दांतों की साफ-सफाई और उनकी देखभाल से सम्बंधित समस्त जानकारी।
दाँत, हड्डियों की तरह, शरीर के सबसे मजबूत भागों में से है कैल्शियम और फॉस्फेट जैसे खनिज उन्हें ऐसी शक्ति देते हैं। कुल 32 दांत होते है, दोनों ओर जो समान रूप से, केवल आकार में मामूली अंतर को छोड़कर ऊपर और निचले जबड़े में विभाजित होते हैं। जबड़े में दांत का एक सेट में, केंद्र से बाहर की ओर में निम्नलिखित दांत शामिल होंगे:
·
Central Incisors की एक जोड़ी: ये ऊपरी जबड़े के सबसे महत्वपूर्ण दांत होते हैं। ये सबसे ज्यादा फ्लैट और वर्गाकार दांत होते हैं और मुंह खोलने पर वे ही मुस्कान की खूबसूरती का निर्धारण करते हैं ।
· Lateral Incisors की एक जोड़ी: ये अगले सबसे महत्वपूर्ण दांत होते हैं, Central Incisors के प्रत्येक पक्ष पर उपस्थित होते हैं और ये चार Incisors छोटे मध्यम आकार खाद्य पदार्थ खाने 'काटने' के लिए मूल होते हैं।
· Canines की एक जोड़ी: ये Lateral Incisors के दोनों पक्षों और तेज, चोटीदार दांत, पर अक्सर बहुत से लोगों में विभिन्न आकार में होते उपस्थित होते हैं और बड़े Canines के साथ जब वे काफी मोटे होने पर मुस्कान डरावनी लग रही हो सकती है! इस Canines दाँत काटने के लिये मजबूत होते हैं जो कि एक कठिन सेब या चिकन / मांस आदि खाने में काटने खाने का एक बड़ा हिस्सा काट सकते हैं।
· Premolars की दो जोड़ी: ये दो होते है, Canines के दोनों तरफ मौजूद रहते हैं और जबड़े के क्षेत्र में चबाने या पीसने की शुरुआत करते हैं। वे आकार में Molar के सिर्फ एक बिट के आकार में छोटी समान होते हैं।
· Molars के तीन जोड़े: ये भी कहे जाने के लिये 1, 2 और 3 होते हैं। Third Molar उम्र के 20 साल के आसपास देर से फूटते हैं ।
दांत हमारे शरीर का अनमोल अंग है। इन्हें स्वस्थ रखना उतना ही ज़रूरी है जितना कि शरीर के किसी भी अन्य अंग को। दांत न केवल मुखमंडल का सौंदर्य वर्धन करता है बल्कि खाद्य को ठीक तरह से चबाने में मदद करता है जिससे कि मुंह में स्थित ग्रंथियों से निष्काषित लार के रस के साथ मिल सके और पेट में जाकर खाद्य ढंग से हजम हो।
यदि दांत न रहें तो हम चबाने का काम ठीक से नहीं कर पाएंगे और खाना पचेगा नहीं। नतीजा बदहजमी, गैस, अम्लरोग इत्यादि। दांत 'फोनेशन' की प्रक्रिया के भी एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा है जो स्पष्ट भाषण का गठन करते हैं। ये हमें स्पष्ट रूप से बात करने के लिए सक्षम बनाने में महत्वपूर्ण हैं। और हाँ दांतों की साफ़ सफाई हमें ह्रदय रोग से भी दूर रख सकती है ! ‘जर्नल आफ पेरियोडोन्टोलाजी’ के अनुसार मसूड़ों की सड़न से ग्रस्त मरीजों में बैक्टीरिया का बुरा असर पड़ता है और इस वजह से उनमें हृदयरोग होने का खतरा बढ़ जाता है।
दांत तभी स्वस्थ रह पाएंगे जब हम इनका देखभाल करें और साफ़ सफाई रखें। दुःख की बात यह है कि ज्यादातर लोग दांतों की देखभाल को गंभीरता से नहीं लेते। दुनिया में करीब 90% लोगों को दांतों से जुड़ी कोई न कोई बीमारी या परेशानी होती है। फिरभी ज्यादातर लोग बहुत ज्यादा दिक्कत होने पर ही डेंटिस्ट के पास जाते हैं। इससे कई बार छोटी बीमारी भी सीरियस बन जाती है। अगर सही ढंग से साफ-सफाई के अलावा हर 6 महीने में रेग्युलर चेकअप कराते रहें तो दांतों की ज्यादातर बीमारियों को सीरियस बनने रोका जा सकता है । तो आईये देखते हैं कि दांत को किन उपायों से साफ़ रखा जा सकता है ।
