Unconventional narrative style- mixture of history and science. विज्ञान गल्प दी एडवेंचर -जे.वी. नार्लेकर इतिहास और विज्ञान का मिश्र दो...
Unconventional narrative style- mixture of history and science.
विज्ञान गल्प दी एडवेंचर -जे.वी. नार्लेकर
इतिहास और विज्ञान का मिश्र दोनों अपनी सत्ता के मिलन से बन सकते हैं एक दिलचस्प विज्ञान गल्प साइंस फिक्शन या विज्ञान कथा
यहां प्रस्तुत है जयंत विष्णु नार्लीकर साहब की एक विज्ञान कथा जो पानीपत की तीसरी लड़ाई में भौतिकी के एक मान्य क्वांटम सिद्धांत जो द्रव्य की बुनियादी कणिकाओं के व्यवहार पर लागू होता है और न्यूटन की प्राचीन भौतिकी के लिए मान्य नहीं है को गणित के कटस्ट्रोफी प्रिंसिपिल को शामिल करके आगे बढ़ती है। पहला सिद्धांत आम भाषा में कहता है जैसे हम ग्रहों की गति का अध्ययन करके चंद्र एवं सूर्य ग्रहण का सटीक भविष्य कथन कह देते हैं वैसा हम परमाणु की कक्षा में घूमते इलेक्ट्रानों के बारे में नहीं कर सकते। यहां परमाणु केंद्र के गिर्द घूमते इलेक्ट्रॉन की कक्षा में पोज़िशन का हम हवाला देते हैं तो इसमें समय का कोई ज़िक्र नहीं कर सकते यानी वह कब कहाँ है यह नहीं बतला सकते केवल एक संभावना व्यक्त कर सकते है के वह यहां हो सकता है कहीं और भी ठीक ठीक कुछ भी नहीं कह सकते वह होगा कहाँ । और दूसरा सिद्धांत सीधे शब्दों में कहता है बस परिस्थिति में आकस्मिक तौर पर छोटे से छोटा बदलाव किसी घटना के पूरे रूख को पानीपत जैसे युद्ध के परिणाम में एक बड़ा बदलाव ला सकता है हार जहां जीत में और जीत हार में तब्दील हो सकती है।
इतना ही नहीं यह सिद्धांत व्यक्ति के व्यवहार को भी बदल सकता है। उसका चेतन अवचेतन की पर्त खोल के रख सकता है और अवचेतन चेतन मन की बात की ओर ले जा सकता है लेकिन ये दोनों काम दो अलग अलग दुनियाओं में होंगे। एक साथ नहीं। जहां चेतन मन का कार्य क्षेत्र है वहां से अवचेतन का नदारद है और जहां अवचेतन सक्रीय है वहां अवचेतन ठप्प पड़ा है।
यहां उल्लेखित विज्ञान कथा कुछ यूं आगे बढ़ती है :
इतिहासकार गायतोंडे एक विस्तार भाषण देने पुणे से मुंबई जा रहे हैं उनके सम्भाषण का विषय है कटस्ट्रोफे सिद्धांत का पानीपत युद्ध में यदि व्यवहारिक पक्ष आ जाता तब परिणाम क्या वही होता। इसी मानसिक कुहासे को साथ लिए उनकी कार आगे बढ़ रही है तभी यकबयक एक ट्रक से टकरा जाती है। गौर तलब है उनके मन में यह सिद्धांत ठाठें मार रहा है एक मानसिक धुंध पसरी हुई है।
कोमा में ले आई है यह दुर्घटना प्रोफ़ेसर गायतोंडे साहब को। अब वह इस दुनिया से अलग एक और दुनिया में चले आये हैं जो उनके अवचेतन से संचालित है। यहां इतिहास अलग है। (विज्ञान के माहिरों ने अक्सर कहा है इस दुनिया से अलग कई और भी दुनियाएं हैं लेकिन इनके बीच परस्पर कोई लेनदेन कोई संवाद नहीं हो पाता है। )
हमारी वास्तविक दुनिया में हम ने जाना था के अफगान हमलावर अहमद शाह अब्दाली पानीपत के तीसरे युद्ध में मराठों को हरा के विजयी हुआ था।
