हम भूत-प्रेत, परग्रही द्वारा अपहरण से लेकर भविष्यवाणी करना, हवा से वस्तु उत्पन्न करने से लेकर पुनर्जन्म जैसी विचित्र बातों पर विश्व...
हम भूत-प्रेत, परग्रही द्वारा अपहरण से लेकर भविष्यवाणी करना, हवा से वस्तु उत्पन्न करने से लेकर पुनर्जन्म जैसी विचित्र बातों पर विश्वास कर सकते है। क्या आपने सोचा है कि ऐसा क्यों होता है कि शिक्षित व्यक्ति भी इन बातों पर विश्वास करते है?
वैज्ञानिक सोच का अभाव
1.मान्यता द्वारा निरिक्षण पर प्रभाव: यदि आप किसी सिद्धांत को मानते है तब वह सिद्धांत आपके निरीक्षण को प्रभावित करता है। आप परिणामो को अपने सिद्धांत के अनुसार परिभाषित करते है। कोलंबस भारत को खोजने के लिए अमरीका पहुंच गया था, उसकी मान्यता थी कि यदि वह युरोप के पश्चिम दिशा से यात्रा करेगा तो वह भारत पहुंच जायेगा। जब वह अमरीका पंहुचा, तब उसकी मान्यता के कारण तांबे रंग के मूल अमरीकी निवासीयों को वह भारतीय मान बैठा। यही नही उसे अमरीका मे भारतीय मसाले और जड़ी बुटीयां दिख रही थी। कोलंबस अपनी निरिक्षणों को अपनी मान्यता के बाहर देख ही नही पा रहा था।
2. निरीक्षक द्वारा निरीक्षीत मे परिवर्तन: किसी भी वस्तु का अध्यन उस वस्तु की अवस्था मे परिवर्तन कर सकती है। यह किसी मानवविज्ञानी द्वारा किसी जनजाति के अध्ययन से लेकर किसी भौतिकविज्ञानी द्वारा इलेक्ट्रान के अध्ययन पर लागु होता है। इसी कारण से मानसीकचिकित्सक "ब्लाइंड और डबल ब्लाइंड तकनीको( blind and double-blind controls)" का प्रयोग करते है। इन तकनिको मे किसी वैज्ञानिक प्रयोग मे शामील व्यक्तियों से वह जानकारी छुपायी जाती है जिससे वह व्यक्ति के चेतन या अवचेतन मष्तिष्क पर कोई पूर्वाग्रह या पक्षपात उत्पन्न हो, ऐसा परिणामो की विश्वसनियता के लिए किया जाता है। छद्म विज्ञानी ऐसा कुछ नही करते है।
3.उपकरण परिणाम का निर्माण करते है: किसी प्रयोग मे प्रयुक्त उपकरण परिणामों को प्रभावित करते हैं। उदाहरण के लिए जैसे जैसे हमारे दूरबीनो की क्षमता बढ़ते गयी, हमारी जानकारी मे ब्रह्माण्ड का आकार भी बढ़ता गया। सीधे सीधे शब्दो मे मछली पकड़ने के जाल का आकार उसमे पकड़ी जाने वाली सबसे बड़ी मछली का आकार बतायेगा, ना कि तालाब मे सबसे बड़ी मछली का आकार!
4.श्रुति!= विज्ञान:- हम लोगो से जो किस्से कहानियाँ सुनते है, वह विज्ञान नही होता है। छद्म विज्ञानी श्रुति को मानते है जबकि विज्ञान प्रामाणिक अध्ययन को मानता है।
छद्मवैज्ञानिक सोच की समस्यायें
5.वैज्ञानिक भाषा का प्रयोग उसे वैज्ञानिक नहीं बनाती है: किसी मान्यता की व्याख्या यदि वैज्ञानिक भाषा/शब्दो के प्रयोग से की जाये तो वह मान्यता वैज्ञानिक नही हो जाती। ज्योतिषी खगोल विज्ञान के शब्दो के प्रयोग से उसे वैज्ञानिक प्रमाणित करने का प्रयास करते हैं। सं रां अमरीका के "क्रियेशनीज्म" के समर्थको ने अपनी मान्यता को वैज्ञानिक शब्दो/भाषा के प्रयोग कर उसे वैज्ञानिक सिद्धांत के रूप मे पेश किया था लेकिन उनकी चाल पकड़ी गयी थी।
6. निर्भिक कथन उसे सत्य प्रमाणित नही करता है: यदि आप लाखों लोगो के सामने निर्भिकता से कोई सिद्धांत पेश करें तो इसका अर्थ यह नही है कि आपका सिद्धांत सत्य है। कोई व्यक्ति अपने आपको भगवान कहे तो वह भगवान नही हो जाता। असाधारण कथन/दावे को प्रामाणित करने असाधारण प्रमाण चाहीये होते है।
7.विद्रोही/क्रांतीकारी मत का अर्थ सत्य नही होता है:- कोपरनीकस, गैलेलीयो तथा राईट बंधु विद्रोही/क्रांतिकारी विचारों के थे। लेकिन विद्रोही/क्रांतिकारी विचारों का होना ही आपको सही साबित नही करता है। होलोकास्ट से इंकार करने वाले विद्रोही/क्रांतिकारी विचार रखते है लेकिन वे गलत है क्योंकि उनके पास इसके प्रमाण नही है, जबकि उनके विरोध मे ढेर सारे प्रमाण है। ग्लोबल वार्मींग के विचार से असहमत लोग भी विद्रोही/क्रांतिकारी विचार रखते है लेकिन वे भी गलत है क्योंकि प्रमाण उनके विरोध मे हैं।
8.प्रमाणित करने की जिम्मेदारी: असाधारण दावे को प्रमाणित करने की जिम्मेदारी दावा करने वाले व्यक्ति की होती है। यदि कोई व्यक्ति दावा करता है कि उसने अपनी मानसीक शक्ति से पर्वत को हिला दिया है तो उसे प्रमाणित भी करना होगा।
9. अफवाहे सत्य नही होती है: अफवाहो की शुरुवात होती है "मैने कहीं पढा़ था...." या "मैने किसी से सुना था....."। कुछ समय पश्चात यह सत्य बन जाती है और लोग कहते है कि "मै जानता हूं कि.........."। इस तरह कि अधिकतर कहांनिया गलत होती है। इंटरनेट की चेन मेल इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं। एक उदाहरण है मोतीलाल नेहरू के पिता का नाम गयासुद्दीन गाजी होने की इंटरनेट पर फैली अफ़वाह। दूसरा उदाहरण है टाईम्स आफ इंडीया के संपादक द्वारा भारत के प्रधानमंत्री को लिखा गया कथित पत्र।
