' डी एन ए की खोज' श्रृंखला की अन्तिम कड़ी में गतांक से आगे -- 1949 में कैंब्रिज़ के कैंवेडिश अवस्थित 'मेडिकल रिसर्च ...
'डी एन ए की खोज' श्रृंखला की अन्तिम कड़ी में गतांक से आगे --
1949 में कैंब्रिज़ के कैंवेडिश अवस्थित 'मेडिकल रिसर्च काउंसिल युनिट' से फ्रैंसिस क्रिक (Francis Crick) 33 वर्ष की आयु में एक शोध–छात्र के रूप में जुड़े। उद्देश्य था– 'प्रोटीन्स का एक्स रे द्वारा अध्ययन' कर पीएच•डी की डिग्री प्राप्त करना। [1956 में इन्होंने अपना उद्देश्य अवश्य पूरा किया] फ्रैंसिस क्रिक के पास भौतिक शास्त्र की डिग्री थी तथा इसके पूर्व ये लगभग सात साल रडार एवं मेग्नेटिक माइन्स के विकास पर कार्य कर चुके थे।
1946 में प्रोटीन की संरचना की खोज से जुड़े एक महानायक अमेरिकन रसायनज्ञ 'लिनस पॉलिंग' (Linus Pauling) का अभिभाषण सुनने तथा श्रॉडिंगर की किताब पढ़ने के बाद जीव विज्ञान संबंधी शोध की तरफ क्रिक का ध्यान आकर्षित हुआ। भौतिक विज्ञानी से जीव विज्ञानी बनने के इस संक्रमण काल का अगला दो वर्ष इन्होंने कैंबिज़ में 'कोशिका में चुंबकीय कणिकाओं के संचलन' पर कार्य करते हुए बिताया।
फ्रैंसिस के साथी¸ अमेरिका में पले–बढ़े जेम्स वैट्सन (James Watson) सही अर्थों में जीव विज्ञानी थे। असाधारण प्रतिभा के धनी बालक वैट्सन को 15 वषे की आयु में ही युनिवर्सिटी में जन्तु विज्ञान के अध्ययन के लिए प्रवेश मिल गया था। बाद में 22 वर्ष की आयु में ही वैट्सन ने प्रसिद्ध वैज्ञानिक साल्वेडॉर लूरिया (Salvador Luria) के तत्वाधान में 'बॉयलॉजिकल प्रापर्टीज़ ऑफ एक्स रे इन एक्टिवेटेड बैक्टिरियोफेज' जैसे विषय पर शोध कर पीएच•डी• की उपाधि प्राप्त की। लूरिया तथा श्रॉडिंगर की किताब का इन पर काफी प्रभाव था। इस समय डी•एन•ए• के बारे में इन्हें केवल इतनी ही जानकारी थी कि ये जैविक अणु हैं।
1951 में नेपिल्स में इन्होंने एक मीटिंग में भाग लिया¸ जहां डी•एन•ए• के एक्स रे द्वारा अध्ययन के बारे में विल्किंस की वार्ता सुनी। इन्हें स्वयं एक्स रे डिफ्रैक्शन की तकनीकि का कोई ज्ञान नहीं था¸ फिर भी इन्हें विश्वास हो गया कि डी•एन•ए• जैविक क्रिया–कलापों में मुख्य भूमिका निभाने वाले अणु हैं एवं आने वाले समय में महान खोजें इसी की संरचना से संबंधित होंगी। इन्हें यह भी विश्वास हो गया कि एक्स रे डिफ्रैक्शन की तकनीकि के द्वारा ही इस पहेली को हल किया जा सकता है। लूरिया के प्रभाव का उपयोग कर फिर से पीएच•डी• करने के नाम पर कैवेंडिश के 'क्लेयर कॉलेज' में एक शोध छात्र के रूप में पंजीकरण कराने में वैट्सन सफल रहे।