इस दूसरी कोमा रचित दुनिया में कोमा जो स्वयं टक्कर का परिणाम था मराठा सेना नायक विश्वास राओ बाल बाल बच गया था गोली उसकी कनपटी से तिल भर की दूरी बनाते हुए निकल ज़रूर गई थी।लगी नहीं थी। किस्मत उसके साथ थी। मराठे युद्ध जीत गए थे अब्दाली मैदान छोड़के भाग खड़ा हुआ था या फिर मारा गया था उसकी सेनाओं को मराठों ने खदेड़ दिया था। इस एक घटना ने भारत में सुधारों को एक नै दिशा दी। चौतरफा वैविध्यपूर्ण विकास हुआ।
प्रोफ़ेसर कोमा से बाहर आया उसकी चेतना लौटी एक और घटना से जिसका ज़िक्र आगे आता है। फिलाल प्रोफ़ेसर का एक दोस्त !इस बदलाव का उस नै दुनिया के एहसास का विश्लेषण प्रस्तुत करता है वह अनिश्चितता के सिद्धांत तथा कटस्ट्रोफे सिद्धांत को समेकित करता है नए अनुभव में उन्हें जोड़ता है जो प्रोफ़ेसर को इस अभिनव संसार में हुआ है।
वह पुणे मुंबई मार्ग में फिरंगियों के वक्त का भारत देखता है ये गोरों की गलियां हैं फिरंगियों की ही यहां कंपनियां और दफ्तर उसे दिखलाई देते हैं। यूनियन जेक भी है वह यहां टाउनहाल की लाइब्रेरी में चला आया है इस गुथ्थी को सुलझाने के लिए वह इतिहास की पुस्तकों के कई वॉल्यूम्स खंगालता है अशोक के काल से पानीपत के युद्ध तक का वह विहंगावलोकन करता है पुस्तक की एक प्रति वह अपने कोट की जेब में खोंसलेता है जिसमें पानीपत की तीसरी लड़ाई का ज़िक्र है और वह लाइब्रेरी से बाहर निकल मुंबई के आज़ाद मैदान की ओर लपकता है जहां उसे सम्भाषण करना था।मुख्य अतिथि की कुर्सी खाली है सामने मेज़ है वह पहले तो खुद उस पर बैठ जाता है और फिर स्पीकर से माइक छीन के खुद बोलने लगता है :
जिस सभा का कोई सभापति नहीं होता है वह शेक्शपिअर के नाटक हेमलेट की तरह है जिसमें डेनमार्क का राजा हेमलेट ही नदारद है। वह ज़बरिया बोलना ज़ारी रखता है लोग मंच पे चढ़ आये हैं उसे रोकते हैं और बतलाते हैं हम सभापति की कुर्सी प्रतीक तौर पर रखते हैं वह खाली ही रहती है। वह कुछ सुनने को राजी नहीं है बोलना ज़ारी रखे है और लोग उसे मंच से उठाकर पटक देते हैं।
यह आकस्मिक तौर पर ही हुआ है वह मैदान में निश्चेतन पड़ा था होश आने पर वह वास्तविक दुनिया में लौट आता है जो उसकी जानी पहचानी है। यह परिस्तिथि उसके हालात और इतिहास को पूर्ववत बना देती है।
क्या कहते हैं देशपांडे इस समान्तर संसार की सृष्टि से लौट आने और इसके एहसासों के बारे में आगे जानिये :
वास्तविक दुनिया में मराठों के सेनापति को गोली लग गई थी यहां वह बाल -बाल बचा था यानी स्तिथि में थोड़ा सा बदलाव हुआ था और नतीजा एक दम से अलग मराठाओं की विजय में बदल जाता है। यहां सेना का मनोबल शिखर पर बना रहा है जबकि वास्तविक दुनिया में विलासराव भाऊ और उनका भतीजा विश्वास राओ दोनों शहीद हो गए थे। सेना का मनोबल टूट गया था। यह और कुछ नहीं उसका अवचेतन था यही तो उसे बोलना भी था आज़ाद मैदान से। उस मानसिक कुहासे में उसके मन में यही तो सब था। ये दो संसार वास्तविक और अभिनव इलेक्ट्रॉन के दो एनर्जी लेवल के तरह थे। इलेक्ट्रॉन प्रकाश पड़ने पर ऊपर वाली ऊर्जा सीढ़ी से नीचे गिर तो सकता है लेकिन कब इसका कोई निश्चय नहीं कोई सुराग नहीं ले सकता। गिरे तब गिरे कब ?
