पेंगुइन (Penguin) की रोमांचक दुनिया का विस्तृत लेखा-जोखा।
जहाँ भी अंटार्कटिका (Antarctica) की बात होती है वहां पेंगुइन (Penguin) का नाम ख़ुद बा ख़ुद आ जाता है ...पेंगुइन शब्द लैटिन (Latin) भाषा से आया है पिन्गुईस मूल से आए इस शब्द का अर्थ होता है चर्बी या मोटापा ..इस तरह पेंगुइन नाम का सीधा सा मतलब हुआ मोटी या मुट्की, जो शायद इनके मटक मटक के चलने के कारण पड़ा होगा.
धरती पर पेंगुइन की कुल 17 प्रजातियाँ पायी जाती हैं. जिनके नाम है ....ऐडली (Adélie Penguin), ऐम्परर (Emperor Penguin), किंग जीतू (King Penguin), चिन स्ट्रेप (Chinstrap Penguin), मैकरोनी (Macaroni Penguin), रॉकहापर (Rockhopper Penguin), हम्बोल्ट (Humboldt Penguin), मैगेलानिक (Magellanic Penguin), रायल (Royal Penguin), लिटिल ब्लू (Little Blue Penguin), स्नेयर्स (Snares Penguin), फयो ड्र लैंड (Fiordland Penguin), तस्मानियन (Tasmania Penguin), क्रेस्टेड (Erect-crested Penguin), अफ्रीकन (African Penguin) और गालापागोस (Galapagos Penguin)।
इन में अधिकांश अंटार्कटिका में नहीं रहती हैं सिर्फ़ दो ऐडली और ऐम्परर। अंटार्कटिका की मुख्य भूमि पर निवास और प्रजनन करती है। इस महाद्वीप के चारो और फैले सागर में बहुत सारे द्वीप हैं। यह द्वीप ही बाकी पेंगुइन प्रजातियों का निवास है। इस में आखिरी दो प्रजातियाँ बहुत अनोखी है जो ठंडे पानी को छोड़ कर गर्म पानी वाले इलाके में रहने चली गयीं है। यह केप पेंगुइन कहलाती है इनकी आवाज़ गधे जैसी होती है इस लिए जैक आस पेंगुइन भी कहा जाता है।
पेंगुइन का काला और सफ़ेद शरीर देखने में अजीब सा लगता है पर इसका एक विशेष कारण है। भोजन की तलाश में जब पेंगुइन सागर में गोता लगाती हैं, तब लेपर्ड सील और किलर व्हेल उन पर हमला करती हैं। काली पीठ होने के कारण पेंगुइन ऊपर की और से यानि सागर की सतह के नीचे की तरफ छिप जाती हैं। उसका काला रंग सागर की गहराई से घुल मिल जाता है और इसी तरह सफ़ेद पेट की तरफ़ देखने से आसमन की चमक में झिलमिल हो जाता है इस लिए अपने को बचाने के लिए यह इनकी पोशाक है। यहाँ की सर्दी से बचने के लिए पेंगुइन का पहला कवच है पंख जो इन्हे सीधी हवा के मार से बचाते हैं दूसरा कवच है मोटापा इनका शरीर चर्बी की एक मोटी परत से ढाका होता है।
ऐडली पेंगुइन (Adélie Penguin):
इनकी बस्तियां रुकरी कहलाती हैं। हर साल ऐडली पेंगुइन उसी जगह अपनी बस्ती बसाती है गर्मी का मौसम शुरू होते ही यह अक्तूबर में यहाँ आ जाती है और अपना घोंसला बनती है। जहाँ भी यहाँ पहाडियां हैं वह इनके प्रिय स्थान है। घर बनाने के नवम्बर में मादा ऐडली एक या दो अंडे देती है.. दिसम्बर तक इनसे बच्चे बाहर आ जाते हैं और फरवरी तक यह खा पी कर अपने शिकार करने समुन्दर में चल देते हैं।
