Dna Structure and Function in Hindi.
विज्ञान विषय के जानकार यह जानते ही होंगे मगर हिन्दी में डॉ. जी.डी.प्रदीप का लिखा यह शोधपूरण लेख 'डी.एन.ए. की खोज' बहुत ही सुलझे हुए ढंग से समझा कर लिखा गया है. उनकी पूर्णअनुमति ले कर मैं यह लेख यहाँ चार भागों में प्रस्तुत कर रही हूँ. आज प्रस्तुत है पहला भाग.
डी.एन.ए. यानि डीऑक्सीराइबोज़ न्यूक्लिक एसिड
जीवन के सारे रहस्यों तथा जटिलताओं को अपने में समेटे हुए इस रसायन का नाम आज शायद ही कोई पढ़ा–लिखा इंसान हो जिसने न सुना हो। डीऑक्सीराइबोज़ शुगर¸ फॉस्फेट तथा एडेनिन¸ गुआनिन¸ साइटोसिन एवं थाइमिन जैसे प्युरिन एवं पायरीमिडीन प्रकार के नाइट्रोजन बेसेज़ से निर्मित डी•एन•ए• के अणुओं की संरचना दोहरे कुंडलिनी अथार्त् रस्सी से बने घुमावदार सीढ़ी जैसी होती है। यहां एकांतरित रूप से व्यस्थित डीऑक्सीराइबोज़ तथा फॉस्फेट के अणु इस सीढ़ी की रस्सी का काम करते हैं।
समांतर ढंग से व्यस्थित ऐसी दोनों रस्सियों के प्रत्येक डीऑक्सीराइबोज़ के काबर्न नंबर 1 से एडेनिन¸ गुआनिन¸ साइटोसिन अथवा थाइमिन का एक अणु जुड़ा होता है। ये अणु रस्सी से अन्दर की ओर उन्मुख होते हैं। यहां व्यवस्था इस प्रकार की होती है कि एक रस्सी से जुड़े एडेनिन सदैव दूसरी रस्सी से जुड़े थाइमिन के सामने होते हैं तथा गुआनिन¸ दूसरी रस्सी से जुड़े साइटोसिन के सामने होते हैं। एडेनिन¸ थाइमिन से दुहरे हाइड्रोजन बांड तथा गुआनिन¸ साइटोसिन से तिहरे हाइड्रोजन बांड द्वारा जुड़ कर इन दोनों रस्सियों को जोड़ने वाले डंडों का काम करते हैं।
जीवन के सारे रहस्यों तथा जटिलताओं को अपने में समेटे हुए इस रसायन का नाम आज शायद ही कोई पढ़ा–लिखा इंसान हो जिसने न सुना हो। डीऑक्सीराइबोज़ शुगर¸ फॉस्फेट तथा एडेनिन¸ गुआनिन¸ साइटोसिन एवं थाइमिन जैसे प्युरिन एवं पायरीमिडीन प्रकार के नाइट्रोजन बेसेज़ से निर्मित डी•एन•ए• के अणुओं की संरचना दोहरे कुंडलिनी अथार्त् रस्सी से बने घुमावदार सीढ़ी जैसी होती है। यहां एकांतरित रूप से व्यस्थित डीऑक्सीराइबोज़ तथा फॉस्फेट के अणु इस सीढ़ी की रस्सी का काम करते हैं।
इन डंडों के बीच की दूरी ०.३४ नैनो मीटर एवं डीआक्सीराइबोज़ तथा फॉस्फेट से बनी दोनों रस्सियों के बीच की दूरी 2 नैनो मीटर होती है। इन रस्सियों का घुमाव प्रत्येक 34 नैनो मीटर के बाद आता है अथार्त् किन्ही भी दो घुमाओं के बीच एडेनिन–थाइमिन अथवा साइटोसिन–गुआनिन के योग से बने दस डंडे होते हैं। डी•एन•ए• के अणु कितने सूक्ष्म होते हैं¸ इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि मीटर का अरबवां हिस्सा एक नैनो मीटर कहलाता है।
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हां¸ बस डी•एन•ए• के अणु की लंबाई निश्चित नहीं होती अथार्त् नाइट्रोजन बेस के योग से बनी सीढ़ियों की कुल संख्या डी•एन•ए• के अलग–अलग अणुओं में अलग–अलग हो सकती है। साथ ही इनकी व्यवस्था भी डी•एन•ए• के अलग–अलग अणुओं में ही नहीं बल्कि एक अणु के विभिन्न हिस्सों में भी अलग–अलग ढंग से हो सकती है।कितने एडेनिन–थाइमिन से बने डंडों के बाद साइटोसिन–गुआनिन के योग से बने कितने डंडे व्यवस्थित होंगे – यह डी•एन•ए• के अलग–अलग अणुओं की ही नहीं¸ अपितु इसके किसी एक अणु के विभिन्न हिस्सों की भी अपनी विशिष्टता होती है। यह विशिष्टता डी•एन•ए• के अणु के एक हिस्से को दूसरे हिस्से से संरचनात्मक रूप से ही नहीं¸ बल्कि कार्य–रूप में भी अलग करती है।
