकार हों और आपकी किसी अनूठी रिपोर्ट को छापने से कोई समाचारपत्र मना कर रहा है या आप विज्ञान नीति और इसके संभावित प्रभावों की निगरानी करने कोई राजनीतिक टीकाकार हों। इन सभी के विचार, विज्ञान ब्लॉगिन्ग की जद में ही हैं। आप तो बस सबसे पहले एक ऐसा विषय चुनिए जिसके आप जानकार हैं.। हो सकता है कि वह एक ऐसा विषय हो जिसके बारे में आपके आसपास के लोग बहुत कम जानते हों लेकिन बाकी दुनिया में तो बहुत से लोग मिल जाएँगे। फिर चाहे वह कोई वैज्ञानिक हों या आम जनता।
बात आती है कि ब्लोग कितना व्यक्तिगत हो। मैंने जब ब्लॉग लिखना शुरू किया था तो देखा-देखी शिक्षाविदों और पत्रकारों समान अपने पाठकों को संबोधित कर लिखता था। फिर धीरे-धीरे ‘मैं’ शब्द का प्रयोग करने लगा। झिझक तो बहुत होती थी लेकिन बहुत जल्द ही इससे मुक्त हो गया। आखिर यह मेरा ब्लॉग है कोई लेख थोड़े ही लिखना है! अब बारी इसकी है कि ब्लॉग कितने अंतराल में लिखा जाए? इसका सीधा सा उत्तर है ‘प्रतिदिन’। पाठक महसूस करना चाह्ते हैं कि ब्लॉग सक्रिय है और यह नियमित लेखन से ही दिखता है। कुछ नहीं तो कम से कम सप्ताह में दो ब्लॉग लेख हो ही जाने चाहिए।
तकनीक व तरीके
नियमित ब्लॉग लेखों के लिहाज से सामूहिक ब्लॉग की अवधारणा अच्छी है। शर्त यही है कि प्रत्येक सदस्य, समान दृष्टिकोण और उद्देश्य को अपना कर चले। इसका एक सफल उदाहरण है TSALIIM । रोजाना ब्लॉग लेखन का मतलब यह नहीं कि हमेशा सूक्ष्मता से रखे गए तथ्यों, तर्कों सहित हजारों शब्दों का भंडार हो। बस इतना याद रखिए कि आपको अपने पाठकों से संवाद स्थापित करना है। लिखने के लिए बहुत कुछ है। विज्ञान की खबरों, लेखों को अपने विचारों सहित, अपने शब्दों में ढ़ाल कर, रोचक वीडियो, चित्र, संबंधित लिंक्स लगा कर पाठकों के आगे रखिए। जैसा कि मैं खुद अपने एक ब्लॉग कल की दुनिया में करता हूँ।
रही बात ब्लॉग के तकनीकी पक्ष की, तो उपलब्ध ब्लॉग मंचों की तकनीक लगभग आपको हर प्रकार की चिंता से मुक्ति देती है। आप तो बस लिखिए और दिए गए बटनों की सहायता से पूरक कार्य चुटकियों में निपटायें। हाँ, बिजली का चला जाना, इंटरनेट का गायब हो जाना, कम्प्यूटर खराब हो जाना ज़रूर आपको परेशान कर सकता है। एक बार आपका ब्लॉग नियमित रूप से शुरू हो गया तो पाठकों की कमी महसूस होगी। मुश्किल तो है लेकिन धैर्य रखें। अभी कुछ और करना बाकी है।
सबसे महत्वपूर्ण कार्य है अपने लेख में अन्य ब्लॉगों, वेबसाईट्स का लिंक लगाना। यह ‘सर्च इंजिन ऑपटाईज़ेशन’ का एक मह्त्वपूर्ण कारक है। इससे सर्च इंजिनों को आपके ब्लॉग की ‘समझ’ आने लगती है फलस्वरूप विषय से संबधित व्यक्तियों के ब्लॉग तक आने की संभावना बढ़ जाती है। इससे भी अधिक महत्वपूर्ण है खुद के ब्लॉग को अन्य ब्लॉगों या वेबसाईट्स से लिंक करना, जोड़ना। इसका एक सीधा सा तरीका है कि आप भी दूसरों के ब्लॉग पर टिप्पणियाँ कीजिए और अपने ब्लॉग़ का लिंक छोड़ आयें। लेकिन याद रखिए, यदि आपके लिंक नहीं तो शब्द प्रासंगिक हों वर्ना दांव उल्टा पड़ जाएगा। ऐसा न हो कि आप किसी कविता-गज़ल वाले वाले ब्लॉग पर जा कर लिख आयें कि आईए देखिए मैंने परमाणू विस्फोट की भयावहता पर कैसा लिखा है! अपने पसंद के ब्लॉगों की सूची लगा लेना भी उपयोगी है। जिसे ब्लॉगरोल कहा जाता है। विभिन्न ब्लॉग एग्रीगेटरों पर अपने ब्लॉग को पंजीकृत करवाना भी बहुत लाभदायक है।