ऐडली पेंगुइन (Adélie Penguin) की ऊंचाई करीब 2 फीट होती है और बजन होता है 6 किलो। इनकी आयु 15 वर्ष तक होती है। यह अंटार्कटिका में पाये जाने वाली सबसे अधिक पेंगुइन है। इसके नामकरण की कहानी बहुत रोचक है। सन 1840 में फ्रांस का एक खोजी जहाज उस इलाके में सर्वेक्षण कर रहा था जिसका कप्तान था उर्विल। इन लोगों ने पहली बार इनके समूह देखे। इन अनोखे पक्षियों का रंग अकार और भराए जैसे गले की फटी आवाज़ इन्हे बहुत लुभा रही थी। गोल गोल आँखों से इन नाविकों को देखते हुए जब इन्होंने एक मोटी औरत की तरह मटक कर चलना शुरू किया तो जहाज के कप्तान के मुहं से निकला अरे! यह तो मेरी पत्नी ऐडली की तरह चल रही है। और इस तरह वह गुमनाम औरत अंटार्कटिका के इतिहास में अमर हो गई और इन पेंगुइन का नाम ऐडली पड़ गया।
इनकी बस्तियां रुकरी कहलाती हैं। हर साल ऐडली पेंगुइन उसी जगह अपनी बस्ती बसाती है गर्मी का मौसम शुरू होते ही यह अक्तूबर में यहाँ आ जाती है और अपना घोंसला बनती है। जहाँ भी यहाँ पहाडियां हैं वह इनके प्रिय स्थान है। घर बनाने के नवम्बर में मादा ऐडली एक या दो अंडे देती है.. दिसम्बर तक इनसे बच्चे बाहर आ जाते हैं और फरवरी तक यह खा पी कर अपने शिकार करने समुन्दर में चल देते हैं।
दो अंडे इस लिए कि एक अंडे में से बच्चा न निकला तो उस साल दुबारा घर बसाना मुश्किल होगा. इसलिए यह एक बीमे जैसा है। दोनों माता पिता बारी बारी जा कर भोजन लाते हैं पर फ़िर भी इतना भोजन नहीं ला पाते की दोनों का पेट भरा जा सके। तब दोनों बच्चे में से किसी एक को कैसे बचाया जाए, उसका फ़ैसला यह बहुत निर्मम तरीके से करती हैं। यह जब भी भोजन ले कर आती हैं वह बच्चों को दिखाती हैं पर खाने को नही देती। उनको दिखा कर अपने पीछे दौडाती हैं। तब इन में से एक बच्चा जो मजबूत होता है, वह आगे आ जाता है और कमजोर बच्चा रेस हार जाता है। उसी मजबूत बच्चे को मिलता है इनाम और वह खा पी कर स्वस्थ होता जाता है और कमजोर बच्चा हर बार रेस हार जाता है धीरे धीरे बदती भूख और ठण्ड से निढाल वह स्कुआ का शिकार बन जाता है और फ़ैसला हो जाता है कि किस बच्चे को आगे पाला जायेगा।
ऐडली की सबसे बड़ी दुश्मन है लेपर्ड सील। जहाँ ऐडली पेंगुइन पानी में उतरती हैं वही यह घात लगाकर पानी में छिपी रहती हैं। इनके कारण इन पेंगुइन में एक अजीब व्यवहार देखा जाता है। यह लाइन बना कर एक के बाद एक कर के आती हैं और फ़िर पहले आप! पहले आप! करके वापस मुडती जाती हैं। बहुत देर यह आग्रह चलने के बाद भूख और ममता से तंग आ कर कोई पेंगुइन आख़िर पानी में छलांग लगा देती है। फ़िर तो उसके पीछे पूरी टोली कूद जाती है। अब लेपर्ड सील पकडेगी तो एक को बाकी तो भोजन ले कर वापस आ जायेगी।
जब ऐडली पेंगुइन के बच्चे बड़े हो जाते हैं तो पानी में उतरने के पहले दिन प्रकति के अनकहे संदेश से यह एक साथ उतारते हैं और उनके माँ बाप जानते हैं कि हो सकता है यह लेपर्ड सील का शिकार बन सकते हैं पर शायद बच्चो को बड़ा कर देने के साथ ही इनकी ममता की डोर भी टूट जाती है। अबोध बच्चों को आने वाली मुसीबत का पता नहीं होता और वह पानी में कूद जाते हैं। कुछ उनके हाथ आ जाते हैं और कुछ आगे जीवन के इस संघर्ष से लड़ने को तैयार हो जाते हैं कि आगे से कैसे उन्हें अपने भोजन के लिए समुद्र में इनसे बच के उतरना है।