डी•एन•ए• के अणु का एक हिस्सा इन नाइट्रोजन बेसेज़ की विशिष्ट व्यवस्था के रूप में कूट भाषा में वह रहस्य छिपाए रहता है¸ जिसके बल किसी एक प्रोटीन–विशेष के अणुओं का निर्माण किया जा सकता है तो किसी दूसरे हिस्से से किसी अन्य प्रोटीन–विशेष के अणुओं का। डी•एन•ए• के जिस हिस्से से एक प्रकार के प्रोटीन का निर्माण संभव है¸ उसे जीन–विशेष की संज्ञा दी जा सकती है तो दूसरे भाग को¸ जिससे किसी अन्य प्रकार के प्रोटीन के अणुओं का निर्माण संभव है – दूसरे जीन–विशेष की संज्ञा दी जा सकती है।
किसी कोशिका में इतने जीन्स अवश्य होते हैं जिनके द्वारा कोशिका की संरचना के साथ–साथ जीवन पर्यंत चलने वाली विभिन्न जैव–रासायनिक प्रतिक्रियाओं के संचालन में प्रयुक्त होने वाले नाना प्रकार के प्रोटीन्स के अणुओं का निर्माण किया जा सके। (चूंकि इनमें से बहुतेरे प्रोटीन्स एन्ज़ाइम्स का कार्य करते हैं अतः इनकी सहायता से कोशिका की विभिन्न जैव–रासायनिक प्रतिक्रियाओं का संचालन होता है¸ जिनके फलस्वरूप ऊर्जा ऊत्पादन से लेकर सभी प्रकार के जैव–रसायनों का निर्माण संभव है जिनकी आवश्यकता उस कोशिका को होती है।)
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यह और बात है कि ये सारे जीन्स डी•एन•ए• के एक ही अणु में समाहित हों–जैसा कि वाइरस तथा बैक्टीरिया जैसे साधारण जीवों में होता है या फिर कोशिका के केन्द्रक में पाए जाने वाले विभिन्न क्रोमोज़ोम्स में अवस्थित डी•एन•ए• के अलग–अलग अणुओं में समाहित हों–जैसा कि उच्च श्रेणी के जीवों की कोशिकाओं में होता है। (किसी एक क्रोमोज़ोम की संरचना में प्रोटीन्स तथा डी•एन•ए• दोनों के अणुओं का हाथ होता है।
किसी कोशिका के एक क्रोमोज़ोम के डी•एन•ए• में समाहित जीन्स उसी कोशिका के अन्य क्रोमोज़ोम के डी•एन•ए• में समाहित जीन्स से न केवल संख्या में अपितु गुणवत्ता में भी अलग होते हैं।)डी•एन•ए• के इन अणुओं की एक विशेषता यह भी है कि इनमें एडेनिन–थाइमिन तथा साइटोसिन–गुआनिन को जोड़ने वाले दुहरे और तिहरे हाइड्रोजन बांड्स कमजोर होते हैं¸ फलतः विशेष परिस्थितियों में ये टूट जाते हैं। इनके टूटने से डी•एन•ए• की दोनों रस्सियाँ अपने तरफ के नाइट्रोजन बेसेज़ के साथ ज़िपर की तरह खुलने लगती हैं।
डी•एन•ए• के अणु का एक हिस्सा इन नाइट्रोजन बेसेज़ की विशिष्ट व्यवस्था के रूप में कूट भाषा में वह रहस्य छिपाए रहता है¸ जिसके बल किसी एक प्रोटीन–विशेष के अणुओं का निर्माण किया जा सकता है तो किसी दूसरे हिस्से से किसी अन्य प्रोटीन–विशेष के अणुओं का। डी•एन•ए• के जिस हिस्से से एक प्रकार के प्रोटीन का निर्माण संभव है¸ उसे जीन–विशेष की संज्ञा दी जा सकती है तो दूसरे भाग को¸ जिससे किसी अन्य प्रकार के प्रोटीन के अणुओं का निर्माण संभव है – दूसरे जीन–विशेष की संज्ञा दी जा सकती है।
किसी कोशिका में इतने जीन्स अवश्य होते हैं जिनके द्वारा कोशिका की संरचना के साथ–साथ जीवन पर्यंत चलने वाली विभिन्न जैव–रासायनिक प्रतिक्रियाओं के संचालन में प्रयुक्त होने वाले नाना प्रकार के प्रोटीन्स के अणुओं का निर्माण किया जा सके। (चूंकि इनमें से बहुतेरे प्रोटीन्स एन्ज़ाइम्स का कार्य करते हैं अतः इनकी सहायता से कोशिका की विभिन्न जैव–रासायनिक प्रतिक्रियाओं का संचालन होता है¸ जिनके फलस्वरूप ऊर्जा ऊत्पादन से लेकर सभी प्रकार के जैव–रसायनों का निर्माण संभव है जिनकी आवश्यकता उस कोशिका को होती है।)
