अंटार्कटिका (Antarctica) पर जाए जाने वाले अद्भुत जीवों का परिचय।
अंटार्कटिका का ठंडा महासागर जीवन के विविध रूपों से भरा है। बेहद ठण्ड में कोई भी जीवित प्राणी वैसे ही मर जाता है, जैसे पहाडों में सर्दी के मौसम में ठण्ड से पाइप फट जाते हैं। फ़िर शून्य से भी नीचे तापमान पर जीव जंतु कैसे रह पाते है यहाँ? पहाडो पर पाइप को फटने से बचने का सबसे कारगार तरीका यह अपनाया जाता है कि इस पर या तो कम्बल लपेट दिया जाए या कुछ गहरे बड़े पत्ते, ताकि वह उनकी गर्मी से फटने से बच सके। ठीक यही तरीका यहाँ के जीव जंतु अपनाते हैं वह अपने शरीर को चर्बी की मोटी से मोटी परत में लपेट लेते हैं और भीतर के खून को गर्म बनाए रखते हैं। तरह तरह की पेंगुइन, सील, व्हेल चर्बी के इसी कम्बल को ओढ़ कर जिंदा रहते हैं इतनी ठंड में।
कुछ प्रजातियों में तो यह परत कई लगभग 5 या 6 इंच तक मोटी हो जाती है। पर पक्षी इतना मोटा कम्बल ले कर उड़ नहीं सकते हैं, सो यहाँ के पक्षी इस से एक कदम और भी आगे चले गए हैं, वह अन्दर चर्बी का एक हल्का सा कम्बल लपटते हैं और उसके ऊपर पंखों का बना हुआ एक स्लीपिंग बैग भी ओढ़ लेते हैं और मजे से यहाँ रहते हैं। यह तरीका तो उनके लिए है जिनका खून हमारी तरह गर्म है, पर बहुत से ऐसे प्राणी भी हैं, जिनका खून गर्म नहीं होता। जैसे काई के अधिकतर पौधे अधिक ठण्ड पड़ने पर अपने भीतर का सारा पानी निकाल दते हैं और ख़ुद को सुखा लेते हैं और अगली गर्मी आने पर पानी का स्पर्श पाते ही फ़िर से हरे हो जाते हैं।
यहाँ पर रहने वाली मछलियों ने अपने खून में कुछ इस तरह के रसायन विकसित कर लिए हैं जो जीरो से नीचे तापमान होने पर भी अपने खून को जमने नही देती हैं। आइये यहाँ के विचित्र पौधे और कीडों को विषय में कुछ जानें।
सूक्ष्म पौधे और कीड़े:
यहाँ तैरते आइस पेकैस के नीचे कई तरह के शैवाल पैदा होते हैं, जो गर्मी के मौसम में खूब पनपते हैं और यहाँ रहने वाले कीडों के लिए भोजन का जरिया बनते हैं। हर पेकैस के नीचे एक पीली काई का खेत होता है जिनको चरते हैं यहाँ के विचित्र प्राणी क्रिल।
क्रिल (Antarctic Krill):
यह अंटार्कटिका जीवन का आधार है। यह नाम नार्वे से आया है, जिसका मतलब है व्हेल का भोजन। यह एक तरह का छोटा झींगा होता ह। यह इतना पारदर्शी होता है कि इसके पेट में पड़ा काई का चारा तक देखा जा सकता है। यह विशाल समूहों में सागर की सतह पर तैरते रहते हैं। गर्मी का मौसम इनके लिए दावत का मौसम होता है, जब हर पकैस के नीचे काई की खेत होते हैं। इस खाने को खा कर क्रिल बढ़ते जाते हैं और जनवरी तक आते-आते यह एक विशाल समूह में तब्दील हो जाते हैं, जो कई कई किलोमीटर तक फैला हो सकता है।
यह अंटार्कटिका जीवन का आधार है। यह नाम नार्वे से आया है, जिसका मतलब है व्हेल का भोजन। यह एक तरह का छोटा झींगा होता ह। यह इतना पारदर्शी होता है कि इसके पेट में पड़ा काई का चारा तक देखा जा सकता है। यह विशाल समूहों में सागर की सतह पर तैरते रहते हैं। गर्मी का मौसम इनके लिए दावत का मौसम होता है, जब हर पकैस के नीचे काई की खेत होते हैं। इस खाने को खा कर क्रिल बढ़ते जाते हैं और जनवरी तक आते-आते यह एक विशाल समूह में तब्दील हो जाते हैं, जो कई कई किलोमीटर तक फैला हो सकता है।
इनमें सबसे मजेदार बात यह है, जो अन्य किसी प्राणी में देखने में नही आती है, गर्मी में तो इन्हें खूब खाना मिलता है, पर सर्दी के मौसम में इनको भोजन नही मिलता। इनको प्रयोगशालाओं में रख कर देखा गया, तो यह बिना भोजन के भी सात महीने तक जिंदा रह लेते हैं। इसका रहस्य यह है कि यह जिंदा रहने के लिए अपनी केंचुल बदल कर छोटे हो जाते हैं। क्रिल के छोटे बच्चे की तरह और अपने ही शरीर के बाकी हिस्से को खा कर जिंदा रहते हैं और गर्मी आने पर वापस व्यस्क हो जाते हैं।
