History and Facts of Organ Transplantation in Hindi
आज के समय में चिकत्सा के क्षेत्र में ट्रांसप्लांट तकनीक का अपना विशेष महत्व है। ट्रांसप्लांट तकनीक की मदद से आज शरीर के विशेष अंगो का प्रतिरोपण संभव हो पाया है। इस तकनीक में एक व्यक्ति के शरीर के अंगो को दुसरे व्यक्ति को लगाकर उपचार किया जाता है। कुछ ऐसे व्यक्ति जिनके शरीर के कुछ अंग काम नही कर पाते थे आज वही व्यक्ति इस तकनीक की मदद से फिर से सही से अपने दैनिक कार्यो को कर पा रहे हैं। इस लेख में समय के साथ साथ चिकत्सा के क्षेत्र में ट्रांसप्लांट तकनीक की मदद से शरीर के प्रमुख अंगो के सफल प्रतरोपण के बारे में बताया गया है।
वैसे तो आधुनिक ट्रांसप्लांट तकनीक की शुरुवात 1800 से 1900 की बीच ही शुरू हो गयी थी। लेकिन इसको सही मायनो में पहचान और सफलता 1900 की बाद मिलनी शुरू हुयी। 1900 के बाद से अब तक समय के साथ साथ ट्रांसप्लांट तकनीक के द्वारा मानव शरीर की प्रमुख अंगो का प्रतिरोपण कर नया जीवन मिल पाया है। कुछ प्रमुख अंगो का सफल प्रतिरोपण कब और किसके दवारा संभव हुआ, यह इस प्रकार है-
- 1902 में Dr Alexis Carrel ने दो रक्त वाहिनियों को आपस में जोड़कर एक सफल प्रयोग किया जो की शरीर के अंगो के प्रतिरोपण के लिए एक प्रमुख पड़ाव था। Dr Alexis Carrel ने अगो के प्रतिरोपण के लिए काफी शोध किये और एक ऐसी मशीन को बनाया जिसकी मदद से ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया के दौरान अंगो को शरीर से अलग जीवित रखा जा सकता था। Dr Alexis Carrel को चिकत्सा क्षेत्र में नोबेल प्रुस्कार मिला।
- दिसंबर 1905 में Dr. Edward Zirm ने पहली बार कॉर्निया (आँख की पुतली की रक्षा करने वाला सफेद सख्त भाग) का सफलतापूर्वक प्रतिरोपण किया।
- 1948 में नेशनल हेल्थ सर्विस का गठन किया, जिसने ट्रांसप्लांट तकनीक के क्षेत्र में अनेक शोध और महत्वपूर्ण कार्य किये।
- 1954 में Dr. Joseph E. Murray ने "Peter Brent Brigham Hospital, Boston, Massachusetts" में किडनी का सफलपूर्वक प्रतिरोपण किया। जो की ट्रांसप्लांट तकनीक के क्षेत्र में एक बहुत बड़ा मुकाम साबित हुआ। आज के समय में प्रतिरोपण होने वला एक प्रमुख अंग किडनी है। जो लोगो को नया जीवन देने में सक्षम है।
- 1963 में Dr Thomas Starzl ने दुनिया में पहली बार यकृत (लीवर) का प्रतिरोपण हुआ। लेकिन जिस व्यक्ति को लीवर लगाया गया वह जयदा समय तक जीवित नही बच सका। जिसका कारण उस समय पर इसके लिए कुछ जरूरी दवाओ का न होना पाया गया। बाद में कुछ ऐसी दवाओ और तकनीक को बनाया गया जिसकी मदद से प्रतिरोपित हुए लीवर को एक लम्बे समय तक जीवित रखा जा सके और फिर 1967 में पहला सफल लीवर ट्रांसप्लाटं हुआ।
- 1964 में Dr. James Hardy (University of Mississippi, Jackson) द्वारा पहली बार फेफड़े का सफल प्रतिरोपण किया गया।
- 1967 में Dr. Christian Barnard, (Groote Schur Hospital, Cape town, South Africa) ने दिल का सफल प्रतिरोपण किया गया।
- 1969 में Dr. Lillche, (University of Minnesota, Minneapolis) ने पाचक ग्रंथि का सफल प्रतिरोपण किया।
- 2006 में Dr Eric M. Genden ने "Mount Sinai Hospital, New York" में जबड़े का सफल प्रतिरोपण किया।
- 2008 में Dr Edgar Biemer, Christoph Höhnke और Manfred Stangl ने "Technical University of Munich, Germany" में दोनों भुजाओ का सफल प्रतिरोपण।
- 2008 में पहली बार प्रतिरोपित किये अंडाशय से बच्चे का जन्म हुआ।
- 2010 में Dr Joan Pere Barret और उनकी टीम ने "Hospital Universitari Vall d'Hebron , Barcelona " Spain. में पूरे चेहरे का सफलतापूर्वक प्रतिरोपण किया।