10. अस्पष्ट का अर्थ रहस्यमय नही होता: यदि आप किसी घटना की व्याख्या नही कर पा रहे है इसका अर्थ यह नही है कि उसकी व्याख्या नही की जा सकती है। आग पर चलना रहस्यमय लगता है लेकिन यदि आपको उसके पीछे के कारण बता दिये जाये तो वह आपको रहस्यमय नही लगेगा। यह सभी जादू की तरकीबो के साथ है, ये तरकीबे आपको उस समय तक जादुई लगेंगी जब तक आप उसके कार्यप्रणाली को नही जानते है। किसी घटना को कोई विशेषज्ञ भी समझ नही पाये तो इसका अर्थ यह नही है कि भविष्य मे कोई और उसे समझ नही पायेगा। १०० वर्ष पहले जीवाणु, परमाणु एक रहस्य हुआ करते थे। बिजली चमकने को इंद्रदेव का वज्र समझा जाता था।
11. असफलता की तर्कसंगत व्याख्या : विज्ञान अपनी असफलता को मान्यता देता है, वह अपनी असफलता की तर्कसंगत व्याख्या करता है और अपने आपको पुनर्गठित करता है। यह छद्मविज्ञान के साथ नही होता है, वे असफलता को नजरअंदाज करते है या उसे किसी अज्ञात के मत्त्थे मढ़ देते है। जैसे जन्मतिथि की सही जानकारी ना होने से भविष्यवाणी गलत हुयी, पूजा मे कोई अशुद्ध व्यक्ति के शामिल होने से कार्य सही नही हुआ इत्यादि।
12.अंधविश्वास : मैने अपने विशेष पेन से परिक्षा दी थी इसलिये अच्छे अंको से पास हुआ। उस खिलाड़ी ने उस नंबर की जर्सी नही पहनी थी इसलिये टीम हारी। इस तरह की मान्यतायें आत्मविश्वास की कमी से आती है। इस तरह की घटनाओ मे परिणाम और मान्य कारको के मध्य कोई संबंध नही होता है।
13. संयोग/संभावना: अधिकतर लोगो को संभावना/प्रायिकता (Probability) के नियमो की जानकारी नही होती है। मान लिजीये कि आपने किसी को फोन करने फोन की ओर हाथ बढ़ाया और उसी का फोन आ गया। यह संयोग कैसे हो सकता है ? यह तो आपके मन और उसके मन के बीच मे कोई जुड़ाव से ही होना चाहीये ! यहां हम भूल जाते हैं कि हम किसी को हजारो बार फोन करते है, तब उसका फोन नही आता है। यदि आप सचिन तेंदुलकर को गेंद फेंके तब सचिन के बोल्ड होने की संभावना शुन्य नही होती है ! यह किसी सिक्के को उछाल कर चित/पट देखने से अलग नही है। लेकिन हम हर घटना के पीछे एक पैटर्न देखते है और नही होने पर अपने मन के अनुसार एक नया पैटर्न ढूंढ निकालते है!
तार्किक सोच में समस्याएं
14.प्रतिनिधी घटनायें : कुछ घटनायें असामान्य लगती है लेकिन होती नही हैं। उदाहरण के लिए घर मे रात मे आने वाली खट-खट, ठक-ठक की आवाज भूतों की न होकर चुहों की होती है। बरमूडा त्रिभूज मे कई जहाज लापता हुये है क्योंकि इस भाग मे आने वाले जहाजो की संख्या ज्यादा है। वास्तविकता यह है कि इस क्षेत्र मे होने वाली दुर्घटनाओं का औसत अन्य क्षेत्र की तुलना मे कम है।
मेरे गृहनगर गोंदिया मे एक हाई वे पर एक विशेष स्थान पर दुर्घटनाएँ ज्यादा होती थी। वह स्थान सीधा था, कोई मोड़ नही, कोई बाधा नही। लोग उसे प्रेतात्मा का प्रकोप मानते थे। लेकिन वास्तविकता यह थी कि रास्ते के सीधे होने से लोग गति बढ़ा देते थे और दुर्घटना होती थी। यातायात पोलिस ने रोड विभाजक और गति नियंत्रक लगा दिये। दुर्घटनाएँ बंद हो गयी।
15.भावनात्मक शब्द और गलत उपमायें : अलंकारो से भरी भाषा कभी कभी सत्य को छुपा देती है। भूषण कवि के अनुसार शिवाजी के सेना के हाथी जब चलते है तब पृथ्वी हिलती है, धूल के बादलो से सूर्य ढंक जाता है। इस तरह की अलंकारीक भाषा कई मिथको को जन्म देती है। विभिन्न धर्मग्रंथो की कहानियोँ मे यह स्पष्ट रूप से दिखायी देती है।
इसी तरह किसी राजनेता को "नाजी", या "हत्यारा" जैसी भावनात्मक उपमाये दे दी जाती है जिनका अर्थ कालांतर मे बदल जाता है।
16.अनभिज्ञता का आकर्षण : इसके अनुसार यदि आप किसी को झुठला नही सकते तो वह सत्य होना चाहीये। इसे भूतों, परामानसीक शक्तियों के बचाव मे प्रयोग किया जाता है। जैसे यदि आप भूतों, परामानसीक शक्तियों को झुठला नही सकते हो तो मानीये कि उनका अस्तित्व है। लेकिन समस्या यह है कि सांता क्लाज के अस्तित्व को भी झुठलाया नही जा सकता है। मै दावा करता हूं कि सूर्य मेरे आदेश से निकलता है, कोई इसे असत्य साबित कर के दिखाये ! विश्वास अस्तित्व के सकारात्मक प्रमाणो पर आधारित होना चाहीये, ना कि प्रमाणो के अभाव पर।
17. व्यक्तिगत आक्षेप : इस विधी मे किसी व्यक्ति के नये क्रांतिकारी आइडीये पर से उस व्यक्ति पर व्यक्तिगत आक्षेप लगाकर द्वारा ध्यान बंटाया जाता है। जैसे डार्वीन को रेसीस्ट कह देना, किसी नेता को नाजीवादी करार देना। जार्ज वाशींगटन ने मानव गुलाम रखे थे लेकिन उससे उनकी महानता कम नही होती है। महात्मा गांधी पर लगे व्यक्तिगत आरोपो से भी उनकी महानता कम नही होती है।
18.अति साधारणीकरण: इसे पूर्वाग्रह भी कहते है। इसमे पूरे तथ्यो को न जानते हुये भी परिणाम निकाले जाते है। जैसे किसी स्कूल मे दो शिक्षक अच्छे नही होने पर पूरे स्कूल को बुरा बना देना। या किसी कंपनी के इक्का दूक्का कारो मे आयी समस्याओं से पूरे ब्राण्ड को खराब कह देना।