मुद्दे व मुश्किलें
ब्लॉगिंग व पारंपरिक पत्रकारिता में एक मूलभूत अंतर है। पत्रकारों के लेख शुरू होते हैं, अपना मत रखा जाता है, अपना ही निष्कर्ष रख दिया जाता है और कोई प्रश्न हवा में लटकता नहीं छोड़ा जाता। जबकि ब्लॉग तो संवाद के लिए है, आप खुद एक प्रश्न रख सकते हैं जिस पर पाठकों के ज़वाब मिल जायेंगे। कई बार तो पाठकों की टिप्पणियों से ही भविष्य के ब्लॉग लेख का आईडिया मिल जाता है। अपने पाठकों के साथ चर्चा करना एक अच्छे ब्लॉग की अनिवार्य पहचान है। चर्चा के बिना तो ब्लॉग एक भाषण ही बन कर रह जायेगा। और फिर जब कोई प्रश्नात्मक टिप्पणी आए तो उसका उत्तर अवश्य दें। आखिर वह आपसे संबोधित हुया है, उसकी अवहेलना कैसे।
सभी टिप्पणियाँ हमेशा दिलचस्प या रचनात्मक हों यह कतई आवशयक नहीं। इसके डर से लगातार मॉडरेशन लगाए रखना और टिप्पणी हटाने में अति करना पाठकों को यह संदेश पहुँचाता है कि आपको विचार-विमर्श करने में कोई दिलचस्पी नहीं है। दूसरी तरफ यह हो सकता है कि आप बेखौफ़ आगे बढ़ते जाएँ तो टिप्पणियों में अप्रासंगिक और उत्तेजक बातें मिल जाये। यह दिलचस्प लोगों को भयभीत कर सकता है, उन्हें दूर ले जा सकता है।
कई बार बेहूदी टिप्पणी करने वालों से छुटकारा पाया जा सकता है अगर आप उन्हें व्यक्तिगत रूप से उत्तर दें। उनकी आक्रामकता कुंद हो जायेगी जब वे महसूस करेंगे कि पर्दे के पीछे कोई वास्तविक व्यक्ति है जो इसका जवाब दे सकता है। इस मुद्दे को आगे ना ले जाते हुए यही कहना चाह्ता हूँ कि ऐसी टिप्पणियों से निपटना, वास्तविक बुरे लोगों से निपटने की तुलना में कठिन है। बस इतना याद रखिए कि आपका ब्लॉग आपका है, निकाल बाहर कीजिए ऐसी टिप्पणियों को, जैसा आप अपने घर में आने वाले बेहूदा लोगों के साथ करते हैं।
दार्शनिक, तर्कशास्त्री, लेखक .इरविंग कॉपी का कहना है कि किसी के साथ संवाद स्थापित करने में भाषा एक प्रमुख औजार है लेकिन जब शब्दों का इस्तेमाल लापरवाही या गलती से किया जाता है तो वास्तव में वही साधन हमारे लिए बोझ बन जाता है।
भविष्य
प्रचलित अवधारणायों के परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो वर्तमान प्रौद्योगिकियों पर आधारित ब्लॉग का उपयोग लोगों तक वैज्ञानिक संदेश बेहतर ढ़ग से पहुँचाने के लिए उपयोग किया जा सकता है। मेरा मानना है कि भारत में विज्ञान संचार एक उज्जवल भविष्य है जिसे हम सब मिलकर हिंदी ब्लॉग्स के माध्यम से नई ऊचांईयों तक पहुँच पाने कामयाब होंगे। यह एक ऐसी विधा है जिसमें आप अपना अनुभव अपनी सुविधानुसार लिख सकते हैं और उसे पढ़ने वाले अपनी सुविधानुसार पढ़ सकते हैं।
और फिर अंत में। क्या आप बता सकते हैं कि मैंने किस विषय को छोड़ दिया?
