ग्लोबल वार्मिंग: कारण और निवारण

Global Warming Solutions in Hindi

दिन प्रतिदिन हमारी धरती गर्म होती जा रही है। कहीं-कहीं यह गर्मी इस स्तर पर पहुंच गयी है कि मानव का जीवन दूभर हो गया है। इस बढ़ती हुई गर्मी में विस्तार से यहां पर लेख प्रकाश‍ित किया गया है, जिसकी पिछली कड़ी में आपने इसके भयानक परिणामों के बारे में पढ़ा अब पढिए कारण और निवारण पर केंद्रित लेख का दूसरा भाग। इसके लेखक हैं डॉ. गुरू दयाल प्रदीप


global warming solutions
अपने लिए अधिक से अधिक सुख–सुविधाओं को जुटा लेने के प्रयास में की जा रही तथाकथित वैज्ञानिक प्रगति तथा औद्योगीकरण की प्रक्रिया ही इसके मूल में है। छोटी–बड़ी औद्योगिक इकाईयों¸ फैक्टरियों तथा लाखों–करणों वाहनों के संचालन में प्रयुक्त होने वाले कार्बन युक्त ईंधन यथा कोयला¸ प्रट्रोल¸ डीज़ल आदि के दहन से उत्पन्न गरमी और उससे भी अधिक इनके अपूर्ण दहन से निकलने वाली काबर्न–डाई–ऑक्साइड तथा मोनोऑक्साइड जैसी गैसें इस धरती के ताप को बढ़ाने में मुख्य भूमिका अदा कर रही हैं।

औद्योगीकरण ने शहरी करण को जन्म दिया। औद्योगिक ईकाइयों तथा आवास–विकास हेतु हमें ज़्यादा ज़मीन की ज़रूरत हुई। इसे हमने धरती की हरियाली की कीमत पर पाया। हरियाली कम होती जा रही है और शहर¸ सड़कें तथा फैक्टरियां ज़्यादा। परिणाम¸ वातावरण में अन्य प्रदूषण फैलाने वाले कारकों के अतिरिक्त काबर्न–डाई–ऑक्साइड की बढ़ती जा रही मात्रा। क्यों कि ये पेड़–पौधे ही हैं जो वातावरण से काबर्न–डाई–ऑक्साइड का उपयोग कर मूल–भूत भोजन काबोर्हाइडेट्स का संश्लेषण करते हैं तथा ऑक्सीज़न की मात्रा की वातावरण में वृद्धि करते हैं।

एंटाक्टिर्का में जमी बर्फ़ की अंदरूनी परतों में फंसे हवा के बुलबुलों के विश्लेषण से यह बात सामने आई है कि आज वातावरण में काबर्न–डाई–ऑक्साइड की मात्रा पिछले साढ़े छः लाख वर्षों के दौरान किसी भी समय मापी गई अधिकतम काबर्न–डाई–ऑक्साइड की तुलना में 27 प्रतिशत अधिक है। बढ़ती काबर्न–डाई–ऑक्साइड वातावरण में शीशे का काम करती है। शीशा प्रकाश को पार तो होने देता है लेकिन ताप को नहीं। सूर्य की किरणें वातावरण में उपस्थित वायु को पार कर धरती तक तो आ जाती हैं¸ परंतु धरती से टकरा कर इसका अधिकांश हिस्सा ताप में बदल जाता है। यदि वातावरण में काबर्न–डाई–ऑक्साइड की मात्रा अधिक हो तो यह ताप उसे पार कर वातावरण के बाहर नहीं जा सकता है। इसका परिणाम धरती के सामान्य ताप में धीरे धीरे वृद्धि के रूप में सामने आता है और औद्योगिक क्रांति के बाद यही हो रहा है।

औद्योगिक एवं व्यक्तिगत ऊर्जा खपत में अग्रणी होने के कारण पश्चिमी देश इस धरती को गरमाने में भी अग्रणी हैं और इनमें अमेरिका का नाम सर्वोपरि है। विकासशील तथा अविकसित देश भी इस कुकर्म में कमो–बेश अपना सहयोग दे ही रहे हैं! ऐसी परिस्थति में भला धरती को गर्म होने से कौन बचा सकता है!ऐसा भी नहीं है कि इसे कोई नहीं समझ रहा है। लेकिन अधिकतर लोग इसे समझते हुए भी नासमझ बने हुए हैं और जो इसे समझ कर इसकी रोक–थाम के उपाय के प्रयास में लगे हुए हुए हैं¸ वे मुठ्ढी भर पर्यावरण–विज्ञानी पूरे मानव समाज की मानसिकता को बदलने में अप्रभावी सिद्ध हो रहे हैं। 