19. व्यक्ति की छवि पर अति निर्भरता: किसी भी तथ्य को बिना जांचे परखे नही स्वीकार करना चाहीये , चाहे वह किसी महान सम्मानित व्यक्ति द्वारा ही कहे गये हों। उसी तरह खराब छवि वाले व्यक्ति द्वारा दिये गये अच्छे तथ्य को बिना जांचे परखे खारीज नही करना चाहिये। हाल ही मे हुये अन्ना तथा बाबा रामदेव के आंदोलन इसके उदाहरण है।
20: या तो वह नही तो यह: इस तर्क मे यदि एक पक्ष गलत है तो दूसरा सही होना चाहिये। उदाहरण के लिए ”क्रियेशन सिद्धांत”* के पक्षधर डार्वीन के ’क्रमिक विकास के सिद्धांत” पर हमला करते रहते है क्योंकि वह मानते है कि क्रमिक विकास का सिद्धांत गलत है। लेकिन क्रमिक विकास के सिद्धांत के गलत होने से भी क्रियेशन सिद्धांत सही सिद्ध नही होता है। उन्हे क्रियेशन सिद्धांत के पक्ष मे प्रमाण जुटाने होंगे।
21. चक्रिय तर्क : इसमे एक तर्क को प्रमाणित करने दूसरे तर्क का सहारा लिया जाता है, तथा दूसरे तर्क को प्रमाणित करने पहले का। जैसे धार्मिक बहस मे:
क्या भगवान का आस्तित्व है ?
हां।
तुम्हे कैसे मालूम ?
मेरे धर्मग्रंथ मे लिखा है।
तुम कैसे कह सकते हो कि तुम्हारा धर्मग्रंथ सही है ?
क्योंकि उसे भगवान ने लिखा है।
विज्ञान मे :
गुरुत्वाकर्षण क्या है ?
पदार्थ द्वारा दूसरे पदार्थ को आकर्षित करने की प्रवृत्ति।
पदार्थ एक दूसरे को आकर्षित कैसे करते है ?
गुरुत्वाकर्षण से।
साधारण बहस मे:
राम कहां रहता है ?
श्याम के घर के सामने।
श्याम कहां रहता है?
राम के घर के सामने ?
22. किसी तथ्य का सहारा लेकर असंगत सिद्धांत हो सिद्ध करना: इस मे किसी एक सर्वमान्य को तथ्य को लिया जाता है, उस पर एक नये तथ्य को प्रमाणित किया जाता है। दूसरे से तीसरे को, इस क्रम मे किसी असंगत नतिजे पर पहुंचा जा सकता है। जैसे : आइसक्रीम खाने से वजन बढता है। वजन बढने से मोटापा बढता है। ज्यादा मोटापे से हृदय रोग होता है। हृदय रोग से मृत्यु हो सकती है। इसलिये आइसक्रीम खाने से मृत्यु हो सकती है।
कोई क्रियेशन सिद्धांत का समर्थक कह सकता है कि क्रमिक विकास के लिए भगवान की आवश्यकता नही है। यदि भगवान की जरूरत नही है, तो तुम भगवान को मानते नही हो। भगवान को न मानने मे नैतिकता नही है। इसलिये क्रमिक विकास को मानने वाले भगवान को नही मानते है और अनैतिक होते है।
सोचने में मनोवैज्ञानिक समस्याएं
23.प्रयास मे कमी तथा निश्चितता, नियंत्रण और सरलता की आवश्यकता: हममे से अधिकतर निश्चितता चाहते है, अपने वातावरण पर नियंत्रण चाहते है और सरल व्याख्या चाहते है। लेकिन प्रकृति इतनी सरल नही है। कभी कभी हल सरल होते है लेकिन कभी कभी जटिल। हमे जटिल सिद्धांतो को समझने के लिए प्रयास करना चाहीये नाकि अपने आलस के कारण उन्हे ना समझ पाने के फलस्वरूप खारीज करना चाहिये।
24. समस्या के हल मे प्रयास की कमी: किसी समस्या को हल करते समय हम एक अवधारणा बना लेते है और उसके बाद हम उस अवधारणा के अनुसार उदाहरण देखना शुरू कर देते है। जब हमारी अवधारणा गलत होती है तब हम उसे बदलने मे देर करते हैं। इसके साथ हम सरल हल की ओर झुकते है जबकि वह हर पहलू को हल नही करते हैं।
25.वैचारिक स्वाधीनता : हम अपने मूलभूत विचारो से समझौता पसंद नही करते है। जो नये विचार हमारे परिप्रेक्ष्य मे सही नही होते है उनसे बचने के लिए हम अपने चारो ओर एक दीवार खड़ी कर देते है। जितनी ज्यादा प्रतिभा होगी, यह दिवार उतनी ऊंची होती है। हमारे विचित्र विचारो पर विश्वास रखने मे यह सबसे बड़ी बाधा होती है। हम इसरो और डी आर डी ऒ के वैज्ञानिको को हाथो मे अगुंठिया पहने देख सकते है।
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माइकल शेर्मर की बेहतरीन पुस्तक "Why People Believe Weird Things" पढने के बाद उपजी पोस्ट।
* क्रियेशन सिद्धांत : इसके अनुसार पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति किसी दैवीय शक्ति ने की है। यह डार्विन के प्रचलित क्रमिक विकास के सिद्धांत को नहीं मानता है।
सभी चित्र: साभार गूगल सर्च
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आशीष जी, बहुत ही विस्तार से और धैर्य के साथ आपने चमत्कार को स्वीकारने वाली मानसिकता को रेखांकित किया है। अभिभूत हूं पढकर।
ReplyDeleteबहुत उपयोगी पोस्ट। बधाई! ऐसे ही काम करते रहें।
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया, आप को इस शानदार आलेख के लिये बहुत बहुत बधाई,
ReplyDeleteजी हाँ मान्यता और हमारे मूल विश्वास यहाँ तक की अर्जित जानकारी भी देखी गई चीज़ को असर ग्रस्त कर सकतें हैं .इसलिए कहा भी गया -"जिन खोजा तिन पाइयां..." और यह भी -"जा -की रही भावना जैसी परभू मूरत देखी तिन तैसी.
