कल जहाँ बजती थीं खुशियाँ, आज है मातम वहाँ... वक़्त लाया था बहारें, वक़्त लाया है खिजाँ जी हाँ, कुछ यूँ ही होता है जब कोई इन्सान पर वक़्त का...
कल जहाँ बजती थीं खुशियाँ, आज है मातम वहाँ... वक़्त लाया था बहारें, वक़्त लाया है खिजाँ
जी हाँ, कुछ यूँ ही होता है जब कोई इन्सान पर वक़्त का कहर बरपा होता है, वक़्त कभी किसी को मुआफ़ नहीं करता. उसी तरह से जब कोई इन्सान वक़्त से चूक जाता है अर्थात अवसर को गवाँ देता है तो मुश्किल ही होता है उसका संभलना, हाँ वह संभल सकता है और सफ़ल भी हो सकता है, तब जब वह सतत सही दिशा में मेहनत करता रहे. इस तरह से वह अपने वक़्त को फ़िर से बदल सकता है. बन्दर और समय की सामंजस्यता बता रहें हैं ब्लॉगर सलीम ख़ान