हालांकि ऐसे जागरूक लोगों के प्रयास पूरी तरह निष्फल भी नहीं हुए हैं। ऐसे ही लोगों की सक्रियता के फलस्वरूप ही विश्व के लगभग 141 देशों ने फरवरी 2005 में जापान के क्योटो शहर में एक ऐसे दस्तावज पर हस्ताक्षर किए जिसमें इस बात पर सहमति बनी कि संसार के लगभग 40 औद्योगिक रूप से विकसित देश 2008 से 2012 के बीच धरती को गरमाने वाली सभी प्रकार की गैसों के उत्पादन में 1990 की तुलना में कमी लाने का प्रयास करेंगे। इस पर हस्ताक्षर करने वाले हर देश के लिऐ वहां के प्रदूषण–स्तर के अनुपात में ऐसी गैसों के उत्पादन में कमी लाने के लिए अलग–अलग मानक स्थिर किए गए हैं।

ध्यान रहे¸ इस धरती को गरमाने वाली गैसों के उत्पादन में इन देशों का हिस्सा लगभग 55 प्रतिशत है।यह सहमति पिछले सात सालों के अथक प्रयास का फल थी। इस सहमति में भारत तथा चीन जैसे विकासशील देशों को छूट दी गई थी। इसी बात को आधार बना कर ऑस्ट्रेलिया तथा विश्व के सबसे बड़े प्रदूषक देश अमेरिका ने इस पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया था। अमेरिकी तत्कालिन राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के अनुसार यह सहमति उनके देशवासियों के रोज़गार के अवसरों पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगी¸साथ ही भारत और चीन जैसे विकासशील देशों को छूट देना पक्षपात है।

अमेरिका जैसे देश का ऐसा रवैया इस दिशा में सक्रिय तथा प्रयासरत देशों तथा लोगों के लिए काफ़ी हताशापूर्ण था ।हस्ताक्षर करना और बात है¸ उसे अमली जामा पहनाना और बात! अधिकांश देशों के पास न तो कोई निश्चित योजना है और न ही सुदृढ़ राज नैतिक इच्छा। अर्थतंत्र सब पर भारी है। उदाहरण के लिए¸ इस सहमति पर सबसे पहले हस्ताक्षर करने वाले में देशों में एक – कनाडा के पास इस ध्येय को पाने के लिए कोई ठोस योजना नहीं है। 1990 की तुलना में प्रदूषण के स्तर में कमी आने के बजाय यहां लगभग 20 प्रतिशत की वृद्धि ही हुई है। जापान जैसा देश भी¸ जहां इस सहमति पर हस्ताक्षर हुए थे¸ इस ध्येय को पाने के रास्ते में आने वाली कानूनी अड़चनों को कैसे दूर करेगा–इस बारे में दुविधा में है। फिर भी इनके प्रयास सराहनीय है। आज नहीं तो कल रास्ता निकल ही आएगा। कहते हैं न– जहां चाह वहां राह। 

इसी राह पर आगे चलते हुए 28 नवंबर 2005 से 09 दिसंबर 2005 तक कनाडा के मॉन्टि्रयाल शहर में युनाइटेड नेशन्स द्वारा प्रयोजित गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस अंतर–राष्ट्रीय गोष्ठी में 189 देशों के लगभग दस हज़ार प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। यहां मुख्य मुद्दा था– क्योटो सहमति जो 2012 तक ही प्रभावी है¸ उसे आगे कैसे बढ़ाया जाय तथा 2012 के आगे भी धरती को गरमाने वाले गैसों के उत्पादन की रोक–थाम के लिए और भी प्रभावकारी रणनीति पर विचार करना तथा यह प्रयास करना कि विश्व के सबसे बडे़ प्रदूषक देश अमेरिका को किस प्रकार इस प्रयास मे शमिल किया जाय। साथ ही इस प्रयास में विकासशील देशों की ज़िम्मेदारी भी तय की जाय। 

खुशी की बात है कि लगभग क्योटो सहमति पर हस्ताक्षर करने वाले सभी देश इस समझौते को 2012 के आगे भी प्रभावी रखने के लिए सहमत हो गए हैं। अमेरिका भी¸ जो इस संधि का हस्ताक्षरकर्ता नहीं है¸ इस बात के लिए सहमत हो गया है कि वातावरण में प्रदूषण की रोक–थाम से जुड़ी दूरगामी योजनाओं संबंधी बात–चीत में शामिल होगा। शर्त यह है कि वह उन्हें मानने या न मानने के लिए बाध्य न हो। चलिए¸ भागते भूत की लंगोटी ही भली!