सौभाग्यवश आवास के लिए इन्हें उसी कमरे में स्थान मिला¸ जिसमें क्रिक रहते थे। यहीं से दोनों के बीच पनपे सहयोग का फल अंततः डी•एन•ए• की संरचना की खोज तथा इनके लिए नोबल पुरस्कार के रूप में सामने आया। यह कार्य अकेले दम ये संभवतः इतनी आसानी से न कर पाते¸ यदि इन्हें विल्किंस¸ चारगाफ़ तथा जैसे फ्रैंकलिन लोगों का प्रत्यक्ष–अप्रत्यक्ष सहयोग न मिला होता।
इनमें फ्रैंकलिन द्वारा लिए गए एक्स रे डिफ्रैक्शन (X ray Diffraction) के चित्रों तथा उससे संबधित आंकड़ों का विशेष महत्व है।अपनी ही देख–रेख में व्यस्थित किए गए एक्स रे डिफ्रैक्शन लैब में किए गए प्रयोगों के अच्छे परिणाम से उत्साहित हो कर नवंबर 1951 में फ्रैंकलिन ने एक वार्ता का आयोजन किया। इस मीटिंग में फ्रैंकलिन ने इस बात की ओर विशेष रूप से ध्यान दिलाया कि इनके द्वारा प्राप्त डी•एन•ए• संबधी एक्स रे डिफ्रैक्शन के आंकड़े डी•एन•ए• के कुंडलीकार रूप की ओर इशारा करते हैं। साथ ही उन्होंने इस बात की संभावना भी व्यक्त कि इस कुंडलिनी की रस्सी का निर्माण संभवत: शुगर–फॉस्फेट के मिल कर हुआ है तथा नाइट्रोजन बेसेज़ इस रस्सी से अंदर की ओर जुड़े हुए हैं।
वैट्सन इस meeting में उपस्थित थे। कैंब्रिज़ लौटते–लौटते आधा–तीहा¸ जो इन्हें याद रहा¸ उसकी चर्चा इन्होंने क्रिक से की तथा इसी आधार पर फॉस्फेट समूह को केंद्र में रख कए तीन रiस्सयों वाले डी•एन•ए• के एक कुंडली–रूप मॉडल की रचना की। इस बात की चर्चा इन्होंने विल्किंस से की।
विल्किंस फ्रैंकलिन¸ गॉसलिन तथा दो–एक और सहयोगियों के साथ इसे देखने लंदन से कैंब्रिज़ आए। यह मॉडल फ्रैंकलिन के आंकडों से बिल्कुल नहं मिलता था¸ फलत: इसे नकार दिया गया।लेकिन इससे वैट्सन तथा क्रिक निराश नहीं हुए। डी•एन•ए• की संरचना तथा प्रकृति के बारे में ये कयास लगाते ही रहते थे।
इन्हीं वर्षों में फ्रेडरिक ग्रिफिथ (Frederick Griffith) के भतीजे जॉन ग्रिफिथ (John Griffith) भी बायोकेमिस्ट्री के विद्यार्थी के रूप में कैंब्रिज़ में मौज़ूद थे। इसके पूर्व ये गणित में ग्रैजुएशन कर चुके थे। जून 1952 में क्रिक तथा ग्रिफिथ के बीच हुई बात–चीत में यह बात उभर कर आई कि जीवन के आधारभूत सिद्धांतों तथा निरंतरता को बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि जीन्स के पास ऐसी प्रक्रिया होनी चाहिए जिसके बल वे अपनी प्रतिकृति स्वयं बना लें।
क्रिक ने तुरंत सुझाया कि प्रतिकृति बनाने की इस प्रक्रिया में संभवत: डी•एन•ए• के सपाट नाइट्रोजन बेसेज़ का हाथ है। एक स्थाई आकार के लिए डी•एन•ए• की रस्सियों का आपस में जुड़ा रहना भी आवश्यक है। यह कार्य भी इन रiस्सयों से संलग्न नाइट्रोजन बसेज़ के आपस में जुड़ाव द्वारा ही संभव है। ग्रिफिथ से इन्होंने यह पता लगाने के लिए कहा कि वास्तव में किस नाइट्रोजन बेस का जुड़ाव किस दूसरे नाइट्रोजन बेस के साथ संभव है।
