वायरलेस सेंसर नेटवर्क के उपयोग तथा इसके सामने आने वाली चुनौतियों का विश्लेषण करता एक महत्वपूर्ण आलेख।
संक्षेप- वायरलेस सेंसर नेटवर्क आधुनिक शोध का एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें पिछले 15 वर्षों से लगातार अनेक प्रकार के शोध हो रहे हैं फिर भी इसकी कुछ समस्याएं अभी भी बरकरार हैं जिनके समाधान के लिए अभी भी शोधकर्ता रिसर्च में लगे हुए हैं। आज वायरलेस सेंसर नेटवर्क का अनेक क्षेत्रों में प्रयोग किया जाता है। हालांकि ये नेटवर्क अभी हम लोगों की दुनिया से थोड़ा अनछुआ है क्योंकि इसका प्रयोग हमारे जीवन में अन्य नेटवर्क जिनके संपर्क में हम अक्सर रहते हैं जैसे कि बैंकिंग नेटवर्क, मोबाइल फ़ोन नेटवर्क, इंटरनेट आदि की तरह नहीं है, फिर भी इसका अपना एक विशेष महत्व है जिसके बारे में हमको जानना चाहिए। इस आलेख में वायरलेस सेंसर नेटवर्क, सेंसर नोड की संरचना, सेंसर नेटवर्क के अनुप्रयोगों और सेंसर नेटवर्क से जुडी कुछ प्रमुख समस्याओं से अवगत कराया गया है।
वायरलेस सेंसर नेटवर्क संरचना |
जहां पर सेंसर नेटवर्क स्थापित किया जाता है, ये सेंसर नोड्स वातावरण से सम्बंधित जानकारी को सेन्स करके एक बेस स्टेशन (मेन डेटा एक्सेस पॉइंट और यन्त्र) तक पहुंचाते हैं जहां पर सभी सेंसर नोड्स के द्वारा भेजी गयी जानकारी एकत्रित होती है। अब इस बेस स्टेशन से ये जानकारी इंटरनेट और अन्य नेटवर्क की मदद से नेटवर्क के उपयोगकर्ता के कंप्यूटर तक पहुंच जाती है। इस प्रकार उपलब्ध की गयी इन जानकारी की मदद से वातावरण की गतिविधियों पर नजर रख सकते हैं और उसे नियंत्रित कर सक सकते हैं। सेंसर नोड्स को वातावरण में दो प्रकार से स्थापित किया जा सकता है या तो रेंडमली किसी भी लोकेशन पर या फिर Two Dimensional फील्ड में एक फिक्स्ड लोकेशन पर X और Y अक्षों के निर्देशांकों के अनुसार। ये मुख्यत: उस एप्लीकेशन पर निर्भर करता है कि आप किस प्रकार के वातावरण के लिए सेंसर नेटवर्क प्रयोग कर रहे हैं।
सेंसर नोड की संरचना- सेंसर नोड की संरचना को चित्र 02 में दर्शया गया है किसी भी सेंसर नोड्स में मुख्यत: चार यूनिट्स होती हैं जोकि इस प्रकार हैं-
- सेंसिंग यूनिट- सेंसिंग यूनिट किसी भी सेंसर नोड की सबसे प्रमुख यूनिट है जो कि वातावरण के डेटा जैसे तापमान, नमी, धुल इत्यांदि से सम्बंधित जानकारी को एकत्रित करती है। सेंसिंग यूनिट में एक ADC होता जो कि एनालॉग सिग्नल के रूप में मिली जानकारी को डिजिटल सिग्नल में रूप में आगे भेजता है क्योंकि कंप्यूटर डिजिटल सिग्नल को ही समझता है।
- पावर यूनिट- पावर यूनिट किसी भी सेंसर नोड की वह यूनिट है जोकि सेंसर नोड को एक्टिव रखने के लिए उसको ऊर्जा प्रदान करती है जोकि एक बैटरी होती है। इसको रिप्लेस करना या रिचार्ज करना मुश्किल है जोकि सेंसर नेटवर्क की एक समस्या है।
- प्रोसेसिंग यूनिट- प्रोसेसिंग यूनिट वातावरण से ली गयी जानकारी पर कुछ विशेष प्रकार की गणना और ऑपरेशन करने में सहायक है। इस प्रोसेसिंग यूनिट के साथ ही एक स्टोर्ज यूनिट भी होती है जहां पर सेन्स की गयी जानकरी मौजूद रहती है।
- ट्रान्सीवर यूनिट- ट्रान्सीवर के एक प्रकार की रेडियो यूनिट है जो डेटा के संचार में प्रयोग होती है, जिसकी मदद से सेंसर नोड एक दुसरे को डेटा आदान प्रदान करते हैं और नेटवर्क के बेस स्टेशन को भेजते हैं। हर सेंसर नोड की एक रेडियो रेंज होती है और वह सेंसर नोड उस रेंज में आने वाले सेंसर नोड से ही डेटा का आदान प्रदान कर सकता है।