ReplyDelete(2)The very process of perception effects what is being seen ,position and time of an event can not be accurately determined .(Uncertainty Principle. ).
(३)आखिर देखने की जानने की भी सीमाएं हैं ,सृष्टि का बहुलांश इसीलिए अज्ञेय ,अनुमेय ही बना हुआ है .बेशक रेडिओ -दूरबीनों की भी सुदूर अन्तरिक्ष से आते पिंडों से निसृत संकेतों को पकड़ने टोहने की सीमाएं हैं ,फिर मानवीय दर्शन सम्पूर्ण और निर्दोष कैसे हो सकता है .अलबत्ता केवल देखने की प्रक्रिया ही सत्य है ,जो देखा जा रहा है वह गलत हो सकता है .
(४)जी हाँ मेक एंड बिलीफ पर चली आई मौखिक परम्परा भी अपने साथ अनेकों जन -आस्थाएं लिए आती है .
(५)क्रत्रिम बुद्धि लेब में नहीं गढ़ी जा सकती यह चर्च का दुराग्रह है .केवल ईश्वर ही बुद्धिमान प्राणियों का सृजन कर सकता है यह भी आग्रह -मूलक विश्वाश और जिद से ज्यादा कुछ नहीं है .क्लोनिग इसका प्रमाण है .
(६)हां विज्ञान प्रमाण मानता है .माँगता है कोई कहे के आत्मा का अस्तित्व है तो विज्ञानी कहेगा ,भैया आत्मा है तो लाओ उसे लेब में देखें आज़माइश करके .क्या होती है सचेतन ऊर्जा ?
(७)अफवाहों के पंख नहीं होते यह ऐसा पंछी है बिना परों के परवाज़ भरता है ऊंची और ऊंची .
(८)जी हाँ आग पर चलना कोई चमत्कार नहीं है चमड़ी को जलने में तीन सेकिंड लगतें हैं उससे पहले आप स्पर्श बिंदु चमड़ी और आग के बीच का अभ्यास से बदल सकतें हैं .
(९)विज्ञान सच का अन्वेषण करता है अनवरत उसके लिए कोई सत्य अंतिम नहीं है .आग्रह मूलक तो बिलकुल नहीं ."एक व्यक्ति एक साथ दो जगह उपस्थित नहीं हो सकता .कोई कण प्रकाश के वेग का अतिक्रमण नहीं कर सकता हो सकता है यह अवधारणा कल गिर जाए .प्रोटोन भी विखंडित हो जाए बिखर जाए क्वार्क -प्रति क्वार्कों में .संरचना तो उसमे आज भी हैं .
आशीष जी बहुत अच्छे आलेख और सन्दर्भ सामिग्री मुहैया करवाई है आपने .बधाई के पात्र हैं आप .
विशेष :जहां तक एस्त्र्लोजिकल प्री -डिक-शन का सवाल है कोई एक मेथोदोलोजी ही नहीं है कोई नौ से कोई आठ ग्रहों से गणनाकरता है कोई राहू केतु को भी समायोजित करता है .सातों दिन भगवान् के क्या मंगल क्या बीर .
जी हाँ मान्यता और हमारे मूल विश्वास यहाँ तक की अर्जित जानकारी भी देखी गई चीज़ को असर ग्रस्त कर सकतें हैं .इसलिए कहा भी गया -"जिन खोजा तिन पाइयां..." और यह भी -"जा -की रही भावना जैसी परभू मूरत देखी तिन तैसी.
ReplyDelete(2)The very process of perception effects what is being seen ,position and time of an event can not be accurately determined .(Uncertainty Principle. ).
(३)आखिर देखने की जानने की भी सीमाएं हैं ,सृष्टि का बहुलांश इसीलिए अज्ञेय ,अनुमेय ही बना हुआ है .बेशक रेडिओ -दूरबीनों की भी सुदूर अन्तरिक्ष से आते पिंडों से निसृत संकेतों को पकड़ने टोहने की सीमाएं हैं ,फिर मानवीय दर्शन सम्पूर्ण और निर्दोष कैसे हो सकता है .अलबत्ता केवल देखने की प्रक्रिया ही सत्य है ,जो देखा जा रहा है वह गलत हो सकता है .
(४)जी हाँ मेक एंड बिलीफ पर चली आई मौखिक परम्परा भी अपने साथ अनेकों जन -आस्थाएं लिए आती है .
(५)क्रत्रिम बुद्धि लेब में नहीं गढ़ी जा सकती यह चर्च का दुराग्रह है .केवल ईश्वर ही बुद्धिमान प्राणियों का सृजन कर सकता है यह भी आग्रह -मूलक विश्वाश और जिद से ज्यादा कुछ नहीं है .क्लोनिग इसका प्रमाण है .
(६)हां विज्ञान प्रमाण मानता है .माँगता है कोई कहे के आत्मा का अस्तित्व है तो विज्ञानी कहेगा ,भैया आत्मा है तो लाओ उसे लेब में देखें आज़माइश करके .क्या होती है सचेतन ऊर्जा ?