यही निश्चितता का अभाव इलेक्ट्रॉन का परमाणु के गिर्द कक्षा में हाइजनबर्ग अन्सर -टेन्टि प्रिन्सिपिल है।
Professor Gaitonde, a historian, is going to give a lecture on the implications of Catastrophe Theory in the Third
Battle of Panipat. On the way his car collides with a truck and he goes into coma. But he experiences another
world where history is different from how we know in the real world- in the Third Battle of Panipat, in
reality, Afghans defeated Marathas killing their leader Viswas Rao. But in the parallel world, Marathas win the
war as Viswas Rao escapes narrowly from the bullet. The victory of Marathas brings about diverse changes and
reforms in the country. He gains consciousness and his friend Rajendra Deshpande rationalizes his strange
experience on the basis of two scientific therories, viz. Catastrophe Theory and the lack of determinism in Quantum Theory.
The Parallel world
Professor Gaitonde is on his way to Bombay from Pune. It is the pre-independent Bombay where he finds Anglo-indians
and Union Jack. He goes to a library and reads four volumes of history starting from the period of
Asoka upto the Third Battle of Panipat. The fifth volume of the Book (Bhausahebanchi Bakhar) tells a different
story where Marathas win the war against Afghans in the Third Battle of Panipat. After their victory
India moved towards democracy. Absent mindedly, he tucks into his pocket a copy of the book. He reaches
Azad Maidan where a lecture is going on. The absence of the chairman for the meeting makes it strange but the
crowd doesn’t want one though the Professor protests. He gets on to the stage, snatches the mike and starts
speaking. The crowd showers eggs and tomatoes on him and finally throws him out. He is lost in the crowd.
This is where the Professor’s strange experience ends. Next we find him talking to his friend Rajendra in the real world.
Rajendra’s explanation
Rajendra explains the bizarre experience of the Professor on the basis of two scientific theories, viz. Catastrophe Theory and the lack of determinism in Quantum theory.
Catastrophe theory states that a small change in circumstance can bring sudden shift in behaviour. If we apply this
theory to the battle of Panipat, we can find that there was a crucial moment when the Marathas lost both
their leaders-Viswas Rao and Bhausaheb. So, the Marathas lost their morale and lost the battle. But in the
parallel world Prof. Gaitonde saw the bullet missing Viswas Rao and Marathas winning the battle. A crucial
event gone other way can change the course of history(the bullet missing/hitting the leader). The Professor
produces a torn page of Bhausahebanchi bakhar from his pocket. This is nothing but the notes he had prepared
for his lecture where he had imagined the fate of the battle to be otherwise. The bullet hitting Viswas rao was
the catastrophic incident in the battle. The present state of affairs has been reached because of such
catastrophic incidents in history. We can apply this theory to any other battle or historical incident and see
how history takes a different course.
Lack of determinism in Quantum theory
The behaviour of electrons orbiting the nucleus in an atom cannot be predicted. There are different states of
energy-higher and lower. It can make a jump from high to low energy level and send out a pulse of radiation or
a pulse of radiation can knock it out of state no.2 to state no.1. These states can apply to the world too.
The transitions are common in microscopic systems. If it happened on a macroscopic level, it could be an interesting food for thought.
Professor Gaitonde made a transition from the world we live in to a parallel world. One world has the history we
know, the other a different history. He neither traveled to the past nor to the future. He was in the present
but experiencing a different world. At the time of the collision with the truck, he was thinking about the
catastrophe theory and its implications in war. He was probably wondering about the battle of Panipat. Perhaps
the neurons in his brain acted as a trigger.
Like the electron jumping from one state to another, he made a jump from this world to the parallel world. Any
catastrophic situation will provide various alternatives for us to proceed. But only one can be accepted by us
at one time as we live in a unique world with a unique history. But why did he make such a transition? An
interaction is must for any such transition. The collision and the thoughts at that moment brought it about.
The incident at Azad maidan is just to show how meetings can be arranged without chairman
unlike in the real world.
The Adventure (Science Fiction story ) is one of the lesson from the book Hornbill taught at +1 level i.e in class eleven of 10 plus 2 stage.Pl read the the full text on line available at U-tube and google both .We have merely tried an explantion of the two worlds .I write everything known to me about beloved JV Narlikar sahab in my next write up here .
