तो क्या पर्यावरण संरक्षण के नाम पर आस्तिकों को अपना पूजा-पाठ और रूपसियों को सजना-संवरना छोड़ देना चाहिए?

भारतीय समाज में यह आम धारणा है कि आस्तिक व्यक्ति और नारियाँ स्वाभाविक रूप से प्रकृति के ज्यादा करीब होते है। पर शायद हकीकत इसके ठीक विपरीत ह...

भारतीय समाज में यह आम धारणा है कि आस्तिक व्यक्ति और नारियाँ स्वाभाविक रूप से प्रकृति के ज्यादा करीब होते है। पर शायद हकीकत इसके ठीक विपरीत है। क्या कहा आपको यकीन नहीं आ रहा? तो लीजिए हाजिर है 'पर्यावरण दिवस' के अवसर पर हमारी और आपकी पोल खोलती  यह विशेष सामग्री, जिसे मैंने वर्ष 1998 में प्रकाशित अपने वैज्ञानिक उपन्यास 'गिनीपिग' से ली है। उपन्यास के इस अंश में नायक प्रोफेसर और नायिका नलिनी के बीच में हुए आपसी संवाद के द्वारा यह दिखाने का प्रयत्न किया गया है कि एक आम आदमी अपने दैनिक कर्म के द्वारा प्रतिदिन कितने तरह का प्रदूषण फैलाता है।

सुबह से शाम तक हम प्रदूषण फैलाने के अलावा और क्या करते हैं?
प्रभाकर ने नलिनी की ओर मुस्कराते हुए देखा और अपनी बात आगे बढ़ाई, 'जो पेस्ट तुम प्रयोग करती हो, उसमें रंजक, खुश्बू, फ्लोराइड जैसे आठ से पन्द्रह संतृत्प रसायन फास्फेट और कार्बोनेट रूप में मिले होते हैं। मुँह धुलने के बाद तुम्हारे पिताजी दाढ़ी बनाने का काम करते हैं और दाढ़ी बनाने के लिए जो क्रीम प्रयोग में लाई जाती है, उसमें वसीय अम्लों के लवण, बोरिक अम्ल, मेंथल, ग्लिसरीन, प्रोबीलिन, ग्लॉयकोल, पायस, सुगंधियाँ आदि पाँच से बीस रसायन मिले होते हैं। और ये सभी अंतत: नाली से होते हुए नदियों मं पहुँचते हैं। फिर उससे प्रदूषण भी होता ही होगा?' कहते हुए प्रभाकर ने शरारतपूर्ण अंदाज़ में नलिनी की ओर देखा।

'हाँ, होता है।' नलिनी ने रूखे स्वर में जवाब दिया, 'आप आगे कहिए...'

प्रभाकर मुस्कराए, 'मैं पहले भी कह चुका हूँ कि तुम्हारे बाल बहुत खूबसूरत हैं। लेकिन ये खूबसूरत इसलिए हैं क्योंकि तुम इन्हें अच्छे शैम्पू से धोती हो। पर तुम्हें पता नहीं कि शैम्पू में  15 तरह के रसायन होते हैं। इसी प्रकार नहाने के साबुन और कपड़े धोने के साबुन में भी लगभग 10-10 रसायन मिले होते हैं, जिन्हे हम स्वयं को स्वच्छ रखने की ललक में रोज पानी में बहाते रहते हैं। इसी प्रकार बर्तन धोने के पाउडर और बाथरूम साफ करने के लिए उपयोग में लाए जाने वाले फिलाइल आदि में 15प्रकार के रसायन मिले होते हैं, जो बर्तन और बाथरूम को तो साफ करते हैं, पर पानी को भी प्रदूषित करते हैं।'

प्रभाकर ने एक क्षण रूक कर नलिनी के चेहरे का कम होता तापमान नापा और फिर अपनी बात आगे बढ़ाई, 'अब लेते हैं पूजा-अर्चना को। स्वयं को आस्तिक सिद्ध करने के लिए सुबह भगवान की मूर्ति के सामने दो अगरबत्ती सुलगाती ही होगी तुम? हो सकता है कपूर, तेल या धूप बत्ती भी जलाती हो। पर भगवान को खुश करने के इस साधारण से प्रयास में तुम 10 तरह के रसायन हवा में छोड़ देती हो, यह शायद तुम्हें नहीं मालूम? यानी कि भगवान के नाम पर भगवान की प्रकृति को प्रदूषित करने वाला, यह है एक उच्चकोटि का काम?'

