आकाश में आईना ! - बालसुब्रमण्यम 4 फरवरी 1993 को रूसी अंतरिक्षविज्ञानियों ने एक अनोखा प्रयोग किया। उन्होंने बैनर नामक एक विशाल आईने को...
आकाश में आईना !
-बालसुब्रमण्यम
4 फरवरी 1993 को रूसी अंतरिक्षविज्ञानियों ने एक अनोखा प्रयोग किया। उन्होंने बैनर नामक एक विशाल आईने को अंतरिक्ष में पहुंचाया। पृथ्वी से 360 किलोमीटर ऊपर स्थित होकर उसने सूर्य की रोशनी को पृथ्वी के उस भाग में परावर्तित किया जहां अंधेरा छाया हुआ था। जहां यह रोशनी पहुंची, वहां किसी पूर्णिमा के दिन जितना उजाला हो गया।
यह आईना प्लास्टिक की एक पतली चादर के रूप में बना था जिसकी सतह पर एलुमिनियम लगा हुआ था। इसे रूसी अंतरिक्ष स्टेशन मीर को सामान पहुंचानेवाले यान प्रोग्रेस ने अंतरिक्ष में स्थापित किया। प्रोग्रेस में स्थित एक बिजली के मोटर के घूर्णन से उसके बाहर स्थित एक ड्रम घूमने लगा जिससे इतना दबाव निर्मित हुआ कि बैनर किसी जापानी पंखे के समान अंतरिक्ष में खुल गया।
बैनर ने पृथ्वी के अंधेरे भाग में रोशनी का जो पुंज पहुंचाया, उसका व्यास लगभग 5 किलोमीटर था।
बैनर के इस कारनामे का महत्व बहुत अधिक है। वह रात को दिन में बदलने की पुरातन मानव अभिलाषा को साकार कर सकता है। रूसी वैज्ञानिक कहते हैं कि बैनर से दस गुना बड़े आईनों की शृंखला सूरज के डूबने के बाद पृथ्वी के बड़े-बड़े भागों में इतनी रोशनी पहुंचा सकती है कि इससे सड़कों आदि को रोशन करने में जो करोड़ों रुपए खर्च होते हैं, उसकी बचत हो सकती है।
एक अन्य फायदा यह होगा कि इस रोशनी के कारण बड़ी निर्माण परियोजनाओं में, जैसे बांध, रेल लाइन, आदि, मजदूर दिन-रात काम कर सकेंगे। किसानों को भी यह वरदान साबित होगा क्योंकि वे लंबे समय तक खेतों में काम कर सकेंगे और फसल कटाई दिन-रात हो सकेगी।
पर्यावरण के लिए भी यह फायदेमंद है क्योंकि यह रोशनी साफसुथरी भी है और नवीकरणीय भी और इसके कारण बिजली की मांग कम हो सकती है, जिससे नए बिजलीघर बनाने की आवश्यकता घटेगी। ध्यान रहे, आज अधिकांश बिजलीघर खनिज ईंधनों को जलाकर बिजली बनाते हैं, जिससे अत्यधिक प्रदूषण होता है। पनबिजली के लिए बड़े-बड़े बांध बनाने होते हैं, जिससे भारी मात्रा में वन नष्ट होते हैं। परमाणु बिजली के कारण भी अनेक पर्यावरणीय कुप्रभाव प्रकट होते हैं।
पर इस प्रयोग के कुछ विरोधी भी हैं। जीवविज्ञानियों का मानना है कि चौबीस घंटे दिन की जैसी रोशनी रहने से दिन और रात के चक्र से चलनेवाली अनेक प्राकृतिक प्रक्रियाएं गड़बड़ा जाएंगी। रात का अंधकार चमगादड़, कुछ प्रकार के चूहे आदि अनेक रात्रिचर जीवों को सुरक्षा प्रदान करता है। यदि निरंतर रोशनी रहे, तो ये जीव आसानी से अपने परभक्षियों की नजरों में आ जाएंगे और मर मिट जाएंगे।
लेकिन उन्हें अभी चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। अंतरिक्ष दर्पणों का व्यापक प्रयोग अभी भी प्रौद्योगिकीय दृष्टि से एक चुनौती ही है। एक मुश्किल यह है कि इन आईनों को इस तरह बनाना पड़ेगा कि वे अपनी रोशनी को हमेशा पृथ्वी के किसी एक स्थान पर फेंकते रहें। यह उतना आसान नहीं है क्योंकि न केवल ये आईने बल्कि स्वयं पृथ्वी भी हर पल हजारों किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलायमान है।