दांत को ब्रश करके, फ्लोस इस्तमाल करके या interdental ब्रश के इस्तमाल से साफ़ रखा जा सकता है। इसके अलावा माउथवॉश का भी इस्तमाल किया जा सकता है। चलिए अब हर तरीके को विस्तार से देखते हैं।
· यों तो हर बार खाने के बाद ब्रश करना चाहिए लेकिन ऐसा हो नहीं पाता। ऐसे में दिन में कम से कम दो बार ब्रश जरूर करें और हर बार खाने के बाद कुल्ला करें। दांतों को तीन-चार मिनट ब्रश करना चाहिए। दांतों को बहुत जोर से न रगडें, इससे दांत घिस जाते हैं। आमतौर पर लोग जिस तरह से दांत साफ करते हैं , उससे 60-70 फीसदी ही सफाई हो पाती है। दांतों को हमेशा हल्के दबाव से धीरे-धीरे साफ करें। मुंह में एक तरफ से ब्रशिंग शुरू कर दूसरी तरफ जाएं। बारी-बारी से हर दांत को साफ करें। ऊपर के दांतों को नीचे की ओर और नीचे के दांतों को ऊपर की ओर ब्रश करें। दांतों के बीच में फंसे कणों को फ्लॉस (प्लास्टिक का धागा) से निकालें। इसमें 7-8 मिनट लगते हैं और यह अपने देश में ज्यादा इस्तमाल नहीं किया जाता है। दांतों और मसूड़ों के जोड़ों की सफाई भी ढंग से करें। उंगली या ब्रश से धीरे धीरे मसूड़ों की मालिश करने से वे मजबूत होते हैं।
· जीभ को टंग क्लीनर और ब्रश, दोनों से साफ किया जा सकता है। टंग क्लीनर का इस्तेमाल इस तरह करें कि खून न निकले।
· ब्रश सॉफ्ट और आगे से पतला होना चाहिए। करीब दो - तीन महीने में या फिर जब ब्रसल्स फैल जाएं, तो ब्रश बदल देना चाहिए।
· दांतों की सफाई में टूथपेस्ट की ज्यादा भूमिका नहीं होती। यह एक मीडियम है, जो लुब्रिकेशन, फॉमिंग और फ्रेशनिंग का काम करता है। असली एक्शन ब्रश करता है। लेकिन फिर भी अगर टूथपेस्ट का इस्तेमाल करें, तो उसमें फ्लॉराइड होना चाहिए। यह दांतों में कीड़ा लगने से बचाता है। पिपरमिंट वगैरह से ताजगी का अहसास होता है। टूथपेस्ट मटर के दाने जितना लेना काफी होता है।
· टूथपाउडर और मंजन के इस्तेमाल से बचें। टूथपाउडर बेशक महीन दिखता है लेकिन काफी खुरदुरा होता है। टूथपाउडर करें तो उंगली से नहीं, बल्कि ब्रश से। मंजन इनेमल को घिस देता है।
· नीम के दातुन में बीमारियों से लड़ने की क्षमता होती है लेकिन यह दांतों को पूरी तरह साफ नहीं कर पाता। बेहतर विकल्प ब्रश ही है। दातुन करने से पहले उसे अच्छी तरह चबाते रहें। जब दातुन का अगला हिस्सा नरम हो जाए तो फिर उसमें दांत धीरे-धीरे साफ करें। सख्त दातुन दांतों पर जोर-जोर से रगड़ना नहीं चाहिए, इससे दांत घिस जाते हैं।
· माउथवॉश मुंह में अच्छी खुशबू का अहसास कराता है। हाइजीन के लिहाज से अच्छा है लेकिन इसका ज्यादा इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
· दांतों पर जमा गंदगी को साफ करने के लिए स्केलिंग और फिर पॉलिशिंग की जाती है। यह हाथ और अल्ट्रासाउंड मशीन दोनों तरीकों से की जाती है। चाय - कॉफी , पान और तंबाकू आदि खाने से बदरंग हुए दांतों को सफेद करने के लिए ब्लीचिंग की जाती है। दांतों की सफेदी करीब डेढ़-दो साल टिकती है और उसके बाद दोबारा ब्लीचिंग की जरूरत पड़ सकती है।
· हर छह महीने में एक बार दांतों की पूरी जांच करानी चाहिए।