कुछ दिनों बाद ग्रिफिथ ने उन्हें बताया कि एडेनिन¸ थाइमिन को आकर्षित करता है तथा गुआनिन¸ साइटोसिन को। लेकिन इनकी बात पर कुछ ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया।
डी•एन•ए•डिफ्रैक्शन चित्र |
इस बीच फ्रैंकलिन ने डी•एन•ए• के और भी अच्छे एक्स रे डिफ्रैक्शन चित्र प्राप्त किए जिससे पता चला कि डी•एन•ए• 'ए' तथा 'बी'– दो प्रकार का होता है और यहीं अस्थाई तौर पर फ्रैंकलिन डी•एन•ए• के 'ए' रूप की संरचना को सुनिश्चत करने के प्रयास में उलझ गयीं .. जो साफ तौर पर कुंडलिनी–रूप नहीं दिखा रहा था।वैट्सन तथा क्रिक भी आराम से इस दिशा में काम कर रहे थे। लेकिन दिसंबर 1952 में लिनस पॉलिंग के पुत्र पीटर पॉलिंग Peter Pauling (जो उस समय कैवेंडिश में अध्ययन कर रहे थे तथा वैट्सन के मित्र थे) ने अपने पिता द्वारा प्रेषित एक पत्र पाया जिसमें इस बात की चर्चा थी कि उन्होंने कोरी के साथ मिल कर डी•एन•ए• की संरचना खोज निकाली है तथा इस संदर्भ में उनका पेपर 'प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी' (Proceedings of the National Academy of Sciences) के फरवरी अंक में प्रकाशित होगा।
जनवरी 1953 में पीटर ने इस पेपर की एक अग्रिम प्रति प्राप्त की जिसे देखने का सौभाग्य वैट्सन तथा क्रिक को मिला। पॉलिंग के प्रायोजित मॉडल में भी तीन कुंडलाकार रस्सियों की परिकल्पना थी तथा फॉस्फेट को अंदर की ओर दिखाया गया था।इस मॉडल की त्रुटियों को वैटसन तथा क्रिक तुरंत समझ गए। कुछ ही दिनों बाद इस पेपर के साथ वैट्सन लंदन आए ताकि विल्किंस और फ्रैंकलिन को दिखा कर इस पर चर्चा की जाय। विल्किंस ने चर्चा के दौरान न केवल फ्रैंक्लिन द्वारा प्राप्त 'बी प्रकार के डी•एन•ए•' के चित्रों के बारे में वैट्सन को बताया बल्कि उसकी उसकी एक प्रति भी इन्हें दे दी। 'बी प्रकार के डी•एन•ए•' के चित्र देखते ही वैट्सन की समझ में आ गया कि ऐसे चित्र इसके कुंडलिनी–रूप के कारण ही संभव हैं। इसके अतिरिक्त इससे संबंधित एक्स रे तथा डेंसिटी मीजरमेंट के आंकड़े देख कर ही इन्हें यह भी भान हो गया कि डी•एन•ए• के अणु तीन रस्सियों की बजाय दो रस्सियों से बने हो सकते हैं। इन्हें यह समझते भी देर न लगी कि किस प्रकार ये दोनों रiस्सयां अलग हो कर अपना प्रतिरूप स्वत: बना सकती हैं।इस नए ज्ञान से लैस वैट्सन कैंब्रिज़ लौटकर अगले सप्ताह ही मॉडल बनाने में जुट गए।
चारग़ाफ कीमहत्वपूर्ण अनुपातिक खोज |
वैट्सन मॉडल बनाते थे और क्रिक उसमें कमियां बताते थे। पहले तो नाइट्रोजन बेसेज़ के बारे में चारग़ाफ की अनुपातिक खोज तथा गिफिथ की संगणना को पूरी तरह बिसार कर इन लोगों ने डी•एन•ए• के दुहरे कुंडली–रूप वाले गलत मॉडल का फिर से निर्माण कर डाला। इस मॉडल में रस्सी बनाने वाले अणु अंदर की ओर थे तथा नाइट्रोजन बेसेज़ बाहर की ओर। लेकिन यह मॉडल नए एक्स रे आंकड़ों से मेल नहीं खा रहा था। बड़े बेमन से इस मॉडल में परिवर्तन कर नाइट्रोजन बेसेज़ को अंदर की ओर किया गया। जब दोनों रiस्सयों के जोड़ने की बारी आई तो यहां भी इनसे गलती हो रही थी। ये दोनों रस्सियों के समान नाइट्रोजन बेसेज़ यानि एडेनिन को एडेनिन¸ साइटोसिन को साइटोसिन से जोड़ रहे थे। अब तक मॉडल बनाते–बनाते तीन सप्ताह का समय बीत चला था।