- बी एस पाबला, भिलाई इस्पात संयंत्र
अगर आपको 'साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन' का यह प्रयास पसंद आया हो, तो कृपया फॉलोअर बन कर हमारा उत्साह अवश्य बढ़ाएँ। |
---|
बहुत बढ़िया प्रस्तुति .... बुक मार्क कर लिया है बाद में आराम से निगाह डालेंगे
ReplyDeleteभाषा का सवाल सत्ता के साथ बदलता है.अंग्रेज़ी के साथ सत्ता की मौजूदगी हमेशा से रही है. उसे सुनाई ही अंग्रेज़ी पड़ती है और सत्ता चलाने के लिए उसे ज़रुरत भी अंग्रेज़ी की ही पड़ती है,
हिंदी दिवस की शुभ कामनाएं
एक बार इसे जरुर पढ़े, आपको पसंद आएगा :-
(प्यारी सीता, मैं यहाँ खुश हूँ, आशा है तू भी ठीक होगी .....)
http://thodamuskurakardekho.blogspot.com/2010/09/blog-post_14.html
हमारा दुर्भाग्य था की पाबला जी साईंस ब्लागिंग वर्कशाप में नहीं पहुँच पाए -मगर आज ऊनके इस लेख ने मन को तृप्त कर दिया -बहुत संतुलित और जान्कारीप्र्ण लेख -बहुत आभार !
ReplyDeleteNice article
ReplyDeleteसाइंस ब्लॉगिंग पर शानदार आलेख।
ReplyDeleteपाबला जी को हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति ....
ReplyDeleteThanks to mention my science blog...
बहुत ही बढ़िया लिखा है पाबला जी ने .सार्थक लेख और बहुत बढ़िया ब्लॉग्स लिंक ..
ReplyDeleteसाइंस ब्लॉगिंग के विभिन्न पहलुओं को चित्रित करता एक सार्थक लेख।
ReplyDeleteपाबला जी ,
ReplyDeleteपार्टी में पहुंचे नहीं खैर...
देर आयद दुरुस्त आयद ! बल्कि ...
जबरदस्त आयद :)
आप तो निबंध लेखन पर उतर आये. :)
ReplyDeleteशानदार!
हिन्दी के प्रचार, प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है. हिन्दी दिवस पर आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं साधुवाद!!
वर्कशॉप में पावला जी की कमी धमाकेदार तरीके से पूरी हुई है.
ReplyDeleteपावला जी बहुत बढिया प्रस्तुति है । मुझे नही लगता कि इस विषय पर आपने कोई पहलू छोडा है। बहुत सुन्दर सार्थक आलेख है। आपका मार्ग दर्शन हमे यूँ ही मिलता रहे। बधाई ,धन्यवाद।
ReplyDeleteपाबला जी शानदार लेख
ReplyDeleteYou have included swachch sandesh blog also?
ReplyDeleteits ridiculous I think zakir influenced you too much.
ReplyDeleteबेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !
आशा है कि अपने सार्थक लेखन से, आप इसी तरह, हिंदी ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें