..आखिर क्‍यों शुक्रवार को फिल्‍में ही रिलीज़ नहीं होतीं, प्रसव भी ज्‍यादा होते हैं?

  एक प्रसूति विज्ञान के माहिर का सुनाया हुआ यह मज़ाक खासा वजनी है मायने रखता है कि दुनिया भर में सबसे ज्यादा शल्य द्वारा प्रसव C-secti...

 
एक प्रसूति विज्ञान के माहिर का सुनाया हुआ यह मज़ाक खासा वजनी है मायने रखता है कि दुनिया भर में सबसे ज्यादा शल्य द्वारा प्रसव C-sections के मामले शुक्रवार को ही निपटाए जाते हैं वजह चिकित्सक सप्ताहांत में कोई बाधा नहीं चाहते आपातकालीन मामलों को छोड़ जिन्हें वे निपटाते हैं ..पूरा लुत्फ़ उठाना चाहतें हैं वीकेंड का, चिकित्सा नीति-शाश्त्र जाए चूल्हे में.

चिकित्सकों के अनुसार मुंबई में कुल 26 % मामले 2010 में प्रसव के शल्य द्वारा ही निपटाए गए हैं जबकि इनमे से कितने ही मामलों से बचा जा सकता था. इनके स्थान पर सामान्य प्रसव करवाया जा सकता था. बेशक गर्भावस्था के दौरान पेचीलापन हो सकता है वाजिब मामला बनता है ऐसे में शल्य द्वारा प्रसव करवाना लेकिन निजी अस्पतालों द्वारा द्रुत लाभ और लक्ष्य पूरा करने की लालसा भी इसकी बड़ी वजह बनी हुई है. 

प्रसव के दौरान ऑपरेशन की मुख्‍य वजहें:
बेशक महिला द्वारा एक न्यूनतम दर्द बर्दाश्त न कर पाना, इस सीमा का कमतर होते जाना threshold of pain का low होते जाना भी एक वजह बनता है. पेल्विस इन-कम्पेतिबिलिती (श्रोणी प्रदेश का संकरा होना, Narrow pelvic region) भी वजह बनता है C-section की. योनी का ठीक से दायलेट (विस्तारित), फैलाव न हो पाना भी एक वजह बनता है शल्य प्रसव की.

चिकित्सक खुद तस्दीक करतें हैं मानते समझतें हैं इस बात को. उनके लिए C-section संपन्न करवाना ज्यादा आसान ज्यादा प्रबंधनीय रहता है. उत्तर शल्य देखभाल का पूरा इंतजाम होता है. जबकि सामान्य प्रसव में महिला देर तक दर्द से कराहती है. औसतन 6-14 घंटा तक चलता है लेबर पैन. जबकि C -section घंटा भर में ही निपटा लिया जाता है. बल्कि इससे भी पहले ही. यही कहना है डॉ रेखा दावर का. आप महाराष्ट्र राज्य द्वारा संचालित जे.जे. अस्पताल में स्त्रीरोग खासकर प्रजनन सम्बन्धी स्त्री रोगों की माहिरा हैं. मुखिया भी हैं गाईनेकोलोजी विभाग की.

निजी अस्पतालों के पास सामान्य प्रसव को निपटाने का न धैर्य है न समय न नीयत न स्टाफ जो महिला की घंटों लेबर के दौरान तरीके से संभाल कर सके. उसे तसल्ली दे सके. उनका काम अपना काम झटपट निपटाना होता है. वर्तमान चिकित्सा अर्थशास्त्र इजाज़त नहीं देता एक मरीज़ को इतना समय दिया जाए.

लक्ष्य में रहता है लाभ और लक्ष्य. टारगेट्स निर्धारित अंक को छूने का.
ऐसे में activists मरीज़ को उकसाते हैं राजी करते हैं C -section के लिए. लाभ गिनाते हैं उलटा पाठ पढातें हैं. अस्पताल से उत्तर शल्य ज्यादा दिनों बाद छुट्टी मिलती है. सामान्य प्रसव में इतना लाभांश कहाँ? ऐसे में गैर-ज़रूरी शल्य किए जाते हैं. जिनकी कोई चिकित्सा नज़रिए से दरकार नहीं होती है. बेशक आखिरी फैसला मरीज़ का ही होता है लेकिन मरीजाएं अपनी माहिर की ही बात मानती हैं.