विज्ञान गल्प दी एडवेंचर -जे.वी. नार्लेकर
इतिहास और विज्ञान का मिश्र दोनों अपनी सत्ता के मिलन से बन सकते हैं एक दिलचस्प विज्ञान गल्प साइंस फिक्शन या विज्ञान कथा
यहां प्रस्तुत है जयंत विष्णु नार्लीकर साहब की एक विज्ञान कथा जो पानीपत की तीसरी लड़ाई में भौतिकी के एक मान्य क्वांटम सिद्धांत जो द्रव्य की बुनियादी कणिकाओं के व्यवहार पर लागू होता है और न्यूटन की प्राचीन भौतिकी के लिए मान्य नहीं है को गणित के कटस्ट्रोफी प्रिंसिपिल को शामिल करके आगे बढ़ती है। पहला सिद्धांत आम भाषा में कहता है जैसे हम ग्रहों की गति का अध्ययन करके चंद्र एवं सूर्य ग्रहण का सटीक भविष्य कथन कह देते हैं वैसा हम परमाणु की कक्षा में घूमते इलेक्ट्रानों के बारे में नहीं कर सकते। यहां परमाणु केंद्र के गिर्द घूमते इलेक्ट्रॉन की कक्षा में पोज़िशन का हम हवाला देते हैं तो इसमें समय का कोई ज़िक्र नहीं कर सकते यानी वह कब कहाँ है यह नहीं बतला सकते केवल एक संभावना व्यक्त कर सकते है के वह यहां हो सकता है कहीं और भी ठीक ठीक कुछ भी नहीं कह सकते वह होगा कहाँ । और दूसरा सिद्धांत सीधे शब्दों में कहता है बस परिस्थिति में आकस्मिक तौर पर छोटे से छोटा बदलाव किसी घटना के पूरे रूख को पानीपत जैसे युद्ध के परिणाम में एक बड़ा बदलाव ला सकता है हार जहां जीत में और जीत हार में तब्दील हो सकती है।
इतना ही नहीं यह सिद्धांत व्यक्ति के व्यवहार को भी बदल सकता है। उसका चेतन अवचेतन की पर्त खोल के रख सकता है और अवचेतन चेतन मन की बात की ओर ले जा सकता है लेकिन ये दोनों काम दो अलग अलग दुनियाओं में होंगे। एक साथ नहीं। जहां चेतन मन का कार्य क्षेत्र है वहां से अवचेतन का नदारद है और जहां अवचेतन सक्रीय है वहां अवचेतन ठप्प पड़ा है।
यहां उल्लेखित विज्ञान कथा कुछ यूं आगे बढ़ती है :
इतिहासकार गायतोंडे एक विस्तार भाषण देने पुणे से मुंबई जा रहे हैं उनके सम्भाषण का विषय है कटस्ट्रोफे सिद्धांत का पानीपत युद्ध में यदि व्यवहारिक पक्ष आ जाता तब परिणाम क्या वही होता। इसी मानसिक कुहासे को साथ लिए उनकी कार आगे बढ़ रही है तभी यकबयक एक ट्रक से टकरा जाती है। गौर तलब है उनके मन में यह सिद्धांत ठाठें मार रहा है एक मानसिक धुंध पसरी हुई है।
कोमा में ले आई है यह दुर्घटना प्रोफ़ेसर गायतोंडे साहब को। अब वह इस दुनिया से अलग एक और दुनिया में चले आये हैं जो उनके अवचेतन से संचालित है। यहां इतिहास अलग है। (विज्ञान के माहिरों ने अक्सर कहा है इस दुनिया से अलग कई और भी दुनियाएं हैं लेकिन इनके बीच परस्पर कोई लेनदेन कोई संवाद नहीं हो पाता है। )
हमारी वास्तविक दुनिया में हम ने जाना था के अफगान हमलावर अहमद शाह अब्दाली पानीपत के तीसरे युद्ध में मराठों को हरा के विजयी हुआ था।