सेंसर नोड के प्रमुख घटक (यूनिट)
आजकल उपलब्ध कुछ आधुनिक सेंसर नोड्स में इनके अलावा कुछ अन्य यूनिट भी होती हैं जिनको विशेष प्रकार के एप्लीकेशन के लिया बनाया गया है। जैसे कि चित्र में "लोकेशन फाइंडिंग सिस्टम" नाम की एक यूनिट है जिसका उपयोग मुख्यत: डायनामिक सेंसर नेटवर्क में लगे सेंसर नोड्स में सेंसर नोड्स की लोकेशन का पता लगाने के लिए होता है।
वायरलेस सेंसर नेटवर्क के अनुप्रयोग- आज के समय में वायरलेस सेंसर नेटवर्क को सफलतापूर्वक अनेक क्षेत्रो में प्रयोग किया जा रहा है जिनमे कुछ प्रमुख प्रयोग निम्न प्रकार से हैं-
- वातावरण नियंत्रण- वायरलेस सेंसर नेटवर्क वातावरण में मुख्यत: वायु प्रदुषण और जल प्रदुषण को नियंत्रित करने के लिए प्रयोग किया जाता है। वातावरण में धूल, स्वच्छ वायु की मात्रा का पता लगाने के लिए इसका उपयोग किया जाता है जिसको नेटवर्क में लगे सेंसर नोड सेन्स करते हैं। किसी क्षेत्र में उपलब्ध पानी के श्रोत जैसे तालाब, नदी आदि में पानी के अंदर में पानी की गुणवत्ता का पता लगाने के लिए अंडरवाटर वायरलेस सेंसर नेटवर्क बनाया जाता है जिसमे विशेष प्रकार के सेंसर नोड लगे होते हैं जो अंडरवाटर कार्य करने में समर्थ हो।
- हेल्थ मॉनिटरिंग- आज के समय में सेंसर नोड्स को वायरलेस बॉडी एरिया नेटवर्क के साथ प्रयोग करके मरीज की सेहत से सम्बंधित जानकारियों को हॉस्पिटल में डॉक्टर के कक्ष तक पहुंचाया जा सकता है और इन सेंसर नोड्स की मदद से किसी इमरजेंसी कंडीशन के बारे में डॉक्टर को अलर्ट किया जा सकता है ताकि समय पर मरीज की हालत को सुधार जा सके।
- आपदा प्रबंधन- आपदा प्रबंधन में भी वायरलेस सेंसर नेटवर्क की मदद ली जाती है। जंगल में आग या बाढ़ जैसी घटनाओं पर काबू पाने के लिए सेंसर नेटवर्क को स्थापित किया जाता है जिसमें लगे सेंसर नोड्स इन चीजो को डिटेक्ट करते हैं और प्रबंधनकर्ता को इसके बारे में अलर्ट करते हैं। इतना ही नहीं बल्कि कुछ बड़ी इमारतों में में भी सेंसर नेटवर्क स्थापित किये जाते हैं जोकि भूकम्प जैसी आपदा के बारे में अलर्ट करने में सहायक होते हैं।
- मिलिट्री- आजकल मिलिट्री में भी वायरलेस सेंसर नेटवर्क का उपयोग बढ़ रहा है। युद्ध क्षेत्र में सैनिक बलों की मौजूदगी, टैंकर और वाहनों के मूवमेंट आदि पर नजर रखने के लिए सेंसर नेटवर्क्स काम आते हैं। साथ ही साथ केमिकल एंड बायोलॉजिकल बम डिटेक्शन, परमाणु बम आदि के लिए भी न्युक्लेअर क्षेत्र में वायरलेस सेंसर नेटवर्क का उपयोग होता है।
- औधोगिक क्षेत्र- कुछ इंडस्ट्रीज अपने प्रोडक्ट की गुणवत्ता के लिए उसके मैन्युफैक्चरिंग प्रोसेस को नियतंत्रित करने के लिए सेंसर नेटवर्क का प्रयोग करती हैं जैसे कि ऑयल रिफायनरी में प्रयोग होने वाले पाइपों की दशा को मॉनिटर करने में सेंसर नोड्स का प्रयोग किया जाता है ताकि उचित समय पर उनकी लाइफ को बढ़ाया जा सके। इसके अलावा कुछ अन्य प्रकार के केमिकल प्लांट्स में भी सेंसर नेटवर्क का प्रयोग होता है।