(७)अफवाहों के पंख नहीं होते यह ऐसा पंछी है बिना परों के परवाज़ भरता है ऊंची और ऊंची .
(८)जी हाँ आग पर चलना कोई चमत्कार नहीं है चमड़ी को जलने में तीन सेकिंड लगतें हैं उससे पहले आप स्पर्श बिंदु चमड़ी और आग के बीच का अभ्यास से बदल सकतें हैं .
(९)विज्ञान सच का अन्वेषण करता है अनवरत उसके लिए कोई सत्य अंतिम नहीं है .आग्रह मूलक तो बिलकुल नहीं ."एक व्यक्ति एक साथ दो जगह उपस्थित नहीं हो सकता .कोई कण प्रकाश के वेग का अतिक्रमण नहीं कर सकता हो सकता है यह अवधारणा कल गिर जाए .प्रोटोन भी विखंडित हो जाए बिखर जाए क्वार्क -प्रति क्वार्कों में .संरचना तो उसमे आज भी हैं .
आशीष जी बहुत अच्छे आलेख और सन्दर्भ सामिग्री मुहैया करवाई है आपने .बधाई के पात्र हैं आप .
विशेष :जहां तक एस्त्र्लोजिकल प्री -डिक-शन का सवाल है कोई एक मेथोदोलोजी ही नहीं है कोई नौ से कोई आठ ग्रहों से गणनाकरता है कोई राहू केतु को भी समायोजित करता है .सातों दिन भगवान् के क्या मंगल क्या बीर .
व्हाई पीपल बिलीव वीअर्ड थिंग्स का इतना सुन्दर सार संक्षेप -आशीष जी आप तो सचमुच कमाल करते हो ...
ReplyDeleteमैं भी वीरू भाई के पदचिह्नों पर कुछ जोड़ना चाहता हूँ -
आम मनुष्य का मूल स्वभाव ही है चमत्कार के प्रति नतमस्तक होने का ....यह भाव उसके मन का अंतर्निहित भाव है ....उसकी यही प्रवृत्ति ईश्वर तक का अन्वेषण कर गयी ....चमत्कार को नमस्कार कर उसकी एक आदिम प्रवृत्ति तुष्ट होती है ..वह थोडा डर ,विस्मय और अज्ञात के प्रति प्रशंसा ,जिज्ञासा भाव से ईंटरैक्ट करता रहता है -उसकी जिज्ञासु प्रवृत्ति ने कई खोजें की ,विज्ञानं की पद्धति खोज डाली ..मगर आज भी वह चमत्कार के प्रति सहज ही आकृष्ट होता है -यह एक बड़ा विषय है और विस्तृत विवेचना मांगता है -इसे टिप्पणी तक सीमित करने पर कई गलतफहमियां उत्पन्न हो सकती हैं इसलिए मुल्तवी करता हूँ कभी वीरू भाई के साथ मिल बैठ कर बतियाते हैं !तब तक चमत्कार को नमस्कार चाहे पास या दूर से ....च्वायस इज योर्स!
क्या भगवान का आस्तित्व है ?
ReplyDeleteहां।
तुम्हे कैसे मालूम ?
मेरे धर्मग्रंथ मे लिखा है।
तुम कैसे कह सकते हो कि तुम्हारा धर्मग्रंथ सही है ?
क्योंकि उसे भगवान ने लिखा है।
कैसे मालोम की भगवान् ने लिखा है?
क्यों की उसमें जो लिखा है वो हमेशा सत्य साबित हुआ है और हो रहा है.
तब तो कोई शक्ति है जिसने हमें बनाया और जीवन कैसे गुज़रें, हम कौन हैं यह बताने के लिए धर्म ग्रन्थ भी दिया.
चमत्कार उसे कहते हैं जो इंसानी दिमाग को समझ मैं ना आयी? हजारों साल पहले टीवी जैसे उपकरण चमत्कार थे आज विज्ञान की इजाद. इसी लिए ज्ञानिओं के साथ उठने बैठने पे इस्लाम ने ज़ोर दिया है. ऐसा करने से अंधविश्वासों से दूर रह सकते हो.
ReplyDeleteवैसे यह लेख़ बहुत से ऐसे सवाल भी खड़ा कर रहा है जिनके जवाब नहीं इंसानों के पास.
आशीष जी, कल रात में पोस्ट को पब्लिश करते समय कुछ नींद की खुमारी और कुछ पत्नी के भय के कारण काम चलाऊ टिप्पणी की। अब विस्तृत टिप्पणी के साथ पुन: हाजिर हूं।
ReplyDeleteलोग चमत्कारों पर विश्वास क्यों करते हैं, यह एक बहुत गहरा प्रश्न है। मेरे विचार में इसके मूल में हमारा आस्तिक समाज है। हम पैदा होने के साथ ही बच्चों को यह बताने में लग जाते हैं कि ईश्वर बहुत शक्तिशाली है, वह सर्वशक्तिमान है, उसकी मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता, उसने फलां फलां समय में ऐसी अदभुत घटनाएं की, उसने फलां-फलां लोगों को देखते ही देखते राजा से रंक और रंक से राजा बना दिया, उसने धरती फोड़ कर अमृत के फव्वारे निकाल दिये, उसने देखते ही देखते आसमानी बिजली से संसार को ध्वस्त कर दिया, उसकी प्रार्थना में गजब की शक्ति होती है, उसकी कृपा हो जाए तो तुम सब कुछ पा सकते हो वगैरह-वगैरह।
अब ऐसे माहौल में पला-पढ़ा बच्चा चमत्कारों को क्यों नहीं मानेगा। जितने भी चमत्कारी व्यक्ति होते हैं, वे सदैव धर्म का चोगा ओढ़े रहते हैं। और चूंकि मनुष्य को बचपन से घुटटी पिलाई गयी है कि धर्म के द्वारा कुछ भी संभव है, इसलिए वह उस चमत्कार को भी किस्से कहानियों की तरह ही ईश्वरी शक्ति का नमूना मानते हुए उसपर सहज रूप से यकीन कर लेता है।