अगर प्रभाकर की पत्नी सुलोचना यह वाक्य सुन लेतीं, तो निश्चित ही उन्हें श्राप देने को आतुर हो उठतीं। पर वे इस समय इन सब से बेखबर उधर अपने पूजा-पाठ में व्यस्त थीं और इधर प्रभाकर की विज्ञान मेल चलती ही जा रही थी, 'अब थोड़ा सा सजावट या मेकअप की बात भी होना चाहिए। फेसपैक, नेल पॉलिश, लिपिस्टिक, रूज़, परफ्यूम, पाउडर, बिंदी, कुमकुम के बिना आधुनिक नारियों का श्रृंगार पूरा नहीं होता, यह तो सभी जानते हैं। लेकिन यह बात कितने लोग जाते हैं कि नारी की सुंदरता को बढ़ाने वाले ये पदार्थ, मुँह धुलने के बाद पानी में मिलते हैं और अपने साथ 10 से 15 तरह के रसायन नदियों तक ले जाते हैं, जिनसे जल प्रदूषण ही होता है, जल शोधन नहीं।'

इस बार नलिनी के चेहरे पर कुछ नाराज़गी के भाव आए, पर प्रभाकर ने उसकी परवाह किए बिना अपनी बात जारी रखी, 'नगर निगम की कृपा से नवाबों के इस शहर में मच्छरों और अन्य कीटों की कमी नहीं। एक खोजो, करोड़ मिलते हैं। और से सभी आतंकवादियों की तरह लोगों को चैन से सोने न देने का प्रण लिए रहते हैं। इसलिए लोगों को कीटनाशक दवाओं या टिकियों का प्रयोग करना ही पड़ता है। और इस प्रकार मच्छरों के बहारे चार-पाँच प्रकार के रसायन हवा में मिल जाते हैं।'

'अब भोजन को लें। एक व्यक्ति का खाना बनने में लगभग 50 ग्राम व्यर्थ पदार्थ कूड़े या नाली में जाते हैं, जो वायु या जल प्रदूषण के कारक बनते हैं। इसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति प्रतिदिन लगभग 300 मिली0 मूत्र और 250 ग्राम मल का निष्कासन करता है। और उससे भी प्रदूषण फैलता है, यह कोई कहने की बात नहीं। इस प्रकार प्रत्‍येक व्यक्ति दिन भर में लगभग 500 ग्राम अपशिष्ट पदार्थ और लगभग 110 प्रकार के रसायन हवा में छोड़ता है। इसके अतिरिक्त बीड़ी, सिगरेट, लकड़ी कोयला के जलने, रेडियो, टीवी, फ्रिज, टेपरिकार्डर के शोर और मोपेड, स्कूटर, मोटर साईकिल, काल के द्वारा एक आम आदमी जो प्रदूषण फैलाता है, उसका तो कोई हिसाब ही नहीं। इस तरह देखा जाए, तो सुबह उठने से लेकर रात के सोने तक हमारा सारा समय प्रदूषण फैलाने में ही बीतता है। लेकिन फिर भी तुर्रा यह कि प्रदूषण के लिए जिम्मेदार सिर्फ फैक्ट्री और मोटर-गाडियाँ हैं।'
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COMMENTS

BLOGGER: 23
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  2. Are baap re, main naradham dhartee maan ka bairi, ye bojh apne seene pe lekar kaise jee sakoonga? Jakir bhai koi rasta to batayaa hota, bachne ka.

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  3. आईये जानें .... मैं कौन हूं!

    आचार्य जी

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  4. अच्छी जानकारी दी, आँखें खोल देने वाली।

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  5. Oh, ye to sachmuch chaukaane wale aakde hain. Ab kya karen?

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  6. Ab kya karen kuchh samajh men nahee aa raha. Kya apni jeevan shaili hi badlee jaaye?