· सुंदर दांतों से जहां मुस्कराहट अच्छी होती है, वहीं मुस्कराहट से दांत अच्छे बनते हैं। तनाव दांत पीसने की वजह बनता है, जिससे दांत बिगड़ जाते हैं। तनाव से एसिड भी बनता है, जो दांतों को नुकसान पहुंचाता है।
· मीठी और स्टार्च आदि की चीजें कम खाएं और बार - बार न खाएं। मीठी चीजें खाने के बाद कुल्ला करें या ब्रश करें।
· मसूड़ों और दांतों की ढंग से सफाई न होने और उनमें सड़न व बीमारी होने पर मुंह से बदबू आती है। कुछ मामलों में पेट खराब होना या मुंह की लार का गाढ़ा होना भी इसकी वजह होती है। लौंग, इलायची चबाने से इससे छुटकारा मिल जाता है। थोड़ी देर तक शुगर-फ्री च्यूइंगगम चबाने से मुंह की बदबू के अलावा दांतों में फंसा कचरा निकल जाता है और मसाज भी हो जाती है। इसके लिए बाजार में माउथवॉश भी मिलते हैं।
बच्चों के दांतों की देखभाल:
छोटे बच्चों के मुंह में दूध की बोतल लगाकर न सुलाएं। चॉकलेट और च्यूइंगम न खिलाएं। खाएं भी तो तुरंत कुल्ला करें। बच्चे को अंगूठा न चूसने दें। इससे दांत टेढ़े-मेढ़े हो जाते हैं। डेढ़ साल की उम्र से ही अच्छी तरह ब्रशिंग की आदत डालें। छह साल से कम उम्र के बच्चों को फ्लोराइड वाला टूथपेस्ट न दें ।
Sail ji, Bade kaam ki jaankari di hai. Iska dhyan rakhunga.
ReplyDeleteबहुत अच्छी जानकारी के लिए इन्द्रनील जी को धन्यवाद !
ReplyDeleteयह दन्त पुराण भी जोरदार रहा. आभार.
ReplyDeleteज़ाकिर जी, लेख प्रकाशित करने के लिए शुक्रिया ... इससे किसी को फायदा हो तो मैं इस लेख को सार्थक मानूंगा ...
ReplyDeletejb se tooth paste aur chyungam ka aawiskar huaa har gano me danto ke daktar babu mil jayenge daktar babuke ke kam ka din duna rat chauguna kam ki dimand barh rahi hai hindustan me arabo ganw hai chalo isi bahane danto ke daktar ko rojagar milega aadhunik bigyan aur bharat sarakar jindabad !aam janta ko to not dekar dard lena hai |
ReplyDeleteबहुत सार्थक लेख मैं तो खुद आज कल दन्त पीड़ा से परेशान हूँ :(
ReplyDeleteआभार इन्द्रनील जी इस जानकारीपूर्ण आलेख के लिए ..आगे भी आपसे ऐसे सूचना प्रधान लेखों की अपेक्षा रहेगी
ReplyDeleteआभार जानकारी के लिए....
ReplyDeleteसार्थक लेख है फ़ायदा जरूर होगा..
बहुत ही जानकारीपूर्ण लेख. धन्यवाद. ऐसे लेख कम ही लिखे जाते हैं
ReplyDeleteक्या किसी दांतों के डाक्टर का विग्यापन है....
ReplyDelete"मंजन इनेमल को घिस देता है"
---गलत व भ्रमपूर्ण बयानी है---दात का इनेमेल संसार की सबसे कठोर बस्तुओं मे है, मन्जन से नहीं घिसती--- भारतीय वस्तु मंजन के विरुद्ध व अन्ग्रेज़ी ब्रश के पक्ष में विग्यापन ही है। दांतों की समस्या मन्जन व ब्रश की नहीं अपितु भौतिक प्रगति के खान-पान की समस्या है। ब्रश करते करते युगों बीत गये परन्तु क्या दांतों की समस्याएं कम हुई--नही बढी हैं...
@ डॉ श्याम गुप्त जी
ReplyDeleteयह कोई डॉक्टर का विज्ञापन नहीं हो सकता है क्यूंकि मैं कोई डॉक्टर नहीं हूँ ... वैसे मैं खुद डॉक्टरों से दूर रहना पसंद करता हूँ :)
मैंने जो भी लिखा है वह जानकारी मुझे मेरे दांत के डॉक्टर ने बताई है और इन्टरनेट से ली गई है ... हो सकता है कहीं कोई गलती हो ...
आप खुद डॉक्टर हैं ... मंजन के पक्ष में तार्किक जानकारी कहीं उपलब्ध हो तो कृपया हमें अवगत कराएं ... हो सकता है कि हमारा ज्ञानवर्धन हो और सोच में बदलाव आये ...