बैनर की सफलता से एक और परियोजना को भी नया जीवन दान मिल सकता है। वह है अंतरिक्ष यानों को अंतरिक्ष में आगे बढ़ाने के लिए सौर पालों का उपयोग। जिस तरह भाप के इंजन आने से पहले अधिकांश समुद्री जहाज पाल के उपयोग से आगे बढ़ते थे, उसी तरह अंतरिक्ष यान भी अंतरिक्ष में सूर्य से उड़ निकलनेवाले महीन कणों, जिन्हें फोटोन कहा जाता है, के आघात को विशाल सौर पालों के जरिए संग्रह करके आगे बढ़ सकते हैं। इस तरह के पाल एक ग्रह से दूसरे ग्रह की यात्रा पर भेजे जानेवाले यानों में लगाए जा सकते हैं। ये हल्के रहेंगे और इसलिए इन यानों के लिए उपयुक्त रहेंगे।
अंतरिक्ष आईनों के कुछ अन्य उपयोग भी हो सकते हैं। उनके उपयोग से अंतरिक्ष में विशाल दूरबीन यंत्र बनाए जा सकते हैं। ये अंतरिक्ष में स्थित हबल टेलेस्कोप से कई गुना ज्यादा शक्तिशाली होंगे। आपको पता होगा कि हबल में जो दर्पण लगे हैं वे कांच के बने हैं और लगभग 8 फुट लंबे हैं। कांच के बने इससे बड़े आईनों को अंतरिक्ष में पहुंचाना अत्यंत व्यय साध्य है। इसकी जगह प्लास्टिक और एलुमिनियम के बने पतले चादरों को अंतरिक्ष में अधिक आसानी से पहुंचाया जा सकता है। इतना ही नहीं, उनसे बने दर्पण हबल के कांच के दर्पण से कई हजार गुना बड़े हो सकते हैं। इसलिए इन दर्पणों का उपयोग करनेवाले दूरबीन भी हबल से कहीं अधिक शक्तिशाली हो सकते हैं।
-बालसुब्रमण्यम
4 फरवरी 1993 को रूसी अंतरिक्षविज्ञानियों ने एक अनोखा प्रयोग किया। उन्होंने बैनर नामक एक विशाल आईने को अंतरिक्ष में पहुंचाया। पृथ्वी से 360 किलोमीटर ऊपर स्थित होकर उसने सूर्य की रोशनी को पृथ्वी के उस भाग में परावर्तित किया जहां अंधेरा छाया हुआ था। जहां यह रोशनी पहुंची, वहां किसी पूर्णिमा के दिन जितना उजाला हो गया।
यह आईना प्लास्टिक की एक पतली चादर के रूप में बना था जिसकी सतह पर एलुमिनियम लगा हुआ था। इसे रूसी अंतरिक्ष स्टेशन मीर को सामान पहुंचानेवाले यान प्रोग्रेस ने अंतरिक्ष में स्थापित किया। प्रोग्रेस में स्थित एक बिजली के मोटर के घूर्णन से उसके बाहर स्थित एक ड्रम घूमने लगा जिससे इतना दबाव निर्मित हुआ कि बैनर किसी जापानी पंखे के समान अंतरिक्ष में खुल गया।
बैनर ने पृथ्वी के अंधेरे भाग में रोशनी का जो पुंज पहुंचाया, उसका व्यास लगभग 5 किलोमीटर था।
बैनर के इस कारनामे का महत्व बहुत अधिक है। वह रात को दिन में बदलने की पुरातन मानव अभिलाषा को साकार कर सकता है। रूसी वैज्ञानिक कहते हैं कि बैनर से दस गुना बड़े आईनों की शृंखला सूरज के डूबने के बाद पृथ्वी के बड़े-बड़े भागों में इतनी रोशनी पहुंचा सकती है कि इससे सड़कों आदि को रोशन करने में जो करोड़ों रुपए खर्च होते हैं, उसकी बचत हो सकती है।