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चल रहे ये सरकारी तथा राज नैतिक प्रयास निश्चय ही दूरगामी प्रभाव डालेंगे¸ लेकिन मेरा मानना है कि धरती को गरमाने से बचाने का प्रयास तो महायज्ञ है और इसमें सभी का योगदान आवश्यक है। जब तक इस धरती का बच्चा–बच्चा इसके प्रति सजग नहीं होगा और व्यक्तिगत रूप से इस प्रयास में सहभागी नहीं होगा¸ धरती को इस महाविनाश से कोई नहीं बचा सकता। हमें समय रहते चेतना ही पड़ेगा वरना भस्मासुर की तरह विज्ञानरूपी वरदान के पीछे छिपे प्रदूषणरूपी इस हाथ को अपने सर पर रख कर नाचते हुए अपने विनाश का कारण हम स्वयं ही बन जाएंगे। -Dr.G.D.Pradeep
डॉ. प्रदीप के इस लेख के बाद कुछ बातें में और जोड़ना चाहूंगी-

यह बात सही है कि ग्लोबल वार्मिंग विषय में अभी भी आम आदमी जागरूक नहीं है.ऊपर डॉ.प्रदीप के लेख में ग्रीन हाउस प्रभाव की वैज्ञानिक व्याख्या की गयी है. अगर संशय है कि यह ग्रीन हाउस गैसें क्या हैं?तो मैं यहाँ साधारण शब्दों में बता देती हूँ-

ग्रीन हाउस गैसें वह गैसें होती हैं 'जो पृथ्वी के वातावरण में प्रवेश तो कर जाती हैं लेकिन फिर वो यहाँ से वापस 'अन्तरिक्ष' में नहीं जातीं और यहाँ का तापमान बढ़ाने में कारक बनती हैं. ग्रीन हाउस गैसों में कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड जैसी गैसें शामिल होती हैं. इनमें भी सबसे अधिक उत्सर्जन कार्बन डाइऑक्साइड का होता है. इस गैस का उत्सर्जन सबसे अधिक 'पॉवर प्लांट्स' से होता है.
ग्रीन हाउस गैसों के स्रोत
वैज्ञानिकों के अनुसार इन गैसों का उत्सर्जन अगर इसी प्रकार चलता रहा तो 21वीं शताब्दी में पृथ्वी का तापमान 3 से 8 डिग्री तक बढ़ सकता है, परिणाम तो आप डॉ.प्रदीप के लेख में पढ़ ही चुके हैं.
चलते चलते भारतीय पर्यावरणविदो के विचार भी सुनिये--
१-प्रसिद्ध पर्यावरणविद् सुनीता नारायण ने ग्लोबल वार्मिंग जैसे ज्वलंत और जटिल मुद्दे पर कहा यह समस्या विकसित देशों ने खड़ी की है.अमेरिका जैसे विकसित देश हर साल करीब 20 टन कार्बन का उत्सर्जन करते हैं जो भारत जैसे तीसरी दुनिया के देशों के लिए बहुत अधिक है. तीसरी दुनिया के देशों को कटघरे में खड़ा करते हुए सुनीता ने कहा तीसरी दुनिया के देशों का सबसे बड़ा दोष यह है कि वे विकसित देशों पर पृथ्वी पर बढ़ रहे असंतुलन से बचाने के लिए समुचित दबाव बनाने में विफल रहे है.

२-टेरी से जुड़ी अन्नपूर्णा ने कहा पृथ्वी दिवस पर्यावरण दिवस और एड्स दिवस को मात्र एक उत्सव न समझें .विकसित देशों की अंधाधुंध नकल करके हम आधारभूत ढांचे विकसित कर रहे हैं मगर साथ ही जरुरत है अच्छे बुरे को सामने लाने की ताकि आम आदमी पर्यावरण संबंधी खतरों को समझ सके.