यहाँ कुछ और बातें भी कहना चाहूँगा ... यह सर्वविदित हैं कि भारतीय समाज में ... खासकर ग्राम्य समाज में ... दंत स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता का सर्वथा अभाव है ... ब्रश तो हर कोई इस्तमाल कर लेता है पर सही ढंग से इस्तमाल कितने लोग करते हैं ? केवल गलत ढंग से ब्रश करने से ही दांत के सारे समस्या दूर हो जायेंगे शायद ये सोच भी गलत है ...
कृपया इन लिंक्स पे नज़र डालिए:
ReplyDeletehttp://www.expresshealthcaremgmt.com/20051031/innews04.shtml
http://www.medindia.net/news/view_news_main.asp?x=5360
http://www.whoindia.org/EN/Section20/Section30_1420.htm
http://www.capuchinng.org/monkey-black/which-tooth-powder-is-best-vicco-vajradanti-vs-dabur-lala-dant-manjan-vs-monkey-brand-black-tooth-powder
http://delhidentalcenter.in/implants/index.php?option=com_content&view=article&id=128:patient-education&catid=63
http://www.whoindia.org/LinkFiles/Oral_Health_Oro-Dental_Problem_WHO_Project_Guidelines.pdf
http://en.wikipedia.org/wiki/Oral_hygiene
ReplyDeletemr. indraneel--seen the ref given by you--
ReplyDelete1.----There are still lots of people who beleive that lots of "jadibuttis " in tooth powder really make teeth stronger. Enamel–already a strong layer cannot be made more stronger, you can protect it by sensible food and drinks habits. Carbonated and sour drinks are very corrosive for teeth. Never brush immediately after having such drinks but rinse with lots of water to wash out the acid.
I do tend to agree that tooth powder has a risk of abrading the important enamel layer of teeth.-----at one point he says enemel very hard no protectin is needeed, on other side manjan can erode it...toally null & void statemen.. --when acid is real cause then what is diffence in 'kullaa with manjan' or mouth waash with brushing?
2.
November 22nd, 2009 at 7:05 pm
Don’t EVER USE A DANT MANJAN — you will repent all your Life for this. see these manjans are high in there abrasive content they will wear off your enamel and will lead to tooth sensitivity for life time.
use either colgate sensitive or colgate total tooth paste with a soft tooth brush.
these tooth are world acclaimed ...Don't you think that this is just a adv of colgate...
3.
---Urbanization and modern food practices have not only contributed,
the increase in lifestyle diseases but also there is a shift in pattern of noncommunicable diseases. Oral Disease burden is increasing in the
country. ---why even after 60 years( or more..in India & more in world) of using thousands types of brushes.. the problem is increasing.
*****वास्तव में न ब्रुश न मन्जन से फ़र्क पडता है--फ़र्क है प्रत्येक बार खाने के बाद कुल्ल या माउथ-वाश...पेस्ट व मन्जन एक ही बस्तु हैं तभी तो पेस्ट में नीम आदि कहा जाता है....ब्रुश अक्रिय वस्तु है जो नीम की डन्डी, व उन्ग्ली से बेहतर नहीं हो सकती....ब्रुश के फ़ाइबर दांतों के मध्य के स्थानों को छेडते हैं व दांतों को हानि पहुंचाते है...
सैल जी, आप टेन्शन न लें! गुप्ता जी पुराने खुन्नसी हैं, अक्सर बात-बेबात परेशान करने चले आते हैं। :)
ReplyDeleteज़ाकिर जी, मैं बिलकुल परेशां नहीं हूँ ... गलती मुझसे भी हो सकती है, उनसे भी ... ये तो पाठक समझेंगे कि गलत क्या है और सही क्या ... वो बुज़ुर्ग हैं, उनको भी अपनी बात रखने का पूरा हक है ...
ReplyDeleteवैसे मैं समझता हूँ कि पूर्वाग्रह से मुक्त रहना चाहिए ...
अभी अभी दिव्या जी के ब्लॉग पर इस बारे में बहुत सुन्दर लेख पढकर आ रहा हूँ ... आपसे भी आग्रह है कि आप भी वो लेख ज़रूर पढियेगा ...
यद्दपि हम पाश्चात्य समाज के लगभग सभी बुराइयों को आत्मसात कर चुके हैं फिर भी हर चीज़ जो पाश्चात्य समाज से जुडी हुई है उसे शक के निगाह से देखते हैं, और इसके चलते अक्सर ऐसे भारतीय परम्पराओं का शिकार होते रहते हैं जो गलत है ... समय आ गया है कि अब हम परंपरा के जंजाल से ऊपर उठकर विज्ञानं के पथ पर चलें ...