कुछ दूसरी वजहें भी बनती हैं C-section की:-
गर्भवती महिलाओं की नादानी ना समझी, कई खुद पूछती हैं क्या C-section नहीं किया जा सकता? वजह यह अज्ञान कि सामान्य प्रसव के बाद योनी की पेशियाँ अपनी लोच खोकर शिथिल हो जाएँगी. हम प्रसव पीड़ा और दर्द की पीएंगें, लहरें कैसे झेल पाएंगी? लेबर तो घंटों चलने वाला कर्म है प्रक्रिया है. झटपट निपटो काम से बच्चा पैदा करो आराम से.

शुभ दिन प्रसव का शुभ भविष्य फल के लिए भी उन्हें किसी ख़ास दिन के लिए C-section के चयन को उकसाता है. जबकि प्रसव कुछ असामान्य मामलों को छोडके एक कुदरती कार्य व्यापार है शरीर का. कबीले की औरतें बच्चा जनकर पीठ से बाँध चल पड़ती हैं. 

(Many surgical deliveries avoidable :Docs/Private hospitals have neither the time nor the staff to take care of a woman delivering for hours ,and so they may prescribe C-sections/Times City /TOI,MUMBAI,DEC7,2011,p4).

COMMENTS

BLOGGER: 21
  1. बिलकुल दुरूस्‍त फरमाया आपने। अगर डॉक्‍टर चाहें तो, ऐसे मामले कम किये जा सकते हैं। लेकिन सारा मामला पैसों का जो ठहरा।
    ------
    ..कितने लोग पढ़ते हैं किताब?
    आओ होली खेलें...

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  2. बहुत अच्छी जानकारी ।

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  3. बेहतरीन भाव पूर्ण सार्थक रचना,
    इंडिया दर्पण की ओर से होली की अग्रिम शुभकामनाएँ।

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  4. The source of this comment does not seems to be based on an epidemiological study in which data from various locations, sources, age groups, economic status, climatic zones could have been collected. This 'observational study' seems to be based only on sporadic data of deliveries collected from Govt. as well as privately managed hospitals. The study or observation is only indicative and not conclusive. Therefore, the suggestions based on these observations could also be misleading. It is suggested that only those studies need be taken into account that were published in peer reviewed, reputed journals and based on population data rather than hospital admissions, particularly on this issue.
    As regards fixing of Friday for release of feature films, it were based on certain fact which the film distributors had decided long ago. It was envisaged that if the film was released on this day i.e in the weekend it would attract maximum number of viewers and the earning could be escalated. People are in holiday mood and can spend three-four hours on Friday evening, Saturday and Sunday. There used to be three screenings of a movie on every day. However, a special show could be organized on Sunday with the permission of the DM. The motive, again, was monetary profit but public convenience was also taken into account.

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  5. साइंस ब्लोगर्स पर आपकी टिप्पणियों का सदैव ही स्वागत है .आपने जो बिंदु उठाए हैं उनसे हम सहमत है .लोक प्रिय विज्ञान संचारक के बतौर हमारा मंतव्य यहाँ एक प्रवृत्ति को उजागर करना रहा है आम की, ख़ास की, डॉ की ,मरीजा की .सुविधा की, आर्थिक लाभ की .हमने कोई शोध पत्र नहीं लिखा है न अपनी इतनी कूवत है .

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  7. Dear Sharma ji,
    To report about trends is OK. But it should be in the realm of fanatasy or fiction and not hard reporting. Your report can be categorized as 'tertiary reporting' i.e. someone wrote something based on a primary communication to which you did not have access to fully grasp the motive, relevance or methodology and for studying the facts incorporated in it. From the secondary report, which might have been modifed by the author with opinions or sentiments, you developed your own version by selectively picking up some piece of information. Although, the trends have beenalready well known for long but the new focus should have been -as to why its frequency or choice centered around 'Friday'? The basic question was not answered because you did not have access to the primary communication. I always impressed upon you to take care of this aspect before embarking on a new post in the blog. I hope this is enough for now. Good wishes.