ऐम्परर पेंगुइन (Emperor Penguin):
यह पेंगुइन पक्षियों में सबसे बड़ी प्रजाति है। यह 4 फीट तक ऊँची होती है और वजन होता है 40 किलो। पानी के भीतर इसकी चलने की रफ़्तार 60 किलोमीटर प्रति घंटे से भी अधिक नापी गई है। क्रिल खाने के लिए यह ठन्डे महासागर में आधा किलोमीटर से भी अधिक पानी में गोता लगा देती हैं और 15-16 मिनट तक पानी में अपनी साँस रोके रख सकती है। इनकी उम्र 40 वर्ष होती है।
ऐम्परर पेंगुइन में चर्बी की परत 2 इंच तक मोटी होती है। चर्बी उसके पूरे वजन का लगभग आधा भाग होती हैं यानी शरीर के कुल 40 किलो में 20 किलो केवल चर्बी और इस में अनोखी बात होती है शरीर का ताप गिरा देने की अनोखी क्षमता। जब पेंगुइन पानी में शिकार के लिए डुबकी लगाती है तो वह अपने खून का तापमान कम कर देती है, जिससे कम उर्जा में भी देह को गर्म बनाया रखा जा सके। गर्मी की ऋतु में जब सूरज दिन रात तेज चमकता रहता है उस वक्त इतनी मोटी चर्बी में लिपटे ऐम्परर के शरीर का ताप इतना बढ़ जाता है कि उन्हें अंटार्कटिका में भी लू लगने का खतरा होता है तब यह पेंगुइन अपने पंख खड़े कर के कूलर की तरह ठंडी हवा चलाने की कोशिश करती है। पानी की खुराक के लिए यह कभी कभी बर्फ के टुकड़े उठा कर खा लेती है, नहीं तो इनके प्रिय भोजन क्रिल में इतना पानी होता है कि इनकी पानी की कमी पूरी हो जाती है।
पूरी सर्दी में यही यहाँ टिकती है जून के महीने में मादा ऐम्परर पेंगुइन अंडा देती है तुंरत ही नर ऐम्परर इस अंडे को उठा लेता है और अपने पंजों के ऊपर रख लेता है अपने पेट से लटकती खाल से वह इसको ठण्ड से बचाता है। मादा ऐम्परर इसके बाद खाना लाने चल देती है। तब तक अंटार्कटिका सागर तट से 500 किलीमीटर तक जम चुका होता है। वह इस दूरी को तय करती है फ़िर अगले कई सप्ताह तक खुले पानी में शिकार करती है। पर इतने में सागर जमता चला जाता है और वह अपने घर से और दूर होती जाती है। खूब सारा भोजन करके और चर्बी चढा कर यह धीरे धीरे वह दूरी 9 सप्ताह में पूरी करती है। इस दौरान जहाँ इनका ठिकाना बना हुआ है वहां 150 से 250 किलोमीटर की रफ़्तार से तूफ़ान चल रहे होते हैं और इस में नर ऐम्परर बिना कुछ खाए पिए तपस्वी साधु की तरह उस अंडे को संभाले खड़ा रहता है, जिसकी जिम्मेवारी उसके जीवन साथी ने उसको सौंपी थी।
तूफानी हवा से बचने के लिए सारे नर ऐम्परर कंधे से कन्धा मिला कर हवा की और पीठ किया खड़े रहते हैं। एक-एक रुकरी में कुछ हजार तक ऐम्परर हो सकते हैं। इनके खडे होने के तरीके में भी एक ऐसा त्याग है जो सर्दी में इनके सारे समूह की जान बचा देता है साथ है यह मानव समाज के लिए एक बहुत बड़ा सबक। यह इंसानों की तरह सिर्फ़ अपने बारे में नही सोचते हैं कि झुंड के बीच में आराम से बैठा पेंगुइन सिर्फ़ अपने आराम के बारे में सोचे हर ऐम्परर कुछ देर बाद झुंड के बीच की गर्मी ले कर प्रकति की किस प्रेरणा से वह जगह दूसरे ऐम्परर के लिए छोड़ देते है और फ़िर बाहर की और अपनी बारी की ठंडी हवा खाने के लिए तैयार हो जाते हैं। इस से आराम से यह सारी सर्दी काट लेते हैं और एक दूसरे की जान बचा लेते हैं।