ऐसी हजारों बातें हैं जो हम उनसे सीख सकते हैं ... ऐसी हजारों बातें हैं जो वो हमसे सीख रहे हैं ...
धन्यवाद!
सैल जी, हर व्यक्ति को अपनी बात रखने का निश्चय ही पूरा हक है, लेकिन जब दो-चार बार किस व्यक्ति की बातें देखते हैं, तो आपको आइडिया हो जाता है कि कौन सा व्यक्ति सही बात कह रहा है और कौन सा सिर्फ टंगडी मारने में विश्वास रखता है। और जहां तक पूर्वाग्रहों से मुक्त होने की बात है, जरूरी नहीं कि उसके बारे में जानने वाला व्यक्ति उनसे मुक्त ही हो। क्योंकि किसी बात के बारे में जानने और उसे अपने जीवन में लागू करने में बहुत बड़ा फर्क होता है।
ReplyDeleteबहुत अच्छी जानकारी के लिए इन्द्रनील जी को धन्यवाद !
ReplyDelete"सत्य तो यह है कि जो जिस ग्यान का अधिकारी नहीं है उसका उसे ग्यान नहीं होना चाहिये..." यह शास्त्र बचन है..
ReplyDelete--एक और महत्वपूर्ण शास्त्र बचन है कि--"., चिकित्सा, गूढ-अध्यात्म, ज्योतिष, विग्यान ..आदि जो विशिष्ट ग्यान हैं, गुप्त-विद्याओं में आते हैं.. उनका सामान्य जन को अभिग्यान नहीं होना चाहिये, उनका विग्यापन, समाचार पत्रों, टीवी आदि में वर्णन नहीं होना चाहिये..." इससे भ्रम फ़ैलता है.. जिसे आवश्यकता है वह उचित विशेषग्य के पास जाकर मिले...
-----आधुनिक चिकित्सा शास्त्र के अनुसार भी ---चिकित्सकों, दवाओं, रोगों, निदान आदि का विग्वियापन , समाचार पत्रों में, टीवी आदि में देना--कदाचार में आता है....
@ Dr. Shyam Gupta Jee,
ReplyDeleteशायद आपको थोड़ी सी गलतफहमी हुई है, यहाँ बात चिकित्सा विज्ञानं कि नहीं हो रही है ... यहाँ स्वास्थ और स्वछता की बात हो रही है और इस ज्ञान का अधिकारी हर कोई है ... स्वच्छता का ज्ञान तो (खास कर चिकित्सकों की यह ज़िम्मेदारी है) पुरे समाज में फैलाएं ताकि बीमारी और तकलीफ कम हो ... ये दीगर बात है कि अक्सर इस बात को बर्चस्व की लड़ाई बना दी जाती है ...
अगर किसी शास्त्र में यह लिखा है कि स्वास्थ और स्वच्छता सम्बन्धी साधारण ज्ञान सार्वजनिक नहीं करना चाहिए तो बेहतर है कि हम ऐसे शास्त्र का तिलांजलि दे दे ...
आधुनिक चिकित्सा शास्त्र में विज्ञापन के बारे में जो लिखा है वो सही है, पर शायद आप सन्दर्भ से बाहर जा रहे हैं ...
मेरा लेख स्वास्थ और स्वच्छता का ज्ञान को सार्वजानिक करने का एक प्रयास है ... इसे आप चिकित्सा विज्ञानं या चिकित्सकों के बर्चस्व पर हमला न माने ...
दूसरी बात है कि ज्योतिष कोई ज्ञान नहीं एक तरह का अन्धविश्वास है ... इस तथाकथित ज्ञान का गुप्त रहना ही समाज के लिए बेहतर है .. आप एक विज्ञानं मंच में आकर ज्योतिष की बात उठा रहे हैं, वो भी चिकित्सा विज्ञानं के साथ, यह आश्चर्यजनक है ... क्या आप को ज्योतिष और चिकित्सा विज्ञानं में कोई फर्क नज़र नहीं आता ?
"., चिकित्सा, गूढ-अध्यात्म, ज्योतिष, विग्यान ..आदि जो विशिष्ट ग्यान हैं, गुप्त-विद्याओं में आते हैं.. उनका सामान्य जन को अभिग्यान नहीं होना चाहिये, उनका विग्यापन, समाचार पत्रों, टीवी आदि में वर्णन नहीं होना चाहिये..."