वायरलेस सेंसर नेटवर्क की प्रमुख समस्याएं- जहां एक तरफ वायरलेस सेंसर नेटवर्क इतना उपयोगी है वहीं दूसरी तरफ इसके उपयोग में कुछ समस्याएं भी आती हैं जिनको दूर करने के लिए शोधकर्ता नए नए प्रोटोकॉल बना रहे हैं। इसके उपयोग में कुछ आने वाली प्रमुख समस्याएं जिनको हम चैलेंज भी कह सकते हैं इस प्रकार हैं-
- सीमित बैटरी ऊर्जा- सेंसर नोड में एनर्जी मुख्यत: उसको एक्टिव रखने के लिए, एक नोड को दुसरे नोड से डेटा प्राप्त करने के लिए, सेन्स की गयी जानकारी को दुसरे नोड तक पहुचाने में खर्च होती है। उस नोड को यह ऊर्जा एक बैटरी के द्वारा मिलती है। इस बैटरी को रेप्लेस या रीचार्ज करना बहुत मुश्किल होता है इसलिए शोधकर्ता ऎसे प्रोटोकॉल और प्रोग्राम बना रहे रहे हैं ताकि डेटा ट्रांसमिशन में कम से कम एनर्जी खर्च हो और नोड की लाइफटाइम को भी बढ़ाया जा सके।
- डेटा सेक्युरिटी- सेंसर नेटवर्क में जब नोड्स आपस में डेटा का आदान-प्रदान करते हैं तब उस डेटा की सिक्योरिटी के लिए उपाय होना बहुत जरूरी है। इस बात को ध्यान में रखते हुए शोधकर्ताओं ने कुछ सिक्योरिटी प्रोटोकॉल बनाये हैं जिनकी मदद से डेटा को सुरक्षित रूप से भेजा जा सकता है। अभी और अधिक सिक्योरिटी वाले प्रोटोकाल पर शोधकर्ता शोध कर रहे हैं।
- डेटा रिडनडेंसी- कभी-कभी आसपास के दो या अधिक सेंसर नोड्स दवारा वातावरण से सेन्स किये गए डेटा में काफी समानता होती है जिससे बेस स्टेशन पर डेटा रिडनडेंसी हो जाती है इस समस्या को दूर करने के लिए शोधकर्ताओं द्वारा डेटा एग्रीगेशन प्रोटोकॉल बनाये गए है और अभी भी इन पर शोध हो रहे हैं. डेटा एग्रीगेशन की मदद से डेटा रिडनडेंसी को काम करके उसकी गुणवत्ता को बढ़ाया जा सकता है ताकि काम की जानकारी ही प्रयोगकर्ता तक पहुंचे।
निष्कर्ष- वायरलेस सेंसर नेटवर्क एक आधुनिक सेंसर नेटवर्क है जिसका अनेक क्षेत्रो में प्रयोग किया जाता है और वातावरण से जुडी समस्यों को हल/नियंत्रित किया जाता है। यह एक आधुनिक शोध का क्षेत्र है। एनर्जी की खपत को कम करना, डेटा सिक्योरिटी, डेटा एग्रीगेशन, लोकलाइजेशन प्रॉब्लम को दूर करना आदि सेंसर नेटवर्क के प्रमुख शोध क्षेत्र हैं, जिन पर आज के समय में कम हो रहा है। आने वाले वर्षो में सेंसर नेटवर्क को और भी क्षेत्रों जैसे कृषि में प्रयोग किया जा सकता है।
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लेखक परिचय:
मनोज कुमार युवा एवं उत्साही लेखक हैं तथा 'साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन' के सक्रिय सदस्य के रूप में जाने जाते हैं।
आप जून 2009 से ब्लॉग जगत में सक्रिय हैं और नियमित रूप से अपने ब्लॉग 'डायनमिक' एवं 'कंप्यूटर साइंस जंक्शन' के द्वारा विज्ञान संचार को मुखर बना रहे हैं।
इसके अलावा आपके लेख हिन्दी की सर्वाधिक लोकप्रिय विज्ञान पत्रिका 'साइंटिफिक वर्ल्ड' में भी पढ़े जा सकते हैं।
आप जून 2009 से ब्लॉग जगत में सक्रिय हैं और नियमित रूप से अपने ब्लॉग 'डायनमिक' एवं 'कंप्यूटर साइंस जंक्शन' के द्वारा विज्ञान संचार को मुखर बना रहे हैं।
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वायरलेस सेंसर नेटवर्क निश्चय ही बेहद उपयोगी है और आने वाले दिनों में इसका प्रयोग दिन दूनी रात चौगुनी गति से बढ़ना ही है। अापने इस लेख के माध्यम से बेहद उपयोगी जानकारी उपलब्ध कराई है। शुक्रिया।
ReplyDeleteबहुत उपयोगी व ज्ञानवर्धक प्रस्तुति ....
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