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यह और बात है कि ये सारे जीन्स डी•एन•ए• के एक ही अणु में समाहित हों–जैसा कि वाइरस तथा बैक्टीरिया जैसे साधारण जीवों में होता है या फिर कोशिका के केन्द्रक में पाए जाने वाले विभिन्न क्रोमोज़ोम्स में अवस्थित डी•एन•ए• के अलग–अलग अणुओं में समाहित हों–जैसा कि उच्च श्रेणी के जीवों की कोशिकाओं में होता है। (किसी एक क्रोमोज़ोम की संरचना में प्रोटीन्स तथा डी•एन•ए• दोनों के अणुओं का हाथ होता है।
किसी कोशिका के एक क्रोमोज़ोम के डी•एन•ए• में समाहित जीन्स उसी कोशिका के अन्य क्रोमोज़ोम के डी•एन•ए• में समाहित जीन्स से न केवल संख्या में अपितु गुणवत्ता में भी अलग होते हैं।)डी•एन•ए• के इन अणुओं की एक विशेषता यह भी है कि इनमें एडेनिन–थाइमिन तथा साइटोसिन–गुआनिन को जोड़ने वाले दुहरे और तिहरे हाइड्रोजन बांड्स कमजोर होते हैं¸ फलतः विशेष परिस्थितियों में ये टूट जाते हैं। इनके टूटने से डी•एन•ए• की दोनों रस्सियाँ अपने तरफ के नाइट्रोजन बेसेज़ के साथ ज़िपर की तरह खुलने लगती हैं।
कोशिका के सामान्य जैविक क्रिया–काल में समय–समय पर डी•एन•ए• के अंश–विशेष (जिन्हें जीन–विशिष्ट की संज्ञा दी जा सकती है) ही खुलते हैं। इस प्रकार अलग हुई दोनों रस्सियों में एक तो अर्थहीन होती है परंतु दूसरी सांचे रूपी प्लेटफॉर्म का काम करती है¸ जिसके ऊपर एक अन्य रसायन¸ राइबोज़ न्यूक्लिक एसिड (आर•एन•ए•) के छोटे–छोटे अणुओं निर्माण होता है। डी•एन•ए• के एक अंश–विशेष (जीन) से निर्मित आर•एन•ए• के अणुओं की संरचना डी•एन•ए• के दूसरे अंश (दूसरे जीन) से निर्मित आर•एन•ए• के अणुओं से भिन्न होती है। इन आर•एन•ए• के अणुओं का उपयोग अलग–अलग प्रकार के प्रोटीन्स के संश्लेषण में होता है।
कोशिका विभाजन के समय डी•एन•ए• की दोनों रस्सियाँ उपरोक्त ढंग से ही खुलती हैं¸ बस अंतर केवल इतना होता है कि डी•एन•ए• का संपूर्ण अणु एक सिरे से दूसरे सिरे तक खुलता चला जाता है तथा दोनों ही रस्सियाँ सांचे रूपी प्लेटफॉर्म का कार्य करती हैं¸ जिन पर नए डी•एन•ए• की एक–एक रस्सी का संश्लेषण होता है। ये नई रस्सियाँ पुराने डी•एन•ए• की उस रस्सी का प्रतिरूप होती हैं¸ जिनसे सांचे रूपी प्लेटफॉर्म का कार्य करने वाली रस्सी अलग हुई है। इस प्रक्रिया के फलस्वरूप डी•एन•ए• के एक अणु से डी•एन•ए• के दो अणुओं का निमार्ण होता है।
कोशिका विभाजन के समय इनमें से एक अणु एक नई कोशिका को मिलता है तो दूसरा अणु दूसरी नई कोशिका को। इस प्रकार विभाजित होने वाली कोशिका के डी•एन•ए• के अणुओं में जितने जीन्स समाहित होते है उसकी एक–एक प्रति दोनों ही संतति कोशिकाओं को मिल जाती है। अथार्त इन नई कोशिकाओं में विभाजित होने वाली कोशिका के सभी गुण डी•एन•ए• के अणुओं के रूप में ही स्थानांतरित होते हैं
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यह मेरी सिफारिश पर आपने लिखा तो यह सर्वथा उचित ही है कि पहली कृतग्य टिप्पणी मेरी हो ! मैंने जैसा सोच रखा था उससे भी अधिक मेहनत कर आपने इस पोस्ट को प्रकाशित किया है और डी एन ये की विस्तृत जानकारी दी है -आप आपने पोस्टों पर कितना परिश्रम करती हैं ! अभी तो यह जारी है !