ReplyDeleteगुप्ता जी, अगर इस कथन पर दुनिया चल रही होती, तो आज भी आप ताम्र पत्र पर लिख रहे होते और जंगल में अपनी जान बचाने के लिए पेड़ पर चढ़ कर बैठे होते।
बहुत ही अच्छी, सरल और उपयोगी चित्रमय जानकारी दी है.
ReplyDeleteलिंक्स अभी देखते हैं.
---ज़ाकिर जी व इन्द्रनील जी---स्वास्थय की बात तो हर शास्त्र, पुराण आदि में भी की जाती है पर चिकित्सा ग्यान या विशिष् ग्यान..आन्तरिक व्याख्या..( जैसे सचित्र) द्वारा नही... न ही सामान्य ग्यान वाले लोगों द्वारा...निश्च्य ही चिकित्सकों की जिम्मेदारी है समाज में फ़ैलाना समाचारपत्रों, मीडियावालों,समाचार पत्रिकाओं गैर-विशेष्ग्यों की नहीं....वैग्यानिक अन्ध्विश्वास इसी प्रकार फ़ैलते हैं...
ReplyDelete---ज्योतिष ग्यान न होकर अन्ध्विश्वास है यह किस वैग्यानिक-ग्रन्थ या किस आधुनिक शास्त्र ग्यान में सिद्ध किया गया है....
--
----""-आधुनिक चिकित्सा शास्त्र के अनुसार भी ---चिकित्सकों, दवाओं, रोगों, निदान आदि का विग्वियापन , समाचार पत्रों में, टीवी आदि में देना--कदाचार में आता है...""-- क्या कदाचार के रोकने से प्रगति रुक जाती है, तो भिर भ्रष्टाचार को चलने दीज्या हुज़ूर......
@ डॉ. श्याम गुप्त जी,
ReplyDelete१. जब स्वास्थ और स्वच्छता की बात हर शास्त्र, पुराण आदि में भी की जाती है तो यह सामान्य जन के लिए ही है ... केवल चित्र दे देने से, वो भी साधारण ज्ञान का चित्र ... कोई चिकित्सा विज्ञानं की आंतरिक बाते हो जाती है ... ये सोच ही हास्यास्पद है ...
२. मैंने ये साफ़ साफ़ लिखा है, शायद आपने पढ़ा नहीं होगा, कि यह बातें मुझे मेरे दन्त चिकित्सक द्वारा कही गई है और मुझे इन्टरनेट से मिला है ... इन्टरनेट पर भी यह बातें चिकित्सकों द्वारा ही दी जाती है ... मैंने लिंक्स भी दिया हैं ज़रा पढ़ने का कृपा करियेगा ... इस तरह वैज्ञानिक ज्ञान फैलता है न कि अन्धविश्वास
३. अन्धविश्वास तब फैलता है जब एक पढ़ा लिखा विज्ञानं से जुड़ा हुआ आदमी ज्योतिष जैसे तथाकथित शास्त्र को विज्ञानं कहकर चलाने की कोशिश करते रहता है ... ज़रा बताईगा कि किस विज्ञानं पुस्तक में ज्योतिष को एक विज्ञानं शास्त्र कहा गया है ... ये कोई आश्चर्य नहीं है कि आज भी हमारे देश के ज्यादातर लोग अन्धविश्वास में डूबे हुए हैं ... जब एक शल्य चिकित्सक ही विज्ञानं की बातों के प्रचार में खलल डालने की कोशिश कर रहा है और ज्योतिष जैसे अंधविश्वासों को बढ़ावा दे रहा है तो समाज सुधरेगा कैसे ?
४. भ्रष्टाचार यह नहीं कि जनमानस में स्वास्थ और स्वच्छता की बात फैलाई जाय, भ्रष्टाचार तो वह है कि हर बात को गुप्त रखकर भोली भाली जनता को भरमाया जाय
५. गलिलेओ का नाम तो सुने होंगे, क्या आपको उन लोगों का नाम पता है जिन लोगों ने गलिलेओ का विरोध किया था ? किसी को नहीं पता है ... जानते हैं क्यूँ? क्यूंकि वो लोग विज्ञानं के खिलाफ थे और अंधविश्वासों के पक्षधर ...
६. कुछ चिकित्सक ऐसे भी होते हैं जो स्वास्थ और स्वच्छता की बात को जनमानस तक पहुँचाना नहीं चाहते हैं ... खैर समझ सकता हूँ ... स्वार्थ की बात है ...