३-पर्यावरणविद् सुजाय बनर्जी ने कहा जंगल स्वच्छ हवा पेयजल कृषि भूमि बढ़ती जनसंख्या और विकास के बीच संतुलन बनाये रखने की जरूरत है.उनके अनुसार रेगिस्तानी और परती जमीन पर भी वृक्ष लगाये जा सकते हैं, यह काम कठिन अवश्य है परन्तु आने वाली पीढियों को हरी भरी धरती देने के लिए यह जरुरी है.

अमेरिका का ताज़ा नजरिया -हाल ही में ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिये अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने ऊर्जा और जलवायु परिवर्तन पर एक फोरम शुरू करने का एलान किया।17 सदस्य देशों का यह फोरम विकसित और विकासशील प्रमुख देशों का है. [इस में भारत भी शामिल है.]

यह फोरम स्वच्छ ऊर्जा की आपूर्ति को बढ़ाने वाले संयुक्त उपक्रमों और ठोस पहल की सम्भावना को बढ़ाने और पर्यावरण के लिये नुकसानदेह ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने की दिशा में भी काम करेगा जो कि ओबामा प्रशासन का एक स्वागत योग्य कदम है.
अंत में नेशनल जीओग्राफी की इस विषय पर देखिये यह विडियो -

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COMMENTS

BLOGGER: 13
  1. हम सब मिलकर इस दिशा में सोचें, तभी कुछ हो सकता है।

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  2. गम्‍भीर चिंतन।

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  3. अर्चना जी, इस गम्‍भीर आलेख के आभार। आपके सुझाव भी उपयोगी हैं। इसके लिए हम सबको व्‍यक्तिगत रूप में सचेत होना होगा, तभी सुधार संभव है।


    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

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  4. अल्पना जी!

    जो लोग इस बात को समझ पाते हैं और इसकी चिंता करते हैं वो हमारे आप जैसे कुछ छुटभैये लोग हैं और जिन्हें समझना चाहिए उन्हें सिर्फ़ अपने आर्थिक स्वार्थ दिखाई देते हैं. उन्हें इस बात की परवाह ही नहीं है कि दुनिया का क्या हो रहा है. उन्हें परवाह हो, इसके लिए पूरी दुनिया को एकजुट होना पड़ेगा.

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  5. हम सब का ही किया धरा है तो हमीं को पहल करनी होगी. इस ज्ञान्वार्स्धक लेख के लिए आभार. विडियो भी शानदार है.

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  6. गंभीर चिंतन के साथ बहुत ही ज्ञानवर्द्धक आलेख .. उम्‍मीद है पर्यावरण से संबंधित विकट स्थिति को देखते हुए विभिन्‍न देशों द्वारा शीघ्र ही गंभीरता से कदम उठाए जाने लगेंगे .. हमलोगों को भी पर्यावरण को बचाने की दिशा में छोटी ही सही .. कुछ पहल तो कर ही देनी चाहिए ।

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  7. वाह बहुत ही जानकारी परक चिट्ठी !

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  8. मुझे तो अब भाजपा ही दोषी नजर आती है
    आपका क्‍या ख्‍याल है

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  9. yah bhi khuub rahi Avinash ji aap ne vigyan vishay ko bhi 'rajniti rang 'chadha diya...
    ha! ha! ha!koi baat nahin mahaul hi aisa hai.

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  10. कीर्ति वैद्य5/18/09, 10:45 AM

    इस विषय पर राजनैतिक चेतना जागृत करने की आवश्‍यकता है।

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  11. Mahatwapurn vishay par acchi jaankari aur sujhav di aapne. Magar ab vartaon se aage thos kaarya bhi hone chahiye.

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  12. अगर हम होशियार नहीं हुए, तो हमारे पास पछताने के लिए भी समय नहीं बचेगा।

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  13. उपयोगी जानकारी वह भी सहज भाव से। क्या नदी, पहाड़, वृक्ष आदि को पूजनें वाली परंपराएँ अभी भी कुछ संदेस देती नहीं लगतीं?

    वैज्ञानिक शोधों के परिणाम, जब जन-जन में स्वीकर हो सामान्य जीवन का अंग बन जाँए तो सैकड़ों साल बाद की वैज्ञानिकों की पीढ़ी क्या कहेगी?