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  8. महत्वपूर्ण पोस्ट और रणबीर जी ने इसमें जानकारी का एक और आयाम भी जोड़ दिया है.

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  9. 'published in peer reviewed, reputed journals and based on population data rather than hospital admissions'--
    ---Mr Ranvir sinh have you actually analysed & looked into the data given by reputed journals etc...those are also not very true but many adjusted one ...
    ----this reporting is not any fantasy or story but a real fact very common nowadays in society...
    ---- इस गलत परम्परा के लिये दोनों ही जिम्मेदार हैं...युवा व प्रोफ़ेशनल एवं अतिरिक्त धन पाने वाली महिलायें,पति-पत्नी एवं चिकित्सक गण...तथा मूल जिम्मेदार तो तो समाज का बाज़ार-भाव ही है....कोर्पोरेट सेक्तर की महत्ता बढ जाना ....अलक्ष्मी-पूजा की अतिशयता ....

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  10. It would have been appropriate to name the Journal, the author(s) the date on which the paper was published, particularly if a doctor opts to make a comment. I am not disputing any fact or pointing out towards a particular error(s) but only indicating that the absence of these aspects/factors, a news/feature report(s) in the press/blog influences the acceptability in the public mind. In order to generate or inculcate understanding of science in public mind, certain factors need to be taken into account such as pointed out by me. There is no need to be touchy about comments or becoming emotional as science communicators in India, particularly novices or enthusiasts that have not yet learnt about the other factors that influence writing/reporting too have committed errors, though inadvertently or due to lack of training or due to low level of understanding of real science and research. As soon as a piece of science communication is released for public reading, it snowballs into its domain and become a subject of critical evaluation as well as information and provokes for making critical observations or certain shortcoming when noticed. One would certainly like to know the constraints that made the blog-story a piece of casual information or humor and if the author or the supporters think that freedom of giving a particular shape to information goes unchecked or accepted without a value system, both are seriously wrong.

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  11. Why there is no response to my last comment posted yesterday at 10.55 AM?

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  12. Your point is well taken.,sir ,chill out .

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  13. विडम्बना यह है कि यहाँ लोग विज्ञान संचार और लोकप्रिय विज्ञान संचार में फर्क को सहज तरीके से आत्मसात नहीं कर पाते-कुछ भूल इस ब्लॉग के नामकरण में भी हुयी है और मैं भी इसका जिम्मेदार हूँ .....दरअसल ब्लॉग का नाम पॉपुलर साइंस ब्लागर्स असोसिएशन होना था -चूक यह हुयी कि साईंस ब्लागर्स असोसिएशन रख दिया गया ..
    यह हार्ड कोर साईंस रिपोर्टिंग की जगह नहीं है ...
    वीरू भाई अपनी जगह सही हैं डॉ रणवीर जी अपनी जगह
    बस परिप्रेक्ष्य का फर्क है ! मुझे आम लोगों की रूचि और विचार को कुरेदने के ऐसे प्रयास अच्छे लगते हैं!
    यहाँ विद्वानों की सम वयी समीक्षा की दरकार नहीं है !
    मैं अपने गाँव जा रहा हूँ -एक सप्ताह के लिए -होली मनाने
    साईंस ब्लागर्स के लेखकों ,पाठकों और सबाई परिवार को होली की रंगारंग शुभकामनायें!