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  7. आज की जीवनशैली पर्यावरण के लिए बहुत प्रतिकूल है .. वैज्ञानिको को मेहनत कर आम लोगों के लिए एक ऐसी जीवनशैली जीने का विकल्‍प तैयार कर देना होगा .. जिससे पर्यावरण में क्रमश: सुधार होता जाए !!

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  8. इसलिये बार बार यह नारा दोहराया जाता है कि प्रकृति के करीब जाये .हजामत , श्रंगार ,पूजापाठ यह सम ऐसे काम हैं जो बिना प्रदूषण फैलाये भी किये जा सकते हैं हाँ इसके लिये तरीके कुछ असुविधाजनक हो सकते हैं जैसे कच्चे दूध से हजामत बनाना आदि आदि लेकिन कुछ सुविधाओं को त्यागना भी तो ज़रूरी है ।

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  9. शरद जी के बात से सहमत !!

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  10. उपयोगी आलेख है!
    यदि अपनी नजर मे व्यक्ति सुन्दर है तो
    पूरी कायनात ही सुन्दर लगती है!

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  11. vaah............bahut hi upyogi aur aankhein kholne wali jankari di hai.

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  12. अब तो लाइफ स्टाइल के बारे में सोचना ही पडेगा।

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  13. हूँ तो आप आज से थोड़े ही थोड़े रेडिकल हैं ...पर्यावरण पर एक अच्छी पोस्ट !

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  14. This is really a good reprt on environment day but I think ki we should increase the planting process and polythin bags should be remove from market instead of that we can use paper made bags.

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  15. जानकारी के लिए आभार.
    हर व्यक्ति को अपने स्तर पर प्रयास करने चाहिए.
    आजकल सौंदर्य प्रसाधन भी ओर्गानिक आ रहे हैं उन्हें इस्तमाल करने पर जोर देना चाहिए.
    खाड़ी देशों में लोबान बहुत जलाया जाता है.जो धूप अगरबत्ती के समकक्ष ही है.

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  16. ज्ञानवर्धक. वैसे प्रसाधन के लिए प्रकृति में ही सब कुछ उपलब्ध है. जागरूकता का अभाव अवश्य है.

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  17. ---हजामत , श्रंगार ,पूजापाठ के प्राक्रतिक-पुराने रूप मौज़ूद हैं जिनसे सदियों-युगों में भी प्रदूषण नही हुआ--सारा दोष अति-भोगी, पाश्चात्य जीवन शैली व मशीनीकरण का ही है न कि पूजा पाठ का.
    --"वैसे प्रसाधन के लिए प्रकृति में ही सब कुछ उपलब्ध है. जागरूकता का अभाव अवश्य है"--सच है.
    ---अगर्वत्ती/धूप /दीप/कपूर/यग्याग्नि जलाने से प्र्यावरण शुद्ध होता है नकि प्रदूषित----साबुन पानी को प्रदूशित नहीं करता वह अन्टी सेप्टिक होता है, फ़िनायल स्वयम में एक रसायन है नकि ्रसायनों का मिश्रण,हद है वैग्यानिक अग्यान की-- इसी प्रकार से मुंह धुलने से निकले, बिन्दी आदि के रसायन इतने कम मात्रा में होते हैं कि नालों से नदियॊ से सागर तक वायु, माटी द्वारा अवशोसित होकर निश्क्रिय होजाते हैं,हां इन आधुनिक उन्नत प्रसाधनो को बनाने वाली फ़ेक्टरी आदि अवश्य भयानक प्रदूषण करती है ।
    --- जानना चाहिये कि --व्यक्ति प्राक्रतिक रूप से जो कुछ भी उत्सर्जन करता है वह प्राक्रतिक ऊर्ज़ा चक्र का भाग होता है।

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  18. आज हम जिन असफलताओं के लिए सरकार को कोसते हैं,वास्तव में,उनमें से अधिकतर के लिए हमारी रोजमर्रा की आदतें ही जिम्मेदार हैं।