    कभी गंगाजल पवित्र मान कर व्यवहार में लाया जाता था-बिना कारणों की तह तक पहुँचे,इस प्रवृत्ति/परंपरा की खिल्ली उड़ायी गयी। आज गंगा की दुदशा पर शोक होता है। किन्तु स्पेन के अनुसंधान के अनुसार गंगाजल में अत्यन्त सूक्ष्म रेडियो एक्टिव कण पाये गये। इसी वजह से गंगाजल मॆं बैक्टीरिया आदि जीवित नही रह पाते थे। यह भी कि यह कण मनुष्य के लिए नुक्सानदेह होंने की जगह फायदेमंद होते हैं।

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- दर्शन लाल बावेजा,1,- बी एस पाबला,1,-Dr. Prashant Arya,2,-अंकित,4,-अंकुर गुप्ता,7,-अभिषेक ओझा,2,-अल्पना वर्मा,22,-आशीष श्रीवास्‍तव,2,-इन्द्रनील भट्टाचार्जी,3,-काव्या शुक्ला,2,-जाकिर अली ‘रजनीश’,56,-जी.के. अवधिया,6,-जीशान हैदर जैदी,45,-डा प्रवीण चोपड़ा,4,-डा0 अरविंद मिश्र,26,-डा0 श्‍याम गुप्‍ता,5,-डॉ. गुरू दयाल प्रदीप,8,-डॉ0 दिनेश मिश्र,5,-दर्शन बवेजा,1,-दर्शन लाल बवेजा,7,-दर्शन लाल बावेजा,2,-दिनेशराय द्विवेदी,1,-पवन मिश्रा,1,-पूनम मिश्रा,7,-बालसुब्रमण्यम,2,-योगेन्द्र पाल,6,-रंजना [रंजू भाटिया],22,-रेखा श्रीवास्‍तव,1,-लवली कुमारी,3,-विनय प्रजापति,2,-वीरेंद्र शर्मा(वीरुभाई),81,-शिरीष खरे,2,-शैलेश भारतवासी,1,-संदीप,2,-सलीम ख़ान,13,-हिमांशु पाण्डेय,3,.संस्‍था के उद्देश्‍य,1,।NASA,1,(गंगा दशहरा),1,100 billion planets,1,2011 एम डी,1,22 जुलाई,1,22/7,1,3/14,1,3D FANTASY GAME SPARX,1,3D News Paper,2,5 जून,1,Acid rain,1,Adhik maas,1,Adolescent,1,Aids Bumb,1,aids killing cream,1,Albert von Szent-Györgyi de Nagyrápolt,1,Alfred Nobel,1,aliens,1,All india raduio,1,altruism,1,AM,18,Aml Versha,1,andhvishwas,5,animal behaviour,1,animals,1,Antarctic Bottom Water,1,Antarctica,9,anti aids cream,1,Antibiotic resistance,1,arunachal pradesh,1,astrological challenge,1,astrology,1,Astrology and Blind Faith,1,astrology and science,1,astrology challenge,1,astronomy,4,Aubrey Holes,1,Award,4,AWI,1,Ayush Kumar Mittal,1,bad effects of mobile,1,beat Cancer,1,Beauty in Mathematics,1,Benefit of Mother Milk,1,benifit of yoga,1,Bhaddari,1,Bhoot Pret,3,big bang theory,1,Binge Drinking,1,Bio Cremation,1,bionic eye Veerubhai,1,Blind Faith,4,Blind Faith and Learned person,1,bloggers achievements,1,Blood donation,1,bloom box energy generator,1,Bobs Award,1,Breath of mud,1,briny water,1,Bullock Power,1,Business Continuity,1,C Programming Language,1,calendar,1,Camel reproduction centre,1,Carbon Sink,1,Cause of Acne,1,Change Lifestyle,1,childhood and TV,1,chromosome,1,Cognitive Scinece,1,comets,1,Computer,2,darshan baweja,1,Deep Ocean Currents,1,Depression Treatment,1,desert process,1,Dineshrai Dwivedi,1,DISQUS,1,DNA,3,DNA Fingerprinting,1,Dr Shivedra Shukla,1,Dr. Abdul Kalam,1,Dr. K. 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Science Bloggers' Association: ग्लोबल वार्मिंग: कारण और निवारण
ग्लोबल वार्मिंग: कारण और निवारण
Global Warming Solutions in Hindi
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