चमत्कारों पर यकीन करने का दूसरा प्रमुख कारण यह भी है कि मनुष्य मूल रूप से एक डरपोक प्राणी है। परलोक का भय, असफलता का भय, अपशकुन का भय उसके जींस में घुसा हुआ है। वह सोचता है कि कहीं ईश्वर के किसी चमत्कार पर यकीन न करके मैं उसे रूष्ट न कर दूं, उसके प्रकोप का भागी न बन जाऊं। इसीलिए ईश्वर का नाम और उससे जुडी कोई भी बात सामने आते ही, चाहे वह कितनी भी बेसिरपैर की क्यों न हो, वह अपनी बुद्धि और ज्ञान को ताक पर रखते हुए उसके आगे नतमस्तक हो जाता है।
ReplyDeleteमेरे विचार में इसका तीसरा कारण है इंसान का लालच। आज हर व्यक्ति की आंखों में सुख सुविधाओं के सपने मिचमिचाते रहते हैं। व्यक्ति दुनिया में उपलब्ध हर सुविधा का भोग करना चाहता है। इसके लिए वह शार्टकट और फंडों की तलाश में भटकता रहता है। वह इन मौकों को तीर्थों, गुरूओं बाबाओं, पूजा पद्वितियों में भी खोजता रहता है। तथाकथति चमत्कारी लोग मनुष्य की आदिम प्रवृत्ति का फायदे उठाते हैं और उनके सामने तथाकथित चमत्कार दिखाकर उन्हें उल्लू बना देते हैं।
ReplyDeleteजो चीज़ समझ मैं ना आये या जिस से नुकसान होने का डॉ हो उस से डरना या दूर भागना हर एक जीव का फितरती मिज़ाज है. इंसान पहले डरता है फिर उसके बारे मैं पता करता है और फिर उसका इस्तेमाल करता है. आग जब इंसान ने देखा तो पहले डरा, फिर देवी देवता का दर्जा दिया और अब उसका इस्तेमाल करता है.
ReplyDeleteइश्वर आग नहीं बल्कि इश्वर उस आग को बनाने वाला हुआ करता है.
मेरे विचार में इसका तीसरा कारण है इंसान का लालच। आज हर व्यक्ति की आंखों में सुख सुविधाओं के सपने मिचमिचाते रहते हैं। व्यक्ति दुनिया में उपलब्ध हर सुविधा का भोग करना चाहता है। इसके लिए वह शार्टकट और फंडों की तलाश में भटकता रहता है। वह इन मौकों को तीर्थों, गुरूओं बाबाओं, पूजा पद्वितियों में भी खोजता रहता है। तथाकथति चमत्कारी लोग मनुष्य की आदिम प्रवृत्ति का फायदे उठाते हैं और उनके सामने तथाकथित चमत्कार दिखाकर उन्हें उल्लू बना देते हैं।
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट। बधाई! ऐसे ही जनजागरूकता करते रहें.
ReplyDeleteमासूम जी,
ReplyDeleteयह पोष्ट कहीं पर भी ईश्वर का विरोध नही कर रही है। आपने पोष्ट मानव द्वारा चमत्कारो पर विश्वास करने के कारणो की पड़ताल कर रही है।
वैसे यह लेख़ बहुत से ऐसे सवाल भी खड़ा कर रहा है जिनके जवाब नहीं इंसानों के पास
आज जवाब नही है, इसका अर्थ यह नही कि कल जवाब नही होंगे !
क्यों की उसमें जो लिखा है वो हमेशा सत्य साबित हुआ है और हो रहा है.
तब तो कोई शक्ति है जिसने हमें बनाया और जीवन कैसे गुज़रें, हम कौन हैं यह बताने के लिए धर्म ग्रन्थ भी दिया
क्षमा किजिये लेकिन आप इस लेख का पहला बिन्दु देखें। मानव मन अपनी मान्यताओं से बंधा होता है, उससे बाहर देखना उसके लिए आसान नही होता।
आइन्सटाईन ने अपने सिद्धांतो के सत्यापन के लिए ४०० वर्ष पुराने न्युटन के सिद्धांतो के बाहर जाकर सोचा था, तभी उन्हे सफलता मीली थी। लेकिन बाद मे उसी आइन्स्टाईन ने अपनी मान्यताओं के दायरे मे बंधे रह कर अनिश्चितता के सिद्धांत पर कहा था "भगवान पांसे नही खेलता"! आज हम जानते है कि आइन्सटाईन गलत थे!
आपका वैज्ञानिक आधार पर तर्क पसंद आता है.
ReplyDeleteविज्ञान =किसी भी विषय का क्रमबद्ध और नियमबद्ध अदयान .केवल प्रयोगशाला में बेकार द्वारा प्रयोग करना ही विज्ञान भर नहीं है.
ReplyDeleteधर्म=जो धारण करता है न कि वह जो दलालों द्वारा प्रचारित किया जाता है.
भगवान=भूमि,गगन,वायु,अनल(अग्नि),और नीर(जल)के प्रथमाक्षरों के समन्वय से बना शब्द जो पञ्च तत्वों का प्रतीक है न कि ढोंग-पाखण्ड द्वारा प्राचारित कोई नाम विशेष.
अज्ञान प्रमुख कारण है चमत्कारों पर विशवास करने का.
त्रुटी सुधर-कृपया उपरोक्त टिप्पणी में बेकार को बीकर पढ़ें.
ReplyDeleteदरअसल लोग दिमाग का कम से कम इस्तेमाल करना चाहते हैं, जो चल रहा है चलने दो में ज्यादा श्रद्धा रखते हैं। प्रत्येक व्यक्ित का अपना कोकून हैं कोई इससे बाहर निकलना ही नहीं चाहता, असुविधा नहीं चाहता। इसके बाद सुविधा कहीं चली ना जाये यह भय भी है। तो चमत्कार ही नहीं सारी पकी पकाई चीजों पर विश्वास करता है जैसे ग्रंथकिताबें, नेता, गुरू, पथप्रदर्शक, रीतिरिवाज और जो भी रेडीमेड मिल जाये सब चीजों में। क्योंकि ये सब चीजें तय हैं, इनके नफेनुक्सान से वाकिफ हैं, ये सब जाना हुआ और ज्ञात है... अज्ञात में उतरना कोई नहीं चाहता।
ReplyDeleteBahut achha article likha hai .