इस दूसरी कोमा रचित दुनिया में कोमा जो स्वयं टक्कर का परिणाम था मराठा सेना नायक विश्वास राओ बाल बाल बच गया था गोली उसकी कनपटी से तिल भर की दूरी बनाते हुए निकल ज़रूर गई थी।लगी नहीं थी। किस्मत उसके साथ थी। मराठे युद्ध जीत गए थे अब्दाली मैदान छोड़के भाग खड़ा हुआ था या फिर मारा गया था उसकी सेनाओं को मराठों ने खदेड़ दिया था। इस एक घटना ने भारत में सुधारों को एक नै दिशा दी। चौतरफा वैविध्यपूर्ण विकास हुआ।
प्रोफ़ेसर कोमा से बाहर आया उसकी चेतना लौटी एक और घटना से जिसका ज़िक्र आगे आता है। फिलाल प्रोफ़ेसर का एक दोस्त !इस बदलाव का उस नै दुनिया के एहसास का विश्लेषण प्रस्तुत करता है वह अनिश्चितता के सिद्धांत तथा कटस्ट्रोफे सिद्धांत को समेकित करता है नए अनुभव में उन्हें जोड़ता है जो प्रोफ़ेसर को इस अभिनव संसार में हुआ है।
वह पुणे मुंबई मार्ग में फिरंगियों के वक्त का भारत देखता है ये गोरों की गलियां हैं फिरंगियों की ही यहां कंपनियां और दफ्तर उसे दिखलाई देते हैं। यूनियन जेक भी है वह यहां टाउनहाल की लाइब्रेरी में चला आया है इस गुथ्थी को सुलझाने के लिए वह इतिहास की पुस्तकों के कई वॉल्यूम्स खंगालता है अशोक के काल से पानीपत के युद्ध तक का वह विहंगावलोकन करता है पुस्तक की एक प्रति वह अपने कोट की जेब में खोंसलेता है जिसमें पानीपत की तीसरी लड़ाई का ज़िक्र है और वह लाइब्रेरी से बाहर निकल मुंबई के आज़ाद मैदान की ओर लपकता है जहां उसे सम्भाषण करना था।मुख्य अतिथि की कुर्सी खाली है सामने मेज़ है वह पहले तो खुद उस पर बैठ जाता है और फिर स्पीकर से माइक छीन के खुद बोलने लगता है :
जिस सभा का कोई सभापति नहीं होता है वह शेक्शपिअर के नाटक हेमलेट की तरह है जिसमें डेनमार्क का राजा हेमलेट ही नदारद है। वह ज़बरिया बोलना ज़ारी रखता है लोग मंच पे चढ़ आये हैं उसे रोकते हैं और बतलाते हैं हम सभापति की कुर्सी प्रतीक तौर पर रखते हैं वह खाली ही रहती है। वह कुछ सुनने को राजी नहीं है बोलना ज़ारी रखे है और लोग उसे मंच से उठाकर पटक देते हैं।
यह आकस्मिक तौर पर ही हुआ है वह मैदान में निश्चेतन पड़ा था होश आने पर वह वास्तविक दुनिया में लौट आता है जो उसकी जानी पहचानी है। यह परिस्तिथि उसके हालात और इतिहास को पूर्ववत बना देती है।
क्या कहते हैं देशपांडे इस समान्तर संसार की सृष्टि से लौट आने और इसके एहसासों के बारे में आगे जानिये :
वास्तविक दुनिया में मराठों के सेनापति को गोली लग गई थी यहां वह बाल -बाल बचा था यानी स्तिथि में थोड़ा सा बदलाव हुआ था और नतीजा एक दम से अलग मराठाओं की विजय में बदल जाता है। यहां सेना का मनोबल शिखर पर बना रहा है जबकि वास्तविक दुनिया में विलासराव भाऊ और उनका भतीजा विश्वास राओ दोनों शहीद हो गए थे। सेना का मनोबल टूट गया था। यह और कुछ नहीं उसका अवचेतन था यही तो उसे बोलना भी था आज़ाद मैदान से। उस मानसिक कुहासे में उसके मन में यही तो सब था। ये दो संसार वास्तविक और अभिनव इलेक्ट्रॉन के दो एनर्जी लेवल के तरह थे। इलेक्ट्रॉन प्रकाश पड़ने पर ऊपर वाली ऊर्जा सीढ़ी से नीचे गिर तो सकता है लेकिन कब इसका कोई निश्चय नहीं कोई सुराग नहीं ले सकता। गिरे तब गिरे कब ?