इस तरह यह अपने जीवनकाल यानी जोकि सिर्फ़ दस साल का होता है, हर साल ऐसा करते हैं उसके बाद इन पर बुढापा आ जाता है और यह बच्चा बनने की क्षमता खो देते हैं और मर जाते हैं। यही जीव यहाँ रहने वाले दूसरे जीवों का आधार है। पेंगुइन, सील, व्हेल और तरह तरह के पक्षी इन्हें खाते हैं। यह गर्मो होने पर इसी मकसद से आते हैं कि खाओ-खाओ जितनी क्रिल खा सकते हैं।
एक वैज्ञानिक अनुसंधान के आधार पर कहा गया है कि क्रिल का जीवन दस साल का होता है। आज हमारी धरती पर खेती और पशुपालन होने पर भी भुखमरी की समस्या है। वैज्ञानिको के अनुसार यहाँ इतना क्रिल है कि सारी दुनिया की भूख को खत्म किया जा सकता है। जापान रूस आदि देशों ने तो इनको बड़े पैमानों पर पकड़ना भी शुरू कर दिया है। पर यदि यही रहा तो व्हेल और सील का क्या होगा। इसके लिए भी कुदरत ने इंतजाम कर रखा है।
तीन कारणों से इनका शिकार करना मुश्किल है। एक तो पकड़े जाने पर यह बहुत जल्दी मर जाते हैं। इसी वजह से इनको तत्काल डिब्बा बंद करना जरुरी है, जो अभी वहां संभव नही हो पा रहा है। दूसरा क्रिल के बाहरी खोल में भारी मात्र में फ्लोराइड होता है, जो क्रिल के पकड़े जाने पर उसके मर जाने के कारण फैलने लगता है और यह इन्सान के लिए हानिकारक होता है। इसलिए जल्द से जल्द इसके खोल को हटाना जरुरी होता है, जो किसी ख़ास इंतजाम से ही संभव है। और तीसरा सबसे बड़ा कारण है इसका स्वाद। यह जिन लोगो को खाने को दिया गया, उन्हें पसंद नही आया है। अभी इसका प्रयोग जापान जैसे देश पशु आहार के लिए कर रहे हैं।
इस तरह यह अपने जीवनकाल यानी जोकि सिर्फ़ दस साल का होता है, हर साल ऐसा करते हैं उसके बाद इन पर बुढापा आ जाता है और यह बच्चा बनने की क्षमता खो देते हैं और मर जाते हैं। यही जीव यहाँ रहने वाले दूसरे जीवों का आधार है। पेंगुइन, सील, व्हेल और तरह तरह के पक्षी इन्हें खाते हैं। यह गर्मो होने पर इसी मकसद से आते हैं कि खाओ-खाओ जितनी क्रिल खा सकते हैं।
एक वैज्ञानिक अनुसंधान के आधार पर कहा गया है कि क्रिल का जीवन दस साल का होता है। आज हमारी धरती पर खेती और पशुपालन होने पर भी भुखमरी की समस्या है। वैज्ञानिको के अनुसार यहाँ इतना क्रिल है कि सारी दुनिया की भूख को खत्म किया जा सकता है। जापान रूस आदि देशों ने तो इनको बड़े पैमानों पर पकड़ना भी शुरू कर दिया है। पर यदि यही रहा तो व्हेल और सील का क्या होगा। इसके लिए भी कुदरत ने इंतजाम कर रखा है।
तीन कारणों से इनका शिकार करना मुश्किल है। एक तो पकड़े जाने पर यह बहुत जल्दी मर जाते हैं। इसी वजह से इनको तत्काल डिब्बा बंद करना जरुरी है, जो अभी वहां संभव नही हो पा रहा है। दूसरा क्रिल के बाहरी खोल में भारी मात्र में फ्लोराइड होता है, जो क्रिल के पकड़े जाने पर उसके मर जाने के कारण फैलने लगता है और यह इन्सान के लिए हानिकारक होता है। इसलिए जल्द से जल्द इसके खोल को हटाना जरुरी होता है, जो किसी ख़ास इंतजाम से ही संभव है। और तीसरा सबसे बड़ा कारण है इसका स्वाद। यह जिन लोगो को खाने को दिया गया, उन्हें पसंद नही आया है। अभी इसका प्रयोग जापान जैसे देश पशु आहार के लिए कर रहे हैं।
यहाँ रहने वाले अन्य जीवो में है सील, व्हेल मछली आदि जो यहाँ आराम से शिकार करती हैं। यहाँ का एक अनुपम पक्षी है अल्बाट्रास (Antarctic Albatross), हमारी धरती का उड़ने वाला सबसे बड़ा पक्षी। यह अंटार्कटिका के सबसे उथल-पुथल वाले इलाके में पाया जाता है 40 से 50 डिग्री दक्षिण के बीच। यहाँ हमेशा तेज हवाएं चलती रहती हैं। जिनपर यह बिना पंख फडफडाऐ आराम से उड़ता है और ऊपर नीचे तेजी से आने वाली लहरों पर से मछलियों और क्रिल का शिकार करता रहता है। यह अपने घोंसले अंटार्कटिका के सागर द्वीप पर बनाते हैं। इनकी आयु 80 साल की होती है। ये अपने साथी के प्रति जीवन भर वफादार रहते हैं, मरते दम तक।