लिनस पॉलिंग के एक पूर्व सहयोगी अमेरिकन वैज्ञानिक जेरी डॉन्ॉह्यु के कैंब्रिज़ आगमन ने न केवल इन्हें अपनी त्रुटि समझने में मदद की बल्कि इसे सुधारने में भी। एक सप्ताह बाद वैट्सन के समझ में यह बात आई कि नाइट्रोजन बेसेज़ का सही जोड़ा एडेनिन–थाइमिन या फिर साइटोसिन–गुआनिन ही हो सकता है। एडेनिन¸ थाइमिन से दुहरे हाइड्रोजन बांड से जुड़ता है तो गुआनिन¸ साइटोसिन से दो या दो से अधिक बांड द्वारा जुड़ता है (बाद में पॉलिंग तथा कोरी ने इस बात की पुष्टि की गुआनिन–साइटोसिन के बीच हाइड्रोजन का तिहरा बांड होता है।) डॅन्ॉह्यू ने इस मॉडल की पुष्टि की¸ साथ ही यह मॉडल चारग़ाफ के नाइट्रोजन बेसेज़ संबधी आनुपातिक खोज तथा पूर्व में ग्रिफिथ द्वारा नाइट्रोजन बेसेज़ के जोड़े संबधी सुझावों से भी मेल खाता था
वाटसन डी एन ए मॉडल जो लन्दन म्यूज़ियम में रखा हुआ है. |
मार्च 1953 के पहले सप्ताह में मेटल प्लेट्स की सहायता से डी•एन•ए• का सटीक मॉडल बनाया गया। इन माडलों के निर्माण में कैवेंडिश की कार्यशाला में तैयार किए गए अवयवों का उपयोग किया गया था.
सुप्रसिद्ध पत्रिका 'नेचर' के 25 अपैल 1953 वाले अंक में तीन संक्षिप्त पेपर प्रकाशित हुए–पहला वैट्सन और क्रिक के नाम पर¸ दूसरा विल्किंस स्टोक्स तथा विल्सन के नाम पर तो तीसरा फ्रैंकलिन तथा गॉसलिंग के नाम पर।
लेकिन डी•एन•ए• की संरचना संबंधी खोज का मुख्य श्रेय वैट्सन एवं क्रिक को ही मिला। रोसलिंड फ्रैंकलिन (Rosalind Franklin) के योगदान को इस डी एन ए की खोज का आधार बताया जाता है. फ्रैंकलिन की कैंसर से १९५८ में मृत्यु हो गई और वे अपने योगदान का इतना महत्वपूर्ण नतीजा देख न सकीं और इस योगदान के लिए उन का नाम १९६२ में नोबल पुरस्कार प्राप्त करने वाले वाटसन, क्रिक और विल्किंस के साथ नहीं जोड़ा गया. क्योंकि नोबेल पुरुस्कार सिर्फ़ जीवित व्यक्तियों को ही दिया जाता है.
इस खोज के परिणाम का महत्व शब्दों में नहीं आँका जा सकता. जो इस खोज के बाद के 55 सालों के इस छोटे से समय अंतराल में ही आज जेनेटिक इंजीनियरिंग¸ ट्रांसजीन्स¸ क्लोनिंग¸ डिज़ाइनर बेबी आदि से संबंधित खोजों के रूप में सामने आ रहे हैं। क्रिक ने बाद में जेनेटिक कोड तथा प्रोटीन संश्लेषण में डी•एन•ए• की महत्वपूर्ण भूमिका को समझने में भी महान योगदान किया है। अनुवांशिकी के क्षेत्र में यह एक क्रांतिकारी परिवर्तन साबित हुआ.