- 2011 में Dr. Cavadas and team ने Valencia's Hospital La Fe, Spain में दोनों टांगो का सफल प्रतिरोपण किया।
उपरोकत के अलावा अभी हाल ही (फ़रवरी 2015) में "Turin Advanced Neuromodulation Group" के एक इटालियन सर्जन Dr Sergio Canavero ने ये दवा किया है कि आने वाले दो सालो के भीतर ट्रांसप्लांट तकनीक की मदद से मानव के सर का प्रतिरोपण भी संभव हो सकेगा।
अभी 13 मार्च 2015 को ट्रांसप्लांट तकनीक के क्षेत्र में एक और नयी सफलता हासिल की गयी। दक्षिण अफ्रीका में वहा की राजधानी केपटाउन में दुनिया की पहली सफल पेनिस ट्रांसप्लांट सर्जरी की गई। राजधानी केपटाउन में 'टाइगरबर्ग अस्पताल' में स्टेलनबोश यूनिवर्सिटी के सर्जन्स की टीम ने ऑपरेशन के पूरी तरह से सफल होने के बाद शुक्रवार को इसकी खबर दी । बताया कि 21 साल के मरीज का पेनिस तीन साल पहले खतना करते हुए कट गया था। गत वर्ष 2014 में 11 दिसंबर को ऑपरेशन किया गया था और इसमें नौ घंटे का समय लगा। इसके बाद बीते तीन महीने से यह गहन जांच रखा गया था। डॉक्टर्स के मुताबिक, अब पूरी तरह से रिकवरी हो चुकी है। पेनिस के सभी फंक्शन ठीक हैं। डॉक्टर्स ने एक बीमार डोनर से यह पेनिस लिया गया था।
इस प्रकार ट्रांसप्लांट तकनीक के क्षेत्र में दिन प्रतिदिन बढ़ती कामयाबी को देखकर हम यह कह सकते हैं कि आने वाले समय में ट्रांसप्लांट तकनीक के क्षेत्र में मानव शरीर से जुडी नयी नयी सफलताओ को हासिल करने की उम्मीद है। चिकत्सा के क्षेत्र में ट्रांसप्लांट तकनीक ने आज हतास और निराश हुए मानव को एक नया जीवनदान दिया है। आज लगभग शरीर के सभी अंगो का प्रतिरोपण हो पाना संभव हो गया है। विदेशो में तो हर वर्ष काफी लोग इस तकनीक की मदद से नयी जिंदगी का अनुभव करते हैं।
लेकिन फिर भी काफी बीमार लोग पैसो की कमी के कारण इस तकनीक का लाभ नही उठा पाते और नतीजन मौत की चपेट में आ जाते हैं ,भारत में तो ऐसे लोगो की संख्या कुछ जयदा ही है। तो क्या ये तकनीक केवल धनवान लोगो की लिए ही है ? क्या बीमार गरीब लोगो को आने वाले समय इसका कुछ लाभ मिल पायेगा? क्या वो भी एक नया जीवन जी पायेगे ? जहा एक तरफ चिकित्सा की क्षेत्र में बढ़ती सफलताओ को देखकर ख़ुशी होती है वही कुछ ऐसे ही सवाल मष्तिस्क में एक दुःख भरी आहट भी छोड़ देते हैं।
लेकिन फिर भी काफी बीमार लोग पैसो की कमी के कारण इस तकनीक का लाभ नही उठा पाते और नतीजन मौत की चपेट में आ जाते हैं ,भारत में तो ऐसे लोगो की संख्या कुछ जयदा ही है। तो क्या ये तकनीक केवल धनवान लोगो की लिए ही है ? क्या बीमार गरीब लोगो को आने वाले समय इसका कुछ लाभ मिल पायेगा? क्या वो भी एक नया जीवन जी पायेगे ? जहा एक तरफ चिकित्सा की क्षेत्र में बढ़ती सफलताओ को देखकर ख़ुशी होती है वही कुछ ऐसे ही सवाल मष्तिस्क में एक दुःख भरी आहट भी छोड़ देते हैं।
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लेखक परिचय:
मनोज कुमार युवा एवं उत्साही लेखक हैं तथा 'साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन' के सक्रिय सदस्य के रूप में जाने जाते हैं।
आप जून 2009 से ब्लॉग जगत में सक्रिय हैं और नियमित रूप से अपने ब्लॉग 'डायनमिक' के द्वारा विज्ञान संचार को मुखर बना रहे हैं।
इसके अलावा आपके लेख हिन्दी की सर्वाधिक लोकप्रिय विज्ञान पत्रिका 'साइंटिफिक वर्ल्ड' में भी पढ़े जा सकते हैं।
आप जून 2009 से ब्लॉग जगत में सक्रिय हैं और नियमित रूप से अपने ब्लॉग 'डायनमिक' के द्वारा विज्ञान संचार को मुखर बना रहे हैं।
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Atyant jaankariparak evam upyogi lekh, Aabhar.
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