इसके अलावा यहाँ कई तरह के प्रवासी पक्षी जैसे टर्न और पेटरल की प्रजातियाँ हैं और मैत्री स्टेशन के पास जो पक्षी सबसे अधिक देखा जाता है वह है डकैत स्कुआ (Antarctic Skua)। यह चील की तरह उड़ने वाला शिकारी पक्षी है। अन्य प्रवासी पक्षियों की तरह गर्मी के मौसम में घोंसला बनाने करीब 5000 की दूरी पार करके यहाँ आता है और टर्न, पेटरल और पेंगुइन का जमके शिकार करता है।
यह यहाँ आने वाले पक्षियों में सबसे पहले आता है। मैत्री के श्रीमाचेर पहाडी पर बहुत सारे स्कुआ के जोड़े रहते हैं। घोंसलों के पास जाने पर यह चिल्लाकर चेतवानी देने लगते हैं। फ़िर भी कोई पास जाए तो हमला बोल देते हैं। इससे बचने के लिए वैज्ञानिक हाथ में कोई आइसएक्स या छड़ी ले कर वहां से जाते हैं ताकि उससे बचा जा सके। वह उस छड़ी को आपका शरीर मान कर वार करता रहता है इस से वे वहां से आसानी से निकल सकते हैं।
यह यहाँ आने वाले पक्षियों में सबसे पहले आता है। मैत्री के श्रीमाचेर पहाडी पर बहुत सारे स्कुआ के जोड़े रहते हैं। घोंसलों के पास जाने पर यह चिल्लाकर चेतवानी देने लगते हैं। फ़िर भी कोई पास जाए तो हमला बोल देते हैं। इससे बचने के लिए वैज्ञानिक हाथ में कोई आइसएक्स या छड़ी ले कर वहां से जाते हैं ताकि उससे बचा जा सके। वह उस छड़ी को आपका शरीर मान कर वार करता रहता है इस से वे वहां से आसानी से निकल सकते हैं।
अब यह तो थी वहां के कुछ जीव जंतु की दुनिया, पर अंटार्कटिका नाम लेते ही जो एक नाम जहन में आता है वह है पेंगुइन का। इसके बारे में हम जानेंगे अगली कड़ी में।
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सच.. पेंगुइन , अंटार्कटिका का ही पर्याप्य बन गई है-.. पेंगुइन -सील -व्हेल --और किसी जीव के बारे में तुंरत याद नहीं आता
ReplyDeleteरोचक जानकारी..अगले भाग का इंतज़ार
nice blog
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रोचक जानकारी है, धन्यवाद।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रंजना जी, आप अपनी लेखनी के द्वारा अंटार्कटिका के माहौल के सुंदर एवं जीवंत रेखाचित्र खींच रही हैं।
ReplyDeleteअत्यन्त रोचक
ReplyDeleteबहुत ही रोचक जानकारी..
ReplyDeleteJaise jaise yeh yatra aage bar rahi hai. aur bhi rochak ho rahi hai.
ReplyDeleteबड़ी रोचक जानकारियाँ देने के लिए आभार. चित्र में पेंगुइन जैसे लग नहीं रही है. (यह प्रजाति)
ReplyDeleteयह पेंगुइन नही है ..उसके बारे में अगली किश्त में लिखूंगी .यह यहाँ पायी जाने वाली पक्षी अंटार्कटिका बर्ड है और दूसरे दो चित्र क्रिल के हैं
ReplyDeleteअच्छी रोचक जानकारियाँ मिल रही हमेंअंटार्कटिका के बारें में। कहीं से अच्छे फोटो भी मिले तो लगाए।
ReplyDeleteबेहद रोचक ,क्रिल के बारे में जानना भी अच्छा लगा ! क्रिल भुक्खड़ मानवता का बडा सहारा बन सकता है !
ReplyDeleteRochak jaankaari.
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत ही रोचक जानकारी है। आपकी यह श्रृंखला विज्ञान लेखन में नए आयाम स्थापित कर रही है। बधाई स्वीकारें।
ReplyDeleteइस ब्लॉग की जानकारी मिलना एक सुखद अनुभूति साबित हुई. अत्यन्त रोचक वैज्ञानिक जानकारियाँ मिल रही हैं. साधुवाद.
ReplyDeleteबहुत सरल शब्दों में समझाया है
ReplyDeleteविज्ञान में ऐसी जानकारी मिलना दुर्लभ है
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