[-डॉ. जी.डी.प्रदीप द्वारा लिखित]
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आज इस आख़िरी रोचक कड़ी को पढा सब भूला हुआ याद आ गया। रिविज़न कराने का शुक्रिया!
ReplyDelete--
सरकारी नौकरियाँ
गुलाबी कोंपलें
बहुत रोचक रही डी एन ए परिचय श्रृंखला -वाटसन आज भी हमारे बीच हैं और अपने पूरे जीनोम का सीक्वेंस तैयार करा चुके हैं -आपने इतने परिश्रम से यह ज्ञानवर्धक श्रृंखला यहाँ प्रस्तुत की बहुत आभार और शुक्रिया !
ReplyDelete"1949 में क्रिक कैंब्रिज़ के कैवेंडिश अवस्थित 'मेडिकल रिसर्च काउंसिल युनिट' से 33 वर्ष की आयु में जुड़े।" -दूसरे पैराग्राफ का यह वाक्य डिलीट करें ! क्योंकि यह पहले में आ चुका है .
इस खोज के परिणाम का महत्व शब्दों में नहीं आँका जा सकता.
ReplyDelete" बिल्कुल सत्य कहा आपने...बहुत रोचक और ज्ञान वर्धक रहा ये अन्तिम लेख भी.....कई नई जानकारी मिली "
Regards
रोचक रही श्रृंखला. ज्ञानवर्धक तो खैर है ही.
ReplyDeleteरोधक लगी आपकी यह श्रृंखला ..बहुत कुछ जाना इस के माध्यम से शुक्रिया
ReplyDeleterochak jankari humesha ki tarah...
ReplyDeleteउपयोगी श्रृंखला.साधुवाद.
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteJaankaari ke liye Haardik aabhaar.
ReplyDeleteरोचक रही डी एन ए परिचय श्रृंखला. आभार.
ReplyDeleteबहुत ही उपयोगी रही यह सीरीज़. पढ़वाने के लिए आभार.
ReplyDeleteबहुत अच्छी जानकारी दे रही हैं आप. मेरे लिए तो यह सब बिलकुल नया मामला है. जैसा कि आपने बताया फ्रंसिस क्रिक मूलतः भौतिक विज्ञानी थे, पर बाद में वे मेडिकल की रिसर्च से जुड गए तो क्या इसका मतलब यह माना जाए कि उनका अपने विषय से डाइवर्ज़न हुआ?
ReplyDeleteबहुत काम की जानकारी रही. हम पिछड़ गए. अपडेट कर लेंगे.कहीं कोई फाइबर ऑप्टिक केबल काटने से तीन दिन से नेट बंद पड़ा रहा. आपकी मेहनत सफल रही. आभार.
ReplyDeleteEk baar phir kuch nayi aur rochak jaankariyon ke liye aabhar.
ReplyDelete@Isht dev ji ,aap ne sahi jana--
ReplyDeleteaap ka uttar shuru ke paragraph mein hi hai--
-1946 में प्रोटीन की संरचना की खोज से जुड़े एक महानायक अमेरिकन रसायनज्ञ 'लिनस पॉलिंग' का अभिभाषण सुनने तथा श्रॉडिंगर की किताब पढ़ने के बाद जीव विज्ञान संबंधी शोध की तरफ क्रिक का ध्यान आकर्षित हुआ। भौतिक विज्ञानी से जीव विज्ञानी बनने के इस संक्रमण काल का अगला दो वर्ष इन्होंने कैंबिज़ में 'कोशिका में चुंबकीय कणिकाओं के संचलन' पर कार्य करते हुए बिताया।
-1949 में कैंब्रिज़ के कैंवेडिश अवस्थित 'मेडिकल रिसर्च काउंसिल युनिट' से फ्रैंसिस क्रिक 33 वर्ष की आयु में एक शोध–छात्र के रूप में जुड़े
Hello Everyone! I like watching BBC Football online.
ReplyDeleteबहुत ही गजब ढंग से लिखा गया लेख हैं |लेखक बधाई के पात्र हैं |
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