ReplyDeleteहेट्स ऑफ़ टू यू. सामान्य जनों के लिए सरलतम भाषा में ऐसी प्रस्तुति दुर्लभ होगी.
ReplyDelete" इस तकनीक के बारे मे सुना है मगर इतनी detail मे पढ़कर बहुत कुछ जानने का मौका मिला......"
ReplyDeleteRegards
अल्पना जी आपने तो कमाल की जानकारी दी है । आज तक तो सिर्फ़ इसका नाम ही जानते थे ।
ReplyDeleteवाकई बड़ी मेहनत का काम आप कर रही है ।
bahut achha answer maine to pura read kiya mam
Deleteआपने बिल्कुल सरल भाषा में इतने जटिल चीज की इतनी अच्छी जानकारी देकर सबों का ज्ञानवर्द्धन किया है.....बहुत बहुत धन्यवाद ।
ReplyDeleteबहुत सरल लफ्जों में आपने इस मुश्किल प्रक्रिया को मेरे जैसे विजान अधिक न जानने वाले को भी समझा दिया ..बहुत बहुत शुक्रिया अल्पना जी
ReplyDeleteविज्ञान के गूढतम रहस्यों को सरल शब्दों में प्रस्तुत करना टेढी खीर होता है। आपने इस काम को बहुत अच्छे ढंग से सम्पादित किया है, बधाई।
ReplyDeleteये बड़ी अह्ची शुरुआत की आपने. आभार.
ReplyDeleteअल्पना जी, डी0एन0ए0 से सम्बंधित डॉ. जी.डी.प्रदीप का आलेख पढ कर हार्दिक प्रसन्नता हुई। उन्होंने बडी सरलता से इतनी क्लिष्ट बातों को समझा दिया है। हॉं, आपने इस लेख को हम तक पहुंचाने में जो श्रम किया है, उसके लिए विशेष आभार। मैं आपके इस जज्बे को सलाम करता हूं।
ReplyDelete@अरविन्द जी और आप सभी का होसला अफज़ाई के लिए शुक्रिया.
ReplyDeleteइस लेख को मैं फॉण्ट बदल कर ,यहाँ सिर्फ़ चित्र आदि के साथ भागों में बाँट कर प्रस्तुत करने का प्रयास कर रही हूँ.यह सारा लेख डॉ.प्रदीप का लिखा हुआ है.और उन्होंने मुझे इसे एडिट करने और पोस्ट करने की पूरी अनुमति दी है.
यह अगले चार भागों तक चलेगा.मेरी कोशिश रहेगी कि रोचकता बनी रहे.
@जाकिर जी मैं ने उनसे इस ब्लॉग से जुड़ने के लिए कहा था मगर व्यस्तता के चलते उन्होंने फिलहाल स्वीकृति नहीं दी.
@उन्मुक्त जी ,कल के भाग -२ में इन्हीं महान वैज्ञानिकों ke योगदान के बारे में चर्चा होगी.इस ब्लॉग पर आते रहीये.
बायो से अबतक थोडी दूरी थी, मगर इस तरह की लेखमाला से यह दूरी शायद थोडी कम हो जाए. साभार.
ReplyDeleteबहुत सरल शब्दों में आपने विषय को समझाया है. आपकी कलम इसी तरह विज्ञान को जनप्रिय बनाने में चलती रहे यह कामना है!
ReplyDeleteसस्नेह -- शास्त्री
सरल शब्दों एक अच्छी जानकारी देने के लिए शुक्रिया।
ReplyDeleteक्षमा कीजिएगा। बैकग्राउंड कलर और फोंट कलर के कारण मैं पढ़ नहीं पा रहा हूं।
ReplyDeleteThanks alpana verma
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा मुझें आप ने सरल तरीके से बताया है
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा लेख है
ReplyDeletethanks
ReplyDeleteThanks
ReplyDeleteसंग्रहणीय एवं उपयोगी लेख।
ReplyDeletenice info
ReplyDeleteEs technology k baare me sunaa tha. but me nhi jaante tha.
ReplyDeleteBut tuday i have seen something. Realy it was good tech..
this way i read this, and i learnt some thing.
so very thank you for this.