यही निश्चितता का अभाव इलेक्ट्रॉन का परमाणु के गिर्द कक्षा में हाइजनबर्ग अन्सर -टेन्टि प्रिन्सिपिल है।
Professor Gaitonde, a historian, is going to give a lecture on the implications of Catastrophe Theory in the Third
Battle of Panipat. On the way his car collides with a truck and he goes into coma. But he experiences another
world where history is different from how we know in the real world- in the Third Battle of Panipat, in
reality, Afghans defeated Marathas killing their leader Viswas Rao. But in the parallel world, Marathas win the
war as Viswas Rao escapes narrowly from the bullet. The victory of Marathas brings about diverse changes and
reforms in the country. He gains consciousness and his friend Rajendra Deshpande rationalizes his strange
experience on the basis of two scientific therories, viz. Catastrophe Theory and the lack of determinism in Quantum Theory.
Professor Gaitonde is on his way to Bombay from Pune. It is the pre-independent Bombay where he finds Anglo-indians
and Union Jack. He goes to a library and reads four volumes of history starting from the period of
Asoka upto the Third Battle of Panipat. The fifth volume of the Book (Bhausahebanchi Bakhar) tells a different
story where Marathas win the war against Afghans in the Third Battle of Panipat. After their victory
India moved towards democracy. Absent mindedly, he tucks into his pocket a copy of the book. He reaches
Azad Maidan where a lecture is going on. The absence of the chairman for the meeting makes it strange but the
crowd doesn’t want one though the Professor protests. He gets on to the stage, snatches the mike and starts
speaking. The crowd showers eggs and tomatoes on him and finally throws him out. He is lost in the crowd.
This is where the Professor’s strange experience ends. Next we find him talking to his friend Rajendra in the real world.
Rajendra’s explanation
Rajendra explains the bizarre experience of the Professor on the basis of two scientific theories, viz. Catastrophe Theory and the lack of determinism in Quantum theory.
Catastrophe theory states that a small change in circumstance can bring sudden shift in behaviour. If we apply this
theory to the battle of Panipat, we can find that there was a crucial moment when the Marathas lost both
their leaders-Viswas Rao and Bhausaheb. So, the Marathas lost their morale and lost the battle. But in the
parallel world Prof. Gaitonde saw the bullet missing Viswas Rao and Marathas winning the battle. A crucial
event gone other way can change the course of history(the bullet missing/hitting the leader). The Professor
produces a torn page of Bhausahebanchi bakhar from his pocket. This is nothing but the notes he had prepared
for his lecture where he had imagined the fate of the battle to be otherwise. The bullet hitting Viswas rao was
the catastrophic incident in the battle. The present state of affairs has been reached because of such
catastrophic incidents in history. We can apply this theory to any other battle or historical incident and see
how history takes a different course.
Lack of determinism in Quantum theory
The behaviour of electrons orbiting the nucleus in an atom cannot be predicted. There are different states of
energy-higher and lower. It can make a jump from high to low energy level and send out a pulse of radiation or
a pulse of radiation can knock it out of state no.2 to state no.1. These states can apply to the world too.
The transitions are common in microscopic systems. If it happened on a macroscopic level, it could be an interesting food for thought.
Professor Gaitonde made a transition from the world we live in to a parallel world. One world has the history we
know, the other a different history. He neither traveled to the past nor to the future. He was in the present
but experiencing a different world. At the time of the collision with the truck, he was thinking about the
catastrophe theory and its implications in war. He was probably wondering about the battle of Panipat. Perhaps
the neurons in his brain acted as a trigger.
Like the electron jumping from one state to another, he made a jump from this world to the parallel world. Any
catastrophic situation will provide various alternatives for us to proceed. But only one can be accepted by us
at one time as we live in a unique world with a unique history. But why did he make such a transition? An
interaction is must for any such transition. The collision and the thoughts at that moment brought it about.
The incident at Azad maidan is just to show how meetings can be arranged without chairman
unlike in the real world.
The Adventure (Science Fiction story ) is one of the lesson from the book Hornbill taught at +1 level i.e in class eleven of 10 plus 2 stage.Pl read the the full text on line available at U-tube and google both .We have merely tried an explantion of the two worlds .I write everything known to me about beloved JV Narlikar sahab in my next write up here .
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