एक अन्य फायदा यह होगा कि इस रोशनी के कारण बड़ी निर्माण परियोजनाओं में, जैसे बांध, रेल लाइन, आदि, मजदूर दिन-रात काम कर सकेंगे। किसानों को भी यह वरदान साबित होगा क्योंकि वे लंबे समय तक खेतों में काम कर सकेंगे और फसल कटाई दिन-रात हो सकेगी।
पर्यावरण के लिए भी यह फायदेमंद है क्योंकि यह रोशनी साफसुथरी भी है और नवीकरणीय भी और इसके कारण बिजली की मांग कम हो सकती है, जिससे नए बिजलीघर बनाने की आवश्यकता घटेगी। ध्यान रहे, आज अधिकांश बिजलीघर खनिज ईंधनों को जलाकर बिजली बनाते हैं, जिससे अत्यधिक प्रदूषण होता है। पनबिजली के लिए बड़े-बड़े बांध बनाने होते हैं, जिससे भारी मात्रा में वन नष्ट होते हैं। परमाणु बिजली के कारण भी अनेक पर्यावरणीय कुप्रभाव प्रकट होते हैं।
पर इस प्रयोग के कुछ विरोधी भी हैं। जीवविज्ञानियों का मानना है कि चौबीस घंटे दिन की जैसी रोशनी रहने से दिन और रात के चक्र से चलनेवाली अनेक प्राकृतिक प्रक्रियाएं गड़बड़ा जाएंगी। रात का अंधकार चमगादड़, कुछ प्रकार के चूहे आदि अनेक रात्रिचर जीवों को सुरक्षा प्रदान करता है। यदि निरंतर रोशनी रहे, तो ये जीव आसानी से अपने परभक्षियों की नजरों में आ जाएंगे और मर मिट जाएंगे।
लेकिन उन्हें अभी चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। अंतरिक्ष दर्पणों का व्यापक प्रयोग अभी भी प्रौद्योगिकीय दृष्टि से एक चुनौती ही है। एक मुश्किल यह है कि इन आईनों को इस तरह बनाना पड़ेगा कि वे अपनी रोशनी को हमेशा पृथ्वी के किसी एक स्थान पर फेंकते रहें। यह उतना आसान नहीं है क्योंकि न केवल ये आईने बल्कि स्वयं पृथ्वी भी हर पल हजारों किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलायमान है।
बैनर की सफलता से एक और परियोजना को भी नया जीवन दान मिल सकता है। वह है अंतरिक्ष यानों को अंतरिक्ष में आगे बढ़ाने के लिए सौर पालों का उपयोग। जिस तरह भाप के इंजन आने से पहले अधिकांश समुद्री जहाज पाल के उपयोग से आगे बढ़ते थे, उसी तरह अंतरिक्ष यान भी अंतरिक्ष में सूर्य से उड़ निकलनेवाले महीन कणों, जिन्हें फोटोन कहा जाता है, के आघात को विशाल सौर पालों के जरिए संग्रह करके आगे बढ़ सकते हैं। इस तरह के पाल एक ग्रह से दूसरे ग्रह की यात्रा पर भेजे जानेवाले यानों में लगाए जा सकते हैं। ये हल्के रहेंगे और इसलिए इन यानों के लिए उपयुक्त रहेंगे।
अंतरिक्ष आईनों के कुछ अन्य उपयोग भी हो सकते हैं। उनके उपयोग से अंतरिक्ष में विशाल दूरबीन यंत्र बनाए जा सकते हैं। ये अंतरिक्ष में स्थित हबल टेलेस्कोप से कई गुना ज्यादा शक्तिशाली होंगे। आपको पता होगा कि हबल में जो दर्पण लगे हैं वे कांच के बने हैं और लगभग 8 फुट लंबे हैं। कांच के बने इससे बड़े आईनों को अंतरिक्ष में पहुंचाना अत्यंत व्यय साध्य है। इसकी जगह प्लास्टिक और एलुमिनियम के बने पतले चादरों को अंतरिक्ष में अधिक आसानी से पहुंचाया जा सकता है। इतना ही नहीं, उनसे बने दर्पण हबल के कांच के दर्पण से कई हजार गुना बड़े हो सकते हैं। इसलिए इन दर्पणों का उपयोग करनेवाले दूरबीन भी हबल से कहीं अधिक शक्तिशाली हो सकते हैं।
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