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  14. प्रिय अरविन्द एवं वीरेन्द्र जी,

    आप दोनों ही ज्ञानियों और विज्ञान संचार के प्रति समर्पित रहने वाले व्यक्तियों ने मेरी तीखी टिप्पणियों के प्रति जो अभिवय्क्तियाँ दी हैं वे सही हैं लेकिन बात वहीँ फिर आती है कि विज्ञान में हल्का-फुल्का स्टाइल तो चलता है लेकिन भाषा ऐसी हल्की भी न हो कि जानकारी देने के चक्कर में तथ्य और सत्य दोनों की हानि हो जाये. शैली ऐसी भी न हो कि वैज्ञानिक जानकारी इतनी हल्की लगने लगे कि पढ़ने वाले लोग इसे एक परिहास ही समझें. लोगों को कौन सी भाषा समझ में आती है, इस पर बहुत बहस हो चुकी है. सही रास्ता है मुख्य भाषा के साथ लोकभाषा का सम्मिश्रण हो ताकि स्थानीय लोगों को वैज्ञानिक जानकारी रोचक लगे और वे उसे सहज में ही आत्मसात कर सके. अर्थात लम्बे समय तक याद भी रखें.

    दूसरी बात उचित सन्दर्भ की थी. मेरा कहना है कि विद्वत्समीक्षित प्राथमिक और मौलिक सन्दर्भ के आधार पर ही जन प्रिय लेखन होना चाहिये. न कि अखबार जैसे माध्यम से लोकरुचि विज्ञान का लेखन संपुष्ट हो! इसे विज्ञान संचारकों को समझ लेना चाहिये. विज्ञान संचार कोई खेल कि अथवा हल्के तजुर्बे करने कि वस्तु न बने. लिटरेरी तत्वों और स्वाद का समावेश इसमें इतना ही हो कि भाव को जानकारी के साथ मिला कर परोसने से मौलिक सन्देश विकृत न हो.

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  15. प्रिय अरविन्द एवं वीरेन्द्र जी,

    आप दोनों ही ज्ञानियों और विज्ञान संचार के प्रति समर्पित रहने वाले व्यक्तियों ने मेरी तीखी टिप्पणियों के प्रति जो अभिवय्क्तियाँ दी हैं वे सही हैं लेकिन बात वहीँ फिर आती है कि विज्ञान में हल्का-फुल्का स्टाइल तो चलता है लेकिन भाषा ऐसी हल्की भी न हो कि जानकारी देने के चक्कर में तथ्य और सत्य दोनों की हानि हो जाये. शैली ऐसी भी न हो कि वैज्ञानिक जानकारी इतनी हल्की लगने लगे कि पढ़ने वाले लोग इसे एक परिहास ही समझें. लोगों को कौन सी भाषा समझ में आती है, इस पर बहुत बहस हो चुकी है. सही रास्ता है मुख्य भाषा के साथ लोकभाषा का सम्मिश्रण हो ताकि स्थानीय लोगों को वैज्ञानिक जानकारी रोचक लगे और वे उसे सहज में ही आत्मसात कर सके. अर्थात लम्बे समय तक याद भी रखें.

    दूसरी बात उचित सन्दर्भ की थी. मेरा कहना है कि विद्वत्समीक्षित प्राथमिक और मौलिक सन्दर्भ के आधार पर ही जन प्रिय लेखन होना चाहिये. न कि अखबार जैसे माध्यम से लोकरुचि विज्ञान का लेखन संपुष्ट हो! इसे विज्ञान संचारकों को समझ लेना चाहिये. विज्ञान संचार कोई खेल कि अथवा हल्के तजुर्बे करने कि वस्तु न बने. लिटरेरी तत्वों और स्वाद का समावेश इसमें इतना ही हो कि भाव को जानकारी के साथ मिला कर परोसने से मौलिक सन्देश विकृत न हो.