मादा ऐम्परर के लौटने तक नर ऐम्परर सिर्फ़ अपनी शरीरी की चर्बी पर जिंदा रहते हैं उसका वजन 40 किलो से 14 किलो रह जाता है। अगस्त में मादा के लौटने पर वह उसको अंडा या नन्हा चूजा सौंपता है और अपने खाने के लिए चल देता है हजार किलोमीटर दूर खुले पानी की ओर। त्याग और निष्ठां की ऐसी मिसाल पूरे प्राणी जगत में कहीं देखने को नहीं मिलेगी। मानव समाज में कई तरह के वचन या कस्मे दी जाती है, उस सबकी जगह नए जोडो को एक सवाल सिर्फ़ पूछना चाहिए कि "क्या तुम ऐम्परर पेंगुइन की तरह मेरा साथ निभाओगे?"
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पेंगुइन हमेशा से मनुष्यों को आकर्षित करती रही हैं। उनपर इस प्रामाणिक जानकारी के लिए हार्दिक आभार।
Deleteपेंगुइन का सिर्फ़ नाम ही सुना था आज इतनी अच्छी जानकारी और मनुष्यों की तरह अपने बच्चो से उनकी निकटता चिंता और प्यार ने काफी रोमांचित किया....
DeleteRegards
a very informative paragraph on penguins in hindi it helped me a lot and gave me a lot go general knowledge about penguins in hindi
Deletea very informative paragraph on penguins in hindi it helped me a lot and gave me a lot go general knowledge about penguins in hindi
Deleteवाह ! यह तो बहुत ही अच्छी जानकारी रही पेंगुइने के बारे में.
Deleteपेंगुइने हमेशा से ही जिज्ञासा का कारण रही हैं..आपने बहुत ही रोचक ढंग से इन के बारे में लिखा है-बधाई.
Kaash is nistha se maanav bhi kuchh seekhte.
Deleteपेंगुइन पर इस उत्तम जानकारी के लिये आपका धन्यवाद.
Deleteपेंग्निवन के बारे में विस्तृत रूप से जानकर अच्छा लगा।
Deleteसबसे पहले पेंगुइन पर इतनी उत्तम जानकारी देने के लिए शुक्रिया। सच मुझे तो आज ही पता चला इसका मतलब और इसके काले और सफेद होने का कारण। और आखिर वो मिसाल वाली बात तो सच में अद्भुत लगी। मुझे भी पेंग्विन अच्छा लगता है।
Deleteवाह कितना अच्छा नाम है मुटकी ! पेंगुइन के बारे ईतनी विस्तृत और रोचक जानकारी के लिए आभारी हूँ !
Deleteअद्भुत .आश्चर्य होता है प्रकृति के हर जीव की विशेषताओं पर .
Deleteपेंगुइन पर एक दो डॉक्युमेंट्री देखी थी. और 'हैप्पी फीट' एनीमेशन. मेडागास्कर नामक एनीमेशन के प्रिय चरित्र भी पेंगुइन ही हैं. एक बार बहुत पास से भी देखा है. करीब २ फीट की दुरी से... एक अक्वेरियम में सेस्से के घर में बंद,.इंसान भी कहाँ से कहाँ लेकर आ जाता है. पर प्यार वाली बात तो पहली बार पता चली ! क्यूट से दिखने वाले पेंगुइन्स के पास ऐसा दिल भी होता है !
DeleteAmazed !!!
DeleteAMAZED !!!!!!!!!!
Deleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " "जिन्दगी जिन्दा-दिली को जान ऐ रोशन" - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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