इन्द्रनील जी ,आपने एक उत्कृष्ट लेख लिखा है और आपकी दृष्टि भी बिलकुल स्पष्ट है ,
ReplyDeleteडॉ .गुप्त जी कुछ उन महान हस्तियों में से हैं जिनके लिए ही लिखा गया है ..
हजारो साल नर्गिस जब अपनी बेनूरी पर रोती है
तब होता है चमन में कोई दीदावर पैदा
ाच्छी जानकारी के लिये धन्यवाद। विवाद किस लिये सब अपना अपना काम किये जाओ। अपने अपने ब्लाग के माध्यम से। शुभकामनायें।
ReplyDelete'कुछ चिकित्सक ऐसे भी होते हैं जो स्वास्थ और स्वच्छता की बात को जनमानस तक पहुँचाना नहीं चाहते हैं ... खैर समझ सकता हूँ ... स्वार्थ की बात है ...'
ReplyDeleteएकदम सही।
--समाज भ्रमात्मक ग्यान देने से या नकल के ग्यान से नहीं सुधरता तभी तो आज़ादी के ६२ साल में भी समाज सुधरने की बज़ाय महा भ्रष्ट होता जारहा है, सब जानते हैं...बिल्कुल सही कहा है अरविन्द जी ने...उद्धरित गज़ल में.....सामान्य व नकल की कथा-कहानी कहने सुनने वाले बहुत होते हैं परन्तु..दीदावर--(अर्थात-visionery-विवेक/ग्यान से युक्त) मुश्किल से मिलता है....( गज़ल के शब्द कुछ गलत हैं ,सही कर के लिखता हूं.)..
ReplyDelete"हजारो साल नर्गिस अपनी बेनूरी पर रोती है
बडी मुस्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा।"
इन्द्रनील , बहुत उत्तम जानकारी के लिये आभार . ऐसी ही जानकारी देते रहिये .
ReplyDeleteकुछ लोग शायद माँ के पेट से ही सर्वज्ञानी या visionary बनके जन्म लेते हैं ...
ReplyDeleteइसलिए ज्ञान को अपनी बपौती समझ लेते हैं ... और सोचते हैं कि हर बात को गुप्त रखा जाय, किसी को कुछ पता न चलने पाय ...
अरे, सब स्वास्थ और स्वच्छता के प्रति सचेतन हो जायेंगे तो अपनी दूकान कैसे चलेगी ...
इसलिए सबको ये बताओ कि भैया तुम्हे कुछ नहीं पता है, जो कुछ पता है वो केवल हमें पता है ... इसलिए तुम कुछ जानने समझने की कोशिश भी मत करो ...
तुम्हे कहीं से भी कुछ पता चला तो उसे हम भ्रमात्मक ज्ञान ही बोलेंगे ... क्यूंकि ये ज्ञान हमने नहीं बांटे है न ...
-- बिल्कुल सही, तभी तो आज काम-क्रीडा के आसन , मस्त-मस्त रस भरी बातों के लिये विग्यापन, नन्गी तस्वीरें--अदि अखबार, टीवी, ब्लोग्स, बज़्ज़, इन्टर्नेट, सिनेमा पर सभी के लिये उपलब्ध हैं चाहे बच्चा देखे या बच्ची और उसे फ़ोलो करने लगे व कर रहे हैं ...फ़िर चिल्लाते हैं कि सन्तति बिगड रही है, भ्रष्ट आचरण बढ रहा है, महिलाओं के प्रति अपराध बढ रहे हैं....अनधिकारी को ग्यान...
ReplyDelete----सोये हुए को जगाया जा सकता है परन्तु अपना ग्यान छोड कर, नकल में व्यस्त..आन्खें बन्द किये है उसे ....