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  16. विज्ञान कोई जड़ अवधारणा नहीं है .वह संभावनाओं के द्वार सदैव ही खुले रखता है न ही उसका जीवन की रागात्मकता या साहित्य से कोई विरोध है .विज्ञान गणित की तरह इति सिद्धं नहीं है .गणित भी गणित इतर भाषा का प्रयोग करता है .मान लीजिए अ बराबर ब,भले बाद में सिद्ध कर दे अ ,ब के बराबर हो ही नहीं सकता .तो मेरे मित्र पूरक का अपना महत्व है .जैसे आहार के साथ भी कई मर्तबा संपूरक की ज़रुरत पड़ती है .वह पूरक अखबार भी हो सकता है .लांसेट या नेचर भी .ऐसे ही सन्दर्भ सामिग्री कहीं से भी ली जा सकती है सवाल उसे bodh गामी ग्राहिय बनाने का है .जानकारी को अवरुद्ध करने का नहीं है आप विज्ञान की गेयता को नष्ट करने पर क्यों उतारू हैं आप जाने .

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  17. विज्ञान कोई जड़ अवधारणा नहीं है .वह संभावनाओं के द्वार सदैव ही खुले रखता है न ही उसका जीवन की रागात्मकता या साहित्य से कोई विरोध है .विज्ञान गणित की तरह इति सिद्धं नहीं है .गणित भी गणित इतर भाषा का प्रयोग करता है .मान लीजिए अ बराबर ब,भले बाद में सिद्ध कर दे अ ,ब के बराबर हो ही नहीं सकता .तो मेरे मित्र पूरक का अपना महत्व है .जैसे आहार के साथ भी कई मर्तबा संपूरक की ज़रुरत पड़ती है .वह पूरक अखबार भी हो सकता है .लांसेट या नेचर भी .ऐसे ही सन्दर्भ सामिग्री कहीं से भी ली जा सकती है सवाल उसे बोध गम्य, ग्राहिय बनाने का है .जानकारी को अवरुद्ध करने का नहीं है आप विज्ञान की गेयता को नष्ट करने पर क्यों उतारू ,हैं आप जाने .मैं इस पाप में भागे दार नहीं बन सकता .

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  18. विज्ञान कोई जड़ अवधारणा नहीं है .वह संभावनाओं के द्वार सदैव ही खुले रखता है न ही उसका जीवन की रागात्मकता या साहित्य से कोई विरोध है .आइन्स्टाइन की विशेष सापेक्षवाद की बुनियादी अवधारणा ,प्रकाश के निर्वातीय वेग की सर्वाधिकता ,नियत होना इस वेग का भी संशोधन के दायरे में बारहा आया है .आता रहेगा . विज्ञान गणित की तरह इति सिद्धं नहीं है .गणित भी गणित इतर भाषा का प्रयोग करता है .मान लीजिए अ बराबर ब,भले बाद में सिद्ध कर दे अ ,ब के बराबर हो ही नहीं सकता .तो मेरे मित्र पूरक का अपना महत्व है .जैसे आहार के साथ भी कई मर्तबा संपूरक की ज़रुरत पड़ती है .वह पूरक अखबार भी हो सकता है .लांसेट या नेचर भी .ऐसे ही सन्दर्भ सामिग्री कहीं से भी ली जा सकती है सवाल उसे बोध गम्य, ग्राहिय बनाने का है .यहाँ भी शुद्धता वाद , जानकारी को अवरुद्ध करने का नहीं है आप विज्ञान की गेयता को नष्ट करने पर क्यों उतारू ,हैं आप जाने .मैं इस पाप में भागे दार नहीं बन सकता .जन प्रिय विज्ञान का अपना मिजाज़ है .जन प्रिय विज्ञान का रथ शुद्धता वादियों के नाक भौं चढाने से रुकेगा नहीं .

    दैनिक हिन्दुस्तान की एक पूर्व प्रधान संपादिका ने भी एक मर्तबा ऐसी ही कोशिश की थी .सवाल उठाया था आइन्दा स्वास्थ्य ,स्वास्थ्य समाचार डॉक्टरी पेशे से जुड़े लोग ही लिखेंगें .मित्रवर आप ऐसी ही कोशिश में क्यों मुब्तिला हैं .विज्ञान किसी का पेटेंट नहीं बन सकता .एक खुली दृष्टि ज़रूर बन सकता है भारत जैसे देश के लिए विज्ञान को जन जन तक पहुंचाने वालों की उनके अपने मुहावरे में ज़रुरत सैदेव ही बनी रहेगी .आप भी इस यग्य में शामिल होइए .आप किनारा क्यों कर गए ?