ReplyDeleteCongrates Ashish.
रोचक,उपयोगी और जानकारीपूर्ण लेख
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट किन्तु बहुत ही बड़ी है | पर ये बात भी सच है की चमत्कार आदि में विश्वास करने वालो को मन में ये सारी बाते इतनी गहरे तक बैठी होती है की कई बार आप लाख तर्क दे लोग आप की सुनने को तैयार ही नहीं होते है उनका विश्वास भी अडिग ही बना होता है |
ReplyDeleteचमत्कार के विविध पक्षों की समग्र विवेचना करती पोस्ट. आभार.
ReplyDeleteबाकी सब तो सही है
ReplyDeleteमगर
आपकी वो बात मुझे पूरी पोस्ट से अलग लगी
विज्ञान में
gravity क्या है ?
phonemonon of attraction b/w two objects
How do objects attract
due to gravity
क्या विज्ञान भी ऐसे चक्र इस्तेमाल कर के चीजों को prove करता है?
One of the best post ever.
ReplyDelete.
ReplyDelete.
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बहुत ही सार्थक, प्रभावी व शानदार पोस्ट... बुकमार्क कर लिया है और सभी को पढ़ाउंगा भी...
चमत्कारों के बारे में बचपन में कहीं पढ़ा था और बार-बार दोहराता हूँ वह यहाँ भी दोहराना चाहूँगा...
जिसे विज्ञान के ज्ञात नियमों के प्रकाश में समझाया न जा सके अथवा किसी दूसरे मानव द्वारा उसी जैसी परिस्थितियों में दोहराया न जा सके, ऐसा चमत्कार पूरे मानव इतिहास में न कोई कर पाया है और न ही कभी कोई कर पायेगा !
और यह मासूम जी क्या कहना चाहते हैं यहाँ, कुछ समझ नहीं आता साफ-साफ... दो नावों की सवारी एक साथ करने की कोशिश करते दिखते हैं वे... जो निश्चित ही अच्छा नजारा नहीं है...
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योगेश जी दो वस्तुएं एक दूसरे को इस लिए परस्पर अपनी अपनी और खींचती है क्योंकि दोनों के बीच एक फील्ड कण (परिकल्पित कण )ग्रेविटोंन का आदान प्रदान होता है .यह विनिमय इतना द्रुत गामी है इसके चित्र भी नहीं लिए जा सकते .इलेक्त्रों प्रोटोन भी परस्पर सिर्फ इसलिए आकर्षित नहीं करते ,की विपरीत आवेश लिए हैं बल्कि इनके बीच भी एक फील्ड पार्तिकिल का विनिमय चलता है .फोटोंन का .इसलिए गुरुत्व इस आयोजना से अलग नहीं है .विज्ञान में कार्य -कारन सम्बन्ध मौजूद हैं .रामचरित मानस के दोहों ,सोरठों, चौपाई की तरह इसकी व्याख्या नहीं है .सिद्धान्तिक गवेश्नाएं हैं प्रमाण हैं .
ReplyDeleteकाफी जानकारीवर्धक पोस्ट लिखी आपने . सबसे पहले इसके लिए धन्यवाद !
ReplyDeleteजहा तक चमत्कारों के विस्वास का सवाल है तो मै ये कहूँगा कि बहुत पहले युगों से ही हमारे देश में तरह तरह के चमत्कार होते आये है . जैसी कि आज कल धार्मिक धारावाहिकों में दिखाया ज़ाता है भगवान् जी के द्वारा किये गये चमत्कारों को . अगर हम किसी अन्य देश में चमत्कारों कि बात करे तो आपको अन्य देशो में एस तरह के चमत्कार देखने को काफी कम मिलेंगे . लेकिन कुछ चमत्कार दुसरे देशो में भी मिलेंगे मगर उनकी संख्या हमारे देश कि धरती पर हुए चमत्कारों से कम है ! ऐसा क्यों ? जहा तक मै सोचता हूँ ये सब लोगो कि सोच पर निर्भर करता है अगर वो चाहे तो किसी भी चीज़ या घटना को बिना वैज्ञानिक सोच के ही चमत्कार बना दे . जैसा कि होता ही रहता है. मुझे अपने गाँव कि एक घटना याद आ रही है जिसमे एक बहुत बड़ा सर्प एक गन्ने के खेत में एक कोने पर कुछ लोगो को दिखाई दिया वो , पहले तो किसी ने कोई ध्यान नहीं दिया एस और लेकिन जब वो सर्प और भी लोगो को उसी स्थान पर दिखाई दिया तो फिर वो उसको चमत्कार मानने लगे और फिर तरह तरह कि बाते होने लगी जैसे कि इतना भारी वजन का साप गन्ने के हलके से पत्ते पर लटका रहता है और गिरता भी नहीं ,और ना ही वो लोगो को देखकर या उनकी आवाज़ सुनकर कही ज़ाता था बस वही एक जगह रहता था . लोगो का वहा पर मेला सा लगने लगा . कुछ लोग तो उस पर हाथ भी फेरते थे और वो किसी को कुछ नहीं कहता था , धीरे धीरे लोगो ने उसको दूध पिलाना सुरु किया , वहा पर पूजा अर्चना करनी सुरु कर दी , जब हमारे यहाँ के दरोगो जी को ये बात पाता लगी तो वो वहा आये और उन्होने उस साप को देखकर उसको किसी लकड़ी कि मदद से दूर फ़ेंक दिया और लोगो से कहा कि वहा कोई ड्रामा ना करे . सब अपने अपने घर जाये. जैसे ही दरोगा जी वापिस थाणे गये तो उनकी मोटर सायकिल गिर गयी और उनको काफी चोट आई , बस फिर क्या तह फिर तो दरोगा जी भी वहा अपनी गलती के लिए माफ़ी मागने आये . नाग देवता जी फिर बापस उस ही जगह पर आ गये ,और कही नहीं गये . जिससे लोगो का विस्वास और बढ गया और वहा नाग देवता जी के लिए मंदिर के लिए लगभग एक बीघा जमीन उस किसान से फ्री में ली गयी जिसके खेत में नाग देवता जी दिखाई दिए थे . ये सब कहानी सुनते आस पास के गाँव से लोग वहा आने लगे . २० दिनों तक ये सब चलता रहा २१ बे दिन नाग देवता जी नहीं रहे और उनकी अंतिम यात्रा में लोगो कि काफी भीड़ जमा हुयी बाद में उनको वही दफनाया गया जहा वो प्रिकट हुए थे आज भी वहा उनकी समाधि बनी हुयी है . लेकिन असली चमत्कार तो तब हुआ जब उसी स्थान पर अगले दिन एक और दूसरा साप दिखाई दिया पर वो नाग देवता जी कि तरह नहीं था वो केवल एक दिन वहा दिखाई दिया फिर नहीं .. आज हमारे यहाँ के लोग हर फसल में वहा मंदिर बनवाने के लिए चंदा लेते हैं. और अब तक ४ लाख से ज्यादा चंदा आ भी चूका है पर अभी तक कोई मंदिर नहीं बना वहा पर बस उसकी नीव राखी गयी है और ३ कमरे बने है वहा साधू बाबा के रहने के लिए जिसमे एक ढोंगी साधू रहता था जो गाँव के ही कुछ लोगो के साथ मिलकर वहा शराब पीता था वहा , भांग भी चलती थी वहा पर . अब वहा कोई साधू नहीं है पर जो भी साधू आता है यही कर्म करता है .