गुप्ता जी, आप जिस युग के हिमायती हैं उस युग में अपराध आज से कहीं ज्यादा थे, उस युग में स्वयं राजा और उनके मंत्री खुलेआम ऐसे अपराध किया करते थे और उनका विरोध भी सम्भव नहीं था। आज मानव चेतना के विस्तार और कमजोर वर्गों को अधिकार प्रदान किये जाने के कारण जरा सी गडबडी होने पर भी वह प्रकाश में आ जाती है। दूसरी बात यह है कि आज जनसंख्या पहले के मुकाबले कई गुना ज्यादा हो गयी है, इसलिए लगता है कि आजकल अपराध बढ गये हैं।
ReplyDeleteऔर हॉं, पहले जो कुछ गुप्त रूप से होता था, आज वही खुले रूप में हो रहा है। और यह खुलापन रोकना न किसी के वश में है और न ही उचित। ये ज्ञान और सूचना के विस्फोट का युग है।
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteजिस बात को जितना गुप्त रखा जाता है मानव मन उस बात के प्रति उतना ही ज्यादा आकृष्ट हो जाता है और उसके बारे में उतने ही गलत धरना बनते जाते हैं, समाज जो बिगड रहा है, अपराध बढ़ रहा है वो इसलिए कि खुलापन नहीं है ... हर बात को गुप्त रखने की कोशिश की गई है सदियों से ... दुःख तो यह है कि आज भी ऐसे लोग हैं जो इसी गलत परंपरा को बदहवा दे रहे हैं केवल स्वार्थ और दंभ में अंधा होकर ... महिलाओं के प्रति अपराध सबसे ज्यादा उन समाजों में होता है जहाँ ज्ञान और खुलेपन पर पाबन्दी लगा दी गई है ...
ReplyDeleteखुदको अधिकारी और दूसरों को अनधिकारी समझने वाले लोगों से ही समाज का नुक्सान होता आया है ...
सही बात है ... सोया हुआ को जगाया जा सकता है पर जो आँखे बंद करके बैठा है ... और दूसरों को भी आँखें बंद रखने का उपदेश देते रहता है उसे ...
सोचकर भी आश्चर्य हो रहा है कि ऐसे चिकित्सक भी हैं जो जनमानस में साफ़-सफाई, स्वच्छता और स्वास्थ की बातें फ़ैलाने की वजाय अपनी दूकान चलाने में ज्यादा रूचि रखता हो,
गली के मोड पे जो पनवाड़ी बैठता है वो भी बेहतर है ... कम से कम उसकी मानसिकता में कोई उन्नति तो हुई होगी ...
इतना ही ब्लॉग और इन्टरनेट से परेशानी है, तो कागज कलम से काम चलाना है ... कंप्यूटर के सामने बैठकर क्या होगा ... इसे कहते हैं अनधिकारी को ज्ञान ... प्रस्तर युग के आदमी के हाथ में कंप्यूटर आ जाय तो क्या होगा ...
दरअसल यह विवाद /संवाद उन दो पक्षों के बीच है जिसमें एक ज्ञान के सार्वजनकीकरण /लोकतांत्रीकरण को उन्मुख रहता है दूसरा निहित स्वार्थो वश ज्ञान पर कुण्डली मारे रहता है -अब जमाना ज्ञान को बांटने का है न कि छुपाकर रखने का है .....
ReplyDeleteसैल जी आप डॉ गुप्त से कितना भी संवाद कर लें उनसे पार पाना मुश्किल है ..मगर हम आपकी बात समझ गए हैं -आपकी दूसरी पोस्ट का इंतज़ार है !
मिश्रा जी, शायद आप सही कह रहे हैं ... जो समझकर भी नहीं समझना चाहता है उसे समझाना बेकार है ...
ReplyDeleteइस गैर ज़रूरी बहस को यहीं खतम करता हूँ ... मुझे अच्छा लगा कि लोग मेरे इस प्रयास को पसंद किये ... भले ही किसी स्वार्थी व्यक्ति के सीने पे सांप लोट रहा हो ...
कोशिश करूँगा कि इसी तरह मुझे जब जब जो भी पता चलता है सबके साथ सांझा करूं ...
उम्मीद है हमेशा की तरह ये मंच ज्ञान को बढ़ावा देने में कदम बढाता रहेगा ...
ALL THE BEST !
यदि यह पोस्ट पनवाडियों की समझ के लिये ही है तो अब कुछ कहना ही व्यर्थ है....
ReplyDeleteजाकिर जी आप स्वयं इसे विष्फ़ोट कह रहे हैं जो खुद ही अनर्थकारी भाव देता है....तो उसको क्यों प्रश्रय दिया जारहा है...
ReplyDeleteगुप्ता जी यह विस्फोट इसलिए हुआ है क्योंकि इससे पहले सूचना एवं ज्ञान को जबरन रोका गया था। और यदि आपने विज्ञान पढ़ा होगा, तो आपको पता ही होगा कि जब आप किसी ऊर्जा को जबरदस्ती कहीं एकत्रित करते हैं, तो वह विस्फोट के रूप में ही प्रकट होती है।
ReplyDeleteजबरन नहीं, नियमन---हर व्यवस्था में यम-नियम आवश्यक होते हैं....
ReplyDeleteThanks for some quality points there. I am kind of new to online , so I printed this off to put in my file, any better way to go about keeping track of it then printing?
ReplyDelete