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  19. विज्ञान के जन संचार का मुद्दा कई सवालों का उत्तर पाने को मुंह बाए खड़ा है ....एक मुद्दा अहमन्यता का है भी है- फलाने जो कह गए वही लकीर का फ़कीर हो गया ....हमें अपने अपने कवचों ,परिभाषाओं की जकडन से जन -विज्ञान को मुक्त कर उसे लोक गम्य बनाना होगा -विज्ञान संचारकों के लिए चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं और किसी न किसी कम्फर्ट जोन में पाँव पसारे,बाहें फैलाएं ,आराम कुर्सी पर विराजे हम सभी बस बौद्धिक जुगाली में लगे रहते हैं ...
    रणबीर भाई ,बीरू भाई इससे हमें निकलना पड़ेगा और वैचारिक सहिष्णुता की शुरुआत करनी होगी ..नहीं तो यहाँ अब जगजीत सिंह और नरेंद्र सहगल का कोई नामलेवा नहीं रहा हम किस खेत की मूली हैं... (बशर्ते वह जौनपुरी न हो-तथ्य यह है कि जौनपुरी मूली अपने आकार और वजन में सन्नाम है :) }

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  20. अरविन्द भाई आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूँ .फिर यह ब्लॉग की दुनिया है खुली किताब सी यहाँ मठाधीशों की मनमानी नहीं चलेगी .वैसे भी यह होलिस्टिक मेडिसन(Hol-is-tic Medicine).यहाँ इलाज़ व्यक्ति का करना पडेगा न की किसी बीमारी के लक्षणों का .

    नामचीन जौनपुरिया मूली आकार प्रकार में ही नहीं तात्विक दृष्टि से भी खनिज लवणों और एंटी -ओक्सिडेंट से भरपूर है .सब कुछ को पचा देती है और खुद अपचनीय बनी रहती है ऊपर से गुड खाना पड़ता है . वरना ग्रीन हाउस गैस बढ़ाती है .

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  21. There is basic difference in fictionalized science and evidence based science. I am not a hard-corist or preventing anyone to go his/her way in communicating. 'Bazaar hai bhai. Jisko lena hai lay nahin to aagay ka rasta daykhay' wali ukti yahan charitarth ho rahi deekhti hai. Naam main kya rakha hai, kaam sahi hona chahiyay. Kayam wahi rahega wahi jo param satya hai, jo shaswat hai. Aakhir hamaray manishion nay jo kaha hai woh ab tak khara khon hai? Ya to wah shaswat hai ya phir hum sach ko investigate karnay main asamarth rayay hain. Main Anpadhon ko vigyan ki jaankari 'majakia' shailey main danay ka samarthan nahin karta. yeh aik gambhir vishay hai.