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  19. डा. श्याम गुप्ता जी के कथन से सहमत.....
    आप अगर आदेश करें तो कल से पूजा-पाठ बन्द कर के नमाज पढना शुरू किया जाए:)

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  20. डा० श्याम गुप्ता जी से सहमत

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- दर्शन लाल बावेजा,1,- बी एस पाबला,1,-Dr. Prashant Arya,2,-अंकित,4,-अंकुर गुप्ता,7,-अभिषेक ओझा,2,-अल्पना वर्मा,22,-आशीष श्रीवास्‍तव,2,-इन्द्रनील भट्टाचार्जी,3,-काव्या शुक्ला,2,-जाकिर अली ‘रजनीश’,56,-जी.के. अवधिया,6,-जीशान हैदर जैदी,45,-डा प्रवीण चोपड़ा,4,-डा0 अरविंद मिश्र,26,-डा0 श्‍याम गुप्‍ता,5,-डॉ. गुरू दयाल प्रदीप,8,-डॉ0 दिनेश मिश्र,5,-दर्शन बवेजा,1,-दर्शन लाल बवेजा,7,-दर्शन लाल बावेजा,2,-दिनेशराय द्विवेदी,1,-पवन मिश्रा,1,-पूनम मिश्रा,7,-बालसुब्रमण्यम,2,-योगेन्द्र पाल,6,-रंजना [रंजू भाटिया],22,-रेखा श्रीवास्‍तव,1,-लवली कुमारी,3,-विनय प्रजापति,2,-वीरेंद्र शर्मा(वीरुभाई),81,-शिरीष खरे,2,-शैलेश भारतवासी,1,-संदीप,2,-सलीम ख़ान,13,-हिमांशु पाण्डेय,3,.संस्‍था के उद्देश्‍य,1,।NASA,1,(गंगा दशहरा),1,100 billion planets,1,2011 एम डी,1,22 जुलाई,1,22/7,1,3/14,1,3D FANTASY GAME SPARX,1,3D News Paper,2,5 जून,1,Acid rain,1,Adhik maas,1,Adolescent,1,Aids Bumb,1,aids killing cream,1,Albert von Szent-Györgyi de Nagyrápolt,1,Alfred Nobel,1,aliens,1,All india raduio,1,altruism,1,AM,18,Aml Versha,1,andhvishwas,5,animal behaviour,1,animals,1,Antarctic Bottom Water,1,Antarctica,9,anti aids cream,1,Antibiotic resistance,1,arunachal pradesh,1,astrological challenge,1,astrology,1,Astrology and Blind Faith,1,astrology and science,1,astrology challenge,1,astronomy,4,Aubrey Holes,1,Award,4,AWI,1,Ayush Kumar Mittal,1,bad effects of mobile,1,beat Cancer,1,Beauty in Mathematics,1,Benefit of Mother Milk,1,benifit of yoga,1,Bhaddari,1,Bhoot Pret,3,big bang theory,1,Binge Drinking,1,Bio Cremation,1,bionic eye Veerubhai,1,Blind Faith,4,Blind Faith and Learned person,1,bloggers achievements,1,Blood donation,1,bloom box energy generator,1,Bobs Award,1,Breath of mud,1,briny water,1,Bullock Power,1,Business Continuity,1,C Programming Language,1,calendar,1,Camel reproduction centre,1,Carbon Sink,1,Cause of Acne,1,Change Lifestyle,1,childhood and TV,1,chromosome,1,Cognitive Scinece,1,comets,1,Computer,2,darshan baweja,1,Deep Ocean Currents,1,Depression Treatment,1,desert process,1,Dineshrai Dwivedi,1,DISQUS,1,DNA,3,DNA Fingerprinting,1,Dr Shivedra Shukla,1,Dr. Abdul Kalam,1,Dr. K. 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Science Bloggers' Association: तो क्या पर्यावरण संरक्षण के नाम पर आस्तिकों को अपना पूजा-पाठ और रूपसियों को सजना-संवरना छोड़ देना चाहिए?
तो क्या पर्यावरण संरक्षण के नाम पर आस्तिकों को अपना पूजा-पाठ और रूपसियों को सजना-संवरना छोड़ देना चाहिए?
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Science Bloggers' Association
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