इस घटना को देखकर समझ नहीं आता कि ये चमत्कार है या फिर कुछ और
जो भी हो पर एक बात मै कह सकता हूँ कि कही ना कही हमारे देश में लोगो कि ढोंगी धार्मिक सोच भी कुछ घटनाओं को चमत्कार बना देती है. धार्मिक होना कोई पाप नहीं है मै भी धार्मिक हूँ , पर धर्म के नाम पर दिखावा करना, घटनाओं को चमत्कार बताना ये सही नहीं है . चमत्कार को जादूगर भी करता है पर वो सिर्फ उसके हाथ कि स्पीड और हमारी नज़र का खेल होता है.
बहुत ही बढि़या विश्लेषणात्मक एवं जागरुक करने वाली पोस्ट।
ReplyDeleteप्रशंसनीय.
ReplyDeleteआइन्सटाईन ने अपने सिद्धांतो के सत्यापन के लिए ४०० वर्ष पुराने न्युटन के सिद्धांतो के बाहर जाकर सोचा था, तभी उन्हे सफलता मीली थी। लेकिन बाद मे उसी आइन्स्टाईन ने अपनी मान्यताओं के दायरे मे बंधे रह कर अनिश्चितता के सिद्धांत पर कहा था "भगवान पांसे नही खेलता"! आज हम जानते है कि आइन्सटाईन गलत थे!
ReplyDeleteis par zara aur raushni dalein...
Vo kaun se laws the, jinko Einstein ne galat prove kiya tha.... I want to know more about it...
aur BHAGWAAN PAASE NAHI KHELTA.......iska arth?
छद्म विज्ञानी matlab?
ReplyDeleteमै दावा करता हूं कि सूर्य मेरे आदेश से निकलता है, कोई इसे असत्य साबित कर के दिखाये !
ReplyDeleteJanaab !!! kabhi raat me sooraj nikaal ke dikhaaiye :)
चमत्कारों को ध्वस्त करती इतनी बढ़िया पोस्ट पहले नहीं पढ़ी. आभार आपका. आपकी अनुमति हो तो इसे अपने ब्लॉग पर ले जाऊँ.
ReplyDeleteन्युटन के गुरुत्व के नियम पूरी तरह से सहि नही है। वे बुध ग्रह की कक्षा की व्याख्या नही करते। उसके लिये सापेक्षतावाद का सिद्धान्त चाहीये। आइन्सटाईन ने थ्योरी आफ़ अनसर्ट्नीटी मानने से इन्कार किया था और कहा था भगवान पान्से नही खेलता। उन्होने अपने जीवन के 30 वर्ष(1925 - 1955) इसे झुठ्लाने मे लगाये।
ReplyDeleteरात मे सूरज निकालना! मुझे सोने के लिये समय चाहीये!
छद्म विज्ञानी - झूठे विज्ञानी! जो विज्ञान के तथ्यो को तोड मरोड कर अन्ध विश्वास को बढावा दे।
ReplyDeleteअच्छी जानकारी।
ReplyDeleteबधाई
--यह ठीक उसी तरह है जिस तरह इतनी लंबी,
ReplyDeleteमान्यता द्वारा निरिक्षण पर प्रभाव:---जैसा हर बात में वैज्ञानिक मान्यता का चश्मा चढाये लोग....उससे आगे नहीं सोच पाते..
--अंग्रेज़ी से अंतरित की गयी, शब्दों व वाक्यों से कन्फ्यूज़न उत्पन्न करने वाली पोस्ट को पढ़े बिना ही सब मान ही लेंगे कि अंधविश्वास पर लिखा है तो अच्छा ही होगा...
---१०० वर्ष पहले जीवाणु, परमाणु एक रहस्य हुआ करते थे। --ये किसने कह दिया ...जीवाणु, परमाणु तो १०००० हज़ार वर्ष पहले भी पता था..और आधुनिक युग में पिछली सदी में भी...
---कोलंबस का उदाहरण मान्यता का नहीं अपितु भूल का है और यहाँ अनावश्यक है...क्योंकि बाद में उसे व दुनिया को अपनी भूल का पता चल गया था...
उत्तम पोस्ट के लिए आभार
ReplyDeleteचमत्कार पर विश्वास क्यों करते हैं? इस विषय पर अच्छी प्रस्तुति। तर्क शास्त्र और तर्कशीलता का अभाव अवैज्ञानिक सोच को जन्म देता है। आपका लेख पढ़कर लगा कि इसके बाद लोगों की सोच में बदलाव आएगा।
ReplyDeleteउपयोगी और जानकारीपूर्ण लेख
ReplyDeleteभुषण जी,
ReplyDeleteकोई कापीराईट नही है, आप इसे अपने ब्लाग पर सहर्ष लगा सकते है।