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Name

- दर्शन लाल बावेजा,1,- बी एस पाबला,1,-Dr. Prashant Arya,2,-अंकित,4,-अंकुर गुप्ता,7,-अभिषेक ओझा,2,-अल्पना वर्मा,22,-आशीष श्रीवास्‍तव,2,-इन्द्रनील भट्टाचार्जी,3,-काव्या शुक्ला,2,-जाकिर अली ‘रजनीश’,56,-जी.के. अवधिया,6,-जीशान हैदर जैदी,45,-डा प्रवीण चोपड़ा,4,-डा0 अरविंद मिश्र,26,-डा0 श्‍याम गुप्‍ता,5,-डॉ. गुरू दयाल प्रदीप,8,-डॉ0 दिनेश मिश्र,5,-दर्शन बवेजा,1,-दर्शन लाल बवेजा,7,-दर्शन लाल बावेजा,2,-दिनेशराय द्विवेदी,1,-पवन मिश्रा,1,-पूनम मिश्रा,7,-बालसुब्रमण्यम,2,-योगेन्द्र पाल,6,-रंजना [रंजू भाटिया],22,-रेखा श्रीवास्‍तव,1,-लवली कुमारी,3,-विनय प्रजापति,2,-वीरेंद्र शर्मा(वीरुभाई),81,-शिरीष खरे,2,-शैलेश भारतवासी,1,-संदीप,2,-सलीम ख़ान,13,-हिमांशु पाण्डेय,3,.संस्‍था के उद्देश्‍य,1,।NASA,1,(गंगा दशहरा),1,100 billion planets,1,2011 एम डी,1,22 जुलाई,1,22/7,1,3/14,1,3D FANTASY GAME SPARX,1,3D News Paper,2,5 जून,1,Acid rain,1,Adhik maas,1,Adolescent,1,Aids Bumb,1,aids killing cream,1,Albert von Szent-Györgyi de Nagyrápolt,1,Alfred Nobel,1,aliens,1,All india raduio,1,altruism,1,AM,18,Aml Versha,1,andhvishwas,5,animal behaviour,1,animals,1,Antarctic Bottom Water,1,Antarctica,9,anti aids cream,1,Antibiotic resistance,1,arunachal pradesh,1,astrological challenge,1,astrology,1,Astrology and Blind Faith,1,astrology and science,1,astrology challenge,1,astronomy,4,Aubrey Holes,1,Award,4,AWI,1,Ayush Kumar Mittal,1,bad effects of mobile,1,beat Cancer,1,Beauty in Mathematics,1,Benefit of Mother Milk,1,benifit of yoga,1,Bhaddari,1,Bhoot Pret,3,big bang theory,1,Binge Drinking,1,Bio Cremation,1,bionic eye Veerubhai,1,Blind Faith,4,Blind Faith and Learned person,1,bloggers achievements,1,Blood donation,1,bloom box energy generator,1,Bobs Award,1,Breath of mud,1,briny water,1,Bullock Power,1,Business Continuity,1,C Programming Language,1,calendar,1,Camel reproduction centre,1,Carbon Sink,1,Cause of Acne,1,Change Lifestyle,1,childhood and TV,1,chromosome,1,Cognitive Scinece,1,comets,1,Computer,2,darshan baweja,1,Deep Ocean Currents,1,Depression Treatment,1,desert process,1,Dineshrai Dwivedi,1,DISQUS,1,DNA,3,DNA Fingerprinting,1,Dr Shivedra Shukla,1,Dr. Abdul Kalam,1,Dr. K. N. Pandey,1,Dr. shyam gupta,1,Dr.G.D.Pradeep,9,Drug resistance,1,earth,28,Earthquake,5,Einstein,1,energy,1,Equinox,1,eve donation,1,Experiments,1,Facebook Causes Eating Disorders,1,faith healing and science,1,fastest computer,1,fibonacci,1,Film colourization Technique,1,Food Poisoning,1,formers societe,1,gauraiya,1,Genetics Laboratory,1,Ghagh,1,gigsflops,1,God And Science,1,golden number,2,golden ratio,2,guest article,9,guinea pig,1,Have eggs to stay alert at work,1,Health,70,Health and Food,14,Health and Fruits,1,Heart Attack,1,Heel Stone,1,Hindi Children's Science Fiction,1,HIV Aids,1,Human Induced Seismicity,1,Hydrogen Power,1,hyzine,1,hyzinomania,1,identification technology,2,IIT,2,Illusion,2,immortality,2,indian astronomy,1,influenza A (H1N1) virus,1,Innovative Physics,1,ins arihant,1,Instant Hip Hain Relief,1,International Conference,1,International Year of Biodiversity,1,invention,5,inventions,30,ISC,2,Izhar Asar,1,Jafar Al Sadiq,1,Jansatta,1,japan tsunami nature culture,1,Kshaya 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Science Bloggers' Association: ..आखिर क्‍यों शुक्रवार को फिल्‍में ही रिलीज़ नहीं होतीं, प्रसव भी ज्‍यादा होते हैं?
..आखिर क्‍यों शुक्रवार को फिल्‍में ही रिलीज़ नहीं होतीं, प्रसव भी ज्